गोपालगंजः लॉकडाउन खत्म होते ही प्रवासी मजदूरों को दोबारा परदेस लौटने का दौर शुरू हो गया है. लॉक डाउन में पैदल चलकर घर लौटे ये मजदूर अब अपने कंपनी के मालिकों की भेजी गई गाड़ियों और बसों से लौट रहे हैं. मजदूरों के जाने का यह सिलसिला जिले में 15 दिनों से जारी है.
जानकारी के मुताबिक रोजाना सौ से डेढ़ सौ बसें पंजाब हरियाणा राजस्थान से आ रही हैं. ये बसें बिहार के कई जिलों से मजदूर लेकर जाने के लिए आई हैं. बसें बिहार में प्रवेश कर रहीं है और वापस मजदूरों को लेकर बॉर्डर पार हो रही हैं.
लॉकडाउन में परेशान होकर लौट थे घर
दरअसल, कोरोना महामारी के दौरान लागू लॉकडाउन के दौरान दूसरे राज्यों में काम कर रहे मजदूर परेशान होकर अपने घर लौट आए थे. इन मजदूरों ने शायद यह सोचा था कि अब अपने गांव में ही कोई काम करके परिवार का भरण पोषण कर लूंगा. लेकिन यहां पहुंचते ही स्थिति और भी भयावह हो गई. घरों में बैठे-बैठे भूखमरी की नौबत आ गई. लेकिन कोई काम नहीं मिला. सरकार के नैकरी देने के वादे भी काम नहीं आए. अपने परिवार और घर के बीच रहने का सपना छोड़ ये मजदूर अब दोबारा पंजाब-हरियाणा राजस्थान जैसे प्रदेशों में वापस काम की तलाश में लौटने लगे हैं.
'जाएं नहीं तो क्या करें परिवार कैसे चलेगा'
पंडित राम नरेश त्रिपाठी के संकलित पुस्तक में दूसरे राज्यो में मजदूरी करने वाले मजदूरों की गाथा को दर्शाया गया है. ' रेलिया बैरन पिया को लिए जाए रे...जउने शहरिया को सैया मोरे जाए.... आग लगे शहर जल जाए रे'......इस गीत को गायिका मालिनी अवस्थी ने अपने मधुर स्वर दिए हैं. इस गीत में मजदूरों के घर बार का दर्द और उनकी मजबूरी छिपा हुई है. जो इन मजदुरों पर सटीक बैठती है. पलायन कर रहे मजदूरों ने अपने अंदर छुपे दर्द को ईटीवी भारत से बयां किया. मजदूरों ने कहा कि अब तो हमें कोरोना संक्रमण से ज्यादा भूखे मरने का भय सता रहा है. 'जाएं नहीं तो क्या करें परिवार कैसे चलेगा'.
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'गांव में नहीं मिला कोई काम'
अररिया निवासी मो.अब्बास का दर्द छलक पड़ा, रोते हुए कहा कि लॉक डाउन में हम बाहर से पैदल अपने घर पहुंचे थे. सोचा था कि घर पर ही रहकर काम करेंगे बाहर नहीं जाएंगे. लेकिन गांव में कोई काम नहीं मिला. भूखे परिवार के लिए नहीं चाहते हुए फिर से बाहर जाना पड़ रहा है.
वहीं, अररिया जिला के लखीचंद ने बताया कि पंजाब से बस आई है हम लोगों को ले जाने के लिए हम लोग वहीं जा रहे हैं. यहां कोई रोजगार नहीं है. रोजगार मिलता तो हम बाहर क्यों जाते. 150 से 200 रुपया भी मिलता तो हम गुजारा कर लेते. लेकिन यहां तो वो भी नहीं मिल रहा.
'अभी तो बाहर जानें में डर लगता है'
इन मजदुरों का कहना है कि भूख से परिवार समेत मरने से अच्छा है कि कोरोना से ही लड़ाई लड़ी जाए. जान हथेली पर रख कर घर बार छोड़ कर दूसरे राज्यो में रोजगार के लिए जा रहे हैं, डर तो लगता है अभी कोरोना थमा नहीं है, लेकिन क्या करें?
'रोजाना मजदूरों को लेने आती हैं बसें'
वहीं जिला परिवहन पदाधिकारी प्रमोद कुमार ने बताया कि बल्थरी चेक पोस्ट पर रोजाना एक सौ से डेढ़ सौ बसें पंजाब हरियाणा राजस्थान से आ रही है. हमने पता किया तो बस वालों ने बताया कि हम लोग बिहार के विभिन्न जिलों से मजदूर लेकर जाने के लिए आए हैं. अधिकारी का कहना है कि बसें खाली बिहार में प्रवेश कर रहीं है और वापस मजदूरों को लेकर बॉर्डर पार कर रही हैं.