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बेमौसम बरसात और लॉकडाउन की वजह से किसान परेशान, फसलों को हो रहा भारी नुकसान - agriculture department

किसानों का कहना है कि ज्यादतर फसल लॉकडाउन, आंधी और बेमौसम बरसात की वजह से नष्ट हो गए हैं. बचे हुए फसलों को बेचने पर सही समर्थन मूल्य भी नहीं मिल पा रहा है और ना ही कोई खरीदार. जिस वजह से हमें मजबूरन बिचौलिए को औने-पौने दामों पर बेचना पड़ रहा है.

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Published : Jun 8, 2020, 8:22 PM IST

किशनगंज: बेमौसम बारिश और कोरोना महामारी को लेकर जारी लॉकडाउन के कारण किसानों का हाल-बेहाल है. इस साल उन्हें प्रकृति की दोहरी मार झेलनी पड़ी है. इसमें मक्का की फसल बुरी तरह प्रभावित हुई है. आलम यह है कि मक्का किसान भुखमरी की कगार पर आ गए हैं.

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मक्के की फसल

पीड़ित किसानों का बताना है कि मक्के का समर्थन मूल्य 1700-1760 रुपये प्रति क्विंटल है, लेकिन बिचौलियों की वजह से मात्र 1100-1150 रुपये प्रति क्विंटल ही मिल रहे हैं. जिससे उनकी थोड़ी-बहुत बची उम्मीद भी पूरी तरह समाप्त हो गई.

अधिकांश भू-भाग पर होती है मक्के की खेती
दरअसल, किशनगंज मक्का उत्पादन के लिए जाना जाता है. यहां अधिकांश भू-भाग पर मक्के की खेती होती है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक देश में 30 फीसदी से भी अधिक मक्के का उत्पादन सीमांचल और कोसी के 6 जिलों में होता है. इसमें जिले के किसानों की भागीदारी तकरीबन 6 फीसदी है.

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फसलों को सुखा रहे किसान

मक्के की खेती करने वाले किसानों की मानें तो कृषि विभाग से खेती में भरपूर सहयोग मिला. लेकिन, जिस पर सबसे ज्यादा उम्मीदें टिकी थी, उस मौसम ने ही साथ छोड़ दिया. जिन दो महीनों में मक्के की फसलों की कटाई की जाती है उस दौरान वे घरों में कैद रहे और जब घरों से निकलने की इजाजत मिली तो मजदूरों ने फसलों की कटाई से साफ मना कर दिया.

बेमौसम बरसात के कारण फसल बर्बाद
किसानों का बताना है कि तेज आंधी और बारिश के कारण मक्के की फसल काफी हदतक बर्बाद हो गई. उन्होंने बताया कि एक बीघा मक्के की फसल में लगभग 11,000 से 12,000 रुपये का खर्च आता है. लेकिन इस बार एक बीघे में ज्यादा से ज्यादा 5-6 क्विंटल मक्का निकल रहा है. जिसकी कीमत बिचौलिये 1100-1150 रुपये प्रति क्विंटल लगा रहे हैं. पैसे की जरूरत है, लिहाजा मजबूरन बेचना पड़ रहा है. वैसे भी अगर नहीं बेचेंगे तो बारिश में भींग कर अनाज खराब हो जाएंगे.

40 फीसदी से अधिक क्षति का अनुमान
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक जिले के सभी 6 प्रखंड बारिश और आंधी से पूरी तरह प्रभावित हैं. वहीं, कृषि विभाग ने 40 फीसदी से भी अधिक क्षति का अनुमान जताया है. इनमें किशनगंज, दिघलबैंक, ठाकुरगंज, पोठिया, बहादुरगंज और कोचाधामन शमिल है. इन सभी प्रखंडों में किसानों की फसल लगभग बर्बाद हो गई है, जिसके कारण मुनाफे की कोई गुंजाइश नहीं है.

पेश है एक रिपोर्ट

कर्ज लेकर करते हैं खेती
किसानों ने बताया कि हम लोग कर्ज लेकर खेती करते हैं और फसल बेचकर उधार चुकाते हैं, जो मुनाफा होता है उससे अपना परिवार चलाते हैं. लेकिन, इस साल मौसम की मार और लॉकडाउन की वजह से काफी परेशानी झेलनी पड़ रही है. किसानों ने कृषि विभाग से गुहार लगाई है कि उन्हें इसका मुआवजा मिले जिससे की वे अपना कर्ज चुका सकें.

सभी को मिलेगा मुआवजा
वहीं, इस मामले पर किशनगंज कृषि पदाधिकारी संतलाल साहा ने बताया कि जिले के लगभग 15 हजार से ज्यादा किसानों को फसल का नुकसान हुआ है. इसके लिए ऑनलाइन आवेदन भी मंगवाए गए हैं. जिन किसानों के फसलों को क्षति हुई है, उन्हें मुआवजा मिलेगा. कृषि पदाधिकारी ने बताया कि इस बार समर्थन मूल्य 1700 से ज्यादा है. लेकिन को-ऑपरेटिव विभाग की तरफ से मक्के की खरीद नहीं की जाती है. इस कारण किसान अपना मक्का बिचौलियो को बेचते हैं.

किशनगंज: बेमौसम बारिश और कोरोना महामारी को लेकर जारी लॉकडाउन के कारण किसानों का हाल-बेहाल है. इस साल उन्हें प्रकृति की दोहरी मार झेलनी पड़ी है. इसमें मक्का की फसल बुरी तरह प्रभावित हुई है. आलम यह है कि मक्का किसान भुखमरी की कगार पर आ गए हैं.

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मक्के की फसल

पीड़ित किसानों का बताना है कि मक्के का समर्थन मूल्य 1700-1760 रुपये प्रति क्विंटल है, लेकिन बिचौलियों की वजह से मात्र 1100-1150 रुपये प्रति क्विंटल ही मिल रहे हैं. जिससे उनकी थोड़ी-बहुत बची उम्मीद भी पूरी तरह समाप्त हो गई.

अधिकांश भू-भाग पर होती है मक्के की खेती
दरअसल, किशनगंज मक्का उत्पादन के लिए जाना जाता है. यहां अधिकांश भू-भाग पर मक्के की खेती होती है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक देश में 30 फीसदी से भी अधिक मक्के का उत्पादन सीमांचल और कोसी के 6 जिलों में होता है. इसमें जिले के किसानों की भागीदारी तकरीबन 6 फीसदी है.

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फसलों को सुखा रहे किसान

मक्के की खेती करने वाले किसानों की मानें तो कृषि विभाग से खेती में भरपूर सहयोग मिला. लेकिन, जिस पर सबसे ज्यादा उम्मीदें टिकी थी, उस मौसम ने ही साथ छोड़ दिया. जिन दो महीनों में मक्के की फसलों की कटाई की जाती है उस दौरान वे घरों में कैद रहे और जब घरों से निकलने की इजाजत मिली तो मजदूरों ने फसलों की कटाई से साफ मना कर दिया.

बेमौसम बरसात के कारण फसल बर्बाद
किसानों का बताना है कि तेज आंधी और बारिश के कारण मक्के की फसल काफी हदतक बर्बाद हो गई. उन्होंने बताया कि एक बीघा मक्के की फसल में लगभग 11,000 से 12,000 रुपये का खर्च आता है. लेकिन इस बार एक बीघे में ज्यादा से ज्यादा 5-6 क्विंटल मक्का निकल रहा है. जिसकी कीमत बिचौलिये 1100-1150 रुपये प्रति क्विंटल लगा रहे हैं. पैसे की जरूरत है, लिहाजा मजबूरन बेचना पड़ रहा है. वैसे भी अगर नहीं बेचेंगे तो बारिश में भींग कर अनाज खराब हो जाएंगे.

40 फीसदी से अधिक क्षति का अनुमान
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक जिले के सभी 6 प्रखंड बारिश और आंधी से पूरी तरह प्रभावित हैं. वहीं, कृषि विभाग ने 40 फीसदी से भी अधिक क्षति का अनुमान जताया है. इनमें किशनगंज, दिघलबैंक, ठाकुरगंज, पोठिया, बहादुरगंज और कोचाधामन शमिल है. इन सभी प्रखंडों में किसानों की फसल लगभग बर्बाद हो गई है, जिसके कारण मुनाफे की कोई गुंजाइश नहीं है.

पेश है एक रिपोर्ट

कर्ज लेकर करते हैं खेती
किसानों ने बताया कि हम लोग कर्ज लेकर खेती करते हैं और फसल बेचकर उधार चुकाते हैं, जो मुनाफा होता है उससे अपना परिवार चलाते हैं. लेकिन, इस साल मौसम की मार और लॉकडाउन की वजह से काफी परेशानी झेलनी पड़ रही है. किसानों ने कृषि विभाग से गुहार लगाई है कि उन्हें इसका मुआवजा मिले जिससे की वे अपना कर्ज चुका सकें.

सभी को मिलेगा मुआवजा
वहीं, इस मामले पर किशनगंज कृषि पदाधिकारी संतलाल साहा ने बताया कि जिले के लगभग 15 हजार से ज्यादा किसानों को फसल का नुकसान हुआ है. इसके लिए ऑनलाइन आवेदन भी मंगवाए गए हैं. जिन किसानों के फसलों को क्षति हुई है, उन्हें मुआवजा मिलेगा. कृषि पदाधिकारी ने बताया कि इस बार समर्थन मूल्य 1700 से ज्यादा है. लेकिन को-ऑपरेटिव विभाग की तरफ से मक्के की खरीद नहीं की जाती है. इस कारण किसान अपना मक्का बिचौलियो को बेचते हैं.

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