गोपालगंजः स्कूल-कॉलेज की डिग्री तो कोरा कागज के समान है अगर नैतिक ज्ञान नहीं हो. इस लाइन को बिहार के गोपालगंज निवासी विश्वनाथ प्रसाद ने साबित कर दिया है. विश्वनाथ प्रसाद आज हजारों बच्चों की पढ़ाई का जरिया हैं. जिले के मांझागढ़ प्रखंड के लंगटू हाता गांव निवासी 70 वर्षीय विश्वनाथ प्रसाद की कहानी काफी दिलचस्प हैं.
शिक्षा का अलख जगा रहे विश्वनाथ प्रसादः दरअसल, कई ऐसे दानदाताओं के बारे में सुना होगा, जो कई तरह के दान-पुण्य करते हैं, लेकिन कुछ ऐसे ही बिरले हैं, जो खुद के हिस्से की करोड़ों रुपए की जमीन दानकर खुद भूमिहीन बन जाते हैं. विश्वनाथ प्रसाद ने न सिर्फ अपनी करोड़ों की जमीन स्कूल के नाम कर दी, बल्कि स्कूल के बच्चों में प्रेरणा भरने और उनकी पढ़ाई लिखाई में देखभाल करने का भी बीड़ा उठाया है.
"पढ़ाई का महत्व क्या होता है, इसका मैंने जीवन में अनुभव किया है. बच्चों को खुले मैदान के नीचे पढ़ते देख काफी पीड़ा होती थी. इसीलिए अपनी जमीन दान कर दी. इस बात की खुशी है कि गांव के बच्चे अच्छी तरह से पढ़ाई कर रहे हैं. मेरी जो तमन्ना थी वह पूरी हो गई है." -विश्वनाथ प्रसाद, जमीनदाता
10वीं तक पढ़ाई की है विश्वनाथ प्रसादः विश्वनाथ प्रसाद खाली समय में स्कूल में आकर बच्चों के बीच जागरूकता भी फैलाते हैं और स्कूल की देखभाल करते हैं. ईटीवी भारत की टीम ने स्कूल पहुंचकर जायजा लिया और जमीनदाता विश्वनाथ प्रसाद ने बात की. उन्होंने बताया कि आर्थिक स्थिति सही नहीं होने के कारण वे दसवीं तक ही पढ़ाई कर पाए और इसके आगे पढ़ाई नहीं कर सके.
पिता की मौत के बाद घर संभालाः आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण पढ़ाई बीच में ही छोड़ कर खेती में पिता का हाथ बंटाने लगे. खेती कर परिवार का भरण पोषण में लग गए, इसके बावजूद पढ़ाई के प्रति रुचि कम नहीं हुई. इसी बीच पिता की मौत हो गई और पूरे परिवार की जिम्मेदारी विश्वनाथ के कंधों पर आ गई. इसके बाद वे दोबारा पढ़ाई करने के बारे में सोच भी नहीं सके.
खुले में बच्चों को पढ़ाई करते देखा थाः विश्वनाथ प्रसाद बताते हैं कि वर्ष 2006 में खुले आसमान के नीचे बच्चों को पढ़ाई करते देखा तो काफी पीड़ा हुई. मांझा के पुरानी बाजार के सामुदायिक भवन में चल रहे स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों के सामने काफी समस्या थी. एक दिन जर्जर सामुदायिक भवन का हिस्सा टूट कर गिर गया. भवन ढहने के बाद खुले आसमान के नीचे कक्षा चलती थी. उस वक्त भवन निर्माण के लिए जमीन दाता की तलाश की जा रही थी.
परिवार के लोगों ने किया था विरोधः पुरानी बाजार की जमीन महंगी होने के कारण कोई भी इसके लिए आगे नहीं आया. विश्वनाथ प्रसाद को जब इसके बारे में पता चला तो वे अपनी जमीन दान करने के लिए तैयार हुए, लेकिन यह आसान नहीं था. जैसे ही इसकी जानकारी बेटा और पत्नी को हुई घर में विवाद होने लगा. भला कोई करोड़ों रुपए की जमीन क्यों दान में दे देगा? कई लोगों ने विश्वनाथ प्रसाद को नासमझ समझा था.
घर वालों के विरोध के बावजूद जमीन दान कीः स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों की परेशानी को देखते हुए विश्वनाथ अपनी जमीन दान करने का निर्णय ले चुके थे. घर वालों के विरोध के बावजूद उन्होंने अपनी एक करोड़ रुपए की जमीन स्कूल के नाम पर दान कर दी. इस जमीन पर उत्क्रमित मध्य विद्यालय लंगटुहाता का भवन बनाया गया. वर्तमान में यहां रोज करीब आठ सौ बच्चे पढ़ाई करते हैं. अब यहां प्लस टू तक की पढ़ाई होती है.
अब गांव के लोग कर रहे सराहनाः विश्वनाथ बताते हैं कि जमीन दान करने के बाद काफी दिनों तक घर में विवाद होते रहा, लेकिन धीरे-धीरे इनके परिवार और समाज के लोगों के बीच एक सकारात्मक भावना जगी. आज वही घर वाले और गांव के लोग इनके काम की सराहना कर रहे हैं.
घर में अकेले रहते हैं विश्वनाथः विश्वनाथ बताते हैं कि उन्हें एक बेटा और बेटी है. दोनों की शादी हो चुकी है. 2009 में ब्लड कैंसर के कारण पत्नी की मौत हो गई थी. बेटा बचपन से ही अपने मामा के घर रहकर व्यवसाय करता है. उसकी पत्नी भी वहीं साथ में रहती है. समय समय पर मेरे पास आकर मिलता-जुलता है. विश्वनाथ अकेले ही अपने घर में रहकर जिंदगी गुजार रहे हैं.
यह भी पढ़ेंः
- गया के जंगल में गोलघर बनाकर शिक्षा का अलख जगा रहे पति-पत्नी, गुरुकुल की तर्ज पर दी जा रही शिक्षा
- झोपड़पट्टी के बच्चों के बीच शिक्षा का अलख जगाने वाली छपरा की ममता को राष्ट्रपति ने दिया पुरस्कार
- दोस्ती हो तो ऐसी: जहां जलती हैं चिताएं, वहां जल रहा है शिक्षा का अलख
- अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवसः जज्बे को सलाम, वर्षों से स्लम बस्ती में शिक्षा का अलख जगा रही कांति