गोपालगंजः जिला मुख्यालय से करीब 30 किलोमीटर दूर बरौली प्रखंड के प्रखंड कार्यालय के पास स्थित है प्रेम नगर आश्रम. जो गुलामी और आजादी के बीच की गाथाओं को बयां करता है. यह कभी आजादी के दीवानों का पनाहगार हुआ करता था. इसके साथ ही यहां आजादी के लिए होने वाली जंग की नीतियां बनाई जाती थी. लेकिन आज यह सरकार की उपेक्षा का शिकार हो रहा है.
चंपारण सत्याग्रह के लिए बनाई गई थी रणनीति
कालांतर में भारत मां के लिए उपासना करता यह पावन स्थल आज संतो के लिए उपासना स्थल बन गया है. आश्रम के संत स्वामी नित्यानंद जी महाराज ने बताया कि यह जगह काफी महत्वपूर्ण है. यहां पर आजादी की लड़ाई के लिए रणनीतियां बनती थी. उन्होंने बताया कि यहां महात्मा गांधी और सुभाष चन्द्र बोस भी आए थे. नित्यानंद जी महाराज ने बताया कि चंपारण सत्याग्रह के लिए भी यहां रणनीति बनाई गई थी.
संस्कृत विद्या स्थली
प्रखंड कार्यालय से सटे 1 किलोमीटर उत्तर स्थित आश्रम आजादी के इतिहास को बयां करता है. आश्रम की नींव गुलाम भारत में संस्कृत विद्या स्थली के रूप में पड़ी थी. तब यहां के संत संदर्शी सम्प्रदाय के संत शिरोमणी श्री दहाड़ी दास जी महाराज थे. इसके बाद इस विद्या स्थली की बागडोर संत विज्ञानानंद जी महाराज उर्फ ब्रह्मचारी जी ने संभाली. उनके अंदर भी देश प्रेम की भावना कूट कूट कर भरी थी. वैसे तो यहां संस्कृत की शिक्षा दी जाती थी लेकिन 1940 से ही आजादी की ज्वाला महाराज जी के मन में धधक रही थी.
आश्रम में बनाए जाते थे बम और बंदूक
आश्रम 1942 में आजादी के लिए मिशन स्थल बन चुका था. यहां आजादी के लिए अंग्रेजों के खिलाफ नीतियां, बम और बंदूक बनने लगे थे. आजादी के दीवानों में कमला राय हो या उमाकांत शुक्ला, किशुन कुंवर, चंद्रमा कोइरी, दीनानाथ तिवारी, सूर्य देव शर्मा, श्याम बहादुर तिवारी, बटुकेश्वर पांडे, मोहन पांडे, सरयू सिंह, मंगल चौबे, रामजी सिंह, भोज कानू सहित दर्जनों रणबांकुरों ने यहां से जंग की सीख ली और भारत छोड़ो आंदोलन में कूद पड़े.
भारत छोड़ो आंदोलन
19 अगस्त 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन की आग की लपटें जब आश्रम से निकली तो आजादी के दीवानों ने बरौली थाना को जला डाला, रेल लाईन को उखाड़ दिया. उस समय यह आश्रम अंग्रेजों के आंखों की किरकिरी बन गई थी. जिस वजह से ब्रह्मचारी जी को भूमिगत होना पड़ा. लेकिन एक बार आजादी के लिए जली मशाल आजादी मिलने तक कभी नहीं बुझी.