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कटिहारः दरभंगा के एक्सपर्ट मजदूर काला सोना के जरिए चमका रहे अपनी किस्मत - मखाना का हब

मखाना मिथिलांचल की पहचान है. जिसकी धमक अब सीमांचल तक पहुंच चुकी है. यहां लगभग 8000 हेक्टेयर में इसकी खेती होती है.

मजदूर काला सोना के जरिए चमका रहे हैं अपनी जिंदगी
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Published : Nov 23, 2019, 3:33 PM IST

कटिहारः दरभंगा जिला पान, माछ, मखान और मैथिली संस्कृति के लिए पूरे देश में प्रसिद्ध है. लेकिन यह बहुत कम लोगों को पता है कि सीमांचल के कटिहार में भी मिनी दरभंगा बसता है. रोजगार की तलाश में यहां आए हजारों प्रवासी मजदूर काला सोना के सहारे अपनी जिंदगी चमका रहे हैं.

काला सोना मिथिलांचल की पहचान
काला सोना यानी मखाना मिथिलांचल की पहचान है. जिसकी धमक अब सीमांचल तक पहुंच चुकी है. बेहतर मुनाफा और उत्पादन के कारण यहां के जिलों में किसान तेजी से मखाना की खेती की ओर अग्रसर हो रहे हैं. इसके साथ ही इसे फोड़ने का व्यवसाय भी काफी समृद्ध हो रहा है.

मजदूर काला सोना के जरिए चमका रहे हैं अपनी किस्मत

8000 हेक्टेयर में मखाने की खेती
चारों ओर नदियों से घिरे होने से यहां मखाना की खेती लगभग 8000 हेक्टेयर में होती है. यह स्थानीय व्यवसाई और किसानों के लिए भी लाभदायक साबित हो रहा है. कोढ़ा, कदवा, दंडखोरा, सनौली, आजमनगर सहित अन्य क्षेत्रों में मखाना की खेती व्यापक रूप से होती है.

katihar
मखाना

दक्ष मजदूरों से कराया जाता है तैयार
व्यवसाई उत्पादित मखाने को खरीदकर दूसरे जिलों से आए दक्ष मजदूरों से इसे तैयार कराते हैं. जिसके बाद इसकी पैकिंग कर महानगरों तक भेजा जाता है. बिहार में मखाना लगभग 500 रूपये किलो मिलती है. वहीं बड़े महानगरों तक जाते-जाते इसकी कीमत 800 से 1000 रूपये प्रति किलो हो जाती है.

2000 पारंपरिक एक्सपर्ट हर साल करते हैं सीजनल माइग्रेशन
मखाने की बीज को फोड़कर लावा तैयार करने के लिए लगभग 2000 पारंपरिक एक्सपर्ट दरभंगा से हर साल 4-6 महीने के लिए सीजनल माइग्रेशन करते हैं. लेकिन इसके बावजूद उन्हें अपने प्रवास के दौरान बहुत कुछ हासिल नहीं होता.

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मखाने के बीज को फोड़कर लावा तैयार करने में जुटे मजदूर

सीमांचल बन रहा मखाने का नया हब
दरभंगा से आए मखाना फोड़ी एक्सपर्ट मजदूर महेश सहनी ने बताया कि सात से आठ परिवार एक फोड़ी में लगता है. वे लोग दिन भर 3-4 सौ रुपए की दिहाड़ी पर काम करते हैं. उन्होंने बताया कि किसी दिन बचत होती है तो किसी दिन नहीं भी होती. कोशी सीमांचल में मखाना प्रचुर मात्रा में होने लगी है. जिससे दरभंगा की जगह अब सीमांचल मखाना का हब बनते जा रहा है.

कटिहारः दरभंगा जिला पान, माछ, मखान और मैथिली संस्कृति के लिए पूरे देश में प्रसिद्ध है. लेकिन यह बहुत कम लोगों को पता है कि सीमांचल के कटिहार में भी मिनी दरभंगा बसता है. रोजगार की तलाश में यहां आए हजारों प्रवासी मजदूर काला सोना के सहारे अपनी जिंदगी चमका रहे हैं.

काला सोना मिथिलांचल की पहचान
काला सोना यानी मखाना मिथिलांचल की पहचान है. जिसकी धमक अब सीमांचल तक पहुंच चुकी है. बेहतर मुनाफा और उत्पादन के कारण यहां के जिलों में किसान तेजी से मखाना की खेती की ओर अग्रसर हो रहे हैं. इसके साथ ही इसे फोड़ने का व्यवसाय भी काफी समृद्ध हो रहा है.

मजदूर काला सोना के जरिए चमका रहे हैं अपनी किस्मत

8000 हेक्टेयर में मखाने की खेती
चारों ओर नदियों से घिरे होने से यहां मखाना की खेती लगभग 8000 हेक्टेयर में होती है. यह स्थानीय व्यवसाई और किसानों के लिए भी लाभदायक साबित हो रहा है. कोढ़ा, कदवा, दंडखोरा, सनौली, आजमनगर सहित अन्य क्षेत्रों में मखाना की खेती व्यापक रूप से होती है.

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मखाना

दक्ष मजदूरों से कराया जाता है तैयार
व्यवसाई उत्पादित मखाने को खरीदकर दूसरे जिलों से आए दक्ष मजदूरों से इसे तैयार कराते हैं. जिसके बाद इसकी पैकिंग कर महानगरों तक भेजा जाता है. बिहार में मखाना लगभग 500 रूपये किलो मिलती है. वहीं बड़े महानगरों तक जाते-जाते इसकी कीमत 800 से 1000 रूपये प्रति किलो हो जाती है.

2000 पारंपरिक एक्सपर्ट हर साल करते हैं सीजनल माइग्रेशन
मखाने की बीज को फोड़कर लावा तैयार करने के लिए लगभग 2000 पारंपरिक एक्सपर्ट दरभंगा से हर साल 4-6 महीने के लिए सीजनल माइग्रेशन करते हैं. लेकिन इसके बावजूद उन्हें अपने प्रवास के दौरान बहुत कुछ हासिल नहीं होता.

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मखाने के बीज को फोड़कर लावा तैयार करने में जुटे मजदूर

सीमांचल बन रहा मखाने का नया हब
दरभंगा से आए मखाना फोड़ी एक्सपर्ट मजदूर महेश सहनी ने बताया कि सात से आठ परिवार एक फोड़ी में लगता है. वे लोग दिन भर 3-4 सौ रुपए की दिहाड़ी पर काम करते हैं. उन्होंने बताया कि किसी दिन बचत होती है तो किसी दिन नहीं भी होती. कोशी सीमांचल में मखाना प्रचुर मात्रा में होने लगी है. जिससे दरभंगा की जगह अब सीमांचल मखाना का हब बनते जा रहा है.

Intro:कटिहार

यूं तो बिहार में दरभंगा जिले की अलग पहचान है। पान, माछ और मखान तथा मैथिली संस्कृति के लिए दरभंगा पूरे भारत में प्रसिद्ध है। लेकिन यह बहुत कम लोगों को पता है कि सीमांचल के कटिहार में भी मिनी दरभंगा बसता है और यहां रोजगार की तलाश में हजारों की संख्या में दरभंगा से आए प्रवासी मजदूर काला सोना के सहारे अपनी जिंदगी चमका रहे हैं।

Body:दरअसल काला सोना (मखाना) मिथिलांचल की पहचान है जिसकी धमक अब सीमांचल तक पहुंच चुकी है। बेहतर मुनाफा और उत्पादन के कारण सीमांचल के जिलों में किसान तेजी से मखाना की खेती की ओर अग्रसर हो रहे हैं जबकि मखाना फोडने का व्यवसाय भी समृद्ध हो रहा है। इसी बहाने मिथिलांचल (दरभंगा) के लोगों के लिए यह इलाका बडा हब बनते जा रहा है।

चारों ओर से नदियों से घिरे कटिहार जिले में मखाना की खेती लगभग 8000 हेक्टेयर में होती है। उपयुक्त जलवायु और नदी तलाब की उपलब्धता के कारण कटिहार में मखाना की खेती का रकबा भी हर साल बढ़ते जा रहा है। मखाना की खेती स्थानीय व्यवसाई और किसानों के लिए भी लाभदायक साबित हो रहा है। कटिहार का कोढा, कदवा, दंडखोरा, सनौली, आजमनगर सहित अन्य क्षेत्रों में मखाना की खेती व्यापक रूप में होती है।

उत्पादित मखाना को व्यवसाई खरीदते हैं और मखाना फोड़ी (लावा) के लिए दूसरे जिलों से आए दक्ष मजदूर से इसे तैयार कराया जाता है। इसके बाद इसकी पैकिंग कर महानगरों तक भेजा जाता है। बिहार में मखाना लगभग ₹500 किलो तक मिल जाती है लेकिन यह बड़े महानगरों में जाते जाते उसकी कीमत 800 से ₹1000 प्रति किलो हो जाती है।

काला सोना (मखाना) की खेती ने सीमांचल के किसानों को खूब भला किया है जिसके खेत साल में 8 महीने पानी में डूबे रहते थे अब उन खेतों में मखाने की फसलें उगने लगी है। इस वजह से मखाने के बीज को फोड़कर लावा तैयार करने के लिए पारंपरिक एक्सपर्ट दरभंगा के फोड़ी भी हर साल 4-6 महीने के लिए इस इलाके में सीजनल माइग्रेशन करने लगे हैं। मगर अमानवीय स्थिति में रहने और अपने बच्चों के पढ़ाई दांव पर लगाने के बावजूद इन फोडियों को अपने प्रवास के दौरान बहुत कुछ हासिल नहीं होता।

मखाना फोड़ी के लिए दक्ष मजदूरों की विशेष डिमांड रहती है इस कार्य को पुरुषों के साथ-साथ महिलाएं और बच्चे भी जिम्मेदारी के साथ करते हैं। जहां एक ओर पुरुष कच्चा माल का प्रबंध कर बाजार उपलब्ध कराते हैं कहीं परिवार की महिलाएं मखाना सुखाने से लेकर लावा तैयार करने का काम करती है। यही वजह है कि दरभंगा जिले से लगभग 2000 परिवार जो मखाना तैयार करने में एक्सपर्ट माना जाते हैं प्रत्येक वर्ष कटिहार में मिनी माइग्रेशन करते हैं और 5 महीने काम कर वापस अपने जिला लौट जाते हैं।

Conclusion:दरभंगा से आए मखाना फोड़ी के एक्सपर्ट मजदूर महेश सहनी और रंजीत सहनी बताते हैं सात से आठ परिवार एक फोड़ी में लगता है। दिन भर 3-4 सौ रुपए की दिहाड़ी पर काम करते हैं किसी दिन बचत होती है तो किसी दिन नहीं भी होती। इस काम से यह परिवार संतुष्ट नहीं है लेकिन करें तो क्या करें रोजगार नहीं है किसी तरह अपने परिवार का भरण पोषण कर रहे हैं। बच्चे से लेकर बूढ़े तक सभी परिवार इस रोजगार में लगे रहते हैं बावजूद इनके दिन अच्छे नहीं आ रहे हैं। कटिहार आए दरभंगा के लगभग 2000 मजदूरों की सरकार से यही उम्मीद है कि बिहार में मखाना की खेती और मार्केटिंग पर ध्यान दे तो इन्हें भी कुछ फायदा हो सकता है।

कटिहार के कोढा इलाके में जर्जर झोपड़ियों में मैले कूचैले हालात में यहां रहकर 5-6 महीने प्रवास करने वाले यह फोड़ी मजदूर मखाने के बीज के खरीदार भी हैं और प्रोसेसिंग के एक्सपर्ट मभी। दरभंगा से आए मजदूर बताते हैं वहां रोजगार की कमी है और मखाना की खेती भी कमते जा रही है और कोशी सीमांचल का इलाका में मखाना प्रचुर मात्रा में होने लगी है इसलिए दरभंगा के जगह अब सीमांचल का इलाका मखाना का हब बनते जा रहा है।
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