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मां नहीं तो क्या हुआ.. एहसास आज भी जिंदा है, मौत के बाद मां के बगल में ही सोना चाहते हैं हसन

अपनी मां से बेइंतहा मोहब्बत करने वाले गोपालगंज के मंजूर हसन (Manzoor Hasan of Gopalganj) ने अपनी मां के मजार के पास ही अपनी कब्र जीते-जी बनवा ली है. मंजूर अपना ज्यादा से ज्यादा वक्त मां के मजार पर ही उनकी खिदमत करते हुए बिताते हैं. पढ़िए ईटीवी भारत (ETV Bharat) पर मातृ भक्त बेटे की पूरी कहानी.

Manzoor Hasan of Gopalganj
Manzoor Hasan of Gopalganj
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Published : Dec 2, 2021, 6:03 AM IST

गोपालगंज: जिला मुख्यालय गोपालगंज से करीब 40 किलोमीटर दूर बरौली प्रखण्ड के बलहा गांव निवासी मंजूर हसन की चर्चा आज हर कोई कर रहा है. कहा जाए कि किसी व्यक्ति ने जीते-जी अपनी कब्र खुदवा ली है, तो यह बात काफी अटपटी लगती है. लेकिन मंजूर की उनकी मातृ भक्ति (Love For Mother) को लेकर आज मिसालें दी जा रही है. साल 1999 के जून महीने में उनकी मां का इंतकाल हो गया था. तब से मंजूर अपनी मां के मजार पर ही रहते हैं. इतना ही नहीं अपनी मौत के बाद वे अपनी मां के बगल में ही सोना (Son Grave Near Mother Tomb) चाहते हैं.

यह भी पढ़ें- पशु प्रेम की अनूठी मिसाल, हिन्दू रीति- रिवाज से निकाली गई ब्राउनी की शव यात्रा

आज तक आपने मां-बेटे के प्यार की कई कहानियां सुनी होंगी. वैसे तो हर बेटे के लिए उसकी मां किसी अनमोल हीरे से कम नहीं होती, लेकिन कुछ बेटे ऐसे भी हैं, जो अपना सारा जीवन और प्रेम अपनी मां को अर्पित कर देते हैं. गोपालगंज के बलहा गांव में रहने वाले एक मां-बेटे के प्रेम की कहानी भी कुछ ऐसी ही है.

हसन ने जीते-जी बनवा ली अपनी कब्र

यह भी पढ़ें- खगड़ियाः पिता का अंतिम संस्कार कर एक बेटी ने निभाया बेटे का फर्ज

मां-बेटे के बेइंतहा मोहब्बत की ये कहानी स्वर्गीय मुबारक हुसैन के बेटे मंजूर हसन (Gopalganj Mother Son Love Story) की है. उन्होंने अपनी मां से मोहब्बत की अनूठी मिसाल (Unique Example Of Love) पेश की है. मंजूर हसन अपनी मां शाह शहरबानो हसनी से इस कदर प्यार करते हैं कि उन्होंने अपनी मां के कब्र के पास ही अपनी कब्र भी खुदवाई है. इतना ही नहीं मंजूर हसन अपने इंतकाल के बाद की सारी व्यवस्था भी खुद कर चुके हैं. उन्होंने अपनी कफन भी खरीद ली है.

यह भी पढ़ें- लॉकडाउन में देहरादून से बिहार पहुंचकर बेटी ने दी पिता को मुखाग्नि

मंजूर हसन अपनी मां शाह शहरबानो हसनी से बेइंतहा प्यार करते थे. उनकी मां भी मंजूर से बहुत प्यार करती थी. मां का प्यार ही था कि मंजूर हसन मां से कभी अलग नहीं हुए. वो अपनी मां का काफी ख्याल रखते थे. तीन भाइयों में सबसे छोटे मंजूर के ऊपर उस वक्त दुखों का पहाड़ टूट पड़ा जब, साल 1999 के जून महीने में उनकी मां का इंतकाल हो गया.

यह भी पढ़ें- ...तो हिंदू विधि विधान से हुआ था महात्मा बुद्ध का अंतिम संस्कार!

मां की याद में मंजूर हसन ने उनकी मजार बनवाई. दिन-रात उसी मजार पर रहते, उनकी सेवा करते हैं. खुद मजार की साफ सफाई करते हैं. अब उन्होंने अपनी मां के कब्र के पास ही खुद अपनी कब्र भी खुदवा डाली है. ताकि, मरने के बाद भी वो अपनी मां के साथ रह सकें.

मंजूर हसन कहते हैं कि मैं अपनी मां से अलग नहीं रहना चाहता हूं. उनके इंतेकाल के बाद काफी विचलित हो गया था. मेरी जिंदगी बोझ लगने लगी थी. लेकिन धीरे धीरे मैंने खुद को संभाला और मां की मजार बनवाई. यहीं पर ज्यादा समय बीतता है. मैंने अपनी जिंदगी में इसलिए अपनी कब्र खुदवा ली, ताकि मरने के बाद भी मां के बगल में ही रह संकू. मुझे कहीं और ना दफनाया जाए.

यह भी पढ़ें- ये हुई न बात! जहां जाने से डरते थे लोग, वहां अब उमड़ रही भीड़... करीमगंज कब्रिस्तान कमेटी की अनोखी पहल

मंजूर हसन कहते है मेरी मां जब जीवित थी तो मैं चाहे कितनी भी परेशानी में रहूं, मां के पास चले जाने के बाद काफी सुकून मिलता था. मां की मौत के बाद भी जब भी विचलित होता हूं तो मजार पर मुझे सुकून मिलता है.

"मैंने खुद का कफन इसलिए खरीदा क्योंकि मरने के बाद लोग मुझे सफेद कफन में लिटा देते, लेकिन मुझे हरा कफन पसंद है. मैं चाहता हूं कि मुझे हरे कफन में दफनाया जाए. हरा रंग हुसैनी रंग होता है. मुझे मां की बात हमेशा याद रहती है. मां हमेशा कहा करती थीं कि 'प्यार सबसे करना चाहिए किसी से दुश्मनी नहीं करनी चाहिए. अगर प्यार करेंगे तो दुश्मनी अपने आप खत्म हो जाएगी."- मंजूर हसन

यह भी पढ़ें- सुपौल में ये क्या हो रहा है, कब्र से बच्चों के शव क्यों हो रहे हैं गायब?

मंसूर सभी को अपनी मां का सम्मान,प्यार और ख्याल रखने का संदेश (Love Messages For Mother) दे रहे हैं. उन्हें यकीन है कि मरने के बाद भी वे अपनी मां के करीब रहेंगे. इसलिए उन्होंने मां के मजार के ठीक बगल में अपनी कब्र जीते-जी बनवा ली है.

समाज में आज भी कई ऐसे लोग हैं जो बूढ़े माता पिता को अकेला छोड़ देते हैं. मां की तड़पती ममता को दरकिनार कर अपनी जिंदगी की चकाचौंध में खो जाते हैं. मंसूर ऐसे लोगों को भी संदेश देते हुए कह रहे हैं कि कभी भी मां का दिल नहीं तोड़ना चाहिए. मां के कदमों में जन्नत होती है और उसकी आह से जिंदगी जहन्नुम बन जाती है. मंसूर हसन का मातृ प्रेम (Unique story of Gopalganj) आज सभी के दिलों को छू रहा है.

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गोपालगंज: जिला मुख्यालय गोपालगंज से करीब 40 किलोमीटर दूर बरौली प्रखण्ड के बलहा गांव निवासी मंजूर हसन की चर्चा आज हर कोई कर रहा है. कहा जाए कि किसी व्यक्ति ने जीते-जी अपनी कब्र खुदवा ली है, तो यह बात काफी अटपटी लगती है. लेकिन मंजूर की उनकी मातृ भक्ति (Love For Mother) को लेकर आज मिसालें दी जा रही है. साल 1999 के जून महीने में उनकी मां का इंतकाल हो गया था. तब से मंजूर अपनी मां के मजार पर ही रहते हैं. इतना ही नहीं अपनी मौत के बाद वे अपनी मां के बगल में ही सोना (Son Grave Near Mother Tomb) चाहते हैं.

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आज तक आपने मां-बेटे के प्यार की कई कहानियां सुनी होंगी. वैसे तो हर बेटे के लिए उसकी मां किसी अनमोल हीरे से कम नहीं होती, लेकिन कुछ बेटे ऐसे भी हैं, जो अपना सारा जीवन और प्रेम अपनी मां को अर्पित कर देते हैं. गोपालगंज के बलहा गांव में रहने वाले एक मां-बेटे के प्रेम की कहानी भी कुछ ऐसी ही है.

हसन ने जीते-जी बनवा ली अपनी कब्र

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मां-बेटे के बेइंतहा मोहब्बत की ये कहानी स्वर्गीय मुबारक हुसैन के बेटे मंजूर हसन (Gopalganj Mother Son Love Story) की है. उन्होंने अपनी मां से मोहब्बत की अनूठी मिसाल (Unique Example Of Love) पेश की है. मंजूर हसन अपनी मां शाह शहरबानो हसनी से इस कदर प्यार करते हैं कि उन्होंने अपनी मां के कब्र के पास ही अपनी कब्र भी खुदवाई है. इतना ही नहीं मंजूर हसन अपने इंतकाल के बाद की सारी व्यवस्था भी खुद कर चुके हैं. उन्होंने अपनी कफन भी खरीद ली है.

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मंजूर हसन अपनी मां शाह शहरबानो हसनी से बेइंतहा प्यार करते थे. उनकी मां भी मंजूर से बहुत प्यार करती थी. मां का प्यार ही था कि मंजूर हसन मां से कभी अलग नहीं हुए. वो अपनी मां का काफी ख्याल रखते थे. तीन भाइयों में सबसे छोटे मंजूर के ऊपर उस वक्त दुखों का पहाड़ टूट पड़ा जब, साल 1999 के जून महीने में उनकी मां का इंतकाल हो गया.

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मां की याद में मंजूर हसन ने उनकी मजार बनवाई. दिन-रात उसी मजार पर रहते, उनकी सेवा करते हैं. खुद मजार की साफ सफाई करते हैं. अब उन्होंने अपनी मां के कब्र के पास ही खुद अपनी कब्र भी खुदवा डाली है. ताकि, मरने के बाद भी वो अपनी मां के साथ रह सकें.

मंजूर हसन कहते हैं कि मैं अपनी मां से अलग नहीं रहना चाहता हूं. उनके इंतेकाल के बाद काफी विचलित हो गया था. मेरी जिंदगी बोझ लगने लगी थी. लेकिन धीरे धीरे मैंने खुद को संभाला और मां की मजार बनवाई. यहीं पर ज्यादा समय बीतता है. मैंने अपनी जिंदगी में इसलिए अपनी कब्र खुदवा ली, ताकि मरने के बाद भी मां के बगल में ही रह संकू. मुझे कहीं और ना दफनाया जाए.

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मंजूर हसन कहते है मेरी मां जब जीवित थी तो मैं चाहे कितनी भी परेशानी में रहूं, मां के पास चले जाने के बाद काफी सुकून मिलता था. मां की मौत के बाद भी जब भी विचलित होता हूं तो मजार पर मुझे सुकून मिलता है.

"मैंने खुद का कफन इसलिए खरीदा क्योंकि मरने के बाद लोग मुझे सफेद कफन में लिटा देते, लेकिन मुझे हरा कफन पसंद है. मैं चाहता हूं कि मुझे हरे कफन में दफनाया जाए. हरा रंग हुसैनी रंग होता है. मुझे मां की बात हमेशा याद रहती है. मां हमेशा कहा करती थीं कि 'प्यार सबसे करना चाहिए किसी से दुश्मनी नहीं करनी चाहिए. अगर प्यार करेंगे तो दुश्मनी अपने आप खत्म हो जाएगी."- मंजूर हसन

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मंसूर सभी को अपनी मां का सम्मान,प्यार और ख्याल रखने का संदेश (Love Messages For Mother) दे रहे हैं. उन्हें यकीन है कि मरने के बाद भी वे अपनी मां के करीब रहेंगे. इसलिए उन्होंने मां के मजार के ठीक बगल में अपनी कब्र जीते-जी बनवा ली है.

समाज में आज भी कई ऐसे लोग हैं जो बूढ़े माता पिता को अकेला छोड़ देते हैं. मां की तड़पती ममता को दरकिनार कर अपनी जिंदगी की चकाचौंध में खो जाते हैं. मंसूर ऐसे लोगों को भी संदेश देते हुए कह रहे हैं कि कभी भी मां का दिल नहीं तोड़ना चाहिए. मां के कदमों में जन्नत होती है और उसकी आह से जिंदगी जहन्नुम बन जाती है. मंसूर हसन का मातृ प्रेम (Unique story of Gopalganj) आज सभी के दिलों को छू रहा है.

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