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कभी भी हो सकता है बड़ा हादसा, रेलवे लाइन पार कर यूं स्कूल जाते हैं बच्चे

इस स्कूल में पहुंचने के लिए कोई उचित रास्ता नहीं है. यही कारण है कि बच्चे रेलवे लाइन को ही अपना रास्ता बना कर स्कूल पहुंचते हैं. इन बच्चों को यह भी पता नहीं होता है कि सामने से कब कौन सी ट्रेन आ जाएगी.

रेलवे ट्रैक पार कर यूं स्कूल जाते हैं बच्चे
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Published : Sep 11, 2019, 10:39 PM IST

Updated : Sep 12, 2019, 8:29 AM IST

गोपालगंज: एक तरफ सरकार शिक्षा के क्षेत्र में बड़े-बड़े दावे कर रही है. दूसरी तरफ गांव के विद्यालय इन दावों की पोल खोल रहे हैं. जिला मुख्यालय से 25 किलोमीटर दूर कुचायकोट प्रखंड के पांडेय परसौनी गांव में जान हथेली पर रख रेलवे लाइन पार कर बच्चे पढ़ाई करने को मजबूर हैं, लेकिन प्रशासन की तरफ से उनके लिए आजतक किसी प्रकार की व्यवस्था नहीं की गई है.

स्कूल जाने के लिए नहीं है कोई रास्ता
इस स्कूल में पहुंचने के लिए कोई उचित रास्ता नहीं है. यही कारण है कि बच्चे रेलवे लाइन को ही अपना रास्ता बना कर स्कूल पहुंचते हैं. इन बच्चों को यह भी पता नहीं होता है कि सामने से कब कौन सी ट्रेन आ जाएगी.

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चचरी का पुल पार कर स्कूल से घर को लौटते बच्चे

खतरनाक चचरी का पुल
हालांकि इन बच्चों के लिए स्कूल के प्रिंसिपल ने बांस की चचरी का पुल बनवाया है, लेकिन वह भी उनके लिए खतरे से खाली नहीं है. उस पुल पर चलने से बच्चों को डर लगता है कि कहीं पुल टूट न जाए और वो पानी में न गिर पड़ें.

2006 में हुआ था स्कूल का निर्माण
गांव की आबादी से दूर बीच खेत में और रेलवे लाइन के ठीक बगल में नवसृजित प्राथमिक स्कूल का निर्माण वर्ष 2006 में हुआ था. स्कूल तो बन गया, लेकिन इस स्कूल में बच्चे कैसे पहुंचेंगे इसकी चिंता किसी ने नहीं की. तब से लेकर आज तक यह स्कूल सड़क विहीन है. बच्चे जैसे-तैसे शिक्षा ग्रहण करने आते हैं.

गोपालगंज से ईटीवी भारत संवाददाता की रिपोर्ट

150 छात्रों के लिए 5 शिक्षक
प्राथमिक विद्यालय पहुंचने के लिए बच्चों को एक किलोमीटर का सफर तय करना पड़ता है. इस विद्यालय में करीब 150 छात्र-छात्राएं पढ़ने आते हैं और इनके लिए यहां मात्र पांच शिक्षक उपस्थित होते हैं. इस गांव में दूसरा कोई अन्य प्राथमिक विद्यालय नहीं होने के कारण यहां अधिकतर दलित-महादलित के बच्चे पढ़ने आते हैं.

बच्चों ने बताई अपनी समस्या
स्कूल के बच्चों की मानें तो उन्हें दो तरह की समस्याओं से जूझना पड़ता है. रेलवे ट्रैक पार करते वक्त उन्हें डर सताता है कि कहीं कोई हादसा न हो जाए. दूसरा उन्हें चचरी पुल पार करते वक्त भी उसके टूटने का डर लगा रहता है.

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रेलवे लाइन किनारे मौजूद प्राथमिक विद्यालय

क्या कहते हैं अधिकारी
वहीं, स्कूल के प्राचार्य अजय मिश्रा ने कैमरे के सामने कुछ भी बोलने से इनकार करते हुए बताया कि यहां करीब 150 बच्चे प्रतिदिन आते हैं. रेलवे ट्रैक पार कर आना उनकी मजबूरी है. इसलिए बच्चों को हिदायत दी जाती है कि सावधानी से वे स्कूल पहुंचे. वहीं, इस संदर्भ में जब जिला शिक्षा पदाधिकारी संघमित्रा वर्मा से बात की गई तो उन्होंने कैमरे के सामने कुछ भी बोलने से इनकार कर दिया.

गोपालगंज: एक तरफ सरकार शिक्षा के क्षेत्र में बड़े-बड़े दावे कर रही है. दूसरी तरफ गांव के विद्यालय इन दावों की पोल खोल रहे हैं. जिला मुख्यालय से 25 किलोमीटर दूर कुचायकोट प्रखंड के पांडेय परसौनी गांव में जान हथेली पर रख रेलवे लाइन पार कर बच्चे पढ़ाई करने को मजबूर हैं, लेकिन प्रशासन की तरफ से उनके लिए आजतक किसी प्रकार की व्यवस्था नहीं की गई है.

स्कूल जाने के लिए नहीं है कोई रास्ता
इस स्कूल में पहुंचने के लिए कोई उचित रास्ता नहीं है. यही कारण है कि बच्चे रेलवे लाइन को ही अपना रास्ता बना कर स्कूल पहुंचते हैं. इन बच्चों को यह भी पता नहीं होता है कि सामने से कब कौन सी ट्रेन आ जाएगी.

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चचरी का पुल पार कर स्कूल से घर को लौटते बच्चे

खतरनाक चचरी का पुल
हालांकि इन बच्चों के लिए स्कूल के प्रिंसिपल ने बांस की चचरी का पुल बनवाया है, लेकिन वह भी उनके लिए खतरे से खाली नहीं है. उस पुल पर चलने से बच्चों को डर लगता है कि कहीं पुल टूट न जाए और वो पानी में न गिर पड़ें.

2006 में हुआ था स्कूल का निर्माण
गांव की आबादी से दूर बीच खेत में और रेलवे लाइन के ठीक बगल में नवसृजित प्राथमिक स्कूल का निर्माण वर्ष 2006 में हुआ था. स्कूल तो बन गया, लेकिन इस स्कूल में बच्चे कैसे पहुंचेंगे इसकी चिंता किसी ने नहीं की. तब से लेकर आज तक यह स्कूल सड़क विहीन है. बच्चे जैसे-तैसे शिक्षा ग्रहण करने आते हैं.

गोपालगंज से ईटीवी भारत संवाददाता की रिपोर्ट

150 छात्रों के लिए 5 शिक्षक
प्राथमिक विद्यालय पहुंचने के लिए बच्चों को एक किलोमीटर का सफर तय करना पड़ता है. इस विद्यालय में करीब 150 छात्र-छात्राएं पढ़ने आते हैं और इनके लिए यहां मात्र पांच शिक्षक उपस्थित होते हैं. इस गांव में दूसरा कोई अन्य प्राथमिक विद्यालय नहीं होने के कारण यहां अधिकतर दलित-महादलित के बच्चे पढ़ने आते हैं.

बच्चों ने बताई अपनी समस्या
स्कूल के बच्चों की मानें तो उन्हें दो तरह की समस्याओं से जूझना पड़ता है. रेलवे ट्रैक पार करते वक्त उन्हें डर सताता है कि कहीं कोई हादसा न हो जाए. दूसरा उन्हें चचरी पुल पार करते वक्त भी उसके टूटने का डर लगा रहता है.

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रेलवे लाइन किनारे मौजूद प्राथमिक विद्यालय

क्या कहते हैं अधिकारी
वहीं, स्कूल के प्राचार्य अजय मिश्रा ने कैमरे के सामने कुछ भी बोलने से इनकार करते हुए बताया कि यहां करीब 150 बच्चे प्रतिदिन आते हैं. रेलवे ट्रैक पार कर आना उनकी मजबूरी है. इसलिए बच्चों को हिदायत दी जाती है कि सावधानी से वे स्कूल पहुंचे. वहीं, इस संदर्भ में जब जिला शिक्षा पदाधिकारी संघमित्रा वर्मा से बात की गई तो उन्होंने कैमरे के सामने कुछ भी बोलने से इनकार कर दिया.

Intro:जिला मुख्यालय गोपालगंज से 25 किलोमीटर दूर कुचायकोट प्रखंड के पांडेय परसौनी गाँव के पास रेलवे लाइन के ठीक बगल में बने स्कूल मे जान हथेली पर बच्चे शिक्षा ग्रहण करने को मजबूर हैं। क्योंकि इस स्कूल के बच्चों को दोहरी डर का सामना करना पड़ता है। इस स्कूल में पहुंचने के लिए कोई दूसरा रास्ता नहीं होने के कारण बच्चे रेलवे लाइन को ही अपना रास्ता बना कर स्कूल पहुंचने को बाध्य होते हैं। कब कौन सी ट्रेन आ जाए और बड़ा हादसा हो जाए शायद इस बात से यह बच्चे अंजान है। इस स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे पहले रेलवे लाइन और इसके बाद उन्हें बांस की खतरनाक चचरी का भी सामना करना पड़ता है।



Body:गाँव के आबादी से दूर बीच खेत में और रेलवे लाइन के ठीक बगल में नव सृजित प्राथमिक स्कूल का निर्माण वर्ष 2006 में हुई थी। स्कूल का निर्माण तो हो गई लेकिन बच्चे स्कूल कैसे पहुंचेंगे शायद इसकी चिंता किसी ने नहीं की। और तब से लेकर आज तक सड़क विहीन इस स्कूल में बच्चे यूं ही शिक्षा ग्रहण करने आते हैं। क्योंकि इन्हें पढ़ना जरूरी है और जान हथेली पर रखकर स्कूल पहुंचना मजबूरी।
नवसृजित प्राथमिक विद्यालय पहुंचने के लिए बच्चों को एक किलोमीटर का सफर तय करना पड़ता है। इस स्कूल में पहुंचने के लिए अन्य कोई दूसरा रास्ता नहीं होने के कारण यहां के बच्चे रेलवे लाइन को ही अपना रास्ता बनाकर स्कूल पहुंचते हैं। कभी भी किसी बड़े हादसे का गवाह बन सकता है। बावजूद शासन प्रशासन की नजरें इस ओर नहीं जाती। कुचायकोट प्रखंड के नवसृजित विद्यालय में एक से लेकर पांचवी तक वर्ग संचालित होती है। इस विद्यालय में करीब डेढ़ सौ छात्र-छात्राएं पढ़ते हैं। जबकि यहां पांच शिक्षक तैनात हैं। इस गांव में दूसरा कोई अन्य प्राथमिक विद्यालय नहीं होने के कारण यहां अधिकतर दलित महादलित के बच्चे पढ़ने आते हैं। वही स्कूल के प्रचार अजय मिश्रा ऑन कैमरा कुछ भी बोलने से इनकार करते हुए बताया कि यहां करीब 150 बच्चे प्रतिदिन आते हैं। और आना भी जरूरी है साथ ही रेलवे ट्रैक करना उनकी मजबूरी। इसलिए बच्चों को हिदायत दी जाती है कि सावधानी से वे स्कूल पहुंचे। इन बच्चो के पास इसके अलावा और कोई दूसरा विकल्प नहीं है। जान का खतरा बना रहता है। वही स्कूल के बच्चो के माने तो उन्हें दो तरह की समस्याओं से जूझना पड़ता है। रेलवे लाइन ट्रैक पार करते वक्त उन्हें डर सताता है वही लबालब पानी के बीच बने बांस के चचरी पुल उन्हें और भी भयभीत कर देती है स्कूल के चारो ओर पानी लगने के कारण स्कूल के प्राध्यानाध्यपक द्वारा बांस के चचरी का पुल का निर्माण कराया गया है। वही इस संदर्भ में जब हमने जिला शिक्षा पदाधिकारी संघमित्रा वर्मा से बात करने की कोशिश की तो उन्होंने भी ऑन कैमरा कुछ भी बोलने से इंकार कर दिया।


Conclusion:na
Last Updated : Sep 12, 2019, 8:29 AM IST
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