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कटिहार: कुटिर उद्योग के कारीगर भुखमरी की कगार पर, प्रशिक्षण के बावजूद कमाई को तरसे

हिंदू मान्यताओं के अनुसार सावन के 4 महीने बाद तक कोई भी विवाह संस्कार संपन्न नहीं कराए जा सकते हैं. जिसके कारण इनके सामानों की बिक्री काफी कम हो जाती है. जिसके कारण उनके सामने पैसों की भारी किल्लत हो जाती है.

बांस के सामान बनाते हुए कारीगर
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Published : Aug 2, 2019, 2:08 PM IST

कटिहार: जिले में हस्तशिल्प के कारीगर सरकारी अपेक्षाओं के शिकार बने हैं. जिसके कारण बांस से बने सामानों को कुटीर उद्योग का दर्जा नहीं मिल सका. ऐसे में सीजन नहीं रहने पर उनके सामानों की बिक्री नहीं होती है. जिसके कारण इनके सामने भुखमरी की नौबत आ गई है. छोटे-मोटे सूप दौरा बनाकर पूरे परिवार की गाड़ी चलाने वाले इनलोगों के पास कमाई का कोई और जरिया नहीं होने से इनकी मुसीबत और बढ़ गई है.

कटिहार से खास रिपोर्ट
मधुबनी से हस्तशिल्प एवं विपणन क्षेत्र में लिया है प्रशिक्षण हाथों से शिल्प को आकृति प्रदान कर रहे यह हुनरमंद कटिहार के कदवा इलाके के लोग हैं. इन्होंने मधुबनी से हस्तशिल्प एवं विपणन क्षेत्र में प्रशिक्षण लिया है. कला के जौहर सीखे, बांस के बंधन के गुन सीखे. बावजूद इसके अभी इनके सामने भुखमरी की नौबत आ गई है. सरकारी लापरवाही की वजह से प्रशिक्षण के बावजूद इन्हें कुटीर उद्योग से बने सामान उत्पादन के लिए न तो ऋण मिला और न ही कारीगर का दर्जा. जिसके कारण इनके सामने रोजी-रोटी की समस्या खड़ी हो गई है.
katihar News
कोनिया बुनते कारीगर
हुनरमंद कारीगर हो जाते हैं बेरोजगारविवाह मुहूर्त के दौरान बांस से बने सामान ऊंचे दामों पर बिकने के कारण यह इनके लिए कमाई का मुख्य जरिया होता है. लेकिन, किस्मत ने यहां भी इनका पीछा न छोड़ा. हिंदू मान्यताओं के अनुसार सावन के 4 महीने बाद तक कोई भी विवाह संस्कार संपन्न नहीं कराए जाते हैं. जिसके कारण ये अगले कुछ महीने तक बेरोजगार रहेंगे. इस दौरान वे छोटे-मोटे सूप दौरा से आमदनी की कोशिश करेंगे जो परिवार चलाने के लिए नाकाफी है. लिहाजा, बढ़ती उम्र के इस पड़ाव पर ये हुनरमंद कारीगर बेरोजगार हो गए हैं. कारीगर रामखेलावन महली बताते हैं कि उन्होंने मधुबनी से प्रशिक्षण लिया है. कई घंटे प्रशिक्षण में बिताए हैं. लेकिन आज वह प्रशिक्षण की डिग्री केवल कागज बनकर रह गया है.
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बांस का सामान बनाते कारीगर

सरकार नहीं दे रही ध्यान
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बिहार में नीतीश कुमार की सरकार उद्योगपतियों को सूबे में इंडस्ट्री लगाने के लिए न्योता पर न्योता भेज रही है. लेकिन सीएम साहब के रिक्वेस्ट में बड़े-बड़े औद्योगिक घराने इंटरेस्ट नहीं ले रहे हैं. बिहार में औद्योगिक निवेश न के बराबर है. ऐसे में कुटीर उद्योगों के विकास में बिहार सरकार को प्रोत्साहन देना चाहिए था. लेकिन उसपर सरकार का ध्यान ही नहीं है. जरूरत इस बात की है कि सरकार बड़े उद्योगों की तरह कुटीर और लघु उद्योगों को भी प्रोत्साहन दे ताकि विकास और रोजगार राज्य में फल-फूल सके.

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बांस से बना कोनिया

कटिहार: जिले में हस्तशिल्प के कारीगर सरकारी अपेक्षाओं के शिकार बने हैं. जिसके कारण बांस से बने सामानों को कुटीर उद्योग का दर्जा नहीं मिल सका. ऐसे में सीजन नहीं रहने पर उनके सामानों की बिक्री नहीं होती है. जिसके कारण इनके सामने भुखमरी की नौबत आ गई है. छोटे-मोटे सूप दौरा बनाकर पूरे परिवार की गाड़ी चलाने वाले इनलोगों के पास कमाई का कोई और जरिया नहीं होने से इनकी मुसीबत और बढ़ गई है.

कटिहार से खास रिपोर्ट
मधुबनी से हस्तशिल्प एवं विपणन क्षेत्र में लिया है प्रशिक्षण हाथों से शिल्प को आकृति प्रदान कर रहे यह हुनरमंद कटिहार के कदवा इलाके के लोग हैं. इन्होंने मधुबनी से हस्तशिल्प एवं विपणन क्षेत्र में प्रशिक्षण लिया है. कला के जौहर सीखे, बांस के बंधन के गुन सीखे. बावजूद इसके अभी इनके सामने भुखमरी की नौबत आ गई है. सरकारी लापरवाही की वजह से प्रशिक्षण के बावजूद इन्हें कुटीर उद्योग से बने सामान उत्पादन के लिए न तो ऋण मिला और न ही कारीगर का दर्जा. जिसके कारण इनके सामने रोजी-रोटी की समस्या खड़ी हो गई है.
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कोनिया बुनते कारीगर
हुनरमंद कारीगर हो जाते हैं बेरोजगारविवाह मुहूर्त के दौरान बांस से बने सामान ऊंचे दामों पर बिकने के कारण यह इनके लिए कमाई का मुख्य जरिया होता है. लेकिन, किस्मत ने यहां भी इनका पीछा न छोड़ा. हिंदू मान्यताओं के अनुसार सावन के 4 महीने बाद तक कोई भी विवाह संस्कार संपन्न नहीं कराए जाते हैं. जिसके कारण ये अगले कुछ महीने तक बेरोजगार रहेंगे. इस दौरान वे छोटे-मोटे सूप दौरा से आमदनी की कोशिश करेंगे जो परिवार चलाने के लिए नाकाफी है. लिहाजा, बढ़ती उम्र के इस पड़ाव पर ये हुनरमंद कारीगर बेरोजगार हो गए हैं. कारीगर रामखेलावन महली बताते हैं कि उन्होंने मधुबनी से प्रशिक्षण लिया है. कई घंटे प्रशिक्षण में बिताए हैं. लेकिन आज वह प्रशिक्षण की डिग्री केवल कागज बनकर रह गया है.
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बांस का सामान बनाते कारीगर

सरकार नहीं दे रही ध्यान
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बिहार में नीतीश कुमार की सरकार उद्योगपतियों को सूबे में इंडस्ट्री लगाने के लिए न्योता पर न्योता भेज रही है. लेकिन सीएम साहब के रिक्वेस्ट में बड़े-बड़े औद्योगिक घराने इंटरेस्ट नहीं ले रहे हैं. बिहार में औद्योगिक निवेश न के बराबर है. ऐसे में कुटीर उद्योगों के विकास में बिहार सरकार को प्रोत्साहन देना चाहिए था. लेकिन उसपर सरकार का ध्यान ही नहीं है. जरूरत इस बात की है कि सरकार बड़े उद्योगों की तरह कुटीर और लघु उद्योगों को भी प्रोत्साहन दे ताकि विकास और रोजगार राज्य में फल-फूल सके.

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बांस से बना कोनिया
Intro:कटिहार

कटिहार में सरकारी उपेक्षा और परंपरागत विडंबना के बीच के चक्की में पीसकर तिल तिल मरने को विवश हैं। हस्तशिल्प के कारीगर सरकारी अपेक्षाओं के कारण बांस से बने सामानों को कुटीर उद्योग का दर्जा नहीं मिल सका वहीं सावन के 4 महीने बाद कोई विवाह मुहूर्त लग्न नहीं होने से इनके सामने भुखमरी की नौबत आ गई है। छोटे-मोटे सूप दौरा बनाकर पूरे परिवार की गाड़ी चलाना मुश्किल है लिहाजा अब निगाहें सरकार से मदद की और टिक गई है।


Body:हाथों से शिल्प को आकृति प्रदान कर रहे यह हुनरमंद कटिहार के कदवा इलाके के लोग हैं इन्होंने मधुबनी से हस्तशिल्प एवं विपणन क्षेत्र में प्रशिक्षण लिया कला के जौहर सीखे बांस के बंधन के गुन सिखे बावजूद अभी भुखमरी की नौबत है बताया यह जा रहा है कि सरकार की लापरवाही की वजह से प्रशिक्षण के बावजूद इन्हें कुटीर उद्योग से बने सामान उत्पादन के लिए ना तो ऋण मिला और ना ही कारीगर का दर्जा लिहाजा यह लोग सरकार की मदद की आशा छोड़ परंपरागत रोजगार पर आ गए हैं और बांस से बने सामानों का उत्पादन करने लगे।

विवाह मुहूर्त के दौरान बांस से बने सामान ऊंचे दामों पर बिकने के कारण यह व्यापार की रीढ़ बन गई है लेकिन किस्मत ने यहां भी इनका पीछा न छोड़ा। हिंदू मान्यताओं के अनुसार सावन के 4 महीने बाद तक कोई भी विवाह संस्कार संपन्न नहीं कराए जा सकते हैं। नतीजा यह हुआ कि अगले 4 महीने तक यह बेरोजगार रहेंगे और छोटे-मोटे सूप दौरा से आमदनी होगी उससे पूरे परिवार के दो जुन पेट भर खाने का इंतजाम संभव नहीं हो सकता है लिहाजा बढ़ती उम्र के चढ़ते पड़ाव में यह हुनरमंद कारीगर बेरोजगार हो गए हैं दूसरा काम कर नहीं सकते और अपने परंपरागत रोजगार से पेट भरने को रहा।

कारीगर रामखेलावन महली बताते हैं इन्होंने मधुबनी से इस क्षेत्र में प्रशिक्षण लिया है। समय के कई घंटे प्रशिक्षण में बिताए हैं आज वह प्रशिक्षण के डिग्री केवल कागज का पन्ना है। बताते हैं सावन का महीना चल रहा है और इन दिनों लग्न के सामानों का कोई डिमांड नहीं है लिहाजा छोटे-मोटे सूप और दौरा बनाकर जिंदगी से संघर्ष कर रहे हैं।



Conclusion:बिहार में नीतीश कुमार की सरकार उद्योगपतियों को सूबे में इंडस्ट्री लगाने के लिए न्योता पर न्योता भेज रही है लेकिन सीएम साहब के रिक्वेस्ट को बड़े बड़े औद्योगिक घराने इंटरेस्ट नहीं ले रहा है और बिहार में औद्योगिक निवेश ना के बराबर है और ऐसे में कुटीर उद्योगों को बिहार के विकास में सरकार को प्रोत्साहन देना चाहिए था उस पर सरकार का ध्यान ही नहीं है। जब बिहार में बड़े उद्योग लगेंगे नहीं और कुटीर उद्योग धीरे-धीरे दम तोड़ जाएगा तो हमारा बिहार विकास का पायदान कैसे चढ़ेगा यह सहज अंदाजा लगाया जा सकता है? उम्मीद की जानी चाहिए सरकार बड़े उद्योगों की तरह कुटीर और लघु उद्योगों को प्रोत्साहन दें ताकि विकास और रोजगार राज्य में फल-फूल सके।
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