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कैमूर: सरकारी उदासीनता के कारण अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा शेरगढ़ का किला

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Published : Feb 18, 2019, 12:14 PM IST

कैमूर श्रृंखला की पहाड़ी पर स्थित शेरगढ़ किला सरकारी उदासीनता के कारण आज अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है.

शेरगढ़ का किला

कैमूर: जिला मुख्यालय भभुआ से लगभग 37 किमी दूर स्थित करमचट डैम से 2 किमी की दूरी पर लगभग 800 फीट ऊंची कैमूर श्रृंखला की पहाड़ियों पर स्थित शेरगढ़ का किला स्थित है. यह अफगान शासक शेरशाह का किला है.

मध्यकालीन इतिहास की इमारत लड़ रहा अस्तित्व की लड़ाई
मध्यकालीन इतिहास की यह प्रमुख इमारत संरक्षण के अभाव में अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है. किले की सभी भूमिगत कमरों के ऊपर निकले पेड़-पौधों और झाड़ियों ने इस किले को ध्वस्त करना शुरू कर दिया हैं. पहाड़ियों के पत्थरों और जंगल और कटीली झाड़ियों से गुजरने के बाद इस ऐतिहासिक किले तक पहुंचा जा सकता है.

किले का विकास से पूरी तरह वंचित हैं.
लगभग 6 वर्ग मील क्षेत्रफल में फैले इस किले के नीचे दुर्गावति जलाशय परियोजना के तहत बांध भी बनाया जा चुका हैं. इस किले से गुप्ताधाम और सीताकुंड के लिए भी रास्ता हैं. लेकिन किले का विकास से पूरी तरह वंचित हैं.

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पर्यटन के दृष्टिकोण किले का विकास है जरुरी
पर्यटन के दृष्टिकोण से इस किले का विकास हो तो सरकार को बहुत लाभ मिल सकता है. लेकिन, इस ऐतिहासिक किले की जिम्मेदारी न तो पुरातत्व विभाग ने ली है, न ही राज्य सरकार को इस किले से कोई मतलब हैं.

शेरगढ़ का किला
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पर्यटकों ने सरकार से की मांग
पर्यटकों ने बताया कि किले तक पहुंचने के लिए उन्होंने पहाड़ियों का सहारा लिया. घंटो पहाड़ पर भटकने के बाद भी किले तक का रास्ता नहीं मिला. उन्होंने सरकार से अपील करते हुए कहा कि किले तक पहुंचने वाले रास्ते पर बोर्ड लगाने की व्यवस्था की जाए, ताकि कोई पहाड़ पर भटके नहीं और किले तक आसानी से पहुंच सके. इसके अलावा पर्यटकों ने सड़क निर्माण की भी मांग की.

कैमूर: जिला मुख्यालय भभुआ से लगभग 37 किमी दूर स्थित करमचट डैम से 2 किमी की दूरी पर लगभग 800 फीट ऊंची कैमूर श्रृंखला की पहाड़ियों पर स्थित शेरगढ़ का किला स्थित है. यह अफगान शासक शेरशाह का किला है.

मध्यकालीन इतिहास की इमारत लड़ रहा अस्तित्व की लड़ाई
मध्यकालीन इतिहास की यह प्रमुख इमारत संरक्षण के अभाव में अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है. किले की सभी भूमिगत कमरों के ऊपर निकले पेड़-पौधों और झाड़ियों ने इस किले को ध्वस्त करना शुरू कर दिया हैं. पहाड़ियों के पत्थरों और जंगल और कटीली झाड़ियों से गुजरने के बाद इस ऐतिहासिक किले तक पहुंचा जा सकता है.

किले का विकास से पूरी तरह वंचित हैं.
लगभग 6 वर्ग मील क्षेत्रफल में फैले इस किले के नीचे दुर्गावति जलाशय परियोजना के तहत बांध भी बनाया जा चुका हैं. इस किले से गुप्ताधाम और सीताकुंड के लिए भी रास्ता हैं. लेकिन किले का विकास से पूरी तरह वंचित हैं.

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पर्यटन के दृष्टिकोण किले का विकास है जरुरी
पर्यटन के दृष्टिकोण से इस किले का विकास हो तो सरकार को बहुत लाभ मिल सकता है. लेकिन, इस ऐतिहासिक किले की जिम्मेदारी न तो पुरातत्व विभाग ने ली है, न ही राज्य सरकार को इस किले से कोई मतलब हैं.

शेरगढ़ का किला
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पर्यटकों ने सरकार से की मांग
पर्यटकों ने बताया कि किले तक पहुंचने के लिए उन्होंने पहाड़ियों का सहारा लिया. घंटो पहाड़ पर भटकने के बाद भी किले तक का रास्ता नहीं मिला. उन्होंने सरकार से अपील करते हुए कहा कि किले तक पहुंचने वाले रास्ते पर बोर्ड लगाने की व्यवस्था की जाए, ताकि कोई पहाड़ पर भटके नहीं और किले तक आसानी से पहुंच सके. इसके अलावा पर्यटकों ने सड़क निर्माण की भी मांग की.

Intro:जिला मुख्यालय भभुआ से लगभग 37 किमी दूर करमचट डैम से 2 किमी लगभग 800 फ़ीट ऊंची कैमूर श्रृंखला की एक पहाड़ी पर स्थित है शेरगढ़ किला। पहाड़ियों के पत्थरों और जंगल व कटीले झाड़ियों से गुजरने के बाद इस ऐतिहासिक किले तक पहुँचा जा सकता हैं।


Body:आपको बतादें की यह ऐतिहासिक किला जो शेरगढ़ के नाम से प्रशिद्ध है आज संरक्षण के आभाव में खुद के अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है और सरकार के उदासीन रवैये के कारण अपने अस्तित्व के लिए झूझ रहा है। यह किला अफगान शासक शेरशाह का किला है।

मध्यकालीन इतिहास में लेखकों ने इस किले का वर्णन किया और इस किले की भूमिगत कमरों की तारीफ भी की है। लेकिन आज के तारीख में किले के सभी भूमिगत कमरों के ऊपर निकले पेड़ पौधे और झाड़ ने इस किले को ध्वस्त करना शुरू कर दिया हैं। किले की हालत को देखकर अब तो बस यही दिमाग मे आता है कि क्या यह ऐतिहासिक कलाकृति से पूर्ण किला का नामों निशान खत्म हो जाएगा।

आपको बतादें की यह किला लगभग 6 वर्ग मील क्षेत्रफल में फैला हुआ हैं। और इस किले के नीचे दुर्गावति जलाशय परियोजना के तहत बांध भी बन चुका हैं। लेकिन किला विकास से पूरी तरह वंचित हैं। आपको जानकर यह हैरानी भी होगी कि यहाँ से गुप्ताधाम और सीताकुंड के लिए भी रास्ता हैं यानी पर्यटन के दृष्टिकोण से यदि इस किले का विकास हो तो सरकार को बहुत लाभ मिल सकता है और एक ऐतिहासिक किले को खण्डहर होने से बचाया जा सकता हैं। बावजूद इसके अभी तक इस ऐतिहासिक किले के जिम्मेवारी न तो केन्द्र सरकार के पुरातत्व विभाग ने ली है न ही राज्य सरकार को इस किले से कोई मतलब हैं।


किले के इतिहास का वर्णन मध्यकालीन इतिहास की पुस्तकों में किया गया है। कहां ऐसा जाता है कि इस किले का निर्माण अति प्राचीन काल मे किया गया था। लेकिन इस किले पर 1530 ई में शेरखान ने अधिपत्य जमा लिया। फ्रांसिस बुकानन के अनुसार यहां नरसंहार भी हुआ था। जिसके बाद यह किला अभिशप्त हो गया।

किले पर मौजूद लोगों ने ईटीवी भारत से बात करते हुए बताया कि किले तक पहुँचने के लिए उन्हें पहाड़ियों के सहारा लिया है। यहां तक कि घंटो पहाड़ पर भटकने के बाद भी किले तक का रास्ता नही मिला। सरकार को कमसे किले तक पहुचने वाले रास्ते पर बोर्ड लगा देना चाहिए और सड़क का निर्माण करा देना चाहिए ताकि कोई पहाड़ पर भटके नही और किले तक आसानी से पहुँच सके। कुछ लोगों ने कहा कि सरकार की उदासीनता के कारण आनेवाली पीढ़ी ऐसे ऐतिहासिक स्थलों को कभी देख नही पाएगी यह सिर्फ किताबों तक कि सिमट जाएगी।


Conclusion:सोचने वाली बात यह है कि क्या आजादी से 7 दशक बाद भी इस किले की ऐसे ही हालात रहेगी। क्या इस किले पर सरकार की नजर पड़ेगी और क्या यह ऐतिहासिक किला दोबारा अपने अस्तित्व को प्राप्त कर पायेगा या फिर हम इसे सिर्फ किताबों में ही पढ़ते रहेंगे।
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