कैमूर: होली बुराई पर अच्छाई की जीत का त्यौहार है. होली में जितना महत्व रंगों का है. उतना ही महत्व होलिका दहन का भी है. मान्यता है कि इस दिन आप कोई भी कामना पूरी कर सकते हैं. किसी भी बुराई को अग्नि में जलाकर राख कर सकते हैं. होलिका दहन के दिन दुराचारी का साथ देने के कारण होलिका भस्म हो गई और सदाचारी प्रह्लाद बच निकले. उसी समय से हम समाज की बुराइयों को जलाने के लिए होलिका दहन मनाते आ रहे हैं.
विभिन्न प्रखंडों में किया गया होलिका दहन
होली से पहले जिले के विभिन्न प्रखंडों में होलिका दहन किया गया. जिला मुख्यालय भभुआ, रामगढ़, कुदरा मोहनिया सहित सभी 11 प्रखंडों में होलिका जलाई गई. हिंदू धर्म ग्रन्थों के अनुसार होलिका दहन को छोटी होली के नाम से भी जाना जाता है. ऐसी मान्यता है कि आज के दिन की अच्छाई की जीत हुई थी. होलिका दहन के बाद युवाओं में काफी उत्साह देखा जा रहा है. रात से ही युवा रंग गुलाल से होली खेलते नजर आ रहे हैं.
पूजा का महत्व
घर में सुख-शांति, समृद्धि, संतान प्राप्ति आदि के लिए महिलाएं इस दिन होली की पूजा करती हैं. होलिका दहन के लिए लगभग एक महीने पहले से ही तैयारियां शुरू कर दी जाती हैं. कांटेदार झाड़ियों या लकड़ियों को इकट्ठा किया जाता है, फिर होली के दिन पहले शुभ मुहूर्त में होलिका दहन किया जाता है. होलिका दहन में जौ और गेहूं के पौधे डाले जाते हैं. शरीर में उबटन लगाकर उसके अंश भी डाले जाते हैं. ऐसा करने से जीवन में आरोग्य और सुख समृद्धि आती है.
भद्रा में नहीं होती होलिका दहन और पूजा
मान्यता है कि होली की पूजा प्रदोषकाल यानी शाम को करने का विधान है. होलिका दहन पूर्णिमा तिथि पर होने से इस पर्व पर भद्रा काल का विचार किया जाता है. भद्रा काल में पूजा और होलिका दहन करने से रोग, शोक, दोष और विपत्ति आती है.