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बाढ़ त्रासदी के शिकार खगड़ियावासी, सरकारी उपेक्षा का लगाया आरोप - Flooding curse for Khagaria

खगड़िया के आक्रोशित ग्रामीणों ने कहा कि जिस भरोसे और उम्मीद के साथ हम वोट देते हैं. सरकार बनते ही जनप्रतिनिधि, सरकारी महकमा और स्थानीय अधिकारी उनकी अनदेखी कर उनका भरोसा तोड़ देते हैं.

खगड़िया
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Published : Aug 28, 2020, 9:45 PM IST

Updated : Sep 22, 2020, 3:47 PM IST

खगड़िया: सात नदियों से घिरे खगड़िया वासियों के लिए बाढ़ प्रतिवर्ष अभिशाप बन कर आती है. वहीं यह कहना भी गलत नहीं होगा कि शायद बाढ़ के साथ जीना इनकी नियति बन गई है. हालांकि प्रतिवर्ष बाढ़ की त्रासदी झेलते ग्रामीणों के सब्र का बांध भी अब टूटता नजर आ रहा है. स्थानीय ग्रामीणों के अनुसार हर चुनाव में वो इस उम्मीद और भरोसे के साथ सरकार चुनते हैं कि सरकार उन्हें समस्याओं से निजात दिलाएगी. वहीं ग्रामीणों को चुनाव के बाद छलावा के सिवा कुछ नहीं मिलता है.

खगड़िया
कुछ ऐसे कट रहा जीवन

खगड़िया के आक्रोशित ग्रामीणों ने कहा कि जिस भरोसे और उम्मीद के साथ हम वोट देते हैं. सरकार बनते ही जनप्रतिनिधि, सरकारी महकमा और स्थानीय अधिकारी उनकी अनदेखी कर उनका भरोसा तोड़ देते हैं. बता दें कि कोसी, गंगा, गंडक, बागमती समेत सात छोटी-बड़ी नदियां खगड़िया से होकर गुजरती हैं. सात नदियों से घिरे होने के कारण खगड़िया जिले की लाखों की आबादी हर नदी के बढ़ते जलस्तर और बाढ़ के प्रकोप को झेलने को मजबूर है.

खगड़िया
तंबू में बाढ़ पीड़ित परिवार

सभी प्रखंडों में हाहाकार की स्थिति
जिले के सातों प्रखंड बाढ़ से आंशिक और पूर्ण रूप से प्रभावित होते हैं. ऐसे में प्रशासनिक महकमों द्वारा किया जा रहा प्रयास हर बार बौना साबित होता है. वहीं इस बार भी कुछ यही हालात है. एक तरफ वर्तमान समय में जहां गंगा के बढ़े जलस्तर के कारण खगड़िया, गोगरी प्रखंड सहित परबत्ता प्रखंड के प्रभावित इलाकों में हाहाकार मची हुई है. वहीं दूसरी ओर खगड़िया, अलौली और चौथम प्रखंड इलाकों में कोसी और बागमती के जलस्तर में आई कमी के कारण बाढ़ का पानी कम तो रहा है, लेकिन हालात अभी ऐसे नहीं कि बाढ़ पीड़ित ऊंचे स्थानों से वापिस अपने घरों को लौट जाएं.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

'सरकार और प्रशासन ने झाड़ा पल्ला'

ईटीवी भारत की टीम ने खगड़िया प्रखंड के सोमनखी बांध पर बीते तीन माह से पन्नी टांगकर रह रहे लोगों से बातचीत की. जिसमें नीतीश सरकार और स्थानीय प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा की गई उपेक्षा से वो काफी आहत दिखे. बाढ़ पीड़ितों ने बताया कि लगभग ढाई से तीन माह पूर्व बागमती नदी के रौद्र रूप के कारण जान बचाने के लिए उनलोगों ने पारिवारिक सदस्यों और पशुओं के साथ इस बांध पर शरण लिया. प्रशासन द्वारा शुरुआत में चार मीटर पन्नी और दो चार किलो अनाज खाने के लिए दिया गया. इसके बाद प्रशासन ने हम लोगों से अपना पल्ला झाड़ लिया.

खगड़िया
प्लास्टिक के तंबू में बाढ़ प्रभावित

'चारा जुटाने की गंभीर समस्या'
स्थानीय ग्रामीणों ने बताया कि बारिश और तेज हवा के झोंको ने कई बार उनके अस्थाई आशियाने को उजाड़ दिया. धूप और बारिश के साथ रहना जैसे उनकी जिंदगी का हिस्सा बन गया है. बाढ़ पीड़ित महिलाओं ने बताया कि सरकार और प्रशासन दावा जो भी करे लेकिन हमारे हालात बेहद खराब हैं. महिलाओं ने बताया कि एक-एक पैसा जोड़कर और कर्ज लेकर जो घर बनाया था, वो भी अब धराशायी हो चुका है. हम लोगों के सामने खुद के अनाज और पशुओं के लिए चारा जुटाने की गंभीर समस्या है.

खगड़िया
बाढ़ प्रभावित बच्चे

'कोई नहीं हमारा सुध लेने वाला'
स्थानीय बाढ़ पीड़ितों ने बताया कि विधानसभा और लोकसभा चुनाव में हमने नीतीश कुमार की क्षवि को देखकर वोट दिया है. पूर्व के समय में नीतीश सरकार ने हमारे इलाके में कई सड़कों और विद्यालयों का निर्माण करवाया जिससे हम लोग उन पर भरोसा करते थे. वहीं इस बार हालात वैसे नहीं हैं. सरकार, जनप्रतिनिधि और स्थानीय प्रशासनिक अधिकारी कोई भी हमारी सुध लेने नहीं आया है. तीन माह से हम लोग भूखे प्यासे रात व्यतीत कर रहे हैं.

खगड़िया: सात नदियों से घिरे खगड़िया वासियों के लिए बाढ़ प्रतिवर्ष अभिशाप बन कर आती है. वहीं यह कहना भी गलत नहीं होगा कि शायद बाढ़ के साथ जीना इनकी नियति बन गई है. हालांकि प्रतिवर्ष बाढ़ की त्रासदी झेलते ग्रामीणों के सब्र का बांध भी अब टूटता नजर आ रहा है. स्थानीय ग्रामीणों के अनुसार हर चुनाव में वो इस उम्मीद और भरोसे के साथ सरकार चुनते हैं कि सरकार उन्हें समस्याओं से निजात दिलाएगी. वहीं ग्रामीणों को चुनाव के बाद छलावा के सिवा कुछ नहीं मिलता है.

खगड़िया
कुछ ऐसे कट रहा जीवन

खगड़िया के आक्रोशित ग्रामीणों ने कहा कि जिस भरोसे और उम्मीद के साथ हम वोट देते हैं. सरकार बनते ही जनप्रतिनिधि, सरकारी महकमा और स्थानीय अधिकारी उनकी अनदेखी कर उनका भरोसा तोड़ देते हैं. बता दें कि कोसी, गंगा, गंडक, बागमती समेत सात छोटी-बड़ी नदियां खगड़िया से होकर गुजरती हैं. सात नदियों से घिरे होने के कारण खगड़िया जिले की लाखों की आबादी हर नदी के बढ़ते जलस्तर और बाढ़ के प्रकोप को झेलने को मजबूर है.

खगड़िया
तंबू में बाढ़ पीड़ित परिवार

सभी प्रखंडों में हाहाकार की स्थिति
जिले के सातों प्रखंड बाढ़ से आंशिक और पूर्ण रूप से प्रभावित होते हैं. ऐसे में प्रशासनिक महकमों द्वारा किया जा रहा प्रयास हर बार बौना साबित होता है. वहीं इस बार भी कुछ यही हालात है. एक तरफ वर्तमान समय में जहां गंगा के बढ़े जलस्तर के कारण खगड़िया, गोगरी प्रखंड सहित परबत्ता प्रखंड के प्रभावित इलाकों में हाहाकार मची हुई है. वहीं दूसरी ओर खगड़िया, अलौली और चौथम प्रखंड इलाकों में कोसी और बागमती के जलस्तर में आई कमी के कारण बाढ़ का पानी कम तो रहा है, लेकिन हालात अभी ऐसे नहीं कि बाढ़ पीड़ित ऊंचे स्थानों से वापिस अपने घरों को लौट जाएं.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

'सरकार और प्रशासन ने झाड़ा पल्ला'

ईटीवी भारत की टीम ने खगड़िया प्रखंड के सोमनखी बांध पर बीते तीन माह से पन्नी टांगकर रह रहे लोगों से बातचीत की. जिसमें नीतीश सरकार और स्थानीय प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा की गई उपेक्षा से वो काफी आहत दिखे. बाढ़ पीड़ितों ने बताया कि लगभग ढाई से तीन माह पूर्व बागमती नदी के रौद्र रूप के कारण जान बचाने के लिए उनलोगों ने पारिवारिक सदस्यों और पशुओं के साथ इस बांध पर शरण लिया. प्रशासन द्वारा शुरुआत में चार मीटर पन्नी और दो चार किलो अनाज खाने के लिए दिया गया. इसके बाद प्रशासन ने हम लोगों से अपना पल्ला झाड़ लिया.

खगड़िया
प्लास्टिक के तंबू में बाढ़ प्रभावित

'चारा जुटाने की गंभीर समस्या'
स्थानीय ग्रामीणों ने बताया कि बारिश और तेज हवा के झोंको ने कई बार उनके अस्थाई आशियाने को उजाड़ दिया. धूप और बारिश के साथ रहना जैसे उनकी जिंदगी का हिस्सा बन गया है. बाढ़ पीड़ित महिलाओं ने बताया कि सरकार और प्रशासन दावा जो भी करे लेकिन हमारे हालात बेहद खराब हैं. महिलाओं ने बताया कि एक-एक पैसा जोड़कर और कर्ज लेकर जो घर बनाया था, वो भी अब धराशायी हो चुका है. हम लोगों के सामने खुद के अनाज और पशुओं के लिए चारा जुटाने की गंभीर समस्या है.

खगड़िया
बाढ़ प्रभावित बच्चे

'कोई नहीं हमारा सुध लेने वाला'
स्थानीय बाढ़ पीड़ितों ने बताया कि विधानसभा और लोकसभा चुनाव में हमने नीतीश कुमार की क्षवि को देखकर वोट दिया है. पूर्व के समय में नीतीश सरकार ने हमारे इलाके में कई सड़कों और विद्यालयों का निर्माण करवाया जिससे हम लोग उन पर भरोसा करते थे. वहीं इस बार हालात वैसे नहीं हैं. सरकार, जनप्रतिनिधि और स्थानीय प्रशासनिक अधिकारी कोई भी हमारी सुध लेने नहीं आया है. तीन माह से हम लोग भूखे प्यासे रात व्यतीत कर रहे हैं.

Last Updated : Sep 22, 2020, 3:47 PM IST
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