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गोपालगंज: लालू के घर में जीत की चुनौती, NDA ने भी नए प्रत्याशी पर खेला दांव

गोपालगंज को लालू यादव का गढ़ माना जाता है. गोपालगंज संसदीय क्षेत्र में भूमिहार, ब्राह्मण, यादव, मुस्लिम, वैश्य, कुर्मी, कुशवाहा और महादलितों की आबादी है. इसबार यहां का मुकाबला दिलचस्प है.

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Published : May 10, 2019, 2:49 PM IST

गोपालगंज: 2 अक्टूबर 1973 को सारण से अलग होकर गोपालगंज जिले का गठन हुआ. ये उत्तर बिहार और उत्तर प्रदेश का सीमावर्ती जिला है. यह आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव का गृह जिला भी है.
गंडक नदी के पश्चिमी तट पर बसा यह भोजपुरी भाषी इलाका गन्ने के उत्पादन के लिए मशहूर है. थावे स्थित दुर्गा मंदिर और दिघवा दुबौली यहां के प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं. गोपालगंज मध्यकाल में चेर राजाओं और अंग्रेजों के समय हथुआ राज का केंद्र रहा.

गोपालगंज का किंग कौन?

गोपालगंज संसदीय क्षेत्र में 6 विधानसभा सीट
गोपालगंज संसदीय क्षेत्र एससी वर्ग के लिए सुरक्षित है. इस संसदीय क्षेत्र में कुल छह विधानसभा बैकुंठपुर, बरौली, गोपालगंज, कुचायकोट, भोरे और हथुआ शामिल है. इनमें भोरे सुरक्षित क्षेत्र है. नए परिसीमन में गोपालगंज के दो विधानसभा क्षेत्रों कटैया और मीरगंज का अस्तित्व खत्म हो गया और कुचायकोट और हथुआ नए विधानसभा क्षेत्रों का गठन हुआ.

जिले में 18 लाख से ज्यादा वोटर्स
गोपालगंज संसदीय क्षेत्र में कुल 18 लाख 32 हजार 200 वोटर्स है. इनमें से 9 लाख 36 हजार 334 पुरुष वोटर हैं. 8 लाख 95 हजार 787 महिला वोटर्स की संख्या है. थर्ड जेंडर के कुल 79 मतदाता भी हैं.

गोपालगंज में ब्राह्मणों की बड़ी तादाद
एससी वर्ग के लिए सुरक्षित गोपालगंज संसदीय क्षेत्र में भूमिहार, ब्राह्मण, यादव, मुस्लिम, वैश्य, कुर्मी, कुशवाहा और महादलितों की आबादी है. चुनाव के दौरान इन जातियों की गोलबंदी परिणामों में अहम किरदार अदा करती है. यहां कभी मंडल-कमंडल और बोफोर्स घोटाले जैसे मुद्दों पर मतदाताओं का ध्रुवीकरण हुआ करता था. छह विधानसभा क्षेत्र वाली इस संसदीय सीट पर ब्राह्मणों की बड़ी तादाद है, और इस वजह से यहां मुकाबला काफी दिलचस्प है.

2014 में बीजेपी ने दर्ज की जीत
2014 के 16वें लोकसभा चुनाव में गोपालगंज से बीजेपी के जनक राम को जीत मिली थी. उन्हें कुल 4 लाख 78 हजार 773 वोट मिले थे. जनक राम ने अपनी विरोधी कांग्रेस उम्मीदवार डॉक्टर ज्योति भारती को 2 लाख 86 हजार 937 वोटों से हराया था. दूसरे नंबर पर रही कांग्रेस उम्मीदवार को 1 लाख 91 हजार 837 वोट मिले थे. बीजेपी के जनक राम ने ज्योति भारती से दोगुने से भी ज्यादा वोटों के अंतर से जीत दर्ज की थी.

संसद में जनक राम का रिपोर्ट कार्ड औसत
मौजूदा बीजेपी सांसद जनक राम का संसद में रिपोर्ट कार्ड औसत रहा है. उन्होंने 16वीं लोकसभा के दौरान संसद में महज 15 बहसों में हिस्सा लिया. जनक राम ने सदन के पटल पर कई मुद्दों से जुड़े 113 सवाल पूछे. 5 साल में वो सदन में एक भी प्राइवेट मेंबर बिल नहीं ला सके. हालांकि सांसद निधि खर्च करने के मामले में जनक राम सौ फीसदी राशि खर्च करने का दावा करते नजर आए.

आदर्श ग्राम में नहीं हुआ विकास का काम
सांसद बनते ही जनक राम ने जिला मुख्यालय से 42 किलोमीटर दूर स्वतंत्रता सेनानी शिवम तिवारी के पैतृक गांव बनकटी को आदर्श ग्राम के तहत गोद लिया. ग्रामीणों को गांव के विकास की उम्मीद जगी थी, लेकिन सारी उम्मीदें धरी की धरी रह गईं. लोगों का कहना है कि सांसद बनने के बाद से जनक राम इलाके में नजर ही नहीं आए. विकास का कोई भी काम नहीं हुआ.

सांसद की वादाखिलाफी से ग्रामीण नाराज
जिस स्वतंत्रता सेनानी के नाम पर गांव को गोद लिया गया, वहां आज भी उनके घर के पास पक्की सड़क तक नहीं बन सकी. गली-नाली, शौचालय और मूलभूत सुविधाओं की कमी आज भी बरकरार है. नाराज ग्रामीण कहते हैं कि स्वर्ग बनाने के नाम पर गांव को गोद लिया था, स्वर्ग तो दूर बनकटी नर्क बन गया है. आदर्श ग्राम की बदहाल स्थिति को लेकर पूछे गए सवाल को वर्तमान सांसद टाल गए और देश के कई गांव में सरकारी योजना के तहत पहुंचाए गए बिजली और पानी का गुणगान करने लगे.

चीनी मिल बंद होने से बढ़ी परेशानी
गन्ने की मिठास के लिए मशहूर गोपालगंज में किसानों के लिए चीनी मिल कमाई का बेहतर जरिया थीं, लेकिन वर्तमान में सिर्फ तीन ही चीनी मिलें चल रही हैं. हथुआ चीनी मिल तो 1996 से ही बंद है. हर चुनाव में हथुआ मिल को शुरू कराने का मुद्दा उठाया जाता है, लेकिन अब तक धरातल पर कुछ उतर नहीं सका है. गन्ने की मिठास फीकी हुई तो लोगों ने रोजगार के लिए दूसरे राज्यों और खाड़ी देशों का रूख किया जिसकी वजह से जिले में विदेशी धन का आना शुरू हुआ. इसके अलावा गंडक नदी में आने वाली बाढ़ और कटाव से यहां के लोग परेशान रहते हैं. जिले के कई हिस्सों में बुनियादी सुविधाओं की घोर कमी देखी जा सकती है.

सांसद के काम से संतुष्ट नहीं है जनता
वर्तमान सांसद अपने कार्यकाल में विकास के चाहे लाख दावे करें, लेकिन स्थानीय जनता उन दावों से इत्तेफाक नहीं रखती. ज्यादातर लोगों का कहना है कि वे वर्तमान सांसद के कामकाज से वो संतुष्ट नहीं हैं. सांसद सिर्फ चुनाव के समय ही नजर आए और उसके बाद लोगों ने उन्हें कभी नहीं देखा. लोगों ने वर्तमान सांसद पर कई तरह के आरोप लगाकर उन्हें सत्ता से बेदखल करने और नए जनप्रतिनिधि को मौका देने की बात कही. नाराजगी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि लोग यहां तक कहते नजर आए कि इस बार जब वोट मांगने आएंगे तब उन्हें काला झंडा दिखाकर विदा कर दिया जाएगा.

जेडीयू-आरजेडी में आमने-सामने की टक्कर
2014 की तरह इस बार भी चुनाव में आमने-सामने की लड़ाई के आसार नजर आ रहे हैं. एनडीए से जदयू प्रत्याशी डॉ. आलोक सुमन चुनावी मैदान में हैं तो महागठबंधन से राजद प्रत्याशी सुरेन्द्र राम चुनाव लड़ रहे हैं. दोनों ही प्रत्याशी पहली बार चुनावी मैदान में अपनी किस्मत आजमा रहे हैं.

एनडीए ने आशोक सुमन को बनाया उम्मीदवार
2019 के नए राजनीतिक समीकरणों में गोपालगंज सीट जेडीयू के खाते में गई है. पार्टी ने इस बार डॉ. आलोक सुमन को चुनावी मैदान में उतारा है. नामांकन करने के बाद डॉ सुमन ने कहा कि बाढ़ यहां की प्रमुख समस्या है. अगर जनता उन्हें मौका देती है तो वे सबसे पहले इसे दूर करने की कोशिश करेंगे. वहीं, दूसरे मुद्दों पर उन्होंने जनता के बीच जाकर चर्चा करने की बात कही.

महागठबंधन ने सुरेंद्र राम को मैदान में उतारा
वहीं, महागठबंधन की ओर से मैदान में उतारे गए आरजेडी के सुरेंद्र राम ने ताल ठोकते हुए जीत का दावा किया है. उन्होंने कहा कि क्षेत्र में शिक्षा और स्वास्थ्य में सुधार उनकी पहली प्राथमिकता होगी और मुझे पूरा विश्वास है कि जनता का आशीर्वाद उन्हें ही हासिल होगा.

दिलचस्प है इस बार की लड़ाई
बिहार की सियासत में अहम किरदार निभाने वाले गोपालगंज जिले ने सूबे को 3 मुख्यमंत्री दिए हैं. वहीं, 1980 के बाद जनता ने किसी भी सांसद को दोबारा संसद नहीं भेजा. लेकिन अब यह देखना दिलचस्प होगा कि 2019 के रण में किसे हार का मुंह देखना पड़ता है और जीत का सेहरा किसके सिर सजता है.

गोपालगंज: 2 अक्टूबर 1973 को सारण से अलग होकर गोपालगंज जिले का गठन हुआ. ये उत्तर बिहार और उत्तर प्रदेश का सीमावर्ती जिला है. यह आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव का गृह जिला भी है.
गंडक नदी के पश्चिमी तट पर बसा यह भोजपुरी भाषी इलाका गन्ने के उत्पादन के लिए मशहूर है. थावे स्थित दुर्गा मंदिर और दिघवा दुबौली यहां के प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं. गोपालगंज मध्यकाल में चेर राजाओं और अंग्रेजों के समय हथुआ राज का केंद्र रहा.

गोपालगंज का किंग कौन?

गोपालगंज संसदीय क्षेत्र में 6 विधानसभा सीट
गोपालगंज संसदीय क्षेत्र एससी वर्ग के लिए सुरक्षित है. इस संसदीय क्षेत्र में कुल छह विधानसभा बैकुंठपुर, बरौली, गोपालगंज, कुचायकोट, भोरे और हथुआ शामिल है. इनमें भोरे सुरक्षित क्षेत्र है. नए परिसीमन में गोपालगंज के दो विधानसभा क्षेत्रों कटैया और मीरगंज का अस्तित्व खत्म हो गया और कुचायकोट और हथुआ नए विधानसभा क्षेत्रों का गठन हुआ.

जिले में 18 लाख से ज्यादा वोटर्स
गोपालगंज संसदीय क्षेत्र में कुल 18 लाख 32 हजार 200 वोटर्स है. इनमें से 9 लाख 36 हजार 334 पुरुष वोटर हैं. 8 लाख 95 हजार 787 महिला वोटर्स की संख्या है. थर्ड जेंडर के कुल 79 मतदाता भी हैं.

गोपालगंज में ब्राह्मणों की बड़ी तादाद
एससी वर्ग के लिए सुरक्षित गोपालगंज संसदीय क्षेत्र में भूमिहार, ब्राह्मण, यादव, मुस्लिम, वैश्य, कुर्मी, कुशवाहा और महादलितों की आबादी है. चुनाव के दौरान इन जातियों की गोलबंदी परिणामों में अहम किरदार अदा करती है. यहां कभी मंडल-कमंडल और बोफोर्स घोटाले जैसे मुद्दों पर मतदाताओं का ध्रुवीकरण हुआ करता था. छह विधानसभा क्षेत्र वाली इस संसदीय सीट पर ब्राह्मणों की बड़ी तादाद है, और इस वजह से यहां मुकाबला काफी दिलचस्प है.

2014 में बीजेपी ने दर्ज की जीत
2014 के 16वें लोकसभा चुनाव में गोपालगंज से बीजेपी के जनक राम को जीत मिली थी. उन्हें कुल 4 लाख 78 हजार 773 वोट मिले थे. जनक राम ने अपनी विरोधी कांग्रेस उम्मीदवार डॉक्टर ज्योति भारती को 2 लाख 86 हजार 937 वोटों से हराया था. दूसरे नंबर पर रही कांग्रेस उम्मीदवार को 1 लाख 91 हजार 837 वोट मिले थे. बीजेपी के जनक राम ने ज्योति भारती से दोगुने से भी ज्यादा वोटों के अंतर से जीत दर्ज की थी.

संसद में जनक राम का रिपोर्ट कार्ड औसत
मौजूदा बीजेपी सांसद जनक राम का संसद में रिपोर्ट कार्ड औसत रहा है. उन्होंने 16वीं लोकसभा के दौरान संसद में महज 15 बहसों में हिस्सा लिया. जनक राम ने सदन के पटल पर कई मुद्दों से जुड़े 113 सवाल पूछे. 5 साल में वो सदन में एक भी प्राइवेट मेंबर बिल नहीं ला सके. हालांकि सांसद निधि खर्च करने के मामले में जनक राम सौ फीसदी राशि खर्च करने का दावा करते नजर आए.

आदर्श ग्राम में नहीं हुआ विकास का काम
सांसद बनते ही जनक राम ने जिला मुख्यालय से 42 किलोमीटर दूर स्वतंत्रता सेनानी शिवम तिवारी के पैतृक गांव बनकटी को आदर्श ग्राम के तहत गोद लिया. ग्रामीणों को गांव के विकास की उम्मीद जगी थी, लेकिन सारी उम्मीदें धरी की धरी रह गईं. लोगों का कहना है कि सांसद बनने के बाद से जनक राम इलाके में नजर ही नहीं आए. विकास का कोई भी काम नहीं हुआ.

सांसद की वादाखिलाफी से ग्रामीण नाराज
जिस स्वतंत्रता सेनानी के नाम पर गांव को गोद लिया गया, वहां आज भी उनके घर के पास पक्की सड़क तक नहीं बन सकी. गली-नाली, शौचालय और मूलभूत सुविधाओं की कमी आज भी बरकरार है. नाराज ग्रामीण कहते हैं कि स्वर्ग बनाने के नाम पर गांव को गोद लिया था, स्वर्ग तो दूर बनकटी नर्क बन गया है. आदर्श ग्राम की बदहाल स्थिति को लेकर पूछे गए सवाल को वर्तमान सांसद टाल गए और देश के कई गांव में सरकारी योजना के तहत पहुंचाए गए बिजली और पानी का गुणगान करने लगे.

चीनी मिल बंद होने से बढ़ी परेशानी
गन्ने की मिठास के लिए मशहूर गोपालगंज में किसानों के लिए चीनी मिल कमाई का बेहतर जरिया थीं, लेकिन वर्तमान में सिर्फ तीन ही चीनी मिलें चल रही हैं. हथुआ चीनी मिल तो 1996 से ही बंद है. हर चुनाव में हथुआ मिल को शुरू कराने का मुद्दा उठाया जाता है, लेकिन अब तक धरातल पर कुछ उतर नहीं सका है. गन्ने की मिठास फीकी हुई तो लोगों ने रोजगार के लिए दूसरे राज्यों और खाड़ी देशों का रूख किया जिसकी वजह से जिले में विदेशी धन का आना शुरू हुआ. इसके अलावा गंडक नदी में आने वाली बाढ़ और कटाव से यहां के लोग परेशान रहते हैं. जिले के कई हिस्सों में बुनियादी सुविधाओं की घोर कमी देखी जा सकती है.

सांसद के काम से संतुष्ट नहीं है जनता
वर्तमान सांसद अपने कार्यकाल में विकास के चाहे लाख दावे करें, लेकिन स्थानीय जनता उन दावों से इत्तेफाक नहीं रखती. ज्यादातर लोगों का कहना है कि वे वर्तमान सांसद के कामकाज से वो संतुष्ट नहीं हैं. सांसद सिर्फ चुनाव के समय ही नजर आए और उसके बाद लोगों ने उन्हें कभी नहीं देखा. लोगों ने वर्तमान सांसद पर कई तरह के आरोप लगाकर उन्हें सत्ता से बेदखल करने और नए जनप्रतिनिधि को मौका देने की बात कही. नाराजगी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि लोग यहां तक कहते नजर आए कि इस बार जब वोट मांगने आएंगे तब उन्हें काला झंडा दिखाकर विदा कर दिया जाएगा.

जेडीयू-आरजेडी में आमने-सामने की टक्कर
2014 की तरह इस बार भी चुनाव में आमने-सामने की लड़ाई के आसार नजर आ रहे हैं. एनडीए से जदयू प्रत्याशी डॉ. आलोक सुमन चुनावी मैदान में हैं तो महागठबंधन से राजद प्रत्याशी सुरेन्द्र राम चुनाव लड़ रहे हैं. दोनों ही प्रत्याशी पहली बार चुनावी मैदान में अपनी किस्मत आजमा रहे हैं.

एनडीए ने आशोक सुमन को बनाया उम्मीदवार
2019 के नए राजनीतिक समीकरणों में गोपालगंज सीट जेडीयू के खाते में गई है. पार्टी ने इस बार डॉ. आलोक सुमन को चुनावी मैदान में उतारा है. नामांकन करने के बाद डॉ सुमन ने कहा कि बाढ़ यहां की प्रमुख समस्या है. अगर जनता उन्हें मौका देती है तो वे सबसे पहले इसे दूर करने की कोशिश करेंगे. वहीं, दूसरे मुद्दों पर उन्होंने जनता के बीच जाकर चर्चा करने की बात कही.

महागठबंधन ने सुरेंद्र राम को मैदान में उतारा
वहीं, महागठबंधन की ओर से मैदान में उतारे गए आरजेडी के सुरेंद्र राम ने ताल ठोकते हुए जीत का दावा किया है. उन्होंने कहा कि क्षेत्र में शिक्षा और स्वास्थ्य में सुधार उनकी पहली प्राथमिकता होगी और मुझे पूरा विश्वास है कि जनता का आशीर्वाद उन्हें ही हासिल होगा.

दिलचस्प है इस बार की लड़ाई
बिहार की सियासत में अहम किरदार निभाने वाले गोपालगंज जिले ने सूबे को 3 मुख्यमंत्री दिए हैं. वहीं, 1980 के बाद जनता ने किसी भी सांसद को दोबारा संसद नहीं भेजा. लेकिन अब यह देखना दिलचस्प होगा कि 2019 के रण में किसे हार का मुंह देखना पड़ता है और जीत का सेहरा किसके सिर सजता है.

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