कटिहार: शब्दों के गलत चयन से आपने आदमी को परेशान होते देखा होगा. लेकिन गलत शब्दों की वजह से क्या आपने किसी बेजुबान की जिन्दगी परेशान होते देखा है. कटिहार में एक बेजुबान सरकारी कागजों पर डॉक्टरों की गलत मेडिकल रिपोर्ट की वजह से भंवर में फंस गया. 2012 में कटिहार जिले में भीषण बाढ़ आयी थी. जिसमें जान-माल का काफी नुकसान हुआ था.
सैलाब के इस भीषण त्रासदी में अमदाबाद से एक पशु का नवजात बच्चा स्थानीय ग्रामीणों को भटकता हुआ मिला था. आनन-फानन में ग्रामीणों ने इसे स्थानीय वन विभाग के अधिकारियों को सौंप दिया. वन विभाग के अधिकारियों ने उसे कटिहार लाकर उसकी मेडिकल जांच कराई. फिर इसके बाद डॉक्टरों ने अपने मेडिकल रिपोर्ट में इसे हिरण का बच्चा करार दिया.
जिसे डॉक्टरों ने हिरण का बच्चा बताया था वह निकला नीलगाय
वन विभाग के कर्मचारी की सेवा से अनाथ बेजुबान की जान बच गई. इसी दौरान कटिहार से लेकर पटना तक के वन विभाग के दफ्तरों में इस बेजुबान की पहचान हिरण के रूप में होने लगी. लेकिन जैसे-जैसे समय का बढ़ता गया. यह बेजुबान हिरण का बच्चा नहीं होकर नीलगाय के बच्चे सा दिखने लगा. लेकिन सरकारी कागजों पर शब्दों के हेरफेर की वजह से अब भी वन विभाग के कार्यलयों में इसे कागजों पर हिरण का बच्चा ही बताया जाता है.
घरेलू सा हो गया है नीलगाय
कटिहार वन विभाग के रेंज ऑफिसर बी एल मंडल बताते हैं कि जब से वह देख रहे हैं तो यह नीलगाय है. लेकिन कागजों पर से हिरण का बच्चा करार दिया गया है. जंगलों में दौड़ने वाला नीलगाय का बच्चा अब घरेलू सा हो गया है और इसे यदि छोड़ भी देते हैं. तो यह कहीं जाता नहीं बल्कि लौट कर नर्सरी पहुंच जाता है. लेकिन समस्या यह है कि यदि इस नीलगाय के बच्चे को वन विभाग के अधिकारी बेहतर जिन्दगी के लिए संजय गांधी जैविक उद्यान या राज्य के दूसरे किसी उद्यानों में भेजते हैं. तो उन्हें हिरण का बच्चा सौपना पड़ेगा. नहीं तो कटिहार में इस नीलगाय को नर्सरी में पालना होगा.