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बिहार का एक ऐसा गांव जहां नहीं है मोबाइल नेटवर्क, कॉल करने के लिए चढ़ना पड़ता है पेड़ पर - मोबाइल नेटवर्क

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नए भारत डिजिटल भारत का सपना देखा और उसे साकार करने में लग गए. लेकिन हम आपको कैमूर जिले के अधौरा प्रखंड में पहाड़ पर बसा एक ऐसे गांव से रूबरू करवाते है जहां आज के इस डिजिटल युग में भी मोबाइल काम नहीं करता हैं.

पेड़ पर चढ़े लोग
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Published : Feb 6, 2019, 2:58 AM IST

कैमूर: प्रधानमंत्री मोदी के डिजिटल भारत के सपने को साकार करने में केंद्र से राज्य सरकार तक लगी हुई है. इन सबके बावजूद कैमूर जिले के अधौरा प्रखंड से एक ऐसी तस्वीर सामने आई है जिससे डिजिटलाइजेशन के मजबूत नेटवर्क के ठीले तार सामने आते हैं.

ग्रामीणों का बयान
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भारत आज भले ही इंटरनेट खपत के मामले में विश्वगुरु है, लेकिन इसकी जमीनी हकीकत का दूसरा पहलू कुछ और ही है. कैमूर के अधौरा प्रखंड में पहाड़ पर बसे एक ऐसे गांव से आपको रूबरू करवाते हैं जहां इस आधुनिक युग में भी मोबाइल काम नहीं करता है.

मोबाइल है पर नेटवर्क नहीं
जिला मुख्यालय भभुआ से 65 किमी दूर अधौरा प्रखंड के पहाड़ पर बसा है बड़वान कला गांव. ग्रामीण बताते हैं कि गांव की कुल आबादी लगभग 5 हजार है. गांव अधौरा जाने वाली मुख्य सड़क से 22 किमी दूर पहाड़ पर बसा हुआ है. इस गांव के लोग की जिंदगी अब भी प्राचीन काल से कम नहीं है. न तो यहां कोई मोबाइल नेटवर्क है, न ही सड़क और न ही गांव की प्यास बुझाने के लिए पानी.

मूलभूत सुविधाओं का घोर अभाव
आज के इस डिजिटल युग मे यहां के लोग सड़क, पानी और भी कई मूलभूत सुविधाओं के आभाव में अपनी जिंदगी का गुजारा करते हैं. गांववालों ने किसी तरह मेहनत मजदूरी कर मोबाइल तो खरीद लिया, लेकिन उन्हें बात करने के लिए गांव से 2 किमी दूर पहाड़ियों पर लगे पेड़ पर चढ़कर मोबाइल नेटवर्क का इंतजार करना होता है. अगर किसी के फोन में नेटवर्क दिख जाए तो ऐसा लगता है जैसे उसकी भगवान से भेंट हो गई.

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गांव में नहीं है एम्बुलेंस
21वीं शताब्दी के भारत के इस गांव की दास्तान ऐसी है कि आजादी के 70 साल बाद भी यहां आजतक एम्बुलेंस नहीं पहुंची. यदि कोई बीमार होता है तो गांव के लोग उसे बांस की लकड़ी में बांधकर अपने कंधे पर टांगकर 8 किमी पैदल पहाड़ियों से नीचे लाते हैं. फिर वहां से उन्हें जिला मुख्यालय भभुआ आने की गाड़ी मिलती है. गांव के लोगों ने बताया कि 100 में 90 लोग जिनकी तबियत बहुत ज्यादा खराब होती है जिला मुख्यालय पहुंचने से पहले ही दम तोड़ देते हैं. गांव में डॉक्टर की कोई सुविधा उपलब्ध नहीं है.

1 कुआं पूरे गांव की बुझाता है प्यास
आपको जानकर यह हैरानी होगी कि पूरे गांव में सिर्फ एक ही कुआं है और यह कुआं पूरे गांव की प्यास भुझाने के काम आता है. गर्मियों के दिनों में लोग 3 से 4 कोस पैदल चलकर दूसरे गांव से पानी लाते हैं. वहीं, आम दिनों में गांव से एक कोस की दूरी पर बने कुएं से पानी लाकर सरकारी की योजनाओं को यादकर आहें भरते हैं.

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'डिजिटलाइजेशन पर हथौड़ा'
सोचकर हैरानी होती है कि आधुनिकता के जिस समय में लोग मोबाइल के बिना एक पल भी नहीं रह सकते वहां एक गांव में मोबाइल नेटवर्क न होना किस सोशल डेवेलपमेंट का अहसास कराता होगा. यह सरकार के डिजिटलाइजेशन पर हथौड़े से कम नहीं है.

कैमूर: प्रधानमंत्री मोदी के डिजिटल भारत के सपने को साकार करने में केंद्र से राज्य सरकार तक लगी हुई है. इन सबके बावजूद कैमूर जिले के अधौरा प्रखंड से एक ऐसी तस्वीर सामने आई है जिससे डिजिटलाइजेशन के मजबूत नेटवर्क के ठीले तार सामने आते हैं.

ग्रामीणों का बयान
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भारत आज भले ही इंटरनेट खपत के मामले में विश्वगुरु है, लेकिन इसकी जमीनी हकीकत का दूसरा पहलू कुछ और ही है. कैमूर के अधौरा प्रखंड में पहाड़ पर बसे एक ऐसे गांव से आपको रूबरू करवाते हैं जहां इस आधुनिक युग में भी मोबाइल काम नहीं करता है.

मोबाइल है पर नेटवर्क नहीं
जिला मुख्यालय भभुआ से 65 किमी दूर अधौरा प्रखंड के पहाड़ पर बसा है बड़वान कला गांव. ग्रामीण बताते हैं कि गांव की कुल आबादी लगभग 5 हजार है. गांव अधौरा जाने वाली मुख्य सड़क से 22 किमी दूर पहाड़ पर बसा हुआ है. इस गांव के लोग की जिंदगी अब भी प्राचीन काल से कम नहीं है. न तो यहां कोई मोबाइल नेटवर्क है, न ही सड़क और न ही गांव की प्यास बुझाने के लिए पानी.

मूलभूत सुविधाओं का घोर अभाव
आज के इस डिजिटल युग मे यहां के लोग सड़क, पानी और भी कई मूलभूत सुविधाओं के आभाव में अपनी जिंदगी का गुजारा करते हैं. गांववालों ने किसी तरह मेहनत मजदूरी कर मोबाइल तो खरीद लिया, लेकिन उन्हें बात करने के लिए गांव से 2 किमी दूर पहाड़ियों पर लगे पेड़ पर चढ़कर मोबाइल नेटवर्क का इंतजार करना होता है. अगर किसी के फोन में नेटवर्क दिख जाए तो ऐसा लगता है जैसे उसकी भगवान से भेंट हो गई.

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गांव में नहीं है एम्बुलेंस
21वीं शताब्दी के भारत के इस गांव की दास्तान ऐसी है कि आजादी के 70 साल बाद भी यहां आजतक एम्बुलेंस नहीं पहुंची. यदि कोई बीमार होता है तो गांव के लोग उसे बांस की लकड़ी में बांधकर अपने कंधे पर टांगकर 8 किमी पैदल पहाड़ियों से नीचे लाते हैं. फिर वहां से उन्हें जिला मुख्यालय भभुआ आने की गाड़ी मिलती है. गांव के लोगों ने बताया कि 100 में 90 लोग जिनकी तबियत बहुत ज्यादा खराब होती है जिला मुख्यालय पहुंचने से पहले ही दम तोड़ देते हैं. गांव में डॉक्टर की कोई सुविधा उपलब्ध नहीं है.

1 कुआं पूरे गांव की बुझाता है प्यास
आपको जानकर यह हैरानी होगी कि पूरे गांव में सिर्फ एक ही कुआं है और यह कुआं पूरे गांव की प्यास भुझाने के काम आता है. गर्मियों के दिनों में लोग 3 से 4 कोस पैदल चलकर दूसरे गांव से पानी लाते हैं. वहीं, आम दिनों में गांव से एक कोस की दूरी पर बने कुएं से पानी लाकर सरकारी की योजनाओं को यादकर आहें भरते हैं.

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'डिजिटलाइजेशन पर हथौड़ा'
सोचकर हैरानी होती है कि आधुनिकता के जिस समय में लोग मोबाइल के बिना एक पल भी नहीं रह सकते वहां एक गांव में मोबाइल नेटवर्क न होना किस सोशल डेवेलपमेंट का अहसास कराता होगा. यह सरकार के डिजिटलाइजेशन पर हथौड़े से कम नहीं है.

Intro:प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नए भारत डिजिटल भारत का सपना देखा और उसे साकार करने में लग गए। लेकिन हम आपको कैमूर जिले के अधौरा प्रखंड में पहाड़ पर बसा एक ऐसे गांव से रूबरू करवाते है जहाँ आज के इस डिजिटल युग में भी मोबाइल काम नही करता हैं। भारत आज भले ही इंटरनेट खपत के मामले में विश्व गुरु है लेकिन इसकी जमीनी हकीकत की दूसरी पहलू कुछ और ही है।


Body:कैमूर जिला मुख्यालय भभुआ से 65 किमी दूर अधौरा प्रखंड के पहाड़ पर बसा है बड़वान कला गांव। गांव के लोग बताते है कि गांव की कुल आबादी लगभग 5 हजार है। गांव अधौरा जाने वाली मुख्य सड़क से 22 किमी दूर पहाड़ पर बसा हुआ है। इस गांव के लोग की जिंदगी ऐसी है कि न तो यहाँ कोई मोबाइल नेटवर्क काम करता है न ही इस गांव में पंहुचने के लिए सड़क है और न ही गांव का प्यास भुझाने के लिए पानी। आज के इस डिजिटल युग मे यहाँ के लोग सड़क पानी और मूलभूत सुविधाओं के आभाव में अपनी जिन्दगी का गुजारा करते है। गांववालों ने किसी तरह मेहनत मजदूरी कर मोबाइल तो खरीद ली लेकिन उन्हें बात करने के लिए भी गांव से 2 किमी दूर पहाड़ियों के पेड़ पर चढ़ मोबाइल नेटवर्क का इंतज़ार करना होता है। अगर किसी के फ़ोन में नेटवर्क दिख जाए तो ऐसा लगता है जैसे उसे भगवान से भेंट हो गई हो।

21 शताब्दी के इस भारत की गांव की दास्तान ऐसी है कि आजादी के 70 साल बाद भी इस गांव में आजतक एम्बुलेंस नही पहुँच सका यदि कोई बीमार होता है तो गांव के लोग उसे बॉस की लकड़ी में बांधकर अपने कंधे पर टांग 8 किमी पैदल पहाड़ियों से नीचे लाते है। फिर वहां से उन्हें जिला मुख्यालय भभुआ आने की गाड़ी मिलती है। गांव के लोगो ने बताया कि 100 में 90 लोग जिनकी तबियत बहुत ज्यादा खराब होती है जिला मुख्यालय पहुँचने से पहले ही काल के गाल में समा जाते है। गांव में डॉक्टर की कोई सुविधा उपलब्ध नही है।


एक कुआं का पानी पूरे गांव की बुझाता है प्यास
आपको जानकर यह हैरानी होगी कि पूरे गांव में सिर्फ एक ही कुआं है और यह कुआं पूरे गांव की प्यास को भुझाने के काम आते है। गर्मियों के दिनों में लोग 3 से 4 कोष पैदल चलकर दूसरे गांव से पानी लाते है वही आम दिनों गांव से एक कोष की दूरी पर बने कुआं से पानी लाते है।


आज के इस युग मे लोग मोबाइल के बिना एक पल भी नही रह सकते है ऐसे डिजिटल युग मे इस गांव में मोबाइल नेटवर्क नही आता है। आप सोच सकते है कि पहाड़ पर बसे इस गांव में सड़क और पानी के बिना लोगों की जिंदगी कैसी होगी।


Conclusion:फिलहाल देखना यह होगा कि इस गांव में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के डिजिटल इंडिया का सपना कब पूरा होता है। दूसरी तरफ यह भी देखना दिलजस्प होगा कि विकास पुरुष कहे जाने वाले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की योजनाएं आखिर कबतक इस गांव में अपना दस्तक देती है।
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