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क्या है 'प्रेतशिला पर्वत' का रहस्य, रात को सुनाई देती हैं तरह-तरह की आवाजें - Pitru Paksha 2024 - PITRU PAKSHA 2024

Pitru Paksha 2024 : हिंदू धर्म में पुनर्जन्म की मान्यता है. मान्यताओं के अनुसार जबतक पुनर्जन्म या मोक्ष नहीं मिलता, आत्माएं भटकती रहती हैं. अकाल मृत्यु के कारण आत्माओं को शांति नहीं मिलती और वो भटकती रहती हैं. ऐसे में गया के प्रेतशिला पिंडवेदी में पिंडदान करने से अशांत आत्माओं को मुक्ति मिलने की मान्यता है. जानें कैसे और क्यों करते हैं यहां पिंडदान

PITRU PAKSHA 2024
गया प्रेतशिला पिंडवेदी (Etv Bharat)
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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Sep 24, 2024, 1:52 PM IST

गया: बिहार के गया में पितृपक्ष मेला चल रहा है. पितृपक्ष मेले के दौरान गया धाम की मुख्य वेदियों में एक प्रेतशिला पिंंडवेदी पर पिंडदान का विधान है. प्रेतशिला को प्रेतों का पहाड़ कहा जाता है. मान्यता है, कि इस पहाड़ के चट्टानों की छिद्रों में अकाल मृत्यु वाले पितरों का वास होता है.

ब्रह्मा जी ने अपने अंगुठे से खीचीं थी लकीरें: देर संध्या होते ही इस पहाड़ पर कोई नहीं जाता. अकाल मृत्यु वाले पितर जो यहां वास करते हैं, उनकी तरह-तरह की आवाजें यहां सुनाई पड़ती है. यह वह पिंडवेदी है, जहां ब्रह्मा जी ने अपने अंगूठे से तीन लकीरें खींची थी. यहां ब्रह्मा जी के चरण चिह्न हैं और यह धर्मशिला के रूप में जाना जाता है.

Gaya Pretshila Vedi
प्रेतशिला वेदी (Etv Bharat)

सत्तू उड़ाने का विधान: प्रेतशिला में सत्तू उड़ाने का विधान है. यहां पिंडदान और सत्तू उड़ा कर अकाल मृत्यु से मरे पितरों को मोक्ष दिलाने की मान्यता है. मान्यता है, कि यहां सबसे उंची चोटी पर प्रेत वेदी यानि कि जो चट्टान है और उसमें जो दरार है, वह पिंडदान और सतू उड़ाने से पितरों के लिए स्वर्ग का मार्ग प्रशस्त कर देता है. इस पहाड़ पर यम देवता का भी निवास है और मंदिर है.

प्रेतशिला वेदी 'भूतों का पहाड़' (Etv Bharat)

प्रेतशिला वेदी 'भूतों का पहाड़': प्रेतशिला वेदी को प्रेतों का पहाड़ के नाम से जाना जाता है. यहां मान्यता है, कि अकाल मृत्यु जैसे जलने से, आत्महत्या से, एक्सीडेंट से, किसी के द्वारा कर दी गई हत्या से यानी कि जो अकाल मृत्यु के शिकार होते हैं, उनका वास इसी प्रेत पर्वत पर होता है. यही वजह है कि प्रेतशिला को प्रेतों का पहाड़ कहा जाता है.

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पितरों का फोटो लगाकर पिंडदान करने की प्रथा (Etv Bharat)

पितरों का फोटो लगाकर पिंडदान करने की प्रथा: प्रेतशिला में अपने पितरों का फोटो लगाकर तीर्थ यात्री पिंडदान करते हैं. पिंडदान का कर्मकांड पूरा होने के बाद फोटो को विसर्जित कर दिया जाता है. पितरों के फोटो को पीपल के वृक्ष या बरगद के वृक्ष के पास समर्पित कर दिया जाता है. प्रेतशिला में पितरों के फोटो के साथ पिंडदान के उपरांत तस्वीर को प्रेतशिला स्थित बरगद के वृक्ष या फिर प्रेत शिला में स्थित ब्रह्मकुंड तालाब के पास छोड़ देते हैं. पूर्वजों का पिंडदान के बाद उनकी फोटो को पिंडदानी वापस नहीं ले जाते हैं. उनके द्वारा छोड़े गए फोटो को विभिन्न पुजारी कई स्थान पर बरगद या पीपल के वृक्ष के समीप रख देते हैं या फिर उसे टांग देते हैं.

"वैसे अन्य पिंडवेदियों पर भी पितरों का फोटो लगाकर पिंडदान किया जाता है और पिंडदान का कर्मकांड पूरा होने के बाद फोटो को अक्षयवट पिंडवेदी पर समर्पित कर दिया जाता है. त्रैपाक्षिक श्राद्ध के तहत पितृपक्ष का अंतिम पिंडदान अक्षय वट में होता है, जहां गयापाल पंडा पिंडदानी को सुफल का आशीर्वाद देते हैं."- पंडित आचार्य नारायण, पुजारी

शाम के बाद कोई नहीं रहता यहां: कहा जाता है कि यहां प्रेतशिला के चट्टानों के छिद्रों में अकाल मृत्यु के शिकार पितरों का वास होता है. चूंकि मृत्यु दो तरीके से होती है. एक प्राकृतिक और एक अप्राकृतिक यानि कि अकाल मृत्यु का शिकार होने वाले पितरों का इस प्रेत पर्वत पर वास होता है. यही वजह है, कि इस प्रेत पर्वत को भूतों का पहाड़ भी कहा जाता है. यहां संध्या के बाद कोई व्यक्ति पहाड़ पर नहीं जाता. सिर्फ पुजारी साधु संतों को ही या अपवाद स्वरूप किसी व्यक्ति को ही संध्या पहर के बाद यहां देखा जा सकता है.

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इन दरारों में उड़ाया जाता है सत्तू (Etv Bharat)

"हमलोग रायगढ़ से पितरों का पिंडदान करने आए हैं. पितरों की मुक्ति के लिए आए हैं. 11 परिवार के लोग यहां पहुंचे हैं. सात पीढ़ियों के मोक्ष की कामना कर रहे हैं."- पिंडदानी

सत्तू उड़ाकर पितरों को स्वर्ग तक पहुंचाते हैं पिंडदानी: पितृपक्ष मेले के तीसरे दिन प्रेतशिला में पिंडदान का विधान है. इसके अलावा कुछ और अन्य पिंड वेदियों पर भी पिंडदान का विधान है. यहां सतू उड़ाकर पिंडदानी अपने पितर के लिए मोक्ष की कामना करते हैं. यहां पिंडदान से पितर को स्वर्ग की प्राप्ति हो जाती है. यहां सत्तू उड़ाकर पिंडदान का अति महत्व है. बताया जाता है कि अकाल मृत्यु जिनके यहां होती है, उनके यहां सूतक काल लगा रहता है. सूतक काल में सत्तू का सेवन वर्जित माना गया है.

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प्रेतशिला वेदी का परिक्रमा करते पिंडदानी (Etv Bharat)

दरार से स्वर्ग का मार्ग: प्रेतशिला वेदी पर पिंडदानी तिल मिश्रित सत्तू उड़ाते हैं और पितर आत्माओं से आशीर्वाद और मंगल कामनाएं मांंगते हैं. तीर्थ यात्री के पिंडदान से उनके पितर प्रसन्न हो जाते हैं और प्रेत योनि से मुक्ति होकर मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है. प्रेतशिला में पिंडदान से पितर को स्वर्ग की प्राप्ति हो जाती है. प्रेतशिला पहाड़ पर प्रेत वेदी है. इस प्रेत वेदी में एक दरार है, जिसमें माना जाता है कि यहां सत्तू उड़ाने से पितर स्वर्ग को पहुंचते हैं.

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पितरों के मोक्ष के लिए पिंडदान करने की परंपरा (Etv Bharat)

प्रेत वेदी की परिक्रमा करना आवश्यक: यही वजह है कि पिंडदानी जब सत्तू उड़ाते हैं, तो इस प्रेत वेदी की तीन से पांच बार परिक्रमा करते हैं और सत्तू को चट्टान की दरार में उड़ाते हैं. चट्टान की दरार में जब सत्तू डालकर अपने पितरों के प्रेत योनि से मुक्ति की कामना करते हैं और पितरों को स्वर्ग की प्राप्ति हो जाती है. सत्तू पितरों को प्रिय होता है, क्योंकि इससे उन्हें मोक्ष और स्वर्ग की प्राप्ति हो जाती है. इसलिए पहाड़ी की चोटी पर चट्टान के पास हवा में पिंडदानी सत्तू उड़ाते हैं, जिससे अकाल मृत्यु में मरे पूर्वज प्रेतयोनी से मुक्त हो जाते हैं. अकाल मृत्यु को प्राप्त लोगों का श्राद्ध पिंडदान प्रेत शिला में करने का विशेष महत्व है.

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676 सीढियां चढ़कर पहुंचते हैं तीर्थ यात्री (Etv Bharat)

इसलिए उड़ाते हैं सत्तू: सनातन धर्म में पितृपक्ष मेले की अवधि के बीच सत्तू खाना वर्जित है. पितृपक्ष में पितर पृथ्वी लोक को आते हैं. पितरों के निमित्त इस अवधि में पिंडदान करना चाहिए. वहीं, सत्तू का का सेवन वर्जित है. सतू खाना शुभ नहीं माना जाता है. सत्तू का संबंध गुरु बृहस्पति से है, जो मांगलिक कार्यों के लिए माने जाते हैं और पितृपक्ष में शुभ काम करना वर्जित माना गया है. इसलिए सत्तू शुभ और पवित्रता का संकेत है.

माना जाता है सत्तू को पिंड के समान भी माना जाता है. सत्तू खाने से पितृ दोष लगता है. वहीं सत्तू उड़ा कर पितरों के लिए मोक्ष की कामना की जाती है. मान्यताओं के अनुसार सतू उड़ाकर पितरों को मोक्ष की प्राप्ति करने का महत्व है. प्रेत योनि में रहे पितर को सत्तू प्रिय होता है और यही वजह है कि प्रेत वेदी की चट्टान में जो दरार है, उसमें सत्तू जाते ही पितर को स्वर्ग लोक की प्राप्ति हो जाती है. इसलिए प्रेत वेदी यानि चट्टान के दरार के पास सत्तू जरूर उड़ाते हैं और कई बार परिक्रमा करते हैं.

भगवान श्री राम भी आए थे प्रेतशिला पिंडवेदी: प्रेतशिला भगवान श्री राम से भी जुड़ा है. प्रेतशिला स्थित ब्रह्मकुंड सरोवर में भगवान श्री राम ने स्नान किया था. ब्रह्म कुंड में भी पूर्वजों का पिंडदान किया जाता है. पितृ पक्ष मेले के आश्विन कृष्ण प्रतिपदा को चावल और आटे से पिंडदान करने का विधान है. चावल आटे के पिंंड के पिंडदान से पितरों को जहां प्रेत योनि से मुक्ति मिलती है. वहीं, ब्रह्मलोक की प्राप्ति भी हो जाती है. जिस प्रकार भगवान विष्णु की पूजा करने पर सभी प्रकार के यज्ञ पूर्ण हो जाते हैं. उसी प्रकार प्रेतशिला में श्राद्ध, तर्पण, स्नान एवं पिंडदान करने से पितरों को प्रेत योनी से मुक्ति और ब्रह्म लोक की प्राप्ति होती है. वहीं, पिंडदान करने वाले को अक्षय फल की प्राप्ति भी होती है.

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ब्रह्मा जी ने अपने अंगुठे से खीचीं थी लकीरें (Etv Bharat)

"भगवान रामचंद्र ने अपने पिता राजा दशरथ के उद्धार के लिए पिंडदान यहीं किया था. राज दशरथ की अकाल मृत्यु हुई थी. इसलिए अगर किसी के घर में किसी की अकाल मृत्यु होती है तो प्रेतशिला में पिंडदान करना चाहिए."- नीतीश, पुजारी

676 सीढियां चढ़कर पहुंचते हैं तीर्थ यात्री: 676 सीढियां चढ़कर प्रेतशिला को पिंडदानी पहुंचते हैं, जो 676 सोढ़ियां चढ़ने में अक्षम होते हैं, वह डोली का सहारा लेते हैं. डोली के सहारे यहां के स्थानीय मजदूर उन्हें पहाड़ की चोटियों तक पहुंचाने और फिर लाते हैं. इस तरह से प्रेतशिला पहाड़ पर डोली वालों के लिए पितृपक्ष अवधि के दौरान रोजगार का माध्यम होता है.

ब्रह्म कुंड पर हा हा हा की निकालते हैं आवाज: 'उड़ल सत्तू पितर को पैठ हो उड़ान' यह बात प्रेत शिला पहाड़ी पर सुनी जा सकती है. वहीं, पिंडदानी जब सत्तू उड़ाते हैं, तो उड़ल सत्तू पितर को पैठ हो उड़ान कई बार बोलते हैं. सत्तू उड़ाते हुए तीन से पांच बार प्रेत वेदी की परिक्रमा करते हैं. ब्रह्मकुंड सरोवर पर हा हा हा की आवाज भी पिंडदानी निकालते हैं. कहा जाता है कि इससे पितरों को प्रेत योनि से भी मुक्ति मिलती है और इस तरह की आवाज निकाल कर पिंडदानी अपने पितर के मोक्ष की कामना करते हैं.

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ब्रह्म कुंड पर हा हा हा की आवाज निकालते पिंडदानी (Etv Bharat)

"भटकती आत्माओं के मोक्ष के लिए प्रेतशिला में सत्तू उड़ायी जाती है. पिंडदानी आवाज निकालते हैं. बुरे साये के प्रकोप भी समाप्त होता है. पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है."- भोला पांडे, पुजारी

प्रेतशिला में किसन दिन करना चाहिए पिंडदान?: गुरुवार 19 सितंबर को पितृपक्ष मेले का तीसरा दिन था. तीसरे दिन प्रेत शिला में पिंडदान का विधान है. इसी दिन राम कुंड, रामशिला, काकबली में पिंडदान और प्रेतशिला स्थित ब्रह्म कुंड पर श्रद्धा करना चाहिए. प्रेतशिला में पिंडदान से पितरों को प्रेत योनि की बाधा से मुक्ति मिल जाती है और उन्हें ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है. भगवान राम ने भी यहां पहुंचकर प्रेतशिला स्थित ब्रह्म कुंड में स्नान किया था.

लाखों पिंडदानी पहुंच रहे गया धाम: पिछली बार 15 लाख के करीब पिंडदानी अपने पितरों के मोक्ष की कामना को लेकर गया धाम आए थे. इस बार 15 लाख से अधिक तीर्थ यात्री अपने पितरों के मोक्ष की कामना को लेकर पिंडदान श्राद्ध तर्पण का कर्मकांड करेंगे.

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गया: बिहार के गया में पितृपक्ष मेला चल रहा है. पितृपक्ष मेले के दौरान गया धाम की मुख्य वेदियों में एक प्रेतशिला पिंंडवेदी पर पिंडदान का विधान है. प्रेतशिला को प्रेतों का पहाड़ कहा जाता है. मान्यता है, कि इस पहाड़ के चट्टानों की छिद्रों में अकाल मृत्यु वाले पितरों का वास होता है.

ब्रह्मा जी ने अपने अंगुठे से खीचीं थी लकीरें: देर संध्या होते ही इस पहाड़ पर कोई नहीं जाता. अकाल मृत्यु वाले पितर जो यहां वास करते हैं, उनकी तरह-तरह की आवाजें यहां सुनाई पड़ती है. यह वह पिंडवेदी है, जहां ब्रह्मा जी ने अपने अंगूठे से तीन लकीरें खींची थी. यहां ब्रह्मा जी के चरण चिह्न हैं और यह धर्मशिला के रूप में जाना जाता है.

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प्रेतशिला वेदी (Etv Bharat)

सत्तू उड़ाने का विधान: प्रेतशिला में सत्तू उड़ाने का विधान है. यहां पिंडदान और सत्तू उड़ा कर अकाल मृत्यु से मरे पितरों को मोक्ष दिलाने की मान्यता है. मान्यता है, कि यहां सबसे उंची चोटी पर प्रेत वेदी यानि कि जो चट्टान है और उसमें जो दरार है, वह पिंडदान और सतू उड़ाने से पितरों के लिए स्वर्ग का मार्ग प्रशस्त कर देता है. इस पहाड़ पर यम देवता का भी निवास है और मंदिर है.

प्रेतशिला वेदी 'भूतों का पहाड़' (Etv Bharat)

प्रेतशिला वेदी 'भूतों का पहाड़': प्रेतशिला वेदी को प्रेतों का पहाड़ के नाम से जाना जाता है. यहां मान्यता है, कि अकाल मृत्यु जैसे जलने से, आत्महत्या से, एक्सीडेंट से, किसी के द्वारा कर दी गई हत्या से यानी कि जो अकाल मृत्यु के शिकार होते हैं, उनका वास इसी प्रेत पर्वत पर होता है. यही वजह है कि प्रेतशिला को प्रेतों का पहाड़ कहा जाता है.

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पितरों का फोटो लगाकर पिंडदान करने की प्रथा (Etv Bharat)

पितरों का फोटो लगाकर पिंडदान करने की प्रथा: प्रेतशिला में अपने पितरों का फोटो लगाकर तीर्थ यात्री पिंडदान करते हैं. पिंडदान का कर्मकांड पूरा होने के बाद फोटो को विसर्जित कर दिया जाता है. पितरों के फोटो को पीपल के वृक्ष या बरगद के वृक्ष के पास समर्पित कर दिया जाता है. प्रेतशिला में पितरों के फोटो के साथ पिंडदान के उपरांत तस्वीर को प्रेतशिला स्थित बरगद के वृक्ष या फिर प्रेत शिला में स्थित ब्रह्मकुंड तालाब के पास छोड़ देते हैं. पूर्वजों का पिंडदान के बाद उनकी फोटो को पिंडदानी वापस नहीं ले जाते हैं. उनके द्वारा छोड़े गए फोटो को विभिन्न पुजारी कई स्थान पर बरगद या पीपल के वृक्ष के समीप रख देते हैं या फिर उसे टांग देते हैं.

"वैसे अन्य पिंडवेदियों पर भी पितरों का फोटो लगाकर पिंडदान किया जाता है और पिंडदान का कर्मकांड पूरा होने के बाद फोटो को अक्षयवट पिंडवेदी पर समर्पित कर दिया जाता है. त्रैपाक्षिक श्राद्ध के तहत पितृपक्ष का अंतिम पिंडदान अक्षय वट में होता है, जहां गयापाल पंडा पिंडदानी को सुफल का आशीर्वाद देते हैं."- पंडित आचार्य नारायण, पुजारी

शाम के बाद कोई नहीं रहता यहां: कहा जाता है कि यहां प्रेतशिला के चट्टानों के छिद्रों में अकाल मृत्यु के शिकार पितरों का वास होता है. चूंकि मृत्यु दो तरीके से होती है. एक प्राकृतिक और एक अप्राकृतिक यानि कि अकाल मृत्यु का शिकार होने वाले पितरों का इस प्रेत पर्वत पर वास होता है. यही वजह है, कि इस प्रेत पर्वत को भूतों का पहाड़ भी कहा जाता है. यहां संध्या के बाद कोई व्यक्ति पहाड़ पर नहीं जाता. सिर्फ पुजारी साधु संतों को ही या अपवाद स्वरूप किसी व्यक्ति को ही संध्या पहर के बाद यहां देखा जा सकता है.

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इन दरारों में उड़ाया जाता है सत्तू (Etv Bharat)

"हमलोग रायगढ़ से पितरों का पिंडदान करने आए हैं. पितरों की मुक्ति के लिए आए हैं. 11 परिवार के लोग यहां पहुंचे हैं. सात पीढ़ियों के मोक्ष की कामना कर रहे हैं."- पिंडदानी

सत्तू उड़ाकर पितरों को स्वर्ग तक पहुंचाते हैं पिंडदानी: पितृपक्ष मेले के तीसरे दिन प्रेतशिला में पिंडदान का विधान है. इसके अलावा कुछ और अन्य पिंड वेदियों पर भी पिंडदान का विधान है. यहां सतू उड़ाकर पिंडदानी अपने पितर के लिए मोक्ष की कामना करते हैं. यहां पिंडदान से पितर को स्वर्ग की प्राप्ति हो जाती है. यहां सत्तू उड़ाकर पिंडदान का अति महत्व है. बताया जाता है कि अकाल मृत्यु जिनके यहां होती है, उनके यहां सूतक काल लगा रहता है. सूतक काल में सत्तू का सेवन वर्जित माना गया है.

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प्रेतशिला वेदी का परिक्रमा करते पिंडदानी (Etv Bharat)

दरार से स्वर्ग का मार्ग: प्रेतशिला वेदी पर पिंडदानी तिल मिश्रित सत्तू उड़ाते हैं और पितर आत्माओं से आशीर्वाद और मंगल कामनाएं मांंगते हैं. तीर्थ यात्री के पिंडदान से उनके पितर प्रसन्न हो जाते हैं और प्रेत योनि से मुक्ति होकर मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है. प्रेतशिला में पिंडदान से पितर को स्वर्ग की प्राप्ति हो जाती है. प्रेतशिला पहाड़ पर प्रेत वेदी है. इस प्रेत वेदी में एक दरार है, जिसमें माना जाता है कि यहां सत्तू उड़ाने से पितर स्वर्ग को पहुंचते हैं.

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पितरों के मोक्ष के लिए पिंडदान करने की परंपरा (Etv Bharat)

प्रेत वेदी की परिक्रमा करना आवश्यक: यही वजह है कि पिंडदानी जब सत्तू उड़ाते हैं, तो इस प्रेत वेदी की तीन से पांच बार परिक्रमा करते हैं और सत्तू को चट्टान की दरार में उड़ाते हैं. चट्टान की दरार में जब सत्तू डालकर अपने पितरों के प्रेत योनि से मुक्ति की कामना करते हैं और पितरों को स्वर्ग की प्राप्ति हो जाती है. सत्तू पितरों को प्रिय होता है, क्योंकि इससे उन्हें मोक्ष और स्वर्ग की प्राप्ति हो जाती है. इसलिए पहाड़ी की चोटी पर चट्टान के पास हवा में पिंडदानी सत्तू उड़ाते हैं, जिससे अकाल मृत्यु में मरे पूर्वज प्रेतयोनी से मुक्त हो जाते हैं. अकाल मृत्यु को प्राप्त लोगों का श्राद्ध पिंडदान प्रेत शिला में करने का विशेष महत्व है.

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676 सीढियां चढ़कर पहुंचते हैं तीर्थ यात्री (Etv Bharat)

इसलिए उड़ाते हैं सत्तू: सनातन धर्म में पितृपक्ष मेले की अवधि के बीच सत्तू खाना वर्जित है. पितृपक्ष में पितर पृथ्वी लोक को आते हैं. पितरों के निमित्त इस अवधि में पिंडदान करना चाहिए. वहीं, सत्तू का का सेवन वर्जित है. सतू खाना शुभ नहीं माना जाता है. सत्तू का संबंध गुरु बृहस्पति से है, जो मांगलिक कार्यों के लिए माने जाते हैं और पितृपक्ष में शुभ काम करना वर्जित माना गया है. इसलिए सत्तू शुभ और पवित्रता का संकेत है.

माना जाता है सत्तू को पिंड के समान भी माना जाता है. सत्तू खाने से पितृ दोष लगता है. वहीं सत्तू उड़ा कर पितरों के लिए मोक्ष की कामना की जाती है. मान्यताओं के अनुसार सतू उड़ाकर पितरों को मोक्ष की प्राप्ति करने का महत्व है. प्रेत योनि में रहे पितर को सत्तू प्रिय होता है और यही वजह है कि प्रेत वेदी की चट्टान में जो दरार है, उसमें सत्तू जाते ही पितर को स्वर्ग लोक की प्राप्ति हो जाती है. इसलिए प्रेत वेदी यानि चट्टान के दरार के पास सत्तू जरूर उड़ाते हैं और कई बार परिक्रमा करते हैं.

भगवान श्री राम भी आए थे प्रेतशिला पिंडवेदी: प्रेतशिला भगवान श्री राम से भी जुड़ा है. प्रेतशिला स्थित ब्रह्मकुंड सरोवर में भगवान श्री राम ने स्नान किया था. ब्रह्म कुंड में भी पूर्वजों का पिंडदान किया जाता है. पितृ पक्ष मेले के आश्विन कृष्ण प्रतिपदा को चावल और आटे से पिंडदान करने का विधान है. चावल आटे के पिंंड के पिंडदान से पितरों को जहां प्रेत योनि से मुक्ति मिलती है. वहीं, ब्रह्मलोक की प्राप्ति भी हो जाती है. जिस प्रकार भगवान विष्णु की पूजा करने पर सभी प्रकार के यज्ञ पूर्ण हो जाते हैं. उसी प्रकार प्रेतशिला में श्राद्ध, तर्पण, स्नान एवं पिंडदान करने से पितरों को प्रेत योनी से मुक्ति और ब्रह्म लोक की प्राप्ति होती है. वहीं, पिंडदान करने वाले को अक्षय फल की प्राप्ति भी होती है.

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ब्रह्मा जी ने अपने अंगुठे से खीचीं थी लकीरें (Etv Bharat)

"भगवान रामचंद्र ने अपने पिता राजा दशरथ के उद्धार के लिए पिंडदान यहीं किया था. राज दशरथ की अकाल मृत्यु हुई थी. इसलिए अगर किसी के घर में किसी की अकाल मृत्यु होती है तो प्रेतशिला में पिंडदान करना चाहिए."- नीतीश, पुजारी

676 सीढियां चढ़कर पहुंचते हैं तीर्थ यात्री: 676 सीढियां चढ़कर प्रेतशिला को पिंडदानी पहुंचते हैं, जो 676 सोढ़ियां चढ़ने में अक्षम होते हैं, वह डोली का सहारा लेते हैं. डोली के सहारे यहां के स्थानीय मजदूर उन्हें पहाड़ की चोटियों तक पहुंचाने और फिर लाते हैं. इस तरह से प्रेतशिला पहाड़ पर डोली वालों के लिए पितृपक्ष अवधि के दौरान रोजगार का माध्यम होता है.

ब्रह्म कुंड पर हा हा हा की निकालते हैं आवाज: 'उड़ल सत्तू पितर को पैठ हो उड़ान' यह बात प्रेत शिला पहाड़ी पर सुनी जा सकती है. वहीं, पिंडदानी जब सत्तू उड़ाते हैं, तो उड़ल सत्तू पितर को पैठ हो उड़ान कई बार बोलते हैं. सत्तू उड़ाते हुए तीन से पांच बार प्रेत वेदी की परिक्रमा करते हैं. ब्रह्मकुंड सरोवर पर हा हा हा की आवाज भी पिंडदानी निकालते हैं. कहा जाता है कि इससे पितरों को प्रेत योनि से भी मुक्ति मिलती है और इस तरह की आवाज निकाल कर पिंडदानी अपने पितर के मोक्ष की कामना करते हैं.

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ब्रह्म कुंड पर हा हा हा की आवाज निकालते पिंडदानी (Etv Bharat)

"भटकती आत्माओं के मोक्ष के लिए प्रेतशिला में सत्तू उड़ायी जाती है. पिंडदानी आवाज निकालते हैं. बुरे साये के प्रकोप भी समाप्त होता है. पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है."- भोला पांडे, पुजारी

प्रेतशिला में किसन दिन करना चाहिए पिंडदान?: गुरुवार 19 सितंबर को पितृपक्ष मेले का तीसरा दिन था. तीसरे दिन प्रेत शिला में पिंडदान का विधान है. इसी दिन राम कुंड, रामशिला, काकबली में पिंडदान और प्रेतशिला स्थित ब्रह्म कुंड पर श्रद्धा करना चाहिए. प्रेतशिला में पिंडदान से पितरों को प्रेत योनि की बाधा से मुक्ति मिल जाती है और उन्हें ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है. भगवान राम ने भी यहां पहुंचकर प्रेतशिला स्थित ब्रह्म कुंड में स्नान किया था.

लाखों पिंडदानी पहुंच रहे गया धाम: पिछली बार 15 लाख के करीब पिंडदानी अपने पितरों के मोक्ष की कामना को लेकर गया धाम आए थे. इस बार 15 लाख से अधिक तीर्थ यात्री अपने पितरों के मोक्ष की कामना को लेकर पिंडदान श्राद्ध तर्पण का कर्मकांड करेंगे.

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