गोपालगंज: प्रदेश के मुखिया नीतीश कुमार के दावे एक बार फिर गोपालगंज में हवा-हवाई साबित हुए हैं. शिक्षा व्यवस्था में होने वाला विकास एक बार चूक गया. बिहार में शिक्षा सुविधाओं की हकीकत इस बात से समझी जा सकती है कि गोपालगंज का एक स्कूल पेड़ के नीचे बने तबेले में चल रहा है.
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छात्र इस मार्डन युग में भी घर से बोरा लाकर, पेड़ के नीचे, गाय-भैंसों के बीच पढ़ने को मजबूर है. इतना ही नहीं पेड़ के नीचे तालीम हासिल कर रहे इन बच्चों के आसपास गंदगी का अंबार लगा रहता है. यहां मक्खियां और कीड़े इस कदर है कि खड़े होना दूभर है, ना जानें बच्चे यहां पढ़ते कैसे होंगे?
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सुविधा के नाम पर मौजूद है ब्लैक-बोर्ड और दो कुर्सी
हम बात कर रहे हैं जिला मुख्यालय गोपालगंज से तकरीबन 50 किलोमीटर दूर स्थित भोरे प्रखण्ड के भिसवा नवसृजित प्राथमिक विद्यालय की. जहां व्यवस्था ही नहीं है तो कुव्यवस्था की क्या बात करें. स्कूल के नाम पर यहां केवल एक ब्लैक बोर्ड और टीचर के बैठने के लिए दो कुर्सियां दिखाई पड़ती हैं. इस प्राथमिक विद्यालय में बच्चों के आगे-पीछे गाय-भैंस बांधे जाते हैं. जिससे बच्चों के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है.
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रसोइया के घर में बनाता है मिड डे मील
इस विद्यालय में 3 शिक्षक व 40 बच्चे नामांकित हैं. लेकिन, 10 से 12 ही आते हैं. जिन्हें पेड़ के नीचे तबेले में पढ़ाया जाता है. स्थिति यह है कि भवन और भूमि हीन इस स्कूल के बच्चों के लिए मीड डे मिल रसोइया के घर में बनाया जाता है. केंद्र सरकार के सर्व शिक्षा अभियान के तहत 1 से 14 वर्ष तक के बच्चों को प्रारंभिक शिक्षा अनिवार्य है. जिसके लिए सरकार मदद करती है. लेकिन, इस विद्यालय को कोई मदद नहीं मिल रही है. 'सब पढ़ें, सब बढ़ें' का नारा तो बुलंद है लेकिन सबको सुविधाएं समान नहीं हैं.
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बारिश में बढ़ जाती है परेशानी
पांचवी क्लास की छात्रा बताती है कि बारिश में स्थिति और विनाशकारी हो जाती है. छिपने को जगह नहीं मिलती. साथ ही हर ओर कीचड़ और दलदल हो जाता है. इस बाबत जब स्कूल के प्रिंसिपल से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि वह अपनी बल पर जितना कर सकते हैं, बच्चों के लिए कर रहे हैं. कई बार शिकायत करने के बावजूद भी हल नहीं निकाला गया है.