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कैमूर: स्मार्ट क्लास योजना का असली चेहरा दिखा रहा यह मिडिल स्कूल, दहशत में पढ़ते हैं यहां बच्चे

यहां एक तरफ सरकार स्मार्ट क्लास की बात करती है. वहीं दूसरी तरफ एक सरकारी स्कूल के बच्चे दहशत में पढ़ाई करने को मजबूर हैं. यहां सांप, बिच्छू बच्चों को काट लेते हैं. क्योंकि इस स्कूल के बच्चे बाहर पेड़ के नीचे पढ़ते हैं.

उत्क्रमित मध्य विद्यालय
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Published : Sep 17, 2019, 9:37 AM IST

Updated : Sep 17, 2019, 2:45 PM IST

कैमूरः एक तरफ तो बिहार सरकार सरकारी स्कूलों में स्मार्ट क्लास योजना लाकर अपनी पीठ थपथपा रही है तो दूसरी तरफ कई ऐसे स्कूल हैं, जहां बुनियादी सुविधाएं तक उपलब्ध नहीं हैं. हम बात कर रहे हैं कैमूर जिला के भगवानपुर प्रखंड के ओरा गांव के उत्क्रमित मध्य विद्यालय की. यहां बच्चों को जान जोखिम में डालकर पेड़ के नीचे बैठकर पढ़ाई करना पड़ता है. कई बार तो इन्हें सांप-बिच्छु तक काट लेता है, इसके बावजूद आजतक शिक्षा विभाग ने इस स्कूल की सूध नहीं ली.

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पेड़ के नीचे बैठे बच्चे

दो कमरे में होती है कक्षा 8 तक की पढ़ाई
दरअसल, इस उत्क्रमित मध्य विद्यालय में 2 ही कमरे हैं. जहां क्लास 1 से 8 तक है बच्चों की कुल संख्या 270 के करीब है. जबकि शिक्षक 6 हैं. स्कूल में सबसे बुरा हाल यहां के कमरों का है. दोनों कमरे पूरी तरह से जर्जर हो चुके हैं. ऐसे में अगर कोई बड़ी दुर्घटना होती हैं तो आखिर इसका जिम्मेवार कौन होगा. दो कमरों में सभी क्लास के बच्चों को बैठाना भी मुमकिन नहीं है.

बरसात में बंद रहता है स्कूल
स्कूल के शिक्षकों और बच्चों ने बताया कि बरसात के दिनों में कमरे से पानी टपकता है और बच्चे पेड़ के नीचे बैठ नहीं सकते हैं. ऐसे में स्कूल की छुट्टी कर दी जाती है. शिक्षकों ने बताया कि स्कूल में बुनियादी सुविधा के नाम पर कुछ भी नहीं है. यहां तक कि माध्यम भोजन भी खुले में पेड़ के नीचे बनाया जाता है. स्कूल में शौचालय तक नहीं है. बच्चे नदी किनारे शौच के लिए जाते हैं.

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जानकारी देती शिक्षिका

स्कूल में शिक्षकों की कमी
शिक्षकों ने बताया कि जब कभी 3 शिक्षक बीआरसी मीटिंग में चले जाते हैं तो ऐसे में 1 से क्लास 8 तक के बच्चों की जिम्मेवारी 3 शिक्षकों पर होती है. यही नहीं एक बार में एक शिक्षक 3 क्लास को पढ़ाते हैं. क्लास 3, 4 और 7 के बच्चें पेड़ के नीचे बैठकर पढ़ाई करते हैं. तो दूसरी तरफ क्लास 5 और 6 के बच्चों को वरानडे में बैठाया जाता हैं. जबकि क्लास 1 और 2 क बच्चों को कंबाइन्ड क्लास में और क्लास 8 के बच्चों को अलग एक दूसरे क्लासरूम में बैठाया जाता है. ऐसे में इस स्कूल में स्मार्ट क्लास की बात करना भी बेमानी है.

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जमीन पर बैठे स्कूल के बच्चे

शिक्षा विभाग ने नहीं उठाया कोई ठोस कदम
मोकर्म पंचायत के मुखिया अमेन्द्र कुमार सिंह ने बताया कि लगभग 10 साल पहले स्कूल में भवन निर्माण के लिए फण्ड आया हुआ था. लेकिन उस वक़्त जमीन नहीं होने के कारण पैसा वापस भेज दिया गया. अब वो खुद ग्रामीणों से मिलकर विद्यालय के लिए 27 डिसमिल जमीन उपलब्ध करवा चुके हैं और जिला प्रशासन को जमीन के कागजात जमा कर चुके हैं. लेकिन अभी तक भवन निर्माण के दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है.

स्कूल में निकलता है सांप बिच्छू
वहीं, भगवानपुर के प्रमुख प्रतिनिधि ज्ञानचंद गुप्ता ने बताया कि विद्यालय इतना जर्जर है कि कभी भी कोई दुर्घटना हो सकती है. उनकी आंखों के सामने कई दफा सांप विद्यालय में देखा गया है. जिसके बाद पंचायत और प्रखंड स्तर से विद्यालय के बारे में कई बार जिला प्रशासन को सूचना दी गई. लेकिन अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है. यदि कोई दुर्घटना होती हैं तो इसका जिम्मेवार जिला प्रसाशन होगा.

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पेड़ के नीचे बनता मध्यान भोजन

खुले में बनता है मध्यान भोजन
गांव के ग्रामीण धनंजय कुमार तिवारी ने बताया कि विद्यालय में किचेन नहीं है. खाना पेड़ के नीचे बनाया जाता है. ऐसे में यदि कोई कीड़ा खाने में गिरता है तो बच्चों की तबीयत बिगड़ सकती है. बिहार में ऐसी कई दुर्घटना हो चुकी है. इसके बावजूद शिक्षा विभाग को कोई परवाह नही हैं. उन्होंने बताया कि विद्यालय की छात्राएं शौच के लिए स्कूल के दौरान नदी किनारे जाती हैं. कई दफा तो ग्रामीणों ने उन्हें डूबने से बचाया है. लेकिन प्रशासन ने इस विद्यालय को लेकर अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया.

पेड़ के नीचे बैठकर पढ़ते बच्चे और बयान देते शिक्षक व अन्य

जमीन रजिस्ट्री के बाद ही बन पाएगा भवन
सर्व शिक्षा अभियान के डीपीओ यदुवंश राम ने बताया कि पहले भवन निर्माण के लिए पैसा भेजा गया था, जो जमीन नहीं होने के कारण वापस हो गया. बाद में मुखिया अमेन्द्र कुमार सिंह ने भूमि उपलब्ध कराने के बात कही है, जैसे ही भूमि शिक्षा विभाग के नाम पर रजिस्ट्री हो जाती है, वैसे ही विभाग सरकार से भवन निर्माण के लिए राशि उपलब्ध कराने की मांग करेगी.

कैमूरः एक तरफ तो बिहार सरकार सरकारी स्कूलों में स्मार्ट क्लास योजना लाकर अपनी पीठ थपथपा रही है तो दूसरी तरफ कई ऐसे स्कूल हैं, जहां बुनियादी सुविधाएं तक उपलब्ध नहीं हैं. हम बात कर रहे हैं कैमूर जिला के भगवानपुर प्रखंड के ओरा गांव के उत्क्रमित मध्य विद्यालय की. यहां बच्चों को जान जोखिम में डालकर पेड़ के नीचे बैठकर पढ़ाई करना पड़ता है. कई बार तो इन्हें सांप-बिच्छु तक काट लेता है, इसके बावजूद आजतक शिक्षा विभाग ने इस स्कूल की सूध नहीं ली.

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पेड़ के नीचे बैठे बच्चे

दो कमरे में होती है कक्षा 8 तक की पढ़ाई
दरअसल, इस उत्क्रमित मध्य विद्यालय में 2 ही कमरे हैं. जहां क्लास 1 से 8 तक है बच्चों की कुल संख्या 270 के करीब है. जबकि शिक्षक 6 हैं. स्कूल में सबसे बुरा हाल यहां के कमरों का है. दोनों कमरे पूरी तरह से जर्जर हो चुके हैं. ऐसे में अगर कोई बड़ी दुर्घटना होती हैं तो आखिर इसका जिम्मेवार कौन होगा. दो कमरों में सभी क्लास के बच्चों को बैठाना भी मुमकिन नहीं है.

बरसात में बंद रहता है स्कूल
स्कूल के शिक्षकों और बच्चों ने बताया कि बरसात के दिनों में कमरे से पानी टपकता है और बच्चे पेड़ के नीचे बैठ नहीं सकते हैं. ऐसे में स्कूल की छुट्टी कर दी जाती है. शिक्षकों ने बताया कि स्कूल में बुनियादी सुविधा के नाम पर कुछ भी नहीं है. यहां तक कि माध्यम भोजन भी खुले में पेड़ के नीचे बनाया जाता है. स्कूल में शौचालय तक नहीं है. बच्चे नदी किनारे शौच के लिए जाते हैं.

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जानकारी देती शिक्षिका

स्कूल में शिक्षकों की कमी
शिक्षकों ने बताया कि जब कभी 3 शिक्षक बीआरसी मीटिंग में चले जाते हैं तो ऐसे में 1 से क्लास 8 तक के बच्चों की जिम्मेवारी 3 शिक्षकों पर होती है. यही नहीं एक बार में एक शिक्षक 3 क्लास को पढ़ाते हैं. क्लास 3, 4 और 7 के बच्चें पेड़ के नीचे बैठकर पढ़ाई करते हैं. तो दूसरी तरफ क्लास 5 और 6 के बच्चों को वरानडे में बैठाया जाता हैं. जबकि क्लास 1 और 2 क बच्चों को कंबाइन्ड क्लास में और क्लास 8 के बच्चों को अलग एक दूसरे क्लासरूम में बैठाया जाता है. ऐसे में इस स्कूल में स्मार्ट क्लास की बात करना भी बेमानी है.

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जमीन पर बैठे स्कूल के बच्चे

शिक्षा विभाग ने नहीं उठाया कोई ठोस कदम
मोकर्म पंचायत के मुखिया अमेन्द्र कुमार सिंह ने बताया कि लगभग 10 साल पहले स्कूल में भवन निर्माण के लिए फण्ड आया हुआ था. लेकिन उस वक़्त जमीन नहीं होने के कारण पैसा वापस भेज दिया गया. अब वो खुद ग्रामीणों से मिलकर विद्यालय के लिए 27 डिसमिल जमीन उपलब्ध करवा चुके हैं और जिला प्रशासन को जमीन के कागजात जमा कर चुके हैं. लेकिन अभी तक भवन निर्माण के दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है.

स्कूल में निकलता है सांप बिच्छू
वहीं, भगवानपुर के प्रमुख प्रतिनिधि ज्ञानचंद गुप्ता ने बताया कि विद्यालय इतना जर्जर है कि कभी भी कोई दुर्घटना हो सकती है. उनकी आंखों के सामने कई दफा सांप विद्यालय में देखा गया है. जिसके बाद पंचायत और प्रखंड स्तर से विद्यालय के बारे में कई बार जिला प्रशासन को सूचना दी गई. लेकिन अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है. यदि कोई दुर्घटना होती हैं तो इसका जिम्मेवार जिला प्रसाशन होगा.

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पेड़ के नीचे बनता मध्यान भोजन

खुले में बनता है मध्यान भोजन
गांव के ग्रामीण धनंजय कुमार तिवारी ने बताया कि विद्यालय में किचेन नहीं है. खाना पेड़ के नीचे बनाया जाता है. ऐसे में यदि कोई कीड़ा खाने में गिरता है तो बच्चों की तबीयत बिगड़ सकती है. बिहार में ऐसी कई दुर्घटना हो चुकी है. इसके बावजूद शिक्षा विभाग को कोई परवाह नही हैं. उन्होंने बताया कि विद्यालय की छात्राएं शौच के लिए स्कूल के दौरान नदी किनारे जाती हैं. कई दफा तो ग्रामीणों ने उन्हें डूबने से बचाया है. लेकिन प्रशासन ने इस विद्यालय को लेकर अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया.

पेड़ के नीचे बैठकर पढ़ते बच्चे और बयान देते शिक्षक व अन्य

जमीन रजिस्ट्री के बाद ही बन पाएगा भवन
सर्व शिक्षा अभियान के डीपीओ यदुवंश राम ने बताया कि पहले भवन निर्माण के लिए पैसा भेजा गया था, जो जमीन नहीं होने के कारण वापस हो गया. बाद में मुखिया अमेन्द्र कुमार सिंह ने भूमि उपलब्ध कराने के बात कही है, जैसे ही भूमि शिक्षा विभाग के नाम पर रजिस्ट्री हो जाती है, वैसे ही विभाग सरकार से भवन निर्माण के लिए राशि उपलब्ध कराने की मांग करेगी.

Intro:कैमूर।

एक तरफ तो बिहार सरकार स्मार्ट क्लास के माध्यम से अपना पीठ थपथपा रही हैं तो दूसरी तरफ आज भी कैमूर जिले में ऐसे कई विद्यालय हैं जहां बुनियादी सुविधा उपलब्ध नही हैं और बच्चों को जान जोखिम में डालकर पेड़ के नीचे बैठकर पढ़ाई करना पड़ता हैं। भगवानपुर प्रखंड के औरा गांव के उत्क्रमित मध्य विद्यालय का तो आलम यह हैं कि यहां कई दफा साँप बिछु से बच्चों को काट लिया हैं बावजूद आज भी शिक्षा विभाग सो रही हैं।


Body:आपकों बतादें कि इस विद्यालय में 2 कमरे हैं और क्लास 1 से 8 तक है बच्चों की कुल संख्या 270 के करीब हैं जबकि शिक्षक 6 हैं। स्कूल में सबसे बुरा हाल यहां के कमरों का हैं दोनों कमरे पूरी तरह से जर्जर हो चुके हैं ऐसे में अगर कोई बड़ी दुर्घटना होती हैं तो आखिर इसका जिम्मेवार कौन होगा।

स्कूल के शिक्षकों और बच्चों ने बताया कि बरसात के दिनों में कमरे से पानी टपकता हैं और बच्चे पेड़ के नीचे बैठ नही सकते हैं ऐसे में स्कूल की छुटी कर दी जाती हैं। शिक्षकों ने बताया कि स्कूल में बुनियादी सुविधा के नाम पर कुछ भी उपलब्ध नही हैं। यहाँ तक कि माध्यम भोजन भी खुले में पेड़ के नीचे बनाया जाता हैं। शिक्षकों ने बताया कि एक बार मे 3 शिक्षक बीआरसी मीटिंग में चले जाते हैं ऐसे में 1 से 8 क्लास तक कि जिम्मेवार 3 शिक्षकों पर होती हैं। यही नही एक बार मे एक शिक्षक 3 क्लास को पढ़ाते हैं। क्लास 3, 4 और 7 के बच्चें पेड़ के नीचे बैठकर पढ़ाई करते हैं। तो दूसरी तरफ क्लास 5 और 6 के बच्चों को बरांडे में बैठाया जाता हैं। जबकि क्लास 1 और 2 क बच्चों को कंबाइन क्लास में और क्लास 8 के बच्चों को अलग एक दूसरे क्लासरूम में बैठाया जाता हैं। ऐसे में स्मार्टक्लेस की बात करने वाली सरकार को सबसे पहले यह सोचने की जरूरत हैं कि बच्चों को जल्द से जल्द बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध करवाई जाए।

मोकर्म पंचायत के मुखिया अमेन्द्र कुमार सिंह ने बताया कि लगभग 10 वर्ष पहले स्कूल में भवन निर्माण के लिए फण्ड आया हुआ था लेकिन उस वक़्त जमीन नही होने के कारण पैसा वापस भेज दिया गया। अब वो खुद ग्रामीणों से मिलकर विद्यालय के लिए 27 डिसमिल जमीन उपलब्ध करवा चुके हैं और जिला प्रशासन को जमीन के कागजात जमा कर चुके हैं लेकिन अभी तक भवन निर्माण के दिशा में कोई ठोस कदम नही उठाया गया हैं।


दूसरी तरफ भगवानपुर के प्रमुख प्रतिनिधि ज्ञानचंद गुप्ता ने बताया कि विद्यालय इतना जर्जर हैं कि कभी भी कोई दुर्घटना हो सकती हैं यही नही उनकी आंखों के सामने कई दफा साँप विद्यालय में देखा गया हैं। जिसके बाद पंचायत और प्रखंड स्तर से विद्यालय के बारे में कई बार जिला प्रशासन को सूचना दी गई हैं लेकिन अभी तक कोई कार्रवाई नही हुई हैं। यदि कोई दुर्घटना होती हैं तो इसका जिम्मेवार जिला प्रसाशन होगा।


गांव के ग्रामीण धनंजय कुमार तिवारी ने बताया कि विद्यालय में किचेन नही हैं खाना पेड़ के नीचे बनाया जाता हैं ऐसे में यदि कोई कीड़ा खाने में गिरता हैं तो बच्चों की तबियत बिगड़ सकती हैं । बिहार में ऐसी कई दुर्घटना हो चुकी हैं बावजूद इसके शिक्षा विभाग को कोई परवाह नही हैं। यही नही उन्होंने बताया कि विद्यालय की छात्राएं शौच के लिए स्कूल के दौरान नदी किनारे जाती हैं कई दफा तो ग्रामीणों ने उन्हें डूबने से बचाया हैं लेकिन प्रशासन ने इस विद्यालय को लेकर अभी तक कोई ठोस कदम नही उठाये हैं।

सर्व शिक्षा अभियान के डीपीओ यदुवंश राम ने बताया कि पहले भवन निर्माण के लिए पैसा भेजा गया था जो जमीन न होने के कारण वापस हो गया था। जिसके बाद मुखिया के द्वारा भूमि उपलब्ध कराने के बात कही जा रही हैं। जैसे ही भूमि शिक्षा विभाग के नाम पर रजिस्ट्री हो जाती हैं वैसे ही विभाग द्वारा सरकार से भवन निर्माण के लिए राशि उपलब्ध कराने की मांग की जाएगी। विभाग द्वारा इस विषय को गंभीरता से देखते हुए जल्द ही भवन निर्माण कराई जाएगी।



Conclusion:
Last Updated : Sep 17, 2019, 2:45 PM IST
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