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जूट उत्पादन में कभी अव्वल था किशनगंज, अब किसानों के लिए लागत निकालना भी हो रहा मुश्किल - Jute Production in Kishanganj

2003 में किशनगंज के तत्कालीन सांसद और केंद्रीय मंत्री सैयद शाहनवाज हुसैन ने किशनगंज में जूट मिल का शिलान्यास किया था. लेकिन आज तक उसकी शुरुआत नहीं हो पाई है. जिससे किसानों में काफी निराशा है.

किशनगंन
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Published : Sep 17, 2020, 8:35 AM IST

किशनगंजः सीमांचल में गोल्डन फाइबर के उत्पादन में कभी अव्वल स्थान पर रहने वाला किशनगंज जिला आज निचले पायदान पर पहुंच गया है. गोल्डन फाइबर यानी जूट. यह यहां के किसानों की मुख्य फसल हुआ करती थी. जिससे किसानों को अच्छी खासी आमदनी भी होती थी. यहां के जूट की मांग कई राज्यों में हुआ करता थी.

साथ ही जूट से निर्मित सामानों का निर्यात विदेशों में भी हुआ करता था. लेकिन प्रकृति की मार, कम मुनाफा और सरकारी उदासीनता ने किसानों के जूट की खेती के प्रति मोह भंग कर दिया.

किशनगंन
जूट को सुखाया जा रहा है

आर्थिक तंगी से जूझ रहे जूट किसान
दो दसक पहले तक यह जिला जूट उत्पादन के लिए मशहूर हुआ करता था. उस वक्त यहां जूट से रेशा तैयार करने की अपार संभावनाएं थीं. तब इसकी खेती से किसानों की हर जरूरत पूरी हो जाती है. लेकिन आज तस्वीर उससे उलट है. जूट की खेती से किसान विमुख हो गए हैं. सिर्फ 10 फीसदी किसान ही अब जूट की खेती करते हैं. इससे जुड़े किसानों के सामने गई तरह की समस्याएं खड़ी हो गई है. इनमें जल संकट अहम है. फिलहाल जुट किसान आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं.

जूट तैयार करते किसान
जूट तैयार करते किसान

नहीं हो रही सरकारी खरीद
किसानों ने बताया कि सरकारी उदासीनता के कारण वे जूट की खेती छोड़ रहे हैं. जूट की खेती के लिए अच्छी खासी पानी की जरूरत होती है. जूट बोने से लेकर उसे तैयार करने में काफी पानी की खपत है. किशनगंज में अब तक सिंचाई का कोई साधन उपलब्ध नहीं है. जूट एक नगदी फसल मानी जाती है. फिर भी पिछले 10 वर्षों से यहां जूट की सरकारी खरीद नहीं हो रही है और बाजार में उचित भाव नहीं मिलता है.

पेश है खास रिपोर्ट

सरकार से नहीं मिल रही कोई मदद
जिले के किसान कई दशकों से जूट की खेती कर रहे हैं, लेकिन आज तक सरकार की ओर से सुविधा के नाम पर कुछ नहीं दिया गया है. इन्हें जूट बेचने के लिए शहर जाना पड़ता है, लेकिन इसके लिए भी सरकार की ओर से कोई मदद नहीं मिल रही है.

2003 जूट मिल का हुआ था शिलान्यास
2003 में किशनगंज के तत्कालीन सांसद और केंद्रीय मंत्री सैयद शाहनवाज हुसैन ने किशनगंज में एक जूट मिल का शिलान्यास किया था. जिसके बाद स्थानीय जूट किसानों में एक उम्मीद जगी थी. किसानों को लगा था अब उनकी आमदनी बढ़ जाएगी. लेकिन जूट मिल का सपना सपना ही रह गया और किसानों के लिए खेती में लगी पूंजी भी निकाल पाना मुश्किल हो रहा है.

किशनगंजः सीमांचल में गोल्डन फाइबर के उत्पादन में कभी अव्वल स्थान पर रहने वाला किशनगंज जिला आज निचले पायदान पर पहुंच गया है. गोल्डन फाइबर यानी जूट. यह यहां के किसानों की मुख्य फसल हुआ करती थी. जिससे किसानों को अच्छी खासी आमदनी भी होती थी. यहां के जूट की मांग कई राज्यों में हुआ करता थी.

साथ ही जूट से निर्मित सामानों का निर्यात विदेशों में भी हुआ करता था. लेकिन प्रकृति की मार, कम मुनाफा और सरकारी उदासीनता ने किसानों के जूट की खेती के प्रति मोह भंग कर दिया.

किशनगंन
जूट को सुखाया जा रहा है

आर्थिक तंगी से जूझ रहे जूट किसान
दो दसक पहले तक यह जिला जूट उत्पादन के लिए मशहूर हुआ करता था. उस वक्त यहां जूट से रेशा तैयार करने की अपार संभावनाएं थीं. तब इसकी खेती से किसानों की हर जरूरत पूरी हो जाती है. लेकिन आज तस्वीर उससे उलट है. जूट की खेती से किसान विमुख हो गए हैं. सिर्फ 10 फीसदी किसान ही अब जूट की खेती करते हैं. इससे जुड़े किसानों के सामने गई तरह की समस्याएं खड़ी हो गई है. इनमें जल संकट अहम है. फिलहाल जुट किसान आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं.

जूट तैयार करते किसान
जूट तैयार करते किसान

नहीं हो रही सरकारी खरीद
किसानों ने बताया कि सरकारी उदासीनता के कारण वे जूट की खेती छोड़ रहे हैं. जूट की खेती के लिए अच्छी खासी पानी की जरूरत होती है. जूट बोने से लेकर उसे तैयार करने में काफी पानी की खपत है. किशनगंज में अब तक सिंचाई का कोई साधन उपलब्ध नहीं है. जूट एक नगदी फसल मानी जाती है. फिर भी पिछले 10 वर्षों से यहां जूट की सरकारी खरीद नहीं हो रही है और बाजार में उचित भाव नहीं मिलता है.

पेश है खास रिपोर्ट

सरकार से नहीं मिल रही कोई मदद
जिले के किसान कई दशकों से जूट की खेती कर रहे हैं, लेकिन आज तक सरकार की ओर से सुविधा के नाम पर कुछ नहीं दिया गया है. इन्हें जूट बेचने के लिए शहर जाना पड़ता है, लेकिन इसके लिए भी सरकार की ओर से कोई मदद नहीं मिल रही है.

2003 जूट मिल का हुआ था शिलान्यास
2003 में किशनगंज के तत्कालीन सांसद और केंद्रीय मंत्री सैयद शाहनवाज हुसैन ने किशनगंज में एक जूट मिल का शिलान्यास किया था. जिसके बाद स्थानीय जूट किसानों में एक उम्मीद जगी थी. किसानों को लगा था अब उनकी आमदनी बढ़ जाएगी. लेकिन जूट मिल का सपना सपना ही रह गया और किसानों के लिए खेती में लगी पूंजी भी निकाल पाना मुश्किल हो रहा है.

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