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मां मुंडेश्वरी धाम में नवरात्रा पर लगी भक्तों की भीड़, सबसे प्राचीन मंदिर के रूप में है विख्यात

देश के प्राचीन मंदिरों में शुमार मां मुंडेश्वरी धाम मंदिर में चैत्र नवरात्रा के अवसर पर भक्तों की लगी भीड़. यहां नवरात्रि में मां के दर्शन करने के लिए दूसरे राज्यों से भी लोग आते हैं.

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Published : Apr 6, 2019, 1:29 PM IST

मां मुंडेश्वरी

कैमूर: देश के प्राचीन मंदिरों में शुमार मां मुंडेश्वरी धाम भगवानपुर प्रखंड के पवरा पहाड़ी पर स्थित है. मां मुंडेश्वरी का मंदिर धरातल से लगभग 608 फीट की ऊंचाई पर है. वैसे तो मां के दर्शन करने भक्तों का भीड़ सालों भर लगी रहती है. लेकिन नवरात्रि में मां के दर्शन करने के लिए दूसरे राज्यों से भी लोग आते हैं.

रक्तहीन बलि के लिए प्रख्यात है मुंडेश्वरी धाम
मां मुंडेश्वरी में बलि की अनूठी प्रथा है. यहां सिर्फ अक्षत व मंत्र से बकरे की बलि दी जाती है. मां के भक्त मन्नत पूरी होने के बाद यहां मन्नत उतारने के लिए आते हैं और मां के समक्ष रक्तहीन बलि देते हैं.

प्राचीन मंदिरों में से एक है मुंडेश्वरी धाम
मान्यता यह है कि इस मंदिर में पूजा की परंपरा 1900 सालों से चली आ रही है. आज भी यह मंदिर जीवंत रूप के लिए जाना जाता है. यही नहीं यह मंदिर भारत का सबसे प्राचीन मंदिर माना जाता है. मंदिर का एक शिलालेख कोलकाता के भारतीय संग्रहालय में रखा गया है. जिसे 349 ई. से 636 ई. के बीच का बताया जाता है.

मां मुंडेश्वरी धाम

साल में तीन बार लगता है मेला
मां मुंडेश्वरी धाम में साल में 3 बार मेला लगता है. यहां शारदीय नवरात्र, चैत्र नवरात्र और माघ मास में मेला लगता है. इसके अलावा धर्मिक न्याय परिषद के द्वारा साल में एक बार मुंडेश्वरी महोत्सव का भी आयोजन किया जाता है.

तांदूल प्रसाद का चढ़ता है चढ़ावा
जिला प्रशासन की तरफ से एक नई पहल शुरू कर की गई है. मां के भक्त यदि इस मंदिर में आने में समर्थ नहीं है तो वे तांदूल प्रसाद की बुकिंग ऑनलाइन मुंडेश्वरी ट्रस्ट के साइट से कर सकते हैं. चावल के आटे तथा शुद्ध देशी घी से निर्मित यह प्रसाद यहां खासा लोकप्रिय है. भक्त अपने द्वारा चयनित दिन और समय पर मां को प्रसाद चढ़ा सकते हैं. जिसके बाद कूरियर से भक्त को मां का प्रसाद भेज दिया जाता है.

कैमूर: देश के प्राचीन मंदिरों में शुमार मां मुंडेश्वरी धाम भगवानपुर प्रखंड के पवरा पहाड़ी पर स्थित है. मां मुंडेश्वरी का मंदिर धरातल से लगभग 608 फीट की ऊंचाई पर है. वैसे तो मां के दर्शन करने भक्तों का भीड़ सालों भर लगी रहती है. लेकिन नवरात्रि में मां के दर्शन करने के लिए दूसरे राज्यों से भी लोग आते हैं.

रक्तहीन बलि के लिए प्रख्यात है मुंडेश्वरी धाम
मां मुंडेश्वरी में बलि की अनूठी प्रथा है. यहां सिर्फ अक्षत व मंत्र से बकरे की बलि दी जाती है. मां के भक्त मन्नत पूरी होने के बाद यहां मन्नत उतारने के लिए आते हैं और मां के समक्ष रक्तहीन बलि देते हैं.

प्राचीन मंदिरों में से एक है मुंडेश्वरी धाम
मान्यता यह है कि इस मंदिर में पूजा की परंपरा 1900 सालों से चली आ रही है. आज भी यह मंदिर जीवंत रूप के लिए जाना जाता है. यही नहीं यह मंदिर भारत का सबसे प्राचीन मंदिर माना जाता है. मंदिर का एक शिलालेख कोलकाता के भारतीय संग्रहालय में रखा गया है. जिसे 349 ई. से 636 ई. के बीच का बताया जाता है.

मां मुंडेश्वरी धाम

साल में तीन बार लगता है मेला
मां मुंडेश्वरी धाम में साल में 3 बार मेला लगता है. यहां शारदीय नवरात्र, चैत्र नवरात्र और माघ मास में मेला लगता है. इसके अलावा धर्मिक न्याय परिषद के द्वारा साल में एक बार मुंडेश्वरी महोत्सव का भी आयोजन किया जाता है.

तांदूल प्रसाद का चढ़ता है चढ़ावा
जिला प्रशासन की तरफ से एक नई पहल शुरू कर की गई है. मां के भक्त यदि इस मंदिर में आने में समर्थ नहीं है तो वे तांदूल प्रसाद की बुकिंग ऑनलाइन मुंडेश्वरी ट्रस्ट के साइट से कर सकते हैं. चावल के आटे तथा शुद्ध देशी घी से निर्मित यह प्रसाद यहां खासा लोकप्रिय है. भक्त अपने द्वारा चयनित दिन और समय पर मां को प्रसाद चढ़ा सकते हैं. जिसके बाद कूरियर से भक्त को मां का प्रसाद भेज दिया जाता है.

Intro:कैमूर।
देश के प्राचीन मंदिर में शुमार माँ मुंडेश्वरी का धाम भगवानपुर प्रखंड के पवरा पहाड़ी पर स्तिथ हैं। मां मुंडेश्वरी का मंदिर धरातल से लगभग 608 फ़ीट की ऊंचाई पर हैं। वैसे तो मां का दर्शन करने भक्तों का तादाद सालोंभर लगा रहता हैं लेकिन नवरात्रि में मां का दर्शन करने लोग दूसरे राज्यों से भी आते हैं।


Body:रक्तहीन बलि के लिए प्रख्यात है मुंडेश्वरी धाम
मां मुंडेश्वरी में बलि की अनूठी प्रथा हैं। यह बिना एक बूंद खून गिरे सिर्फ अक्षत व मंत्र से बकरे की बलि दी जाती हैं। मां के भक्त मन्नत पूरी होने के बाद यहां मन्नत उतारने के लिए आते है और क समक्ष रक्तहीन बलि दी जाती हैं।

मान्यता यह है कि इस मंदिर में पूजा की परंपरा 1900 सालों से चला आ रहा है और आज भी यह मंदिर जीवंत रूप के लिए जाना जाता हैं। यही नही यह मंदिर भारत का सबसे प्राचीन मंदिर माना जाता हैं। मंदिर का एक शिलालेख कोलकाता के भारतीय संग्रहालय में रखा गया है। जिस 349 ई से 636 ई के बीच का बताया जाता हैं।

साल में तीन बार लगता है मेला
मां मुंडेश्वरी धाम में साल भर में 3 बार मेला लगता हैं। शारदीय नवरात्र, चैत्र नवरात्र और माघ माह में मेला लगता हैं। इसके अलावा धर्मिक न्याय परिषद के द्वारा साल में एक बार मुंडेश्वरी महोत्सव का सभी आयोजन किया जाता हैं।

तांदूळ प्रसाद का चढ़ता है चढ़ावा
जिला प्रशासन की तरफ से एक नई पहल शुरू कर दी गयी हैं। माँ के भक्त यदि इस मंदिर में आने में समर्थ नही है टी तांदूळ प्रसाद की बुकिंग ऑनलाइन मुंडेश्वरी ट्रस्ट के साइट से कर सकते हैं सुर अपने द्वारा चयनित दिन और समय पर मां को प्रसाद चढ़ा सकते हैं। जिसके बाद कूरियर से भक्त को मां का प्रसाद भेज दिया जाएगा।


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