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कैमूर में सीमेंट फैक्ट्री से किसानों के खेत हो रहे बर्बाद, NGT ने गठन की जांच समिति

कैमूर में सीमेंट फैक्ट्री से किसानों के खेत बर्बाद (Cement Factory in Kaimur) हो रहे हैं. फैक्ट्री से निकलने वाली डस्ट के कारण हर साल जमीन की उपजाऊ करने की क्षमता कम हो रही है, जिससे वहां के किसान काफी परेशान हैं. एनजीटी कोर्ट ने जांच समिति का गठन किया है, जिसे 5 मई को रिपोर्ट के साथ पेश होने को कहा गया है. पढ़ें पूरी रिपोर्ट..

कैमूर में सीमेंट फैक्ट्री
कैमूर में सीमेंट फैक्ट्री
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Published : Mar 19, 2022, 4:42 PM IST

कैमूर (भभुआ): बिहार के कैमूर जिले के कुल्हड़िया गांव में सीमेंट फैक्ट्री है, जो आसपास के लोगों को रोजगार देती है. लेकिन, समस्या तब उत्पन हुई जब फैक्ट्री में प्रोडक्शन शुरू हुआ और आसपास के लोगों को इससे काफी दिक्कत होने लगी है, क्योंकि लगभग दस साल से ये फैक्ट्री चल रही है और उससे निकलने वाला प्रदूषित धुआं आसपास के किसानों के खेत में जाकर उनकी फसल को बर्बाद (Farmer Fields ruined by Cement Factory) कर रहा है, इसके साथ-साथ उनकी जमीनों को कम उपजाऊ बना रहा है.

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जमीन की उपजाऊ क्षमता घटी: हर साल जमीन की उपजाऊ करने की क्षमता कम हो रही है, जिससे वहां के किसान काफी परेशान हैं. बता दें कि वहां के किसानों ने बातचीत के दौरान बताया कि फैक्ट्री आने से पहले यहां लगभग 1 बीघा में 10 कुंटल धान होता था, लेकिन अब यह पैदावार आधी हो चुकी है, जिससे हम काफी परेशान हैं और कोई भी फसल यहां जल्दी बढ़ती नहीं है. पहले यहां के लोग चने और सरसों की खेती करते थे, लेकिन फैक्ट्री आने के बाद यहां के लोग केवल धान और गेहूं की खेती कर रहे हैं.

डस्ट से सफेद हो रही जमीन: इस फैक्ट्री से निकलने वाले प्रदूषण से अच्छी तरीके से फसल भी नहीं हो रही है, जिससे हमें काफी नुकसान सहना पड़ रहा है. उन्होंने बताया कि फैक्ट्री के आसपास के खेतों की मिट्टी दिन-प्रतिदिन सफेद हो रही है. किसानों की माने तो उनका कहना है कि अगर मिट्टी सफेद हो रही है तो इसका मतलब मिट्टी की उपजाऊ क्षमता हर वर्ष कम हो रही है. सिंचाई करने के बाद थोड़ी बहुत फसल यहां दिख रही है. लेकिन, आसपास के जो घास फूस है, वह सीमेंट फैक्ट्री से निकले हुए डस्ट की वजह से सफेद हो चुके हैं. जांच के लिए गठित समिति में कैमूर के डीएम को भी शामिल किया गया है. समिति को कार्रवाई की रिपोर्ट तीन महीने के भीतर देने का निर्देश दिया गया है.

प्रदूषण से पशु और फसल प्रभावित: कैमूर जिले के कुल्हड़िया गांव में वर्ष 2011 में इको सीमेंट फैक्ट्री स्थापित की गई थी, जिसका नाम बदलकर इमामी सीमेंट फैक्ट्री और बाद में एनयू विस्टा सीमेंट कंपनी (NU Vista Cement Company) कर दिया गया. इसका उत्पादन प्रति वर्ष दो लाख एमटी बताया जाता है. किसानों ने बताया कि इस फैक्ट्री से निकलने वाले सफेद कणों से आदमी से लेकर पशु और फसल तक प्रभावित होते हैं. मुख्य रूप से इसके प्रदूषण का असर आसपास के पांच गांवों घनेक्षा, भेरिया, कुल्हडियां, महुअरिया और भदैनी के लोगों पर भी पड़ रहा है.


फैक्ट्री रात के समय छोड़ती है डस्ट: इसका डस्ट कई किलोमीटर दूर तक फैलता रहता है. बता दें कि फैक्ट्री अपना सारा डस्ट रात के समय छोड़ती है. फैक्ट्री से पानी की निकासी नहीं हो पाने से धनेक्षा, भेरिया और कुल्हड़िया गांव के किसानों के खेतों में जलजमाव होने से फसल बर्बाद हो जाती है. रोड से आने-जाने वाले लोग डस्ट के कारण बीमार भी हो जाते हैं. फसलों पर कारखाने की निकली सफेद परत से चारा या घास खाने वाले पशु भी बीमारी की चपेट में आ रहे हैं और तो और उस रास्ते से गुजरने में लोग भी अब कतराते हैं, जिससे आसपास के किसान काफी नाराज है.

एनजीटी (NGT) द्वारा गठित की गई समिति को 5 मई को रिपोर्ट के साथ पेश होने को कहा गया है. अब देखने वाली बात यह है कि उस रिपोर्ट में क्या क्या आता है. सवाल यह उठता है कि क्या किसानों को उनका हक मिल पाएगा. क्या, उनकी भी यह लड़ाई देश के अन्य किसानों की तरह फाइलों में दब के रह जाएगी.

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कैमूर (भभुआ): बिहार के कैमूर जिले के कुल्हड़िया गांव में सीमेंट फैक्ट्री है, जो आसपास के लोगों को रोजगार देती है. लेकिन, समस्या तब उत्पन हुई जब फैक्ट्री में प्रोडक्शन शुरू हुआ और आसपास के लोगों को इससे काफी दिक्कत होने लगी है, क्योंकि लगभग दस साल से ये फैक्ट्री चल रही है और उससे निकलने वाला प्रदूषित धुआं आसपास के किसानों के खेत में जाकर उनकी फसल को बर्बाद (Farmer Fields ruined by Cement Factory) कर रहा है, इसके साथ-साथ उनकी जमीनों को कम उपजाऊ बना रहा है.

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जमीन की उपजाऊ क्षमता घटी: हर साल जमीन की उपजाऊ करने की क्षमता कम हो रही है, जिससे वहां के किसान काफी परेशान हैं. बता दें कि वहां के किसानों ने बातचीत के दौरान बताया कि फैक्ट्री आने से पहले यहां लगभग 1 बीघा में 10 कुंटल धान होता था, लेकिन अब यह पैदावार आधी हो चुकी है, जिससे हम काफी परेशान हैं और कोई भी फसल यहां जल्दी बढ़ती नहीं है. पहले यहां के लोग चने और सरसों की खेती करते थे, लेकिन फैक्ट्री आने के बाद यहां के लोग केवल धान और गेहूं की खेती कर रहे हैं.

डस्ट से सफेद हो रही जमीन: इस फैक्ट्री से निकलने वाले प्रदूषण से अच्छी तरीके से फसल भी नहीं हो रही है, जिससे हमें काफी नुकसान सहना पड़ रहा है. उन्होंने बताया कि फैक्ट्री के आसपास के खेतों की मिट्टी दिन-प्रतिदिन सफेद हो रही है. किसानों की माने तो उनका कहना है कि अगर मिट्टी सफेद हो रही है तो इसका मतलब मिट्टी की उपजाऊ क्षमता हर वर्ष कम हो रही है. सिंचाई करने के बाद थोड़ी बहुत फसल यहां दिख रही है. लेकिन, आसपास के जो घास फूस है, वह सीमेंट फैक्ट्री से निकले हुए डस्ट की वजह से सफेद हो चुके हैं. जांच के लिए गठित समिति में कैमूर के डीएम को भी शामिल किया गया है. समिति को कार्रवाई की रिपोर्ट तीन महीने के भीतर देने का निर्देश दिया गया है.

प्रदूषण से पशु और फसल प्रभावित: कैमूर जिले के कुल्हड़िया गांव में वर्ष 2011 में इको सीमेंट फैक्ट्री स्थापित की गई थी, जिसका नाम बदलकर इमामी सीमेंट फैक्ट्री और बाद में एनयू विस्टा सीमेंट कंपनी (NU Vista Cement Company) कर दिया गया. इसका उत्पादन प्रति वर्ष दो लाख एमटी बताया जाता है. किसानों ने बताया कि इस फैक्ट्री से निकलने वाले सफेद कणों से आदमी से लेकर पशु और फसल तक प्रभावित होते हैं. मुख्य रूप से इसके प्रदूषण का असर आसपास के पांच गांवों घनेक्षा, भेरिया, कुल्हडियां, महुअरिया और भदैनी के लोगों पर भी पड़ रहा है.


फैक्ट्री रात के समय छोड़ती है डस्ट: इसका डस्ट कई किलोमीटर दूर तक फैलता रहता है. बता दें कि फैक्ट्री अपना सारा डस्ट रात के समय छोड़ती है. फैक्ट्री से पानी की निकासी नहीं हो पाने से धनेक्षा, भेरिया और कुल्हड़िया गांव के किसानों के खेतों में जलजमाव होने से फसल बर्बाद हो जाती है. रोड से आने-जाने वाले लोग डस्ट के कारण बीमार भी हो जाते हैं. फसलों पर कारखाने की निकली सफेद परत से चारा या घास खाने वाले पशु भी बीमारी की चपेट में आ रहे हैं और तो और उस रास्ते से गुजरने में लोग भी अब कतराते हैं, जिससे आसपास के किसान काफी नाराज है.

एनजीटी (NGT) द्वारा गठित की गई समिति को 5 मई को रिपोर्ट के साथ पेश होने को कहा गया है. अब देखने वाली बात यह है कि उस रिपोर्ट में क्या क्या आता है. सवाल यह उठता है कि क्या किसानों को उनका हक मिल पाएगा. क्या, उनकी भी यह लड़ाई देश के अन्य किसानों की तरह फाइलों में दब के रह जाएगी.

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