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सरकार से टूटी मदद की आस, नहीं टूटा हौसला, श्रमदान कर बनाया चचरी पुल - चचरी पुल

सरकार से मदद की आस खो चुके ग्रामीण श्रमदान कर आवागमन के लिए चचरी पुल का निर्माण कर रहे हैं बाढ़ के समय यहां के लोगों को सरकारी नाव भी नसीब नहीं होता है. ग्रामीण खुद का बचाव करने के लिए चंदा इकट्ठा कर चचरी पुल बनाने में जुट गए.

चचरी पुल का निर्माण
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Published : Jul 17, 2019, 10:25 AM IST

कटिहार: बाढ़ की विभीषिका झेल रहे अमदाबाद के लोग अब सरकार से आस छोड़ चुके हैं. आपसी अंशदान और श्रमदान कर आवागमन के लिए चचरी पुल के निर्माण में जुटे हैं. लोग बांस के जरिए पन्द्रह सौ मीटर लंबी चचरी पुल बनाकर खुद को सुरक्षित रखने की कोशिश में जुटे हैं.

इलाका हुआ जलमग्न
नेपाल में हो रही बारिश जिले के लोगों के लिए सिरदर्द साबित हो रही है. जिले का अमदाबाद इलाका, यहां के लोग नेपाल के पानी से भयभीत हैं. सरकारी नाव की आस लगाए लो खुद को सुरक्षित रखने के लिए उपाए करने में जुट गए हैं. बारिश के बाद नेपाल की तरफ से पानी छोड़ा गया. जिसके कारण पूरा इलाका जल मग्न है. जहां-तहां सड़कों पर पानी भरा है. सरकार की तरफ से नाव नहीं मिलने पर स्थानीय लोग चंदा इकट्ठा कर चचरी पुल का निर्माण कर रहे हैं.

चचरी पुल निर्माण में जुटे ग्रामीण

तीन सौ बांस से बनाया जा रहा पुल
इस चचरी पुल के निर्माण में करीब तीन सौ से ज्यादा बांस का उपयोग किया जा रहा है. दो से तीन दिन में पुल बन कर तैयार हो जायेगी. स्थानीय ग्रामीण बताते हैं कि पानी से होने वाली परेशानी से निपटने के लिए पुल निर्माण करना पड़ रहा है. इससे बच्चों और मरीजों को काफी मदद मिलेगी. लोगों का कहना है कि, 'गांव में कोई बीमार पड़ता है तो खटिया पर ले जाने लायक रास्ता भी नहीं बचा है, ऐसे में चचरी पुल का निर्माण किया गया है.'

katihar
चचरी पुल निर्माण में जुटे ग्रामीण

बारह पंचायतों का आवगमन बाधित
पानी भरने के कारण बारह पंचायतों के हजारों लोगों का आवागमन ठप हो जाता है. यहां पुल का निर्माण होना चाहिए. लेकिन प्रशासन इस तरफ ध्यान नहीं दे रही. जहां सरकार के नुमाइंदे और जनप्रतिनिधियों से गुहार लगाने के बाद भी समस्या का समाधान नहीं होता है. ऐसे में ग्रामीणों ने अंशदान और श्रमदान के बदौलत खुद को सुरक्षित रखने की तैयारी कर ली है.

कटिहार: बाढ़ की विभीषिका झेल रहे अमदाबाद के लोग अब सरकार से आस छोड़ चुके हैं. आपसी अंशदान और श्रमदान कर आवागमन के लिए चचरी पुल के निर्माण में जुटे हैं. लोग बांस के जरिए पन्द्रह सौ मीटर लंबी चचरी पुल बनाकर खुद को सुरक्षित रखने की कोशिश में जुटे हैं.

इलाका हुआ जलमग्न
नेपाल में हो रही बारिश जिले के लोगों के लिए सिरदर्द साबित हो रही है. जिले का अमदाबाद इलाका, यहां के लोग नेपाल के पानी से भयभीत हैं. सरकारी नाव की आस लगाए लो खुद को सुरक्षित रखने के लिए उपाए करने में जुट गए हैं. बारिश के बाद नेपाल की तरफ से पानी छोड़ा गया. जिसके कारण पूरा इलाका जल मग्न है. जहां-तहां सड़कों पर पानी भरा है. सरकार की तरफ से नाव नहीं मिलने पर स्थानीय लोग चंदा इकट्ठा कर चचरी पुल का निर्माण कर रहे हैं.

चचरी पुल निर्माण में जुटे ग्रामीण

तीन सौ बांस से बनाया जा रहा पुल
इस चचरी पुल के निर्माण में करीब तीन सौ से ज्यादा बांस का उपयोग किया जा रहा है. दो से तीन दिन में पुल बन कर तैयार हो जायेगी. स्थानीय ग्रामीण बताते हैं कि पानी से होने वाली परेशानी से निपटने के लिए पुल निर्माण करना पड़ रहा है. इससे बच्चों और मरीजों को काफी मदद मिलेगी. लोगों का कहना है कि, 'गांव में कोई बीमार पड़ता है तो खटिया पर ले जाने लायक रास्ता भी नहीं बचा है, ऐसे में चचरी पुल का निर्माण किया गया है.'

katihar
चचरी पुल निर्माण में जुटे ग्रामीण

बारह पंचायतों का आवगमन बाधित
पानी भरने के कारण बारह पंचायतों के हजारों लोगों का आवागमन ठप हो जाता है. यहां पुल का निर्माण होना चाहिए. लेकिन प्रशासन इस तरफ ध्यान नहीं दे रही. जहां सरकार के नुमाइंदे और जनप्रतिनिधियों से गुहार लगाने के बाद भी समस्या का समाधान नहीं होता है. ऐसे में ग्रामीणों ने अंशदान और श्रमदान के बदौलत खुद को सुरक्षित रखने की तैयारी कर ली है.

Intro:.....कटिहार में लोगों ने छोड़ी सरकारी नाव की आस .....। बाढ़ग्रस्त इलाके में श्रमदान देकर आपस मे बना रहे हैं ग्रामीण चचडी का पुल ताकि सैलाब से जूझ रहे गाँवों में लोगों को आवागमन की दिक्कत ना हों .....। खासबात यह हैं कि पन्द्रह सौ सौ मीटर लंबे इस चचडी के पुल के निर्माण के लिये ग्रामीण आपस मे चन्दा इकट्ठा कर हरे बाँसों का किया खरीद और फिर बचे पैसे से कील और अन्य जरूरी सामान जुटाया ......।


Body:यह दृश्य कटिहार के अमदाबाद इलाके का हैं जहाँ बाँस - बल्लम छील रहे यह लोग कोई मजदूर नहीं बल्कि स्थानीय गाँव के लोग हैं । बताया जाता हैं कि इलाके में रुक - रुक हो रहे बारिश और नेपाल से छोड़े पानी से समूचा इलाका जलमग्न हो गया हैं । रास्ते पर तीन से चार फीट का पानी बह रहा हैं जिससे जलजमाव हो गया हैं । लोग छोटी नावों के जरिये आ - जा तो रहें हैं लेकिन कश्तियों का यह सफर डेंजरस हैं क्योंकि कही - कही गड्ढे ज्यादा बड़े हैं और उसपर से ओवरलोडिंग और नौसिखुवे मांझियों के कारण परेशानी होती हैं । लिहाजा ग्रामीणों ने आपस मे मीटिंग किया और फैसला लिया कि सरकारी नावों की तत्काल आशा छोड़कर आपस मे चन्दा इक्कट्ठा किया जाय जिससे हरा बाँस खरीदा जा सकें । करीब पन्द्रह सौ मीटर चचडी के लिये तीन सौ से ज्यादा बाँस , कील और अन्य जरूरी सामान आये और फिर कोई मजदूर बना , किसी ने तैयार चचडी को उठाने में कंधा दिया और उम्मीद हैं दो से तीन दिनों में चचड़ी का पुल तैयार हो जाये ....। स्थानीय ग्रामीण नजरुल हक बताते हैं कि पानी से हो रही दिक्कतों ने पुल निर्माण करने का सोच दिया ....। स्थानीय ग्रामीण अजित कुमार सिंह बताते हैं कि पानी से बच्चों और मरीजों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता हैं । यदि गाँव मे कोई बीमार पड़ जाये तो खटिया पर भी उसे लाद शहर की ओर नहीं ले जा सकते हैं लिहाजा चचड़ी पुल का निर्माण उसी की दिशा में एक कदम हैं । स्थानीय ग्रामीण जितेन्द्र सिंह बताते है कि पानी जम जाने से करीब बारह पंचायतों के हजारों लोगों के आवागमन का रास्ता ठप्प हो गया हैं , यहाँ सरकार को रास्ते निर्माण के लिये आगे बढ़ना चाहिये ......।


Conclusion:चचड़ी पुल का निर्माण भले ही ग्रामीणों द्वारा समस्याओं से निजात पाने की दिशा में एक सकारात्मक कदम हैं लेकिन यह हमारे विकास का दर्पण और जनप्रतिनिधियों को आईना दिखाने वाला भी एक्शन हैं जहाँ आजादी के सात दशक के बाद भी लोग थोड़े से बारिश के जलजमाव में लोग परेशानियों से जूझने लगतें हैं और स्थानीय जनप्रतिनिधि वातानुकूलित गाड़ियों से पीड़ितों का हाल जानने पहुँच अपने को गौरवान्वित समझते हैं .....।
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