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यहां मां काली को चढ़ाई जाती है रक्त विहीन बलि, वार्षिक पूजा पर श्रद्धालुओं की उमड़ी भीड़ - Bloodless sacrifice to lord kali in kaimur

कैमूर के चैनपुर में सावन पूर्णिमा के पूर्णमासी के मौके पर माता काली की भव्य पूजा की गई. इस दौरान रक्त विहीन बलि भी चढ़ाई गई. ग्रामीणों ने बताया कि यह परंपरा सदियों से चली आ रही है.

lord kali wprship
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Published : Aug 23, 2021, 7:38 AM IST

कैमूर: चैनपुर प्रखंड क्षेत्र में हर साल की भांति इस साल भी सभी घरों में होने वाली मां काली की वार्षिक पूजा (Lord Kali Worship) के साथ-साथ गांव के मां काली मंदिर में भी यह पूजा रक्त विहीन बलि (bloodless-sacrifice) के साथ संपन्न हुआ. पूजा के दौरान ग्रामीणों ने पूरे गांव की परिक्रमा कर गांव को सुरक्षित रखने की मन्नतें मांगी.

बता दें कि हर साल सावन महीने की पूर्णमासी तिथि को गांव में शांति और समृद्धि के लिए मां काली मंदिर में धूमधाम से पूजा की जाती है. हाटा ग्राम पंचायत के निवासी बलदाऊ पटेल ने बताया कि इस पूजा का आयोजन ग्रामीणों के आपसी सहयोग से किया जाता है. इस दिन का इलाके के लोग बेसब्री से इंतजार करते हैं.

उन्होंने बताया कि काली वार्षिक पूजा के दिन दर्शनिया पर मां काली का विशेष अंश समाहित होता है. काली माता के विशेष भक्त को स्थानीय भाषा में दर्शनिया कहा जाता है. इस पूजा के दौरान ग्रामीण अपने गांव का चक्कर लगाते हैं और उसे बांधते हैं. ऐसा करके वे गांव को किसी भी बुरी बला से बचाने की माता से प्रार्थना करते हैं.

इस अवसर पर भारी संख्या में श्रद्धालुओं का जमावड़ा लगा रहता है. वे परिक्रमा करने के लिए एक साथ मां काली मंदिर प्रांगण में जुटते हैं. भव्य तरीके से इश दौरान माता की पूजा की जाती है. हवन भी किया जाता है.

इसके बाद रक्त विहीन बलि चढ़ाने वाले भक्त बकरा, भैंसा और अन्य पशुओं की बलि देते हैं. इस तरह के बलि में रक्त नहीं बहता है. बल्कि अभिमंत्रित मंत्रों के माध्यम से मां काली के चरणों में बलि देने के उन पशुओं को स्वतंत्र छोड़ दिया जाता है. इसके बाद प्रसाद भी बंटता है, जिसे ग्रामीण बड़े ही आदर के साथ ग्रहण करते हैं. बता दें कि माता काली की यह विशेष पूजा परंपरा सदियों से चली आ रही है.

कैमूर: चैनपुर प्रखंड क्षेत्र में हर साल की भांति इस साल भी सभी घरों में होने वाली मां काली की वार्षिक पूजा (Lord Kali Worship) के साथ-साथ गांव के मां काली मंदिर में भी यह पूजा रक्त विहीन बलि (bloodless-sacrifice) के साथ संपन्न हुआ. पूजा के दौरान ग्रामीणों ने पूरे गांव की परिक्रमा कर गांव को सुरक्षित रखने की मन्नतें मांगी.

बता दें कि हर साल सावन महीने की पूर्णमासी तिथि को गांव में शांति और समृद्धि के लिए मां काली मंदिर में धूमधाम से पूजा की जाती है. हाटा ग्राम पंचायत के निवासी बलदाऊ पटेल ने बताया कि इस पूजा का आयोजन ग्रामीणों के आपसी सहयोग से किया जाता है. इस दिन का इलाके के लोग बेसब्री से इंतजार करते हैं.

उन्होंने बताया कि काली वार्षिक पूजा के दिन दर्शनिया पर मां काली का विशेष अंश समाहित होता है. काली माता के विशेष भक्त को स्थानीय भाषा में दर्शनिया कहा जाता है. इस पूजा के दौरान ग्रामीण अपने गांव का चक्कर लगाते हैं और उसे बांधते हैं. ऐसा करके वे गांव को किसी भी बुरी बला से बचाने की माता से प्रार्थना करते हैं.

इस अवसर पर भारी संख्या में श्रद्धालुओं का जमावड़ा लगा रहता है. वे परिक्रमा करने के लिए एक साथ मां काली मंदिर प्रांगण में जुटते हैं. भव्य तरीके से इश दौरान माता की पूजा की जाती है. हवन भी किया जाता है.

इसके बाद रक्त विहीन बलि चढ़ाने वाले भक्त बकरा, भैंसा और अन्य पशुओं की बलि देते हैं. इस तरह के बलि में रक्त नहीं बहता है. बल्कि अभिमंत्रित मंत्रों के माध्यम से मां काली के चरणों में बलि देने के उन पशुओं को स्वतंत्र छोड़ दिया जाता है. इसके बाद प्रसाद भी बंटता है, जिसे ग्रामीण बड़े ही आदर के साथ ग्रहण करते हैं. बता दें कि माता काली की यह विशेष पूजा परंपरा सदियों से चली आ रही है.

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