गोपालगंज: बिहार के गोपालगंज जिले के सरैया वार्ड-1 में स्थित बरगद और पीपल का विशाल वृक्ष किसी आश्चर्य से कम नहीं है. भाई-बहिन के नाम से मशहूर (Bhai Bahen Tree In Gopalganj) दोनों वृक्ष स्थानीय लोगों के लिए आस्था का केन्द्र है. मान्यता है कि इस दोनों पेड़ के पत्ते और डाल तोड़ने पर व्यक्ति के साथ अनहोनी हो जाती है. दरअसल, करीब 60 साल पहले एक भाई-बहन की हादसे में मौत हो गयी. जिसके बाद परिजनों ने दोनों के शव को एकसाथ जमीन में दफना दिया. जिस जगह दोनों दफन थे, वहां से कुछ दिनों बाद एक बरगद और पीपल का वृक्ष निकल आए.
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वृक्ष को दैवीय रूप मानते हैं लोग: इस बरगद-पीपल के पेड़ को यहां के लोग भाई-बहन का दैवीय (Tree Known As brother Sister) रूप मानते हैं. पेड़ का नाम लोगों ने भाई-बहन रखा और पूजा-अर्चना शुरू कर दी. तब से लेकर आज तक पूजा करने की परिपाटी जारी है सबसे अहम बात यह है कि यहां जिसने भी सच्चे मन से मन्नते मांगी है, उसकी हर मन्नते पूरी हुई है. इस पेड़ की एक खासियत यह है कि इस पेड़ की डाली या फिर पत्ते को कोई तोड़ता है तो उसके साथ अनहोनी हो जाती है. स्थानीय लोगों के लिए यह पेड़ काफी चमत्कारिक है.
दैवीय पेड़ की यह है प्रचलित कहानी: इस पेड़ को लेकर एक प्रचलित कहानी भी है. जिसके अनुसार यहां के होटल व्यवसायी सुनील पांडेय के परिवार में एक भाई-बहन की 60 साल पहले हादसे में मौत हो गयी. परिवार के लोगो ने दोनों के शव को एकसाथ सरैया वार्ड के एक खाली जमीन में दफन कर दिया. कुछ दिन बाद ठीक उसी जगह से एक बरगद और पीपल का वृक्ष निकल आया. देखते-देखते दोनों वृक्ष काफी बड़े और विशाल हो गए. स्थानीय लोग मनाने लगे कि यह दोनों मृत भाई-बहन ने वृक्ष का रूप धारण कर लिया है.
चबूतरा बनाकर लोग करने लगे पूजा: दोनों पेड़ एकसाथ ही बड़े हुए. ऐसे में लोगों ने इसका नाम भाई-बहिन रख दिया. धीरे-धीरे लोगों ने यहां मृत भाई-बहन की फोटो रखकर पूजा करने लगे. तब से यहां हर त्यौहार और आम दिनों पर भी पूजा पाठ करने की परिपाटी शुरू हो गयी. लोगों ने विशाल पेड़ों के ईद-गिर्द चबूतरा का निर्माण कर दिया. इस बीच कुछ लोग उक्त खाली जमीन पर मकान बनाने लगे और अपनी जरूरत के हिसाब से पेड़ का डाल काट दिया. लेकिन उनके साथ कुछ अनहोनी घट गयी. जिसके बाद से लोग इसे दैवीय पेड़ मानने लगे.
"यह पेड़ भाई-बहिन के नाम से मशहूर है. करीब 60 साल पहले एक भाई-बहन की हादसे में मौत हो गयी थी. दोनों के शव को जमीन में दफन कर दिया गया. जहां से एक पीपल और बरगद का पेड़ उग गया. लोगों ने पेड़ को भाई-बहन का दैवीय रूप मानकर पूजा-अर्चना करने लगे. यहां सच्चे मन से जो भी मांगा जाता है, उसकी मन्नत पूरी होती है" -विश्वजीत कुमार, स्थानीय रहवासी