जहानाबाद : कहते हैं मां-बाप का सिर तब और फक्र से ऊंचा हो जाता है, जब वह अपने बच्चों के नाम से पहचाने जाने लगे. उनका सीना और चौड़ा होता है जब सड़क पर निकलें और लोग कहें.. देखो यह उनकी मां या उनके पिता है. मतलब हर मां-बाप का सपना होता है कि उसका बेटा पढ़-लिखकर कोई बड़ा अधिकारी बने. गाहे बगाहे कई ऐसी तस्वीरें सामने आ जाती हैं, जो सोशल मीडिया पर ट्रेंड करने लगती है. उन तस्वीरों से भी आपको रू-ब-रू करवाएंगे लेकिन आज सबसे पहले आपको एसडीओ मनोज कुमार और उनकी मां सावित्री देवी के बारे में बताते हैं. जिस कार्यालय में सावित्री देवी चतुर्थवर्गीय कर्मचारी थी. आज उसी दफ्तर में उनका बेटा सबसे बड़ा अधिकारी है. यह दृश्य जहानाबाद अनुमंडल कार्यालय में देखने को मिलता है.
ये भी पढ़ें - ISRO में साइंटिस्ट बना बिहार का लाल, परिवार ने बताई संघर्ष की कहानी
संघर्षों से भरा रहा परिवार का भरण-पोषण : उस समय शायद सावित्री देवी ने भी यह नहीं सोचा होगा कि इस कार्यालय के सबसे बड़े अधिकारी के रूप में उनका बेटा मनोज कुमार कार्य (Jehanabad SDO Manoj Kumar) संभालेगा. अरवल जिले के अबगिला गांव की रहने वाली सावित्री देवी का जीवन संघर्षों से भरा रहा है. नौकरी लगने से पहले सावित्री देवी अपने गांव अबगिला में ही छोटा सा किराना दुकान चलाकर अपने परिवार का भरण पोषण एवं बच्चों का पढ़ाई लिखाई करवाती थी. उनके पति राम बाबू प्रसाद किसान थे काफी मुश्किल से घर परिवार चल रहा था.
जब सावित्री देवी को मिली नौकरी : इसी बीच में 1990 के दशक में चतुर्थवर्गीय कर्मी की वैकेंसी निकली और उस वैकेंसी में आठवीं पास सावित्री देवी ने अपनी नौकरी के लिए आवेदन किया. सावित्री देवी को नौकरी मिल गई. उस समय के दौर में इस साधारण परिवार के लिए यह एक बड़ी उपलब्धि थी. जब सावित्री देवी को नौकरी लगी थी उस समय मनोज कुमार जो वर्तमान में जहानाबाद अनुमंडल पदाधिकारी हैं वह मैट्रिक में पढ़ाई कर रहे थे.
2003 में जहानाबाद अनुमंडल कार्यालय में कार्यरत थी सावित्री देवी: मां को नौकरी मिलने के बाद पढ़ाई का खर्च भी आसानी से निकलने लगा. सावित्री देवी की नौकरी के बाद पहली पोस्टिंग पटना में हुई इसके बाद गया और इसी तरह से लगभग 2003 में जहानाबाद अनुमंडल कार्यालय में चतुर्थवर्गीय कर्मचारी के रूप में उनका तबादला हुआ.
अनुमंडल पदाधिकारी मनोज कुमार उस दौर को नहीं भूलते हैं. कहते हैं, ''हम लोगों का पूरा परिवार खेती पर आधारित था. जब कभी मां से मिलने अनुमंडल कार्यालय जाता था तब यही इच्छा होती थी कि पढ़ लिख कर इस कार्यालय के सबसे बड़े साहब की कुर्सी पर बैठूं. मेरी मां सावित्री देवी हमेशा इसके लिए हमें प्रेरित करती रहीं और उसका फल है कि आज उसी कार्यालय में एसडीओ के पद पर कार्य कर रहा हूं. यह एसडीओ के रूप में पहली पोस्टिंग हुई है. इसके पहले ग्रामीण विकास विभाग पटना एवं अन्य कई जगहों पर हमें अपनी सेवा देने का मौका मिला है.''
इंस्पेक्टर पिता की DSP बेटी : कुल मिलाकर देखें तो सभी माता-पिता अपने बच्चों को खुश देखना और उनके सपने को पूरा करना चाहते हैं. ऐसा ही एक वाक्या देखने को मिला था आंध्र प्रदेश में, जहां एक सर्किल इंस्पेक्टर पिता अपनी डीएसपी बेटी को सैल्यूट करते नजर आए थे. श्याम सुंदर आंध्र प्रदेश पुलिस में सर्किल इंस्पेक्टर के तौर पर तैनात हैं. उन्होंने अपनी डीएसपी बेटी येंदुरा जेसी को सैल्यूट किया था.
पिता कोर्ट में थे चपरासी, बेटी बनी जज : अर्चना कुमारी अपने पिता को गर्व महसूस करा रही हैं. जो सोनपुर रेलवे कोर्ट में चपरासी के पद पर थे. अर्चना कुमारी ने 2018 में हुई 30वीं बिहार न्यायिक सेवक परीक्षा में सफलता हासिल की थी. साल 2020 के नवंबर महीने के आखिरी हफ्ते में घोषित नतीजों में अर्चना को सामान्य श्रेणी में 227वां और ओबीसी कैटेगरी में 10वीं रैंक मिला था. अर्चना को गांव में लोग जज बिटिया बुलाते हैं. उन्होंने 6 साल की उम्र से ही जज बनने का सपना था जिसे पूरा करने में उनके पिता और पति ने साथ दिया.
पिता ने बेटी को दी थी सलामी : दीक्षा ने आईटीबीपी में बतौर असिस्टेंट कमांडेंट ज्वॉइन किया था. आईटीबीपी अकादमी, मसूरी में पासिंग आउट परेड और सत्यापन समारोह के बाद उनके पिता ने उन्हें सलामी दी थी. दीक्षा के पिता कमलेश कुमार इंस्पेक्टर हैं. दीक्षा मूल रूप से उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के पछायगांव की रहने वाली हैं. दीक्षा के पिता कमलेश कुमार आईटीबीपी पिथौरागढ़ उत्तराखंड में इंस्पेक्टर के पद पर तैनात हैं.
विश्वसनीय खबरों को देखने के लिए डाउनलोड करें ETV BHARAT APP