गोपालगंज: लोकसभा चुनाव 2019 का महासंग्राम अपने पूरे उफान पर है. वहीं, बिहार की राजनीति के योद्धा माने जाने वाले लालू यादव इस बार जनता के बीच नहीं है. उनको लेकर आरजेडी से कई बार ये प्रतिक्रिया भी आई कि लालू यादव की कमी खल रही है. लेकिन कोई और भी है जो आज लालू के बिना सूना है. जिसकी हैसियत कभी पटना के एक अणे मार्ग से बढ़कर थी.
'तुम बिन सूना लगता है, जग सूना लगता है'. कुछ यही बयां कर रहा है गोपालगंज का फुलवरिया गांव. ईटीवी भारत के संवाददाता जब इस गांव में पहुंचे, तो यहां वो रौनक नहीं दिखाई दी जो पिछले लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव में दिखाई देती थी. राजद सुप्रीमो लालू यादव के जेल जाने के बाद से इस गांव की रौनक फीकी सी हो गई है. लालू के पैतृक गांव के लोग आज भी उनके इंतजार में टकटकी लगाए हुए हैं.
आशीर्वाद से बने कई बड़े नेता
गोपालगंज का फुलवरिया गांव बिहार ही नहीं, केंद्र की राजनीति में भी दो दशक तक छाया रहा है. 1989 से लेकर 2005 तक फुलवरिया की हैसियत पटना के एक अणे मार्ग से कम नहीं थी. फुलवरिया में सियासत के कई बड़े नेता सिर झुकाते थे. टिकट की मांग के लिए हो या पार्टी में शामिल होने के लिए इसी गांव में आकर लालू के सामने हाजिरी लगाते थे. मगर आज ये लालू की फुलवरिया सूनी पड़ी है.
हमारे बीच हैं लालू...
हालांकि, फुलवरिया गांव के कुछ लोग ऐसे भी हैं, जिनका मानना है कि लालू आज भी हमारे बीच हैं...संवाददाता ने जब लोगों से पूछा कि लालू यादव कहां हैं, तो कुछ लोगों ने कहा कि वो कहीं गए हुए हैं. वहीं, कुछ लोगों ने कहा लालू जी भले हीं जेल में हो, लेकिन उनकी विचारधारा हमारे बीच है.
अब नहीं होता कोई काम
वहीं, कुछ ने विकास को लेकर बताया कि लालू जी हमारे गांव के हैं, उनके रहने से हमारा गांव भी विकास के मामले में आगे था. मगर उनके जाते ही पूरा गांव मूलभूत सुविधाओं को लेकर तरस रहा है. उनके समय की बनवाई गईं सड़कें आज मरम्मत की राह देख रही हैं.