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नीतीश बाबू जरा इधर भी देखिए, बच्चे तबेले में पढ़ेंगे तो आगे कैसे बढ़ेंगे?

पांचवी क्लास की छात्रा बताती है कि बारिश में स्थिति और विनाशकारी हो जाती है. छिपने को जगह नहीं मिलती. साथ ही हर ओर कीचड़ और दलदल हो जाता है.

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Published : Jul 24, 2019, 6:23 PM IST

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गोपालगंज: प्रदेश के मुखिया नीतीश कुमार के दावे एक बार फिर गोपालगंज में हवा-हवाई साबित हुए हैं. शिक्षा व्यवस्था में होने वाला विकास एक बार चूक गया. बिहार में शिक्षा सुविधाओं की हकीकत इस बात से समझी जा सकती है कि गोपालगंज का एक स्कूल पेड़ के नीचे बने तबेले में चल रहा है.

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स्कूल परिसर में फैली गंदगी

छात्र इस मार्डन युग में भी घर से बोरा लाकर, पेड़ के नीचे, गाय-भैंसों के बीच पढ़ने को मजबूर है. इतना ही नहीं पेड़ के नीचे तालीम हासिल कर रहे इन बच्चों के आसपास गंदगी का अंबार लगा रहता है. यहां मक्खियां और कीड़े इस कदर है कि खड़े होना दूभर है, ना जानें बच्चे यहां पढ़ते कैसे होंगे?

ईटीवी भारत संवाददाता की रिपोर्ट
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तबेले में पढ़ रहे बच्चे

सुविधा के नाम पर मौजूद है ब्लैक-बोर्ड और दो कुर्सी
हम बात कर रहे हैं जिला मुख्यालय गोपालगंज से तकरीबन 50 किलोमीटर दूर स्थित भोरे प्रखण्ड के भिसवा नवसृजित प्राथमिक विद्यालय की. जहां व्यवस्था ही नहीं है तो कुव्यवस्था की क्या बात करें. स्कूल के नाम पर यहां केवल एक ब्लैक बोर्ड और टीचर के बैठने के लिए दो कुर्सियां दिखाई पड़ती हैं. इस प्राथमिक विद्यालय में बच्चों के आगे-पीछे गाय-भैंस बांधे जाते हैं. जिससे बच्चों के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है.

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यह स्कूल है या तबेला

रसोइया के घर में बनाता है मिड डे मील
इस विद्यालय में 3 शिक्षक व 40 बच्चे नामांकित हैं. लेकिन, 10 से 12 ही आते हैं. जिन्हें पेड़ के नीचे तबेले में पढ़ाया जाता है. स्थिति यह है कि भवन और भूमि हीन इस स्कूल के बच्चों के लिए मीड डे मिल रसोइया के घर में बनाया जाता है. केंद्र सरकार के सर्व शिक्षा अभियान के तहत 1 से 14 वर्ष तक के बच्चों को प्रारंभिक शिक्षा अनिवार्य है. जिसके लिए सरकार मदद करती है. लेकिन, इस विद्यालय को कोई मदद नहीं मिल रही है. 'सब पढ़ें, सब बढ़ें' का नारा तो बुलंद है लेकिन सबको सुविधाएं समान नहीं हैं.

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स्कूल का दृश्य

बारिश में बढ़ जाती है परेशानी
पांचवी क्लास की छात्रा बताती है कि बारिश में स्थिति और विनाशकारी हो जाती है. छिपने को जगह नहीं मिलती. साथ ही हर ओर कीचड़ और दलदल हो जाता है. इस बाबत जब स्कूल के प्रिंसिपल से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि वह अपनी बल पर जितना कर सकते हैं, बच्चों के लिए कर रहे हैं. कई बार शिकायत करने के बावजूद भी हल नहीं निकाला गया है.

गोपालगंज: प्रदेश के मुखिया नीतीश कुमार के दावे एक बार फिर गोपालगंज में हवा-हवाई साबित हुए हैं. शिक्षा व्यवस्था में होने वाला विकास एक बार चूक गया. बिहार में शिक्षा सुविधाओं की हकीकत इस बात से समझी जा सकती है कि गोपालगंज का एक स्कूल पेड़ के नीचे बने तबेले में चल रहा है.

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स्कूल परिसर में फैली गंदगी

छात्र इस मार्डन युग में भी घर से बोरा लाकर, पेड़ के नीचे, गाय-भैंसों के बीच पढ़ने को मजबूर है. इतना ही नहीं पेड़ के नीचे तालीम हासिल कर रहे इन बच्चों के आसपास गंदगी का अंबार लगा रहता है. यहां मक्खियां और कीड़े इस कदर है कि खड़े होना दूभर है, ना जानें बच्चे यहां पढ़ते कैसे होंगे?

ईटीवी भारत संवाददाता की रिपोर्ट
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तबेले में पढ़ रहे बच्चे

सुविधा के नाम पर मौजूद है ब्लैक-बोर्ड और दो कुर्सी
हम बात कर रहे हैं जिला मुख्यालय गोपालगंज से तकरीबन 50 किलोमीटर दूर स्थित भोरे प्रखण्ड के भिसवा नवसृजित प्राथमिक विद्यालय की. जहां व्यवस्था ही नहीं है तो कुव्यवस्था की क्या बात करें. स्कूल के नाम पर यहां केवल एक ब्लैक बोर्ड और टीचर के बैठने के लिए दो कुर्सियां दिखाई पड़ती हैं. इस प्राथमिक विद्यालय में बच्चों के आगे-पीछे गाय-भैंस बांधे जाते हैं. जिससे बच्चों के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है.

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यह स्कूल है या तबेला

रसोइया के घर में बनाता है मिड डे मील
इस विद्यालय में 3 शिक्षक व 40 बच्चे नामांकित हैं. लेकिन, 10 से 12 ही आते हैं. जिन्हें पेड़ के नीचे तबेले में पढ़ाया जाता है. स्थिति यह है कि भवन और भूमि हीन इस स्कूल के बच्चों के लिए मीड डे मिल रसोइया के घर में बनाया जाता है. केंद्र सरकार के सर्व शिक्षा अभियान के तहत 1 से 14 वर्ष तक के बच्चों को प्रारंभिक शिक्षा अनिवार्य है. जिसके लिए सरकार मदद करती है. लेकिन, इस विद्यालय को कोई मदद नहीं मिल रही है. 'सब पढ़ें, सब बढ़ें' का नारा तो बुलंद है लेकिन सबको सुविधाएं समान नहीं हैं.

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स्कूल का दृश्य

बारिश में बढ़ जाती है परेशानी
पांचवी क्लास की छात्रा बताती है कि बारिश में स्थिति और विनाशकारी हो जाती है. छिपने को जगह नहीं मिलती. साथ ही हर ओर कीचड़ और दलदल हो जाता है. इस बाबत जब स्कूल के प्रिंसिपल से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि वह अपनी बल पर जितना कर सकते हैं, बच्चों के लिए कर रहे हैं. कई बार शिकायत करने के बावजूद भी हल नहीं निकाला गया है.

Intro:शासन-प्रशासन विकास के लाख दावे करें लेकिन हकीकत इससे कोसों दूर है शिक्षा व्यवस्था के आकलन इसी से ही लगाया जा सकता है कि आज भी गोपालगंज जिले में एक स्कूल पेड़ की छांव में चलाया जा रहा है। इतना ही नहीं पेड़ के नीचे शिक्षा के तालीम सीख रहे बच्चों के आसपास व्यापक गंदगी का अंबार लगा रहता है। यह स्कूल एक तबेले में संचालित की जाती है


Body:प्राथमिक विद्यालय के बच्चों के आगे पीछे भैंसे बांधी जाती है। यहां से निकलने वाले गोबर का दुर्गंध इन बच्चों को काफी परेशान करती है। एक ओर जहां पूरा बिहार चमकी बुखार से त्राहिमाम कर रहा है। वहीं स्वास्थ्य विभाग घोषणा करती है कि गंदगी से दूर रहे। लेकिन यहां के बच्चे गंदगी में ही बैठकर शिक्षा की तालीम सीख रहे हैं।यहां के शिक्षक भी बच्चो को बैठाकर सिर्फ पढ़ाई का कोरम पूरा करने से पीछे नही हटते। हम बात कर रहे हैं जिला मुख्यालय गोपालगंज से 50 किलोमीटर दूर भोरे प्रखण्ड के भिसवा नवसृजित प्राथमिक विद्यालय की 10 से 12 की संख्या में घर से लाए बोरा बिछा कर बैठे बच्चे बच्चियां पेड़ के नीचे शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं।इस विद्यालय में 3 शिक्षक व 40 बच्चे नामांकित है,लेकिन 10 से 12 ही बच्चे पेड़ के नीचे तबेले में पढ़ते हुए मीले। पेड़ के नीचे बिनाय भवन के पढ़ रहे बच्चो को सतयुग और द्वापर युग के गुरुकुल में कुछ इसी तरह की शिक्षा ग्रहण की जाती थी। लेकिन वक्त के साथ-साथ शिक्षा में भी बदलाव आया गुरु के जग शिक्षक ने ले लिया और गुरुकुल की जगह विद्यालयों ने। लेकिन गोपालगंज में मानो आज भी बदलाव नहीं आया। आज भी यहां नवसृजित प्राथमिक विद्यालय के बच्चे पेड़ों के नीचे बैठकर पढ़ाई कर रहे हैं। यह तस्वीरें सतयुग द्वापर की नहीं बल्कि यह तस्वीरें हैं शिक्षा व्यवस्था की जिसे मजबूत करने के लिए तमाम दावे किए जाते हैं। लेकिन पेड़ की छांव में शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं छात्रों की मजबूरी प्रशासन को आइना दिखाने के लिए काफी है। भवन व भूमि हीन इस स्कूल के बच्चो के लिए मीड डे मिल रसोइया के घर बनाया जाता है। केंद्र सरकार का सर्व शिक्षा अभियान जिसके अंतर्गत 1 से 14 वर्ष तक के बच्चों को प्रारंभिक शिक्षा के लिए कक्षा, कक्षों का निर्माण प्रसाधन कक्ष का निर्माण एवं शुद्ध पेयजल का सुविधा प्रदान करने की व्यवस्था करने का प्रावधान है। परंतु इस स्कूल में इस योजना का कोई भी लाभ इन नौनिहालों को नहीं मिलता वर्ष 2007 में प्रारंभ हुई इस स्कूल को बुनियादी सुविधाओ से वंचित रखा गया। एक ओर जहां चमकी बुखार से बिहार के सैकड़ों मासूमों की जिंदगी बर्बाद हो गई। लेकिन यहां के देश के भविष्य कहे जाने वाले बच्चे आज डिजिटल इंडिया के युग में आवारा पशुओं और मवेशियों के बीच फैली गंदगी के साथ बैठकर पढ़ने को मजबूर है। पांचवी क्लास में पढ़ने वाली करिश्मा बताती है कि जब पानी आता है तो कभी स्टाल के नीचे तो कभी उस डाल के नीचे भागना पड़ता है, तेजी से पानी होने पर दूसरे की झोपड़ी में हैं छिप जाते है लेकिन उसमें भी डर बना रहता है। कि कही ये झोपड़ी ही ना गिर जाए। बहरहाल बच्चों की स्थिति देखकर यह सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि आजादी के बाद से ही हमने प्राथमिक शिक्षा की चुनौती और सुधार की बुनियाद पर ध्यान नहीं दिया। बिहार के पहले शिक्षा मंत्री से लेकर आज तक किसी ने प्राथमिक विद्यालय के बिगड़ते हालात पर ध्यान नहीं दिया। सिर्फ नारो एवं स्लोगनो तक ही सिमट कर रह गया है। सुशासन बाबू चाहे लाख विकास के दावे करे परंतु 21वीं सदी की इस ज्ञान केंद्र दुनिया में बिना प्राथमिक शिक्षा की सुविधा में सुधार किए बिना ना तो सामाजिक न्याय का कोई अर्थ होगा और ना ही विकास का। इस संदर्भ में जब जिला शिक्षा पदाधिकारी से बात की गई तब उन्होंने कहा कि ऐसे स्कूलों को चिंहित किया जा रहा जो भूमि व भवन हीन हो जिसके बाद जल्द ही कार्यवाई की जाएगी।

बाइट-प्राचार्य -राकेश पांडेय उजला सर्ट
बाइट संघमित्रा वर्मा डीईओ


Conclusion:na
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