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अनोखा है मां मुंडेश्वरी का यह मंदिर, बलि देने के बाद भी नहीं जाती बकरे की जान - Tandul Prasad is the main bhog

बिहार के कैमूर जिले के पवरा पहाड़ी पर स्थित मां मुंडेश्वरी की ख्याति पूरे देश में विख्यात है. मां मुंडेश्वरी धाम बकरे की रक्तहीन बली के लिए भी प्रसिद्ध है जो अपने आप में अजूबा है.

मां मुंडेश्वरी धाम
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Published : Oct 7, 2019, 7:00 AM IST

Updated : Oct 7, 2019, 8:31 AM IST

कैमूर: देश के प्राचीन मंदिरों में शुमार मां मुंडेश्वरी का धाम भगवानपुर प्रखंड के पवरा पहाड़ी पर है. मां का मंदिर करीब 608 फीट की ऊंचाई पर है. वैसे तो मां के दर्शन करने के लिए भक्तों की तादाद सालों भर लगी रहती है. लेकिन नवरात्रि में मां के दर्शन करने लोग दूसरे राज्यों से भी आते हैं.

mundeshwari dham of kaimur
मंदिर परिसर में मौजूद नंदी

सच्चे मन से पूजा करने से हर मुराद होती है पूरी
देश के प्राचीनतम मां मुंडेश्वरी धाम के मुख्य मंदिर परिसर में मां के सामने प्राचीन चतुर्भुज शिवलिंग का अपना ही विशेष महत्व है. इस शिवलिंग पर रूद्राभिषेक और मां मुंडेश्वरी की सच्चे मन से पूजा आराधना करने से भक्तों की हर मुराद पूरी होती है.

mundeshwari dham of kaimur
मंदिर के बीचों-बीच स्थित पंचमुखी शिवलिंग

रक्तहीन बलि के लिए विख्यात है मुंडेश्वरी धाम
मां मुंडेश्वरी में बलि की अनूठी प्रथा है. यहां बिना एक बूंद खून गिराए सिर्फ अक्षत और मंत्र से बकरे की बलि दी जाती है. मां के भक्त मन्नत पूरी होने के बाद यहां मन्नत उतारने के लिए आते हैं और मां के सामने रक्तहीन बलि दी जाती है.

mundeshwari dham of kaimur
पार्वती रूप में मां मुंडेश्वरी

मंदिर के बीचों-बीच पंचमुखी शिवलिंग
मां मुंडेश्वरी का मंदिर अष्ट कोड़िय रूप में है, जो पवरा पहाड़ी पर स्थित है. इस मंदिर के बीचों-बीच पंचमुखी शिवलिंग है जो महामंडलेश्वर कहे जाते हैं, और मां मुंडेश्वरी पार्वती रूप में हैं.

mundeshwari dham of kaimur
अष्ट कोड़िय रूप में मां मुंडेश्वरी का मंदिर

1900 सालों से पूजा की परंपरा
मान्यता यह है कि इस मंदिर में पूजा की परंपरा 1900 सालों से चली आ रही है और आज भी यह मंदिर जीवंत रूप के लिए जाना जाता है. यही नहीं यह मंदिर भारत का सबसे प्राचीन मंदिर माना जाता हैं. मंदिर का एक शिलालेख कोलकाता के भारतीय संग्रहालय में रखा गया है. जिसे 349 ई से 636 ई के बीच का बताया जाता है.

mundeshwari dham of kaimur
मुंडेश्वरी द्वार

साल में तीन बार लगता है मेला
मां मुंडेश्वरी धाम में साल भर में 3 बार मेला लगता है. यहां शारदीय नवरात्र, चैत्र नवरात्र और माघ महीने में मेला लगता है. इसके अलावा धर्मिक न्याय परिषद की तरफ से भी साल में एक बार मुंडेश्वरी महोत्सव का आयोजन किया जाता है.

mundeshwari dham of kaimur
बलि चढ़ाने आए भक्त

तांदूल प्रसाद का चढ़ावा
जिला प्रशासन की तरफ से एक नई पहल शुरू कर दी गयी है. मां के भक्त यदि इस मंदिर में आने में समर्थ नहीं है, तो तांदूल प्रसाद की बुकिंग ऑनलाइन मुंडेश्वरी ट्रस्ट के साइट से कर सकते हैं. भक्त अपने चयनित दिन और समय पर मां को प्रसाद चढ़ा सकते हैं. जिसके बाद कुरियर से भक्त को मां का प्रसाद भेज दिया जाएगा.

पेश है रिपोर्ट

ऑनलाइन कर सकते है मां की पूजा
कैमूर जिला प्रशासन और धार्मिक न्याय समिति ने मां मुंडेश्वरी के महत्व को देखते हुए और पर्यटन के दृष्टिकोण से मां के भक्तों के लिए वेबसाइट लांच की है. वेबसाइट पर ऑनलाइन पूजा की भी सुविधा उपलब्ध है. यही नहीं भक्त घर बैठे मां को प्रसाद अर्पण कर उसे ग्रहण भी कर सकते हैं. इसके लिए भक्तों को मां मुंडेश्वरी की साइट पर आर्डर करना होगा. जिसके बाद कुरियर से भक्तों को प्रसाद भेजा जाता है.

कैमूर: देश के प्राचीन मंदिरों में शुमार मां मुंडेश्वरी का धाम भगवानपुर प्रखंड के पवरा पहाड़ी पर है. मां का मंदिर करीब 608 फीट की ऊंचाई पर है. वैसे तो मां के दर्शन करने के लिए भक्तों की तादाद सालों भर लगी रहती है. लेकिन नवरात्रि में मां के दर्शन करने लोग दूसरे राज्यों से भी आते हैं.

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मंदिर परिसर में मौजूद नंदी

सच्चे मन से पूजा करने से हर मुराद होती है पूरी
देश के प्राचीनतम मां मुंडेश्वरी धाम के मुख्य मंदिर परिसर में मां के सामने प्राचीन चतुर्भुज शिवलिंग का अपना ही विशेष महत्व है. इस शिवलिंग पर रूद्राभिषेक और मां मुंडेश्वरी की सच्चे मन से पूजा आराधना करने से भक्तों की हर मुराद पूरी होती है.

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मंदिर के बीचों-बीच स्थित पंचमुखी शिवलिंग

रक्तहीन बलि के लिए विख्यात है मुंडेश्वरी धाम
मां मुंडेश्वरी में बलि की अनूठी प्रथा है. यहां बिना एक बूंद खून गिराए सिर्फ अक्षत और मंत्र से बकरे की बलि दी जाती है. मां के भक्त मन्नत पूरी होने के बाद यहां मन्नत उतारने के लिए आते हैं और मां के सामने रक्तहीन बलि दी जाती है.

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पार्वती रूप में मां मुंडेश्वरी

मंदिर के बीचों-बीच पंचमुखी शिवलिंग
मां मुंडेश्वरी का मंदिर अष्ट कोड़िय रूप में है, जो पवरा पहाड़ी पर स्थित है. इस मंदिर के बीचों-बीच पंचमुखी शिवलिंग है जो महामंडलेश्वर कहे जाते हैं, और मां मुंडेश्वरी पार्वती रूप में हैं.

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अष्ट कोड़िय रूप में मां मुंडेश्वरी का मंदिर

1900 सालों से पूजा की परंपरा
मान्यता यह है कि इस मंदिर में पूजा की परंपरा 1900 सालों से चली आ रही है और आज भी यह मंदिर जीवंत रूप के लिए जाना जाता है. यही नहीं यह मंदिर भारत का सबसे प्राचीन मंदिर माना जाता हैं. मंदिर का एक शिलालेख कोलकाता के भारतीय संग्रहालय में रखा गया है. जिसे 349 ई से 636 ई के बीच का बताया जाता है.

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मुंडेश्वरी द्वार

साल में तीन बार लगता है मेला
मां मुंडेश्वरी धाम में साल भर में 3 बार मेला लगता है. यहां शारदीय नवरात्र, चैत्र नवरात्र और माघ महीने में मेला लगता है. इसके अलावा धर्मिक न्याय परिषद की तरफ से भी साल में एक बार मुंडेश्वरी महोत्सव का आयोजन किया जाता है.

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बलि चढ़ाने आए भक्त

तांदूल प्रसाद का चढ़ावा
जिला प्रशासन की तरफ से एक नई पहल शुरू कर दी गयी है. मां के भक्त यदि इस मंदिर में आने में समर्थ नहीं है, तो तांदूल प्रसाद की बुकिंग ऑनलाइन मुंडेश्वरी ट्रस्ट के साइट से कर सकते हैं. भक्त अपने चयनित दिन और समय पर मां को प्रसाद चढ़ा सकते हैं. जिसके बाद कुरियर से भक्त को मां का प्रसाद भेज दिया जाएगा.

पेश है रिपोर्ट

ऑनलाइन कर सकते है मां की पूजा
कैमूर जिला प्रशासन और धार्मिक न्याय समिति ने मां मुंडेश्वरी के महत्व को देखते हुए और पर्यटन के दृष्टिकोण से मां के भक्तों के लिए वेबसाइट लांच की है. वेबसाइट पर ऑनलाइन पूजा की भी सुविधा उपलब्ध है. यही नहीं भक्त घर बैठे मां को प्रसाद अर्पण कर उसे ग्रहण भी कर सकते हैं. इसके लिए भक्तों को मां मुंडेश्वरी की साइट पर आर्डर करना होगा. जिसके बाद कुरियर से भक्तों को प्रसाद भेजा जाता है.

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Last Updated : Oct 7, 2019, 8:31 AM IST
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