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शिक्षा की असल तस्वीर पेश करता यह स्कूल, प्रधानाचार्य को भी नहीं पता शिक्षा मंत्री का नाम

इस विद्यालय में 800 बच्चे पढ़ते हैं. प्राचार्य भी मौजूद हैं और बच्चे ककहरे की तालीम भी सीख रहे हैं. लेकिन जब छठी क्लास के बच्चों से राज्य के मुख्यमंत्री का और जिलाधिकारी का नाम पूछा गया तो उन्हें नहीं पता था.

स्कूल में पढ़ते बच्चे
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Published : May 14, 2019, 4:32 AM IST

कटिहार: बिहार के सरकारी स्कूलों की हालत ऐसी है कि यहां पर केवल विद्यार्थी ही नहीं बल्कि शिक्षक भी घोर अज्ञानता के शिकार हैं. मामला कटिहार के आजमनगर प्रखंड अंतर्गत ढेना बगछला गांव के उत्क्रमित मध्य विद्यालय का जहां की प्राचार्य सिंधु कुमारी को जिला शिक्षा पदाधिकारी से लेकर सूबे के शिक्षा मंत्री तक का नाम नहीं पता. वहीं अमेरिका की राजधानी तथा अमेरिका की स्पेलिंग बताने में भी प्रधानाध्यापिका के पसीने छूट गये.

इस स्कूल की सरकारी बिल्डिंग तो चकाचक है. इस विद्यालय में 800 बच्चे पढ़ते हैं. प्राचार्य भी मौजूद हैं और बच्चे ककहरे की तालीम भी सीख रहे हैं. लेकिन जब छठी क्लास के बच्चों से राज्य के मुख्यमंत्री का और जिलाधिकारी का नाम पूछा गया तो उन्हें नहीं पता था.

कटिहार का उत्क्रमित मध्य विद्यालय

शिक्षा पर हो रहे हैं करोड़ों खर्च

सरकार स्कूलों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लाख दावे कर ले लेकिन सरकारी स्कूलों के हाल बद से भी बदतर हो चुके हैं. बच्चों को ज्ञान नहीं और शिक्षक अज्ञानी हैं. अब ऐसे में सवाल उठता है कि सरकार शिक्षा पर जो हर महीने करोड़ों रुपए खर्च कर रही है वह कहां जा रहा है.

शिक्षा की असल तस्वीर
यह एक तस्वीर है जो बिहार के शिक्षा की हकीकत बयां कर रहा है. आने वाले 10 सालों में हमारे नौनिहाल शिक्षित होकर क्या बनेंगे इसकी भी एक झलक दिखा रहा है.

कटिहार: बिहार के सरकारी स्कूलों की हालत ऐसी है कि यहां पर केवल विद्यार्थी ही नहीं बल्कि शिक्षक भी घोर अज्ञानता के शिकार हैं. मामला कटिहार के आजमनगर प्रखंड अंतर्गत ढेना बगछला गांव के उत्क्रमित मध्य विद्यालय का जहां की प्राचार्य सिंधु कुमारी को जिला शिक्षा पदाधिकारी से लेकर सूबे के शिक्षा मंत्री तक का नाम नहीं पता. वहीं अमेरिका की राजधानी तथा अमेरिका की स्पेलिंग बताने में भी प्रधानाध्यापिका के पसीने छूट गये.

इस स्कूल की सरकारी बिल्डिंग तो चकाचक है. इस विद्यालय में 800 बच्चे पढ़ते हैं. प्राचार्य भी मौजूद हैं और बच्चे ककहरे की तालीम भी सीख रहे हैं. लेकिन जब छठी क्लास के बच्चों से राज्य के मुख्यमंत्री का और जिलाधिकारी का नाम पूछा गया तो उन्हें नहीं पता था.

कटिहार का उत्क्रमित मध्य विद्यालय

शिक्षा पर हो रहे हैं करोड़ों खर्च

सरकार स्कूलों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लाख दावे कर ले लेकिन सरकारी स्कूलों के हाल बद से भी बदतर हो चुके हैं. बच्चों को ज्ञान नहीं और शिक्षक अज्ञानी हैं. अब ऐसे में सवाल उठता है कि सरकार शिक्षा पर जो हर महीने करोड़ों रुपए खर्च कर रही है वह कहां जा रहा है.

शिक्षा की असल तस्वीर
यह एक तस्वीर है जो बिहार के शिक्षा की हकीकत बयां कर रहा है. आने वाले 10 सालों में हमारे नौनिहाल शिक्षित होकर क्या बनेंगे इसकी भी एक झलक दिखा रहा है.

Intro:कटिहार

सरकार स्कूलों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लाख दावे कर ले लेकिन सरकारी स्कूलों के हाल बद से भी बदतर हो चुकी है। बच्चों को ज्ञान नहीं और शिक्षक अज्ञानी है। अब ऐसे में सवाल उठता है कि सरकार शिक्षा पर जो हर महीने करोड़ों रुपए खर्च कर रही है वह कहां जा रहा है। आइए हम आपको एक ऐसी तस्वीर दिखाते हैं बिहार के कटिहार जिले के आजमनगर प्रखंड अंतर्गत ढेना बगछला गांव के उत्क्रमित मध्य विद्यालय का जहां बच्चे तो बच्चे प्रधानाचार्य भी जय गणेश हैं।


Body:दरअसल यह दृश्य कटिहार के आजमनगर प्रखंड के ढेना बगछला गांव का है जहां कहने को तो सरकारी बिल्डिंग चकाचक है, स्कूल में 800 बच्चे हैं, प्राचार्य भी मौजूद हैं, और बच्चे ककहरे का तालीम सीख रहे हैं। लेकिन आज हम इस स्कूल के अंदर की कड़वी सच्चाई दिखा रहे हैं। बच्चों को राज्य के मुख्यमंत्री का नाम, जिले का डीएम का नाम तथा अन्य छोटे-छोटे सवाल का जवाब छठे वर्ग के बच्चों को पता तक नहीं।

मजे की बात यह है कि ये मासूम है जिन्हें क्षमा भी किया जा सकता है लेकिन इसके आगे का नजारा आपको सोचने पर विवश कर देगा। जरा देखिए विद्यालय के प्राचार्य सिंधु कुमारी क्या कहती है। इन्हें तो अपने जिला शिक्षा पदाधिकारी से लेकर सूबे के शिक्षा मंत्री तक का नाम पता नहीं है। अमेरिका की राजधानी तथा अमेरिका की स्पेलिंग भी इन्हे नहीं पता। अब बताइए यह क्या शिक्षा देती होगी। सच्चाई यह है कि सरकारी स्कूल जैसे तैसे राम भरोसे चल रहा है और कागज पर ऑल इज वेल बताया जा रहा है।


Conclusion:यह एक तस्वीर है बिहार के शिक्षा की हकीकत की जो बता रहा है कि आने वाले 10 साल के बाद हमारे नौनिहाल शिक्षित होकर क्या बनेंगे और सरकारी पैसा का किस प्रकार शिक्षा के नाम पर पानी बहाया जा रहा है। अच्छा तो यह होता कि जितना काम उतना दाम वाला हिसाब होता और जिस स्कूल के जितने बच्चे पढ़ लिखकर उतीर्ण होते इस आधार पर इन शिक्षकों को मानदेय दिया जाता क्योंकि महीने की पगार पाकर इनकी चमड़ी मोटी हो गई है और इन्हें शिक्षा से कोई लेना देना नहीं है और यह लोग समाज को गर्त में धकेलने का काम कर रहे हैं।
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