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खगड़िया: मुनाफे का पर्याय बन रहा मधुमक्खी पालन, युवा कर रहे लाखों की कमाई - Honey mission

इन दिनों खगड़िया में बाहर के जिलों से आकर युवा मधुमक्खी पालन कर रहे हैं. इनका मानना है कि जिले में मक्के की फसल पर होने वाला परागकण मधुमक्खियों को आकर्षित करता है. इसीलिए यहां आकर मधुमक्खी पालन कर रहे हैं.

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Published : Jun 28, 2020, 6:43 PM IST

खगड़िया: कम खर्च में प्रशिक्षण प्राप्त कर युवा वर्ग मधुमक्खी पालन से अपनी बेरोजगारी दूर कर रहे हैं. जो युवा कम लागत का व्यवसाय करने की इच्छा रखते हैं, उनके लिए मधुमक्खी पालन फायदेमंद साबित हो रहा है.

ग्रामीण क्षेत्रों के विकास का पर्याय बना मधुमक्खी पालन
पिछले कुछ वर्षों से ना सिर्फ लोगों का रुझान इसकी तरफ बढ़ रहा है, बल्कि केंद्र सरकार राज्य सरकार को मधुमक्खी पालन की सुविधाएं मुहैया करा रही है. मधुमक्खी पालन एक लघु व्यवसाय हैं. इससे शहद और मोम मिलता है. ये एक ऐसा व्यवसाय हैं जो ग्रामीण क्षेत्रों के विकास का पर्याय बनता जा रहा है.

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मधुमक्खियां

मक्के की फसल मधुमक्खी पालन के लिए उपयुक्त
इन दिनों खगड़िया में कई जगहों पर मधुमक्खी के बॉक्स दिखाई दे रहे हैं. ये मधुमक्खी पालक खगड़िया के बाहर के जिलों से आए हैं. कुछ मुजफ्फरपुर से तो कुछ समस्तीपुर से आए हैं. इनका मानना है कि खगड़िया में मक्के की फसल पर होने वाला परागकण मधुमक्खियों को आकर्षित करता है. इसकी वजह से मधुमक्खियां उसके आसपास ज्यादा मंडराती हैं. इससे मक्के की फसल भी अच्छी होती है. यही वजह है कि बाहर से आकर व्यवसाई खगड़िया में मधुमक्खी पालन कर रहे हैं.

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लकड़ी के बॉक्स में मधुमक्खियां

मधुमक्खी पालन के तरीके
मधुमक्खी की एक बक्से में पांच से सात हजार मधुमक्खियां रहती है. इसमें एक रानी मधुमक्खी और बाकी वर्कर मधुमक्खियां रहती है. जनवरी से लेकर के अप्रैल तक खेतों और बगीचों में बक्से रखे जाते हैं. वर्कर मधुमक्खियां अपने पंख से फूलों से लाए रस को ला कर बक्से के छत्ते में भरती है और मधु तैयार करती है.

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मधुमक्खी पालक किसान

सबसे ज्यादा शहद बनाती है एपिस मेलिफेरा मधुमक्खी
एक दिन में रानी मधुमक्खी 1500 से 2000 हजार अंडे देती है. प्रोसेसिंग यूनिट में मशीन की मदद से छत्ते से मधु निकालकर पैक किया जाता है. इसमें चार तरह की मधुमक्खियां इस्तेमाल होती हैं. एपिस मेलीफेरा, एपिस इंडिका, एपिस डोरसाला, एपिस फ्लोरिया. एपिस मेलिफेरा ही अधिक शहद उत्पादन करने वाली होती है.

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मधुमक्खियों की खेती

पूजा से लेकर सौंदर्य प्रसाधन तक शहद का इस्तेमाल
मधुमक्खी पालन के लिए लकड़ी का बॉक्स, बॉक्स फ्रेम का मुंह ढकने के लिए जालीदार कवर, दस्ताने, चाकू और शहद इकट्ठा करने के लिए ड्रम जरुरी है. शहद का इस्तेमाल पूजा से लेकर सौंदर्य प्रसाधन और पौष्टिकता के लिए किया जाता है. ये खांसी और दमे की बीमारी में उपयोगी होता है.

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मधुमक्खी पालन के लिए रखे बक्से

केंद्र व राज्य सरकार से अनुदान
केंद्र सरकार ने भी हनी मिशन का गठन किया है. इसके जरिए वो मधुमक्खी पालन को बढ़ावा दे रही है. इसके लिए केंद्र ने राज्य सरकार को 500 करोड़ की राशि भी दी है. देश में शहद उत्पादन में बिहार अग्रणी राज्य है. यहां के शहद की ब्रांडिंग भी हो रही है. बिहार में 5 लाख बॉक्स मधुमक्खी पालन होता है. पचास हजार लोग इससे जुड़े हुए है.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

मधुमक्खी पालक किसानों को 75% अनुदान
हनी मिशन बनने के बाद केंद्र इसके लिए अधिक लाभ भी मिल रहा है. इसका सीधा फायदा मधुमक्खी पालक किसान को मिल रहा है. अब राज्य में मधुमक्खी पालक किसानों को 75% अनुदान दिया जा रहा है. प्रति हनी बॉक्स और हनी छत्ते की कीमत 4 हजार है. इसमें 3 हजार का अनुदान मिलता है. एक किसान अधिकतम 50 हनी बॉक्स के लिए अनुदान ले सकता है.

सरकारी मदद और प्रोत्साहन की जरूरत
कृषि प्रधान देश के किसान अब पारंपरिक खेती छोड़ कर वैकल्पिक खेती की ओर कदम बढ़ा रहे हैं. जरूरी है सरकारी मदद से ऐसे लोगों को इस ओर और प्रोत्साहित करने की.

खगड़िया: कम खर्च में प्रशिक्षण प्राप्त कर युवा वर्ग मधुमक्खी पालन से अपनी बेरोजगारी दूर कर रहे हैं. जो युवा कम लागत का व्यवसाय करने की इच्छा रखते हैं, उनके लिए मधुमक्खी पालन फायदेमंद साबित हो रहा है.

ग्रामीण क्षेत्रों के विकास का पर्याय बना मधुमक्खी पालन
पिछले कुछ वर्षों से ना सिर्फ लोगों का रुझान इसकी तरफ बढ़ रहा है, बल्कि केंद्र सरकार राज्य सरकार को मधुमक्खी पालन की सुविधाएं मुहैया करा रही है. मधुमक्खी पालन एक लघु व्यवसाय हैं. इससे शहद और मोम मिलता है. ये एक ऐसा व्यवसाय हैं जो ग्रामीण क्षेत्रों के विकास का पर्याय बनता जा रहा है.

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मधुमक्खियां

मक्के की फसल मधुमक्खी पालन के लिए उपयुक्त
इन दिनों खगड़िया में कई जगहों पर मधुमक्खी के बॉक्स दिखाई दे रहे हैं. ये मधुमक्खी पालक खगड़िया के बाहर के जिलों से आए हैं. कुछ मुजफ्फरपुर से तो कुछ समस्तीपुर से आए हैं. इनका मानना है कि खगड़िया में मक्के की फसल पर होने वाला परागकण मधुमक्खियों को आकर्षित करता है. इसकी वजह से मधुमक्खियां उसके आसपास ज्यादा मंडराती हैं. इससे मक्के की फसल भी अच्छी होती है. यही वजह है कि बाहर से आकर व्यवसाई खगड़िया में मधुमक्खी पालन कर रहे हैं.

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लकड़ी के बॉक्स में मधुमक्खियां

मधुमक्खी पालन के तरीके
मधुमक्खी की एक बक्से में पांच से सात हजार मधुमक्खियां रहती है. इसमें एक रानी मधुमक्खी और बाकी वर्कर मधुमक्खियां रहती है. जनवरी से लेकर के अप्रैल तक खेतों और बगीचों में बक्से रखे जाते हैं. वर्कर मधुमक्खियां अपने पंख से फूलों से लाए रस को ला कर बक्से के छत्ते में भरती है और मधु तैयार करती है.

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मधुमक्खी पालक किसान

सबसे ज्यादा शहद बनाती है एपिस मेलिफेरा मधुमक्खी
एक दिन में रानी मधुमक्खी 1500 से 2000 हजार अंडे देती है. प्रोसेसिंग यूनिट में मशीन की मदद से छत्ते से मधु निकालकर पैक किया जाता है. इसमें चार तरह की मधुमक्खियां इस्तेमाल होती हैं. एपिस मेलीफेरा, एपिस इंडिका, एपिस डोरसाला, एपिस फ्लोरिया. एपिस मेलिफेरा ही अधिक शहद उत्पादन करने वाली होती है.

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मधुमक्खियों की खेती

पूजा से लेकर सौंदर्य प्रसाधन तक शहद का इस्तेमाल
मधुमक्खी पालन के लिए लकड़ी का बॉक्स, बॉक्स फ्रेम का मुंह ढकने के लिए जालीदार कवर, दस्ताने, चाकू और शहद इकट्ठा करने के लिए ड्रम जरुरी है. शहद का इस्तेमाल पूजा से लेकर सौंदर्य प्रसाधन और पौष्टिकता के लिए किया जाता है. ये खांसी और दमे की बीमारी में उपयोगी होता है.

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मधुमक्खी पालन के लिए रखे बक्से

केंद्र व राज्य सरकार से अनुदान
केंद्र सरकार ने भी हनी मिशन का गठन किया है. इसके जरिए वो मधुमक्खी पालन को बढ़ावा दे रही है. इसके लिए केंद्र ने राज्य सरकार को 500 करोड़ की राशि भी दी है. देश में शहद उत्पादन में बिहार अग्रणी राज्य है. यहां के शहद की ब्रांडिंग भी हो रही है. बिहार में 5 लाख बॉक्स मधुमक्खी पालन होता है. पचास हजार लोग इससे जुड़े हुए है.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

मधुमक्खी पालक किसानों को 75% अनुदान
हनी मिशन बनने के बाद केंद्र इसके लिए अधिक लाभ भी मिल रहा है. इसका सीधा फायदा मधुमक्खी पालक किसान को मिल रहा है. अब राज्य में मधुमक्खी पालक किसानों को 75% अनुदान दिया जा रहा है. प्रति हनी बॉक्स और हनी छत्ते की कीमत 4 हजार है. इसमें 3 हजार का अनुदान मिलता है. एक किसान अधिकतम 50 हनी बॉक्स के लिए अनुदान ले सकता है.

सरकारी मदद और प्रोत्साहन की जरूरत
कृषि प्रधान देश के किसान अब पारंपरिक खेती छोड़ कर वैकल्पिक खेती की ओर कदम बढ़ा रहे हैं. जरूरी है सरकारी मदद से ऐसे लोगों को इस ओर और प्रोत्साहित करने की.

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