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Flood Erosion In Gopalganj: जिन हाथों से बनाया घर, उन्हीं हाथों से उजाड़ रहे आशियाने - Gopalganj flood

गोपालगंज में बाढ़ से सहमे स्थानीय खुद ही अपना आशियाना तोड़ने को मजबूर हैं. कहीं मकान गिर ना जाए, घरों में बाढ़ का पानी प्रवेश ना कर जाए. इस कारण लोग खुद अपने हाथों से बनाए मकान को उन्हीं हाथों से उजाड़ रहे हैं.

कटाव की कसक
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Published : Aug 3, 2021, 9:04 PM IST

गोपालगंज: अपना आशियाना तोड़ने का दर्द गोपालगंज (Gopalganj) के निमुईया गांव के लोग ही बता सकते हैं. मांझी प्रखंड (Manjhi Block) के लोगों को गंडक नदी (Gandak River) से हो रही तबाही का डर सता रहा है. डर के मारे वे अपने घरों के एक-एक ईंट को निकाल रहे हैं. यह कोई एक घर का बात नहीं है. ऐसा दर्द सैंकड़ों लोगों ने चंद दिनों में ही झेल लिया है. जिस तरह से एक-एक ईंट जोड़ कर घर बनाया था, वैसे ही एक-एक ईंट को निकाल रहे हैं. ताकि किसी दूसरे जगह आशियाना बसा सकें.

यह भी पढ़ें- VIDEO: पटना में बाढ़ का खतरा, प्रतिघंटे 1 सेंटीमीटर की रफ्तार से बढ़ रहा गंगा का जलस्तर

घरों को तबाह होता, पानी में डूबने देखने से अच्छा है कि लोग उसे तोड़ कर उन ईंटों का इस्तेमाल दूसरे घर बनाने में कर लें. इस कारण लोग पलायन तो कर रहे हैं, लेकिन घर के ईंट को ले जा रहे हैं. बता दें कि हर साल इस तरह की बाढ़ आती है. फिलहाल उत्तर बिहार में लाखों की आबादी बाढ़ का कहर झेल रही है.

देखें वीडियो

बाढ़ पीड़ितों का कहना है कि हर साल बाढ़ की विभीषिका का हम लोग शिकार होते हैं. हर साल हमारे खेतों में लगे फसल बर्बाद होते हैं. काफी मेहनत और खर्च कर अपना मकान बनाते हैं, लेकिन बाढ़ सब बर्बाद कर देता है. बाढ़ एक बार फिर दस्तक देगी और हमारा मकान टूटेगा. गंडक इस बार रौद्र रूप में है. लगातार कटाव हो रहा है. मकान के निर्माण में लगे ईंट, सरिया समेत कई निर्माण सामग्री बर्बाद हो जाएगी. इससे अच्छा है कि क्यों न अपने से ही मकान को तोड़ दें. जिससे कि इनमें से निकली सामग्री काम आ जाएगी.

'60 साल पूर्व जब ये घर बना था, तब मैं जवान था. इस घर को बनाने में मैने भी सहयोग किया था. लेकिन कभी यह सोचा नहीं था कि जिस घर को अपने हाथों से बनाऊंगा, उसी घर को अपनी आंखों के सामने टूटता हुआ देखूंगा. अपने हाथों से ही अपने आशियाने को उजाड़ दूंगा. यह मेरे लिए दुख की घड़ी है.' -विजय पासवान, बाढ़ पीड़ित

ईटीवी भारत GFX
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'मेरी जब शादी हुई थी, तब पहली बार मैं इस घर में कदम रखी थी. तब यह घर काफी सुंदर था. मैने कभी नहीं सोचा था कि यह घर मेरे आंखों के सामने टूटेगा. यह घर नहीं मेरा कलेजा टूट रहा है. कौन चाहता है कि अपना बना बनाया मकान तोड़ कर पलायन करे. लेकिन मजबूरी में अपना ही घर तोड़ना पड़ रहा है. सरकार बाढ़ के रोकथाम के लिए कोई स्थाई निदान नहीं निकाल रही है.' -देवकुमारी देवी, विजय पासवान की पत्नी

यह भी पढ़ें- धनरुआ के 16 पंचायतों में जलप्रलय, नहीं मिली 'बाढ़ राहत' तो हाईवे किया जाम

बाढ़ पीड़ितों के मुताबिक पिछले माह वाल्मीकि नगर बराज से छोड़े गए 4 लाख 12 हजार क्यूसेक पानी और लगातार हुई भारी बारिश से गंडक नदी उफान पर थी. जिसकी वजह से जिले के 6 पंचायत के 21 गांव बाढ़ की चपेट में आए थे. कई घर बाढ़ के पानी में समा गए.

ईटीवी भारत GFX
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कुछ दिनों के बाद नदी के जलस्तर में हुई कमी के कारण लोगों के घरों में लगे पानी निकल गए हैं. लेकिन दियारा इलाके के लोगों का डर समाप्त नहीं हुआ है. क्योंकि बाढ़ के बाद कटाव से ये भयभीत हो गए हैं. इसी कारण मकान को जिन हाथों ने संवारा, उन्हीं हाथों से अब घर को तोड़ कर लोग पलायन कर रहे हैं.

बाढ़ की त्रासदी से जिले की एक बड़ी आबादी दुश्वारियों की जिदंगी जीती रही है. कहीं मकान गिरते रहे हैं, तो कहीं घरों में बाढ़ का पानी प्रवेश कर जाने से सबकी जिदंगी नारकीय हो जाती है. ऐसे में बाढ़ से घर गिरने के बाजाये लोग अपने हाथों ही अपना आशियाना उजाड़ रहे हैं. अपना आशियाना उजाड़ते समय उन्हे परेशानी हो रही है, लेकिन उनके सामने अब दूसरा कोई विकल्प भी नहीं है.

बाढ़ से होने वाली परेशानियों को रोकने के लिए सरकार का हर साल करोड़ों रुपये खर्च होता है. जिससे ग्रामीणों को बाढ़ और उसकी कटाव से बचाया जा सके. लेकिन हर साल सरकार की यह महत्वाकांक्षी योजना अधिकारियों की लापरवाही की भेंट चढ़ जाती है.

ये भी पढ़ें: डराने लगी नदियां: गंगा के जलस्तर में लगातार वृद्धि, गंगा पथ-वे पर भी चढ़ा पानी

बिहार में बाढ़ की तबाही मुख्य तौर से नेपाल से आने वाली नदियों के कारण ही आती है. कोसी, नारायणी, कर्णाली, राप्ती, महाकाली जैसी नदियां नेपाल के बाद भारत में बहती हैं. नेपाल में जब भी भारी बारिश होती है तो इन नदियों के जलस्तर में वृद्धि हो जाती है. नेपाल में जब भी पानी का स्तर बढ़ता है वह अपने बांधों के दरवाजे खोल देता है.

इसकी वजह से नेपाल से सटे बिहार के जिलों में बाढ़ आ जाती है. बाढ़ से बचाव के लिए तटबंध बनाए गए लेकिन ये तटबंध अक्सर टूट जाते हैं. बाढ़ से 2008 में जब कुसहा तटबंध टूटा था तो करीब 35 लाख की आबादी इससे प्रभावित हुई थी और करीब चार लाख मकान तबाह हो गए थे.

विशेष रूप से अगर कोसी नदी की बात करें तो लंबे समय से कोसी अपना रास्ता बदल रही है. अब तक कम से कम 20 बार अपना रास्ता बदल चुकी है. जिसकी वजह से पूरा मिथिलांचल और सीमांचल कोसी का कहर झेलने को मजबूर होता है. हर साल हजारों लोग बाढ़ की वजह से बेघर हो जाते हैं और उनके पास सरकारी मदद मिलने तक कोई और उपाय नहीं होता.

बाढ़ नियंत्रण रिपोर्ट के मुताबिक, इस बर्बादी को रोका जा सकता है. एक और रिपोर्ट के मुताबिक बिहार में बाढ़ की बर्बादी रोकी जा सकती है. अगर पानी को जल्द समुद्र में ले जाया सके, लेकिन यह तभी संभव है जब पानी के रास्ते में आने वाली रुकावट की सभी चीजों को हटा दिया जाए. विशेष रूप से बांध पानी के बहाव को रोकने की बड़ी वजह है. यही वजह है कि बांध बिहार में बर्बादी का एक बड़ा सबब है.

यह भी पढ़ें- धनरूआ में हर साल टूटता है तटबंध, मरम्मती के नाम पर लापरवाही, ग्रामीणों मे आक्रोश

गोपालगंज: अपना आशियाना तोड़ने का दर्द गोपालगंज (Gopalganj) के निमुईया गांव के लोग ही बता सकते हैं. मांझी प्रखंड (Manjhi Block) के लोगों को गंडक नदी (Gandak River) से हो रही तबाही का डर सता रहा है. डर के मारे वे अपने घरों के एक-एक ईंट को निकाल रहे हैं. यह कोई एक घर का बात नहीं है. ऐसा दर्द सैंकड़ों लोगों ने चंद दिनों में ही झेल लिया है. जिस तरह से एक-एक ईंट जोड़ कर घर बनाया था, वैसे ही एक-एक ईंट को निकाल रहे हैं. ताकि किसी दूसरे जगह आशियाना बसा सकें.

यह भी पढ़ें- VIDEO: पटना में बाढ़ का खतरा, प्रतिघंटे 1 सेंटीमीटर की रफ्तार से बढ़ रहा गंगा का जलस्तर

घरों को तबाह होता, पानी में डूबने देखने से अच्छा है कि लोग उसे तोड़ कर उन ईंटों का इस्तेमाल दूसरे घर बनाने में कर लें. इस कारण लोग पलायन तो कर रहे हैं, लेकिन घर के ईंट को ले जा रहे हैं. बता दें कि हर साल इस तरह की बाढ़ आती है. फिलहाल उत्तर बिहार में लाखों की आबादी बाढ़ का कहर झेल रही है.

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बाढ़ पीड़ितों का कहना है कि हर साल बाढ़ की विभीषिका का हम लोग शिकार होते हैं. हर साल हमारे खेतों में लगे फसल बर्बाद होते हैं. काफी मेहनत और खर्च कर अपना मकान बनाते हैं, लेकिन बाढ़ सब बर्बाद कर देता है. बाढ़ एक बार फिर दस्तक देगी और हमारा मकान टूटेगा. गंडक इस बार रौद्र रूप में है. लगातार कटाव हो रहा है. मकान के निर्माण में लगे ईंट, सरिया समेत कई निर्माण सामग्री बर्बाद हो जाएगी. इससे अच्छा है कि क्यों न अपने से ही मकान को तोड़ दें. जिससे कि इनमें से निकली सामग्री काम आ जाएगी.

'60 साल पूर्व जब ये घर बना था, तब मैं जवान था. इस घर को बनाने में मैने भी सहयोग किया था. लेकिन कभी यह सोचा नहीं था कि जिस घर को अपने हाथों से बनाऊंगा, उसी घर को अपनी आंखों के सामने टूटता हुआ देखूंगा. अपने हाथों से ही अपने आशियाने को उजाड़ दूंगा. यह मेरे लिए दुख की घड़ी है.' -विजय पासवान, बाढ़ पीड़ित

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'मेरी जब शादी हुई थी, तब पहली बार मैं इस घर में कदम रखी थी. तब यह घर काफी सुंदर था. मैने कभी नहीं सोचा था कि यह घर मेरे आंखों के सामने टूटेगा. यह घर नहीं मेरा कलेजा टूट रहा है. कौन चाहता है कि अपना बना बनाया मकान तोड़ कर पलायन करे. लेकिन मजबूरी में अपना ही घर तोड़ना पड़ रहा है. सरकार बाढ़ के रोकथाम के लिए कोई स्थाई निदान नहीं निकाल रही है.' -देवकुमारी देवी, विजय पासवान की पत्नी

यह भी पढ़ें- धनरुआ के 16 पंचायतों में जलप्रलय, नहीं मिली 'बाढ़ राहत' तो हाईवे किया जाम

बाढ़ पीड़ितों के मुताबिक पिछले माह वाल्मीकि नगर बराज से छोड़े गए 4 लाख 12 हजार क्यूसेक पानी और लगातार हुई भारी बारिश से गंडक नदी उफान पर थी. जिसकी वजह से जिले के 6 पंचायत के 21 गांव बाढ़ की चपेट में आए थे. कई घर बाढ़ के पानी में समा गए.

ईटीवी भारत GFX
ईटीवी भारत GFX

कुछ दिनों के बाद नदी के जलस्तर में हुई कमी के कारण लोगों के घरों में लगे पानी निकल गए हैं. लेकिन दियारा इलाके के लोगों का डर समाप्त नहीं हुआ है. क्योंकि बाढ़ के बाद कटाव से ये भयभीत हो गए हैं. इसी कारण मकान को जिन हाथों ने संवारा, उन्हीं हाथों से अब घर को तोड़ कर लोग पलायन कर रहे हैं.

बाढ़ की त्रासदी से जिले की एक बड़ी आबादी दुश्वारियों की जिदंगी जीती रही है. कहीं मकान गिरते रहे हैं, तो कहीं घरों में बाढ़ का पानी प्रवेश कर जाने से सबकी जिदंगी नारकीय हो जाती है. ऐसे में बाढ़ से घर गिरने के बाजाये लोग अपने हाथों ही अपना आशियाना उजाड़ रहे हैं. अपना आशियाना उजाड़ते समय उन्हे परेशानी हो रही है, लेकिन उनके सामने अब दूसरा कोई विकल्प भी नहीं है.

बाढ़ से होने वाली परेशानियों को रोकने के लिए सरकार का हर साल करोड़ों रुपये खर्च होता है. जिससे ग्रामीणों को बाढ़ और उसकी कटाव से बचाया जा सके. लेकिन हर साल सरकार की यह महत्वाकांक्षी योजना अधिकारियों की लापरवाही की भेंट चढ़ जाती है.

ये भी पढ़ें: डराने लगी नदियां: गंगा के जलस्तर में लगातार वृद्धि, गंगा पथ-वे पर भी चढ़ा पानी

बिहार में बाढ़ की तबाही मुख्य तौर से नेपाल से आने वाली नदियों के कारण ही आती है. कोसी, नारायणी, कर्णाली, राप्ती, महाकाली जैसी नदियां नेपाल के बाद भारत में बहती हैं. नेपाल में जब भी भारी बारिश होती है तो इन नदियों के जलस्तर में वृद्धि हो जाती है. नेपाल में जब भी पानी का स्तर बढ़ता है वह अपने बांधों के दरवाजे खोल देता है.

इसकी वजह से नेपाल से सटे बिहार के जिलों में बाढ़ आ जाती है. बाढ़ से बचाव के लिए तटबंध बनाए गए लेकिन ये तटबंध अक्सर टूट जाते हैं. बाढ़ से 2008 में जब कुसहा तटबंध टूटा था तो करीब 35 लाख की आबादी इससे प्रभावित हुई थी और करीब चार लाख मकान तबाह हो गए थे.

विशेष रूप से अगर कोसी नदी की बात करें तो लंबे समय से कोसी अपना रास्ता बदल रही है. अब तक कम से कम 20 बार अपना रास्ता बदल चुकी है. जिसकी वजह से पूरा मिथिलांचल और सीमांचल कोसी का कहर झेलने को मजबूर होता है. हर साल हजारों लोग बाढ़ की वजह से बेघर हो जाते हैं और उनके पास सरकारी मदद मिलने तक कोई और उपाय नहीं होता.

बाढ़ नियंत्रण रिपोर्ट के मुताबिक, इस बर्बादी को रोका जा सकता है. एक और रिपोर्ट के मुताबिक बिहार में बाढ़ की बर्बादी रोकी जा सकती है. अगर पानी को जल्द समुद्र में ले जाया सके, लेकिन यह तभी संभव है जब पानी के रास्ते में आने वाली रुकावट की सभी चीजों को हटा दिया जाए. विशेष रूप से बांध पानी के बहाव को रोकने की बड़ी वजह है. यही वजह है कि बांध बिहार में बर्बादी का एक बड़ा सबब है.

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