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कैमूरः पलका गांव में अब तक नहीं बनी पक्की सड़क, ग्रामीण परेशान - मुख्यालय

कैमूर में जिला मुख्यालय भभुआ से महज 3 किमी और डीएम आवास से सिर्फ 1.5 किमी दूर एक ऐसा गांव है जहां आने-जाने के लिए सड़क नहीं है.

कच्ची सड़क पार करते लोग
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Published : Mar 1, 2019, 1:33 PM IST

कैमूर: जिला मुख्यालय से महज 3 किमी दूर पलका गांव के ग्रामिण सड़क के अभाव में जी रहे हैं. मांग के बावजूद भी ग्रामीणों को पक्की सड़क की सुविधा नहीं मिल पाई है. भले की सरकारी आंकड़े विकास के एक पहलू को बयां करते हैं लेकिन दूसरा पहलू कुछ और ही होता है.

जिला मुख्यालय से 3किमी दूर है गांव

कैमूर में जिला मुख्यालय भभुआ से महज 3 किमी और डीएम आवास से सिर्फ 1.5 किमी दूर एक ऐसा गांव है जहां आने-जाने के लिए सड़क नहीं है. पलका गांव की बदकिस्मती है कि जिला मुख्यालय से इतना करीब होते हुए भी आज तक इस गांव को सड़क नहीं मिल पायी है. ग्रामीणों का कहना है कि 2009 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को गांव में सड़क के लिए आवेदन दिया गया था. जिसके बाद मुख्यमंत्री ने जिला प्रशासन को सड़क की समस्या का समाधान करने की बात कही थी.

डीएम के हाथ में सब कुछ

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सरकार और जिला प्रशासन के उदासीनता के कारण आजादी के 7 दशक बाद भी गांववालों को सड़क नसीब नहीं हुआ है. ग्रामीणों का कहना है कि यदि डीएम चाहे तो सड़क का इंतजाम तुरंत कर सकते हैं. लेकिन कई बार आवेदन करने के बाद भी डीएम से आश्वासन के अलावा कुछ नहीं मिला.

मांग के बावजूद भी ग्रामीणों को पक्की सड़क की सुविधा नहीं मिल पाई

छेदी पासवान ने नहीं ली सूद

गांव के लोगों ने बताया कि भाजपा के सांसद छेदी पासवान से उन्हें बहुत उम्मीदें थी. लेकिन सांसद महोदय गांव में आना तक भूल गए. इस गांव में बरसात के दिनों में जब नदी में बाढ़ आती है तो प्रत्येक वर्ष कइयों की जान चली जाती है. गांव के जिला मुख्यालय से सम्पर्क तक टूट जाता है. इसके बावजूद भी इस गांव पर न तो जिला प्रशासन की नजर है, न ही बिहार सरकार की.

कैमूर: जिला मुख्यालय से महज 3 किमी दूर पलका गांव के ग्रामिण सड़क के अभाव में जी रहे हैं. मांग के बावजूद भी ग्रामीणों को पक्की सड़क की सुविधा नहीं मिल पाई है. भले की सरकारी आंकड़े विकास के एक पहलू को बयां करते हैं लेकिन दूसरा पहलू कुछ और ही होता है.

जिला मुख्यालय से 3किमी दूर है गांव

कैमूर में जिला मुख्यालय भभुआ से महज 3 किमी और डीएम आवास से सिर्फ 1.5 किमी दूर एक ऐसा गांव है जहां आने-जाने के लिए सड़क नहीं है. पलका गांव की बदकिस्मती है कि जिला मुख्यालय से इतना करीब होते हुए भी आज तक इस गांव को सड़क नहीं मिल पायी है. ग्रामीणों का कहना है कि 2009 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को गांव में सड़क के लिए आवेदन दिया गया था. जिसके बाद मुख्यमंत्री ने जिला प्रशासन को सड़क की समस्या का समाधान करने की बात कही थी.

डीएम के हाथ में सब कुछ

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सरकार और जिला प्रशासन के उदासीनता के कारण आजादी के 7 दशक बाद भी गांववालों को सड़क नसीब नहीं हुआ है. ग्रामीणों का कहना है कि यदि डीएम चाहे तो सड़क का इंतजाम तुरंत कर सकते हैं. लेकिन कई बार आवेदन करने के बाद भी डीएम से आश्वासन के अलावा कुछ नहीं मिला.

मांग के बावजूद भी ग्रामीणों को पक्की सड़क की सुविधा नहीं मिल पाई

छेदी पासवान ने नहीं ली सूद

गांव के लोगों ने बताया कि भाजपा के सांसद छेदी पासवान से उन्हें बहुत उम्मीदें थी. लेकिन सांसद महोदय गांव में आना तक भूल गए. इस गांव में बरसात के दिनों में जब नदी में बाढ़ आती है तो प्रत्येक वर्ष कइयों की जान चली जाती है. गांव के जिला मुख्यालय से सम्पर्क तक टूट जाता है. इसके बावजूद भी इस गांव पर न तो जिला प्रशासन की नजर है, न ही बिहार सरकार की.

Intro:कैमूर
सरकार विकास के लाख दाव करती हैं। लेकिन विकास का जमीनी हकीकत कुछ और ही होता हैं। भले की सरकारी आंकड़े विकास के एक पहलू हो बया करते है लेकिन दूसरा पहलू कुछ और ही होता है। कैमूर में जिला मुख्यालय भभुआ से महज 3 किमी और डीएम आवास से सिर्फ 1.5 किमी दूर एक ऐसा गांव है जहाँ जाने के लिए सड़क नही हैं।


Body:भभुआ भगवानपुर पथ पर डीएम आवास से सिर्फ 1.5 किमी की दूरी पर भभुआ प्रखंड अंतर्गत पलका गांव बदकिस्मती है कि जिला मुख्यालय से इतना करीब होते हुए भी आज तक इस गांव को सड़क नही मिल सका। सोचने वाली बात यह हैं कि गांव भभुआ भगवानपुर मुख्य सड़क से महज 8 सौ मीटर की दूरी पर है लेकिन गांव में जाने का कोई रास्ता नही है। ग्रामीणों का कहना है कि 2009 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को गांव में सड़क के लिए आवेदन दिया गया था। जिसके बाद मुख्यमंत्री ने जिला प्रशासन को सड़क की समस्या का समाधान करने की बात कही थी। लेकिन सरकार और जिला प्रशासन के उदासीनता के कारण आजादी के 7 दशक बाद भी गांव में सड़क नसीब नही हुआ। ग्रामीणों का कहना है कि यदि डीएम चाहे तो सड़क का इंतजाम तुरंत कर दे लेकिन कई बार मुलाकात करने के बाद भी डीएम साहेब से आश्वासन के अलावे कुछ नही मिला। सड़क के मुद्दे को लेकिन ग्रामीणों ने पिछले 7 दशक से सभी राजनीतिक पार्टियों पर भरोशा कर उन्हें जिताया लेकिन चुनाव जीतने के बाद नेता अपने वादे को भूल गए और आज तक गांव में सड़क का निर्माण नही हो सका। गांव के लोगों ने बताया कि वर्तमान भाजपा के सांसद छेदी पासवान ने उन्हें बहुत उम्मीदें थी। केन्द्र में भाजपा की सरकार भी थी लेकिन संसाद महोदय ने तो गांव में आना उचित तक नही समझा और सड़क नही होने से गांव के विकास में फिर एक बार ब्रेक लग गया। गांववालों ने बताया कि बरसात के दिनों में जब नदी में बाढ़ आता है तो प्रत्येक वर्ष कईयों की जान चली जाती हैं। गांव के जिला मुख्यालय से सम्पर्क टूट जाता है। बावजूद इसके इस गांव पर न तो जिला प्रशासन की नजर है न ही बिहार सरकार की।


Conclusion:देखना यह होगा कि आखिरकार सो रही सरकार का नींद कब खुलता है। जिला प्रशासन कब गांव वालों की समस्या का समाधान करता है। और आखिरकार कब इस गांव को सड़क नसीब होता हैं।
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