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कटिहार के किसान खुद बनाते हैं जैविक खाद, खेतों के लिए बनी संजीवनी - Initiative of farmers

किसानों ने खुद की बनाई जैविक खाद का नाम 'जीवामृत' रखा है. जीवामृत के प्रयोग से वो दोगुनी फसल उपजा रहे हैं. कैसे बनाते हैं वो जैविक खाद, पढ़ें पूरी खबर...

जैविक खाद
जैविक खाद
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Published : Sep 2, 2020, 8:24 PM IST

कटिहार: जिले के किसान कम लागत में जैविक घोल 'जीवामृत' तैयार कर मिसाल पेश कर रहे हैं. जीवामृत के प्रयोग से जहां खेतों की उर्वरकता बढ़ रही है. इससे किसानों की फसल अच्छी और दोगुनी उपज रही है. किसानों की मानें, तो जीवामृत को मात्र 3 दिनों में बनाया जा सकता है. किसानों के इस पहल की प्रशासन ने भी सराहना की है.

किसान ये अच्छी तरह जान चुके हैं कि रासायनिक खाद के प्रयोग से ना केवल मिट्टी की उर्वरक शक्ति कम होती है, बल्कि फसलों को नुकसान होता है. यही फसल सेहत को नुकसान भी पहुंचाती है. इसके चलते, जिले के हसनगंज प्रखंड के रतनी गांव निवासी धनराज ने खुद से जैविक खाद बनानी शुरू की. इसके प्रयोग से उनके खेत फसलों से लहलाने लगे.

देखें, ये रिपोर्ट

ऐसे बनाते हैं जैविक खाद का घोल
किसान धनराज अपने खेतों के लिए घर में ही जैविक खाद का निर्माण करते हैं. यह खाद गाय के गोबर, गोमूत्र, चारा और कच्चे गुड़ के साथ-साथ घास फूस आदि मिलाकर यह खाद तैयार करते हैं. उन्होंने अपने इस जैविक घोल का नाम जीवामृत दियाा है.

लहला उठे धनराज के खेत
लहला उठे धनराज के खेत

धनराज खेतों में रासायनिक दवाओं की जगह जीवामृत का उपयोग करते हैं. सिंचाई के समय 1 एकड़ जमीन में 230 लीटर के हिसाब से यह जीवामृत डाला जाता है, जिससे मिट्टी में लाभदायक जीवाणु पनपते हैं और इससे सालों साल मिट्टी उपजाऊ बनी रहती है.

तीन दिन में बन जाता है जीवामृत- धनराज
धनराज ने ईटीवी भारत से बात करते हुए बताया, 'जीवामृत को तैयार करने के लिए 210 लीटर पानी में 10 किलोग्राम देसी गाय का गोबर, 10 लीटर गोमूत्र, करीब 1 केजी गुड़, 1 केजी दाल का बेसन, आटा और 1 किलो बरगद वृक्ष के नीचे की मिट्टी की जरूरत पड़ती है. इन्हीं सबका घोल बनाकर ड्रम में छोड़ दिया जाता है. इसके बाद तीन दिन तक समय समय पर इसे चलाकर अच्छी तरह मिला लिया जाता है. तब जाकर जैविक खाद तैयार हो जाती है.'

जीवामृत बनाते धनराज केवट
जीवामृत बनाते धनराज केवट

सराहनीय पहल- अधिकारी
किसान के इस प्रयोग को देखते हुए हसनगंज प्रखंड विकास पदाधिकारी श्रीमती दीना मुर्मू इसे बहुत सराहनीय पहल बताती हैं. वो कहती है कि लोग अब रसायनिक खाद की जगह जैविक खाद का उपयोग कर रहे हैं. उसका निर्माण भी खुद कर रहे हैं. जैविक खाद के प्रयोग से मिट्टी की उर्वरता बढ़ रही है. सरकार भी जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए अनेकों योजनाएं चला रही है और इसका लाभ इन किसानों को मिल रहा है.

गौरतलब हो कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी जैविक खेती को बढ़ावा देने की बात कही है. आगामी 5 वर्षो के अंदर जैविक खेती के मामले में बिहार सिक्किम से भी आगे निकल जाएगा, ऐसा दावा किया जा चुका है. ऐसे में हर जिले में जैविक खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है. जैविक खाद प्लांट के लिए भी सरकार की ओर से 50 फीसदी अनुदान का प्रवधान है.

कटिहार: जिले के किसान कम लागत में जैविक घोल 'जीवामृत' तैयार कर मिसाल पेश कर रहे हैं. जीवामृत के प्रयोग से जहां खेतों की उर्वरकता बढ़ रही है. इससे किसानों की फसल अच्छी और दोगुनी उपज रही है. किसानों की मानें, तो जीवामृत को मात्र 3 दिनों में बनाया जा सकता है. किसानों के इस पहल की प्रशासन ने भी सराहना की है.

किसान ये अच्छी तरह जान चुके हैं कि रासायनिक खाद के प्रयोग से ना केवल मिट्टी की उर्वरक शक्ति कम होती है, बल्कि फसलों को नुकसान होता है. यही फसल सेहत को नुकसान भी पहुंचाती है. इसके चलते, जिले के हसनगंज प्रखंड के रतनी गांव निवासी धनराज ने खुद से जैविक खाद बनानी शुरू की. इसके प्रयोग से उनके खेत फसलों से लहलाने लगे.

देखें, ये रिपोर्ट

ऐसे बनाते हैं जैविक खाद का घोल
किसान धनराज अपने खेतों के लिए घर में ही जैविक खाद का निर्माण करते हैं. यह खाद गाय के गोबर, गोमूत्र, चारा और कच्चे गुड़ के साथ-साथ घास फूस आदि मिलाकर यह खाद तैयार करते हैं. उन्होंने अपने इस जैविक घोल का नाम जीवामृत दियाा है.

लहला उठे धनराज के खेत
लहला उठे धनराज के खेत

धनराज खेतों में रासायनिक दवाओं की जगह जीवामृत का उपयोग करते हैं. सिंचाई के समय 1 एकड़ जमीन में 230 लीटर के हिसाब से यह जीवामृत डाला जाता है, जिससे मिट्टी में लाभदायक जीवाणु पनपते हैं और इससे सालों साल मिट्टी उपजाऊ बनी रहती है.

तीन दिन में बन जाता है जीवामृत- धनराज
धनराज ने ईटीवी भारत से बात करते हुए बताया, 'जीवामृत को तैयार करने के लिए 210 लीटर पानी में 10 किलोग्राम देसी गाय का गोबर, 10 लीटर गोमूत्र, करीब 1 केजी गुड़, 1 केजी दाल का बेसन, आटा और 1 किलो बरगद वृक्ष के नीचे की मिट्टी की जरूरत पड़ती है. इन्हीं सबका घोल बनाकर ड्रम में छोड़ दिया जाता है. इसके बाद तीन दिन तक समय समय पर इसे चलाकर अच्छी तरह मिला लिया जाता है. तब जाकर जैविक खाद तैयार हो जाती है.'

जीवामृत बनाते धनराज केवट
जीवामृत बनाते धनराज केवट

सराहनीय पहल- अधिकारी
किसान के इस प्रयोग को देखते हुए हसनगंज प्रखंड विकास पदाधिकारी श्रीमती दीना मुर्मू इसे बहुत सराहनीय पहल बताती हैं. वो कहती है कि लोग अब रसायनिक खाद की जगह जैविक खाद का उपयोग कर रहे हैं. उसका निर्माण भी खुद कर रहे हैं. जैविक खाद के प्रयोग से मिट्टी की उर्वरता बढ़ रही है. सरकार भी जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए अनेकों योजनाएं चला रही है और इसका लाभ इन किसानों को मिल रहा है.

गौरतलब हो कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी जैविक खेती को बढ़ावा देने की बात कही है. आगामी 5 वर्षो के अंदर जैविक खेती के मामले में बिहार सिक्किम से भी आगे निकल जाएगा, ऐसा दावा किया जा चुका है. ऐसे में हर जिले में जैविक खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है. जैविक खाद प्लांट के लिए भी सरकार की ओर से 50 फीसदी अनुदान का प्रवधान है.

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