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विश्व बालश्रम निषेद्य दिवस: कैमूर में बच्चे खुलेआम कर रहे हैं मजदूरी, प्रशासन सुस्त

श्रम विभाग के अनुसार 2014 से 2019 तक विभाग ने पिछले 5 वर्षों में 72 बाल मजदूरों को रिहा करवाया गया है. इन वर्षों में 20 लोगों के ऊपर बाल श्रम का मामला दर्ज कराया गया है.

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Published : Jun 12, 2019, 10:18 PM IST

बालश्रम

कैमूर: प्रत्येक वर्ष 12 जून को विश्व बालश्रम निषेद्य दिवस मनाया जाता है. इस वर्ष अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन अपना 100वां सालगिरह मना रहा है. इस वर्ष का थीम है, 'बच्चे काम नहीं करेंगे, बल्कि सपने देखेंगे'. लेकिन कैमूर जिले की सच्चाई कुछ और ही है. यहां बच्चे खुलेआम मजदूरी कर रहे हैं और प्रशासन सुस्त है.

5 वर्षों में 72 बाल मजदूरों की रिहाई
जिले के श्रम विभाग के अनुसार 2014 से 2019 तक विभाग ने पिछले 5 वर्षों में 72 बाल मजदूरों को रिहा करवाया गया है. इन वर्षों में 20 लोगों के ऊपर बाल श्रम का मामला भी दर्ज कराया गया है.

संवाददाता कौशल की रिपोर्ट

6 जून से 20 जून तक जागरूकता अभियान
जिले के रहनेवाले 22 बाल मजदूरों को श्रम विभाग ने बाल मजदूरी से आजादी दिलाई है. जिसमें से 11 को मुख्यमंत्री राहत कोष से 25 हजार की सहायता भी दी गई है. विभाग ने बताया कि लोगों को बाल मजदूरी के खिलाफ जागरूक करने के लिए 6 जून से 20 जून तक जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है. ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों को बाल श्रम उन्मूलन के लिए प्रेरित किया जा सके.

पेंसिल नाम का पोर्टल लांच
बता दें कि भारत सरकार के श्रम और रोजगार मंत्रालय ने देश को बालश्रम से मुक्ति के लिए डिजिटल प्लेटफार्म पर पेंसिल नाम का पोर्टल लांच किया है. इसके बावजूद भी बाल मजदूरी से देश को मुक्ति नहीं मिल पाई है. इसके पीछे का कारण यह यह है कि लोगों को बाल मजदूरों के खिलाफ आवाज उठाने के लिए जागरूक ही नहीं किया जा सका है.

कैमूर: प्रत्येक वर्ष 12 जून को विश्व बालश्रम निषेद्य दिवस मनाया जाता है. इस वर्ष अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन अपना 100वां सालगिरह मना रहा है. इस वर्ष का थीम है, 'बच्चे काम नहीं करेंगे, बल्कि सपने देखेंगे'. लेकिन कैमूर जिले की सच्चाई कुछ और ही है. यहां बच्चे खुलेआम मजदूरी कर रहे हैं और प्रशासन सुस्त है.

5 वर्षों में 72 बाल मजदूरों की रिहाई
जिले के श्रम विभाग के अनुसार 2014 से 2019 तक विभाग ने पिछले 5 वर्षों में 72 बाल मजदूरों को रिहा करवाया गया है. इन वर्षों में 20 लोगों के ऊपर बाल श्रम का मामला भी दर्ज कराया गया है.

संवाददाता कौशल की रिपोर्ट

6 जून से 20 जून तक जागरूकता अभियान
जिले के रहनेवाले 22 बाल मजदूरों को श्रम विभाग ने बाल मजदूरी से आजादी दिलाई है. जिसमें से 11 को मुख्यमंत्री राहत कोष से 25 हजार की सहायता भी दी गई है. विभाग ने बताया कि लोगों को बाल मजदूरी के खिलाफ जागरूक करने के लिए 6 जून से 20 जून तक जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है. ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों को बाल श्रम उन्मूलन के लिए प्रेरित किया जा सके.

पेंसिल नाम का पोर्टल लांच
बता दें कि भारत सरकार के श्रम और रोजगार मंत्रालय ने देश को बालश्रम से मुक्ति के लिए डिजिटल प्लेटफार्म पर पेंसिल नाम का पोर्टल लांच किया है. इसके बावजूद भी बाल मजदूरी से देश को मुक्ति नहीं मिल पाई है. इसके पीछे का कारण यह यह है कि लोगों को बाल मजदूरों के खिलाफ आवाज उठाने के लिए जागरूक ही नहीं किया जा सका है.

Intro:कैमूर।

प्रत्येक वर्ष 12 जून को विश्व बालश्रम विरोध दिवस मनाया जाता हैं। इस वर्ष अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन अपनी सौवी सालगिरह मना रही हैं। इस वर्ष का थीम है कि बच्चें काम नही करें बल्कि सपने देखे। लेकिन कैमूर जिले की दास्तान ही कुछ और हैं यहाँ आज के दिन में खुलेआम बाल मजदूरों को देखा जा सकता हैं।


Body:आपको बतादें कि कैमूर जिले के श्रम विभाग के आखड़ो के अनुसार 2014 से 2019 तक विभाग ने पिछले 5 वर्षों में सिर्फ 72 बाल मजदूरों को रिहाई करवाई हैं वही दूसरी तरफ इस वर्षों लगभग 20 लोगों के ऊपर बाल श्रम के एवज में मामला दर्ज किया गया हैं। कैमूर जिले के रहनेवाले 22 बाल मजदूरों को श्रम विभाग ने बाल मजदूरी से आजादी दिलाई हैं। जिसमे से 11 को मुख्यमंत्री राहत कोष से 25 हजार की सहायता दी गई हैं। विभाग ने बताया कि लोगों को बाल मजदूरी के खिलाफ जागरूक करने के लिए 6 जून से 20 जून तक जागरूकता अभियान चलाया जा रहा हैं। ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों को बाल मजदूरी के प्रति किया जा सके। विभाग ने बताया कि बाल मजदूरी एक कानून अपराध है 14 वर्ष तक के बच्चों से यदि कोई काम करवाता है तो उसे 25 हजार से 50 हजार तक का जुर्माना एवं 6 माह से 2 साल तक कि सजा या फिर दोनों हो सकती हैं।


आपकों बतादें की भारत सरकार के श्रम एवं रोजगार मंत्रालय ने तो देश को बालश्रम से मुक्ति के लिए डिजिटल प्लेटफार्म पर एक पेंसिल नाम का पोर्टल भी लांच किया हैं। बावजूद इसके बाल मजदूरी से देश को छुटकारा देने की कोशिश को गति नही मिल पाई। जिसके पीछे का कारण यह कहाँ जा सकता है कि लोगों को बाल मजदूरों के खिलाफ आवाज उठाने के लिए जागरूक ही नही किया गया हैं।

प्रशासन के उदासीन रवैये के कारण खुलेआम लोग बाल मजदूरी करवाते है और छोटे छोटे बच्चों का हर वो हक़ छीन लेते है जिसे उन्हें सरकार ने बेहतर भविष्य के लिए दिया हैं।

ईटीवी भारत के पड़ताल में किसी तरह एक बाल मजदूर ने अपनी दिल की बात बताई और कहा की वो डॉक्टर बनना चाहता हैं लेकिन गरीबी के कारण उसे दुकान चलना पड़ता हैं और दुकान से वो रोज के 200 से 300 रुपये की बिक्री करता हैं।


Conclusion:
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