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लालू के बिना चुनाव में उतरेगी RJD, फुलवरिया गांव के लोग बोले- लालू हमारे भगवान, जल्द आएंगे बाहर

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Published : Oct 18, 2020, 10:11 AM IST

लालू की गैरमौजूदगी में राष्ट्रीय जनता दल चुनावी समर में उतरेगा. ऐसे में राज्य के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव की चुनावी रणनीति और नेतृत्व क्षमता की असल परीक्षा भी इन चुनावों में होगी. क्योंकि लोकसभा चुनावों में मुद्दे राष्ट्रीय स्तर के होते हैं, लेकिन विधानसभा चुनावों में स्थानीय मुद्दों पर बात होती है.

Lalu yadav
Lalu yadav

गोपालगंज: जिले के फुलवरिया गांव में 11 जून 1948 में जन्मे सत्ता और सियासत के माहिर खिलाड़ी लालू प्रसाद यादव पहली बार बिहार विधानसभा के चुनाव में नजर नहीं आएंगे. 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान भी वो जेल में ही थे. लेकिन राजद के इतिहास में यह पहला मौका है, जब विधानसभा चुनाव में प्रत्यक्ष तौर पर लालू यादव नहीं है.

अपनी भाषण शैली के जरिये मतदाताओं का रुख मोड़ देने वाले वक्ता की इस बार के चुनाव में कमी दिखेगी. लालू प्रसाद, जिन्होंने बिहार की राजनीति में पिछले तीन दशक से अपना दबदबा बना कर रखा है. उन्होंने 2015 में किस तरीके विधानसभा चुनाव में आरजेडी के पक्ष में बाजी पलट दी थी. अब तक लोगों को याद है. 2010 विधानसभा चुनाव लालू के लिए सबसे बुरा वक्त था, जब उनकी पार्टी केवल 22 सीटों पर सिमट गई थी. लेकिन 2015 में लालू ने अकेले ही पूरी चुनावी बाजी पलट दी और राष्ट्रीय जनता दल 80 सीट जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी.

लालू का गांव  फुलवरिया
लालू का गांव फुलवरिया

क्या कहते हैं ग्रामीण
फुलवरिया गांव के लोगों का कहना है कि लालू उनके लिए भगवान राम हैं और वे जल्द जेल से छूटकर बाहर आएंगे. उन्होंने कहा कि लालू के कार्यकाल में इस गांव में विकास हुआ. लेकिन नीतीश के कार्यकाल में किसी ने इस गांव की ओर तक नहीं देखा. ईटीवी भारत से बात करते हुए ग्रामीणों ने कहा कि वो दिन दूर नहीं जब लालू जेल से बाहर आएंगे और बिहार में दिवाली मनेगी.

लालू का गांव  फुलवरिया
लालू का गांव फुलवरिया

लालू का राजनीतिक सफर
11 जून 1948 को पैदा हुए लालू ने राजनीति की शुरुआत पटना के बीएन कॉलेज से की थी. तब लालू 1970 में पटना विश्वविद्यालय में छात्रसंघ के महासचिव चुने गए थे और इसके बाद छात्र आंदोलन के दौरान लालू की सियासत में दिलचस्पी और बढ़ती गई. इसके बाद लालू ने कभी पीछें मुड़ कर नहीं देखा. लालू ने राम मनोहर लोहिया और आपातकाल के नायक जय प्रकाश नारायण का समर्थक बनकर आंदोलन को आवाज दी. लालू महज 29 साल की उम्र में 1977 में वो पहली बार संसद पहुंच गए. अपनी जन सभाओं में लालू 1974 की संपूर्ण क्रांति का नारा दोहराते रहे. लोगों को सपने दिखाते रहे.

देखें रिपोर्ट.

जनता की नब्ज पकड़ते हुए लालू ने 90 के दशक में मंडल कमीशन की लहर पर सवार होकर बिहार की सत्ता पर कब्जा कर लिया. बिहार में लालू यादव को जितना समर्थन मिला था शायद उतना समर्थन राजनीति में अभी तक किसी को नहीं मिला होगा.

लालू के बिना मैदान में तेजस्वी
लालू की गैरमौजूदगी में राष्ट्रीय जनता दल चुनावी समर में उतरेगा. ऐसे में राज्य के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव की चुनावी रणनीति और नेतृत्व क्षमता की असल परीक्षा भी इन चुनावों में होगी. क्योंकि लोकसभा चुनावों में मुद्दे राष्ट्रीय स्तर के होते हैं, लेकिन विधानसभा चुनावों में स्थानीय मुद्दों पर बात होती है. इसके अलावा यह भी देखने वाला होगा कि तेजस्वी के बाद बिहार की जनता तेजस्वी को स्वीकार करती है या नहीं.

गोपालगंज: जिले के फुलवरिया गांव में 11 जून 1948 में जन्मे सत्ता और सियासत के माहिर खिलाड़ी लालू प्रसाद यादव पहली बार बिहार विधानसभा के चुनाव में नजर नहीं आएंगे. 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान भी वो जेल में ही थे. लेकिन राजद के इतिहास में यह पहला मौका है, जब विधानसभा चुनाव में प्रत्यक्ष तौर पर लालू यादव नहीं है.

अपनी भाषण शैली के जरिये मतदाताओं का रुख मोड़ देने वाले वक्ता की इस बार के चुनाव में कमी दिखेगी. लालू प्रसाद, जिन्होंने बिहार की राजनीति में पिछले तीन दशक से अपना दबदबा बना कर रखा है. उन्होंने 2015 में किस तरीके विधानसभा चुनाव में आरजेडी के पक्ष में बाजी पलट दी थी. अब तक लोगों को याद है. 2010 विधानसभा चुनाव लालू के लिए सबसे बुरा वक्त था, जब उनकी पार्टी केवल 22 सीटों पर सिमट गई थी. लेकिन 2015 में लालू ने अकेले ही पूरी चुनावी बाजी पलट दी और राष्ट्रीय जनता दल 80 सीट जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी.

लालू का गांव  फुलवरिया
लालू का गांव फुलवरिया

क्या कहते हैं ग्रामीण
फुलवरिया गांव के लोगों का कहना है कि लालू उनके लिए भगवान राम हैं और वे जल्द जेल से छूटकर बाहर आएंगे. उन्होंने कहा कि लालू के कार्यकाल में इस गांव में विकास हुआ. लेकिन नीतीश के कार्यकाल में किसी ने इस गांव की ओर तक नहीं देखा. ईटीवी भारत से बात करते हुए ग्रामीणों ने कहा कि वो दिन दूर नहीं जब लालू जेल से बाहर आएंगे और बिहार में दिवाली मनेगी.

लालू का गांव  फुलवरिया
लालू का गांव फुलवरिया

लालू का राजनीतिक सफर
11 जून 1948 को पैदा हुए लालू ने राजनीति की शुरुआत पटना के बीएन कॉलेज से की थी. तब लालू 1970 में पटना विश्वविद्यालय में छात्रसंघ के महासचिव चुने गए थे और इसके बाद छात्र आंदोलन के दौरान लालू की सियासत में दिलचस्पी और बढ़ती गई. इसके बाद लालू ने कभी पीछें मुड़ कर नहीं देखा. लालू ने राम मनोहर लोहिया और आपातकाल के नायक जय प्रकाश नारायण का समर्थक बनकर आंदोलन को आवाज दी. लालू महज 29 साल की उम्र में 1977 में वो पहली बार संसद पहुंच गए. अपनी जन सभाओं में लालू 1974 की संपूर्ण क्रांति का नारा दोहराते रहे. लोगों को सपने दिखाते रहे.

देखें रिपोर्ट.

जनता की नब्ज पकड़ते हुए लालू ने 90 के दशक में मंडल कमीशन की लहर पर सवार होकर बिहार की सत्ता पर कब्जा कर लिया. बिहार में लालू यादव को जितना समर्थन मिला था शायद उतना समर्थन राजनीति में अभी तक किसी को नहीं मिला होगा.

लालू के बिना मैदान में तेजस्वी
लालू की गैरमौजूदगी में राष्ट्रीय जनता दल चुनावी समर में उतरेगा. ऐसे में राज्य के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव की चुनावी रणनीति और नेतृत्व क्षमता की असल परीक्षा भी इन चुनावों में होगी. क्योंकि लोकसभा चुनावों में मुद्दे राष्ट्रीय स्तर के होते हैं, लेकिन विधानसभा चुनावों में स्थानीय मुद्दों पर बात होती है. इसके अलावा यह भी देखने वाला होगा कि तेजस्वी के बाद बिहार की जनता तेजस्वी को स्वीकार करती है या नहीं.

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