कैमूर: जिले के चैनपुर प्रखंड क्षेत्र के चैनपुर पंचायत में स्थित ऐतिहासिक बख्तियार खान का मकबरा लोगों के बीच लगातार अपनी भव्यता को लेकर आकर्षण का केन्द्र रहा है. स्थानीय लोग सहित दूरदराज के पर्यटक मकबरा घूमने पहुंचते हैं. मकबरे की भव्यता की बात करें तो बख्तियार खान का ये मकबरा प्लिंथ पर खड़ा है. जो सासाराम में स्थित हसन शाह के मकबरे से मिलता जुलता है. ये मकबरा चारों ओर से आंतरिक दीवारों से घिरा है. जहां पूर्वी मुख्य द्वार से पहुंचा जा सकता है.
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प्रवेश के लिए भव्य तोरण द्वार
मकबरे के अंदर प्रवेश करने के लिए भव्य तोरण द्वार का निर्माण किया गया है जिसके दोनों ओर से दो मंजिला कक्ष भी बना हुआ है. इसके अंदर उत्तर और दक्षिण में दो छोटे-छोटे दरवाजे हैं और इसके चारों कोनों में एक वर्गाकार गुंबदीय कक्ष भी है. ये मकबरा अष्टकोणीय है, जिसका बाहरी व्यास लगभग 42 मीटर है. बारामदे की छत पर 24 छोटे-छोटे गुंबद है. जिसमें अष्टकोण के प्रत्येक भाग में तीन-तीन गुंबद है. अष्टकोण के कोनों पर स्थित मुख्य गुंबद भव्य और सुंदर गुंबदीय स्तंभ से सुसज्जित है.
शिखर पर समरूप गुंबद
मकबरे के शिखर को भव्यता से सजाने के लिए भी समरूप गुंबद का प्रयोग किया गया है. गुंबदीय कक्ष की आंतरिक माप लगभग 7 मीटर है. जिसमें 30 कब्र बनी हैं. उसी में एक बख्तियार खान की भी कब्र है. बुकानन पुरातत्वविद् की रिपोर्ट के मुताबिक बख्तियार खान फतेह खान का पिता था. जिसने अफगान के शासक शेरशाह सूरी की पुत्री से विवाह किया था. मकबरे में जो शिलालेख हैं, वह कुरान और परसियन द्विपदी से ली गई हैं.
16वीं से 17वीं शताब्दी का मकबरा
स्थापत्य कला विवेचना के आधार पर ये मकबरा 16वीं से 17वीं शताब्दी का है. इस मकबरे की देखरेख के लिए दो दरबान नियुक्त किए गए हैं. जिसमें एक ग्राम नौघरा के निवासी रजीउल्लाह खान, जबकि दूसरा रामगढ़ मुंडेश्वरी के निवासी भोला सिंह थे. जो सेवानिवृत्त हो गए हैं. वर्तमान में नौघरा के निवासी रजिउल्लाह खान के द्वारा ही मकबरे की रखवाली की जाती है.
4 साल पहले की घेराबंदी
मौके पर मौजूद दरबान रजिउल्ला खान ने बताया कि 4 साल पहले मकबरे की घेराबंदी की गई, जो क्षतिग्रस्त हो चुकी थी. जिसकी मरम्मत करवाई गई और मकबरे के तोरण द्वार के आगे भी बाउंड्री वाल का निर्माण करके घेराबंदी की गई थी. जिसके उपरांत अन्य कोई और निर्माण कार्य नहीं हुआ है.
मकबरे की वर्तमान स्थिति
वर्तमान में बख्तियार खान के मकबरे की आंतरिक दीवारों के अंदर भारी मात्रा में घास फूस उगे हुए हैं. जहां सांप बिच्छू का भी डर बना रहता है. स्थानीय पर्यटक और दूरदराज से आने वाले पर्यटकों के लिए अन्य सुविधाओं की बात तो दूर महिलाओं और पुरुषों के लिए एक शौचालय तक की व्यवस्था नहीं है. पीने के पानी के लिए एक हैंडपंप मौजूद है. उसी के सहारे आने वाले पर्यटक अपनी प्यास बुझाते हैं.
जर्जर स्थिति में मकबरा
बताया जाता है कि काफी समय पहले मकबरे के आंतरिक दीवारों के बाहर रोड की पूरब दिशा में एक गार्ड रूम है. जहां मकबरे के देखभाल के लिए सुरक्षा बल मौजूद रहते थे. वहीं, रहकर अपना भोजन तैयार कर उसी में निवास करते थे. वर्तमान समय में गार्ड रूम की स्थिति दयनीय है. असामाजिक लोग उसके खिड़की दरवाजे तक उखाड़कर ले गए. जिसकी सुध लेने वाला कोई नहीं है.
अव्यवस्थाओं के चलते पर्यटकों की कमी
बख्तियार खान के इस ऐतिहासिक मकबरे पर किसी तरह की कोई सुविधा उपलब्ध ना रहने के कारण बाहरी पर्यटकों का आना धीरे-धीरे बिल्कुल ही बंद हो चुका है. स्थानीय आसपास के इलाके के लोग गुरुवार और शुक्रवार को मकबरे पर पहुंचते हैं. जहां पर कुछ लोगों के द्वारा फूल मालाएं चढ़ाई जाती हैं, तो कुछ लोग वहां फाथिया पढ़ते हैं.
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रखरखाव एवं विधि व्यवस्था से संबंधित जानकारी लेने पर पुरातत्व विभाग के रोहतास और कैमूर के सीए अमृत झा ने बताया कि बख्तियार खान के मकबरे पर आने वाले पर्यटकों के लिए शौचालय का निर्माण करवाया जाना है. जिसके लिए पटना प्रपोजल भेजा जाएगा. दूरदराज से आने वाले लोगों के लिए रहने सहित अन्य और कोई भी सुविधाएं उपलब्ध नहीं है. जिस पर उन्होंने कहा कि वर्तमान में मकबरे तक आसपास के गांव के लोग ही शुक्रवार और शनिवार को पहुंचते हैं, जिनके लिए शौचालय का निर्माण करवाया जाएगा.