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कटिहार : बाढ़ पीड़ितों ने कहा- 32 साल से एक जैसा हाल, नहीं हुआ कुछ बदलाव

नेपाल से आयी जल आफत में शिवगंज के लोग अपना सबकुछ लुटा चुके हैं. सरकार बदल जाती है लेकिन यहां के लोगों की किस्मत नहीं बदलती. 2016 के बाद इस बार भी बाढ़ का दंश झेलने के साथ लोग दाने-दाने के लिए मोहताज हैं.

कटिहार में बाढ़ का कहर
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Published : Jul 17, 2019, 8:27 AM IST

Updated : Jul 17, 2019, 9:40 AM IST

कटिहार: नेपाल के तराई इलाकों में हुई बारिश बिहार के अलग-अलग जिलों में भारी तबाही मचा रही है. नेपाल का पानी कटिहार वासियों के लिए आफत बन गई है. जिले के कदवा प्रखंड के शिवगंज गांव के लोग इस सैलाव में अपना सब कुछ गंवा चुके हैं. लेकिन सरकारी सहायता से अभी तक वंचित हैं.

ईटीवी भारत संवाददाता की रिपोर्ट

नेपाल से आयी जल आफत ने मचायी तबाही
भीषण बाढ़ में जिले के कदवा प्रखण्ड स्थित शिवगंज बाढ़ से प्रभावित है. इस ' जल आफत ' ने इलाके में भारी तबाही मचायी है. लोग इस सैलाव में अपना सबकुछ गंवा चुके हैं. बची है तो सिर्फ जान. आजादी के इतने दशक बीत जाने के बाद भी लोगों को बाढ़ के समय में खाने के लाले पड़े हैं. यहां के लोगों के लिए बाढ़ लाइलाज रोग बन गया है. जिसका इलाज अब तक नहीं हो पाया है. इस बाढ़ में इस बार भी भारी जान-माल की क्षति हुई है.

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स्थानीय़ ग्रामीण

कई दशक से झेल रहे हैं दंश
स्थानीय ग्रामीण पप्पू साह बताते हैं कि पिछले बीस साल से इस बाढ़ को देख रहे हैं. सरकार बदल जाती है लेकिन हालात नहीं. जैसे पहले थे, आज भी वैसे ही हैं. 2017 की बाढ़ में मुख्य रास्ता पानी में बह गया. करोड़ों की लागत से पुल बनाने का आदेश भी हुआ. लेकिन अभी तक, निगम पुल का निर्माण नहीं करा सकी.

katihar flood
अधूरा पड़ा पुल का निर्माण कार्य

साल बदलते हैं, बाढ़ के हालात नहीं
हर साल बाढ़ आती है. राहत पैकेज की घोषणाएं भी होती है. सरकार इससे निपटने और लोगों को राहत दिलाने का दावा करती है. लेकिन अगले साल भी हालात में कोई बदलाव नहीं होता.

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बाढ़ का पानी

कम बारिश में ही भयावह मंजर
यहां सैलाब से तबाही के पीछ कई कारण हैं. अवैध रेत खनन, जंगल की कटाई, नदियों के आसपास की जमीन पर अतिक्रमण के साथ नदियों का रास्ता बदल देना. स्थानीय लोगों की मानें तो पहले भारी बारिश होती थी. लेकिन अब कम बारिश में भी बाढ़ आ रही है. जिले में विकास के दावे दम तोड़ती नजर आती है.

कटिहार: नेपाल के तराई इलाकों में हुई बारिश बिहार के अलग-अलग जिलों में भारी तबाही मचा रही है. नेपाल का पानी कटिहार वासियों के लिए आफत बन गई है. जिले के कदवा प्रखंड के शिवगंज गांव के लोग इस सैलाव में अपना सब कुछ गंवा चुके हैं. लेकिन सरकारी सहायता से अभी तक वंचित हैं.

ईटीवी भारत संवाददाता की रिपोर्ट

नेपाल से आयी जल आफत ने मचायी तबाही
भीषण बाढ़ में जिले के कदवा प्रखण्ड स्थित शिवगंज बाढ़ से प्रभावित है. इस ' जल आफत ' ने इलाके में भारी तबाही मचायी है. लोग इस सैलाव में अपना सबकुछ गंवा चुके हैं. बची है तो सिर्फ जान. आजादी के इतने दशक बीत जाने के बाद भी लोगों को बाढ़ के समय में खाने के लाले पड़े हैं. यहां के लोगों के लिए बाढ़ लाइलाज रोग बन गया है. जिसका इलाज अब तक नहीं हो पाया है. इस बाढ़ में इस बार भी भारी जान-माल की क्षति हुई है.

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स्थानीय़ ग्रामीण

कई दशक से झेल रहे हैं दंश
स्थानीय ग्रामीण पप्पू साह बताते हैं कि पिछले बीस साल से इस बाढ़ को देख रहे हैं. सरकार बदल जाती है लेकिन हालात नहीं. जैसे पहले थे, आज भी वैसे ही हैं. 2017 की बाढ़ में मुख्य रास्ता पानी में बह गया. करोड़ों की लागत से पुल बनाने का आदेश भी हुआ. लेकिन अभी तक, निगम पुल का निर्माण नहीं करा सकी.

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अधूरा पड़ा पुल का निर्माण कार्य

साल बदलते हैं, बाढ़ के हालात नहीं
हर साल बाढ़ आती है. राहत पैकेज की घोषणाएं भी होती है. सरकार इससे निपटने और लोगों को राहत दिलाने का दावा करती है. लेकिन अगले साल भी हालात में कोई बदलाव नहीं होता.

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बाढ़ का पानी

कम बारिश में ही भयावह मंजर
यहां सैलाब से तबाही के पीछ कई कारण हैं. अवैध रेत खनन, जंगल की कटाई, नदियों के आसपास की जमीन पर अतिक्रमण के साथ नदियों का रास्ता बदल देना. स्थानीय लोगों की मानें तो पहले भारी बारिश होती थी. लेकिन अब कम बारिश में भी बाढ़ आ रही है. जिले में विकास के दावे दम तोड़ती नजर आती है.

Intro:......कटिहार के कदवा इलाके के लोग तीन दशक से सैलाब का दंश झेलने को विवश हैं ....। विकास के नाम पर मिला हैं जिन्हें ठेंगा जिससे इलाके में बाढ़ एक स्थायी समस्या बन गयी हैं और लाइलाज मर्ज की तरह रफ्ता - रफ्ता जिंदगियाँ लील रही हैं ....। क्यों नहीं होता सैलाब रोकने के पुख्ता इंतजाम जिससे हर साल मचने वाली तबाहियों को रोका जा सकें और निकल सकें एक परमामेंट सॉल्यूशन...। नेपाल से आये पानी ने इस बार भी जान - माल भारी क्षति पहुंचायी हैं .....।


Body:यह दृश्य कटिहार के कदवा प्रखण्ड के शिवगंज का हैं जहाँ नेपाल से आया ' जल आफत ' ने इलाके में भारी तबाही मचायी हैं । क्या खेती और क्या गृहस्थी , लोगों के सब कुछ लूट चुके हैं लेकिन यह तबाही हमारी विकास की गाथा को बतलाता हैं कि आजादी के सात दशक गुजरने के बाबजूद हम विकास की कितनी उड़ाने भर पाये हैं । साठ वर्षीय देवनारायण विश्वाश बताते हैं कि वह जवानी से लेकर उम्र के अंतिम दहलीज तक सैलाब से हर साल यूँ ही जिंदगियाँ लूटते देखा हैं । बाढ़ आती हैं , हल्ला मचता हैं , दौरे होते हैं और राहत पैकेज की घोषणायें होती हैं लेकिन इस समस्या से निपटने के कोई मुक्कमल इंतजाम नहीं होते । सरकारें दावें करती हैं लेकिन दोबारा फिर से अगले साल सैलाब दस्तक दे देता हैं ....। स्थानीय ग्रामीण पप्पू साह बताते हैं कि वह बीस सालों से हर साल बाढ़ की विभीषिका ऐसे ही देख रहें हैं । क्या यही विकास हैं ....। 2016 में शिवगंज के पास मुख्य रास्ते कट कर पानी मे बह गया था जिसके बाद राज्य सरकार ने करोड़ों की लागत से यहाँ पुल बनाने आदेश दिया लेकिन विकास के नाम पर पुल अभी तक निर्माणाधीन हैं और मजे की बात यह कि तीन साल बाद सैलाब ने फिर से इसे अपने आगोश में ले लिया ....। जिसके बाद दोबारा एक नये भारी भरकम इस्टीमेट के साथ निर्माण कार्य शुरू किया जायेगा तो अब सवाल उठता हैं कि आखिर यह सब कब तक ....। एक व्यक्ति जवानी से बुढापे का समय काट देता है लेकिन समस्या के हर वर्ष यूँ ही नजारे देखता हैं.....। हाय रे विकास , समस्या जस की तस लेकिन खर्च उसपर हर साल लाखों - लाख ......।


Conclusion:सैलाब के तबाहीं के कई कारण हैं । रेत खनन , जंगल की कटाई , नदियों के आसपास की जमीन पर कब्जा होना, नदियों के रास्ते मोड़ना या रास्ता बदल देना और पानी के परंपरागत ढाँचे की उपेक्षा ....। बारिश पहले भी होती थी , ज्यादा होती थी लेकिन बहुत ज्यादा होती थी तभी बाढ़ आती थी लेकिन अब तो थोड़ी सी भी बारिश हुई तो बाढ़ आ जाती हैं । यदि सचमुच सरकारों को , लोगों को बाढ़ से महफूज रखना हैं और विकास के कदमें बढ़ाने हैं तो इस कारणों के निदान ढूँढना ही पड़ेगा , नहीं तो बाढ़ कटिहार के लोगों के लिये स्थायी समस्या बन कर रह जायेगी .....।
Last Updated : Jul 17, 2019, 9:40 AM IST
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