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जल जीवन हरियाली के तहत किसानों को किया गया जागरूक, फसल अवशेष प्रबंधन की दी गई जानकारी

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Published : Dec 30, 2021, 8:21 AM IST

कैमूर जिले में फसल अवशेष प्रबंधन को लेकर कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों को जागरूक (Agricultural Scientists Made Farmers Aware) किया. इसके साथ ही किसानों को मौसम अनुकूल खेती को लेकर भी जानकारी दी गई. पढ़िये पूरी खबर..

कैमूर में किसानों को किया गया जागरूक
कैमूर में किसानों को किया गया जागरूक

कैमूर (भभुआ): बिहार के कैमूर जिले के भगवानपुर थाना क्षेत्र के भैरोपुर गांव में जल जीवन हरियाली के तहत कृषि वैज्ञानिकों द्वारा किसानों के बीच फसल अवशेष प्रबंधन से संबंधित विषय पर किसानों को जागरूक (Farmers were made aware in Kaimur) किया गया. इस कार्यक्रम में शामिल होकर किसानों ने मौसम अनुकूल खेती के तहत फसल अवशेष प्रबंधन के बारे में जानकारी ली.

ये भी पढ़ें:ट्रू पोटैटो सीड विधि से आलू की खेती करने से होगी अच्छी उपज

निदेशक प्रसार शिक्षा बिहार कृषि विश्वविद्यालय के निदेशक आरके सुहाने ने बताया कि राज्य सरकार द्वारा एक जल जीवन हरियाली का कार्यक्रम चलाया जा रहा है, उसमें मौसम अनुकूल खेती के तहत एक कार्यक्रम किया गया है. जिसमें फसल अवशेष प्रबंधन (Crop Residue Management) पर काम किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि वैसे किसान जो फसल काटने के बाद पराली को जला देते हैं, जिससे खेतों में फसल को नुकसान होता है. वहीं बायोचर द्वारा उसी पराली को जैविक खाद बनाने को लेकर किसानों को जागरूक किया जा रहा है.

देखें वीडियो

वहीं वरीय वैज्ञानिक प्रधान कृषि विज्ञान केंद्र औरंगाबाद के डॉक्टर नित्यानंद ने बताया कि पराली को जला देना यानि जमीन के साथ अत्याचार करना है. उन्होंने कहा कि हकीकत यह है कि जितना भी हमारी भूमि है उसमें 5 सेंटीमीटर ही गहराई तक कृषि कार्य संपादित कर सकते हैं. उन्होंने कहा कि जब हम खेतों में आग लगाते हैं तो मिट्टी में जो भी जीवाश्म है, जो भी पोषक तत्व हैं, जो मित्र कीट है, मित्र फफूंद हैं, मित्र बैक्टीरिया है वह सब 5 सेंटीमीटर एरिया में ही रह रहा है. वो आग लगाने से नष्ट हो जाता है.

कृषि विज्ञान केंद्र अधौरा कैमूर के डॉक्टर मनीष कुमार ने बताया कि कृषि विज्ञान केंद्र कैमूर द्वारा बायोचार उत्पादन कार्य भैरोपुर गांव में किया गया है. जो बिहार में पहला बायोचार उत्पादन कार्य करने के लिए मिला हुआ है. बायोचार इकाई से बायो जैविक खाद बनाना है, जिसमें पहली बार तकरीबन 15 प्रतिशत ही बन पाया, जबकि दूसरी बार में तकरीबन 15 क्विंटल यानी पराली को डाला गया, जिसमें 3 क्विंटल बायोचार जैविक खाद बनकर तैयार हुआ है. बिहार कृषि विश्वविद्यालय और बिहार सरकार की ओर से बायोचार जैविक खाद का रेट 3 रुपए प्रति किलो निर्धारित किया गया है, जो किसानों के बीच उपलब्ध कराया जाएगा.

ये भी पढ़ें:गोपालगंज में भी होंगे सेब के बगान, कश्मीर नहीं गोपालगंज में लहलहाएंगे सेब के बागान

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निदेशक प्रसार शिक्षा बिहार कृषि विश्वविद्यालय के निदेशक आरके सुहाने ने बताया कि राज्य सरकार द्वारा एक जल जीवन हरियाली का कार्यक्रम चलाया जा रहा है, उसमें मौसम अनुकूल खेती के तहत एक कार्यक्रम किया गया है. जिसमें फसल अवशेष प्रबंधन (Crop Residue Management) पर काम किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि वैसे किसान जो फसल काटने के बाद पराली को जला देते हैं, जिससे खेतों में फसल को नुकसान होता है. वहीं बायोचर द्वारा उसी पराली को जैविक खाद बनाने को लेकर किसानों को जागरूक किया जा रहा है.

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कृषि विज्ञान केंद्र अधौरा कैमूर के डॉक्टर मनीष कुमार ने बताया कि कृषि विज्ञान केंद्र कैमूर द्वारा बायोचार उत्पादन कार्य भैरोपुर गांव में किया गया है. जो बिहार में पहला बायोचार उत्पादन कार्य करने के लिए मिला हुआ है. बायोचार इकाई से बायो जैविक खाद बनाना है, जिसमें पहली बार तकरीबन 15 प्रतिशत ही बन पाया, जबकि दूसरी बार में तकरीबन 15 क्विंटल यानी पराली को डाला गया, जिसमें 3 क्विंटल बायोचार जैविक खाद बनकर तैयार हुआ है. बिहार कृषि विश्वविद्यालय और बिहार सरकार की ओर से बायोचार जैविक खाद का रेट 3 रुपए प्रति किलो निर्धारित किया गया है, जो किसानों के बीच उपलब्ध कराया जाएगा.

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