कटिहारः दरभंगा जिला पान, माछ, मखान और मैथिली संस्कृति के लिए पूरे देश में प्रसिद्ध है. लेकिन यह बहुत कम लोगों को पता है कि सीमांचल के कटिहार में भी मिनी दरभंगा बसता है. रोजगार की तलाश में यहां आए हजारों प्रवासी मजदूर काला सोना के सहारे अपनी जिंदगी चमका रहे हैं.
काला सोना मिथिलांचल की पहचान
काला सोना यानी मखाना मिथिलांचल की पहचान है. जिसकी धमक अब सीमांचल तक पहुंच चुकी है. बेहतर मुनाफा और उत्पादन के कारण यहां के जिलों में किसान तेजी से मखाना की खेती की ओर अग्रसर हो रहे हैं. इसके साथ ही इसे फोड़ने का व्यवसाय भी काफी समृद्ध हो रहा है.
8000 हेक्टेयर में मखाने की खेती
चारों ओर नदियों से घिरे होने से यहां मखाना की खेती लगभग 8000 हेक्टेयर में होती है. यह स्थानीय व्यवसाई और किसानों के लिए भी लाभदायक साबित हो रहा है. कोढ़ा, कदवा, दंडखोरा, सनौली, आजमनगर सहित अन्य क्षेत्रों में मखाना की खेती व्यापक रूप से होती है.
दक्ष मजदूरों से कराया जाता है तैयार
व्यवसाई उत्पादित मखाने को खरीदकर दूसरे जिलों से आए दक्ष मजदूरों से इसे तैयार कराते हैं. जिसके बाद इसकी पैकिंग कर महानगरों तक भेजा जाता है. बिहार में मखाना लगभग 500 रूपये किलो मिलती है. वहीं बड़े महानगरों तक जाते-जाते इसकी कीमत 800 से 1000 रूपये प्रति किलो हो जाती है.
2000 पारंपरिक एक्सपर्ट हर साल करते हैं सीजनल माइग्रेशन
मखाने की बीज को फोड़कर लावा तैयार करने के लिए लगभग 2000 पारंपरिक एक्सपर्ट दरभंगा से हर साल 4-6 महीने के लिए सीजनल माइग्रेशन करते हैं. लेकिन इसके बावजूद उन्हें अपने प्रवास के दौरान बहुत कुछ हासिल नहीं होता.
सीमांचल बन रहा मखाने का नया हब
दरभंगा से आए मखाना फोड़ी एक्सपर्ट मजदूर महेश सहनी ने बताया कि सात से आठ परिवार एक फोड़ी में लगता है. वे लोग दिन भर 3-4 सौ रुपए की दिहाड़ी पर काम करते हैं. उन्होंने बताया कि किसी दिन बचत होती है तो किसी दिन नहीं भी होती. कोशी सीमांचल में मखाना प्रचुर मात्रा में होने लगी है. जिससे दरभंगा की जगह अब सीमांचल मखाना का हब बनते जा रहा है.