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खस की खेती ने बदली किसान मेघराज की किस्मत.. अब सालाना कमा रहे हैं लाखों, जानें पूरी कहानी

गांव में सब पहले किसान मेघराज का मजाक उड़ाते थे, उसे पागल कहते थे. खस की खेती को लेकर अब वही लोग मेघराज की प्रशंसा कर रहे हैं और खुद भी खस (खसखस) की फसल लगा रहे हैं. पढ़ें गोपालगंज (Khus farming in Gopalganj ) के सफल किसान मेघराज की पूरी कहानी..

Khus farming in Gopalganj
Khus farming in Gopalganj
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Published : Apr 11, 2022, 4:54 PM IST

गोपालगंज: जिले के सदर प्रखंड के कररिया गांव (Kararia Village farmer earn upto 20 lakh rupees ) निवासी स्व नंदलाल भगत के बेटे मेघराज प्रसाद खस की खेती (kisan life changed in Gopalganj) कर खास बन गए हैं. करीब 20 एकड़ में खस की खेती कर सलाना 20 लाख रुपये की आमदनी कमा रहे हैं. साथ ही उन किसानों के लिए प्रेरणा स्रोत बने हैं, जिन किसानों के फसल बाढ़ और अतिवृष्टि में बर्बाद हो जाते हैं. बाढ़ और अतिवृष्टि से परेशान किसानों के लिए खस की खेती किसी वरदान से कम नहीं है.

पढ़ें- जवान नहीं बन पाए.. तो बन गए किसान, 'फिश मैन' के रूप में बन गई पहचान

खस की खेती से मेघराज बने सफल किसान: कररिया गांव निवासी मेघराज उन सफल किसानों में गिने जाते हैं जिन्होंने मेहनत से अपने लिए रास्ता बनाया और आत्मनिर्भर बने. दो भाइयों और एक बहनों में बड़ा मेघराज के पिता पेशे से किसान थे, जो अन्य किसानों की तरह ही अपनी खेती करते थे. मेघराज भी अपने पिता के कामों में हाथ बटाते थे. तब उनकी पारिवारिक स्थिति काफी खराब थी. खेती से पूरा परिवार बमुश्किल से चल पाता था. जिसके कारण मेघराज नन मैट्रिक तक की ही पढ़ाई कर सके. तभी उन्होंने मन में यह ठान लिया कि एक न एक दिन वो ऐसी खेती कर आत्मनिर्भर बनेंगे जो अन्य लोगों की खेती से अलग हो और कम लागत में ज्यादा मुनाफा दे.

नेट पर सर्च कर की खेती: मेघराज ने अरूणाचल में एक मित्र के सहयोग से औषधीय पौधों के बारे के जानकारी पाई और नेट पर सर्च कर कम दाम में बेहतर काम करने के लिए खस के खेती के बारे में पता लगाया. जिसके बाद तत्काल लखनऊ के सीमैप रिसर्च सेंटर गए जहां से उन्होने 20 हजार में 10 हजार बीज खरीदी और अपने खेतों में डाल दी. शुरुआती दौर में उन्होंने एक बीघे मे खेती की जिसमें एक लाख की आमदनी हुई. देखते ही देखते उन्होंने 20 बीघे में खेती शुरू कर दी.

कहते थे लोग 'पागल': मेघराज बताते हैं कि उन्होने जब खेती की शुरुआत की थी तो परिवार समेत आसपास और सगे संबंधियों ने कई तरह की बातें कहीं. कई लोगों ने उन्हें पागल तक कह दिया कि घास की खेती कर क्या कुछ कर पाएगा. अगर धान और गेहूं की खेती करता तो कुछ अनाज होता था लेकिन घास की खेती से क्या होने वाला है. लेकिन सभी की बातों को अनसुना कर मेघराज ने अपनी किस्मत बदल डाली. आज वही लोग इस किसान की तारीफ करते नहीं थक रहे हैं.

17 हजार प्रति लीटर बिकती है इसकी तेल: किसान मेघराज ने कहा कि मोतिहारी के पिपराकोठी में पेराई कर इसका तेल निकाला जाता है, जो 17 हजार प्रति लीटर बिकता है. आज मैंने जीरो से हीरो का सफर तय किया है और आज मुझे खुशी है कि मैं अपने काम में बेहतर कर रहा हूं. पहले कंस्ट्रक्शन कंपनी में ठेकेदार के पद पर काम करते थे. लेकिन वह काम रास नहीं आया. हमेशा से ही मैं खेती करना चाहता था. अंत में मैंने नया सोच नया सवेरा के तहत काम करना शुरू कर दिया.

काफी उपयोगी है खस: खस के पौधे की जड़ से सुगंधित तेल निकाला जाता है जो बहुपयोगी है. खासकर इत्र निर्माण में इसका इस्तेमाल किया जाता है. साबुन, सुगंधित प्रसाधन सामग्री निर्माण में इसका इस्तेमाल होता है. यह फसल विषम माहौल में भी फल-फूल रही है. शून्य से चार डिग्री से लेकर 56 डिग्री तापमान तक में इस पौधे को नुकसान नहीं है.

प्रदूषण भी करता है कम: पर्यावरण के अनुकूल खस के पौधे मिट्टी की गुणवत्ता बढ़ाते हैं. खस का एक पौधा एक साल में 80 ग्राम कार्बन का अवशोषण करता है. इससे प्रदूषण कम करने में भी मदद मिलती है. सिंचाई की सुविधा नहीं रहने व किसानों को इंद्र देवता के भरोसे रहने की जरूरत नहीं है. खस, लेमनग्रास, पामारोजा तथा सिट्रोनेला घासों की खेती काफी उपयोगी साबित हो रही है.

20 लाख की कमाई: मोटी कमाई होने से यहां के किसानों की तकदीर बदल रही है. किसान मेघराज कहते हैं अन्य फसलों के साथ खस की खेती कर एक एकड़ में एक लाख की कमाई हो सकती है. मेघराज की आमदनी अब सलाना 20 लाख रुपये हो गई है. खस 10-15 दिन तक पानी में डूबे रहने के बाद भी गलता नहीं है. इसलिए बाढ़ प्रभावित इलाकों में किसान इसकी खेती में कर अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं. इसे लगाने में अलग से कोई विशेष खर्च नहीं होता. अलग से कोई रासायनिक उर्वरक की आवश्यकता नहीं है. कम लागत में ज्यादा मुनाफा मिलता है. खस की खेती उन इलाकों में भी हो सकती है जहां पानी कि किल्लत है और वहां भी जहां बाढ़ आती है. इसीलिए पूरे देश में एरोमा मिशन के तहत इसकी खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है.

ये भी पढ़ें- मायानगरी छोड़ अपने गांव लौटे राजेश, बत्तख पालन और मसाले की खेती से अब होती है इतनी कमाई

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गोपालगंज: जिले के सदर प्रखंड के कररिया गांव (Kararia Village farmer earn upto 20 lakh rupees ) निवासी स्व नंदलाल भगत के बेटे मेघराज प्रसाद खस की खेती (kisan life changed in Gopalganj) कर खास बन गए हैं. करीब 20 एकड़ में खस की खेती कर सलाना 20 लाख रुपये की आमदनी कमा रहे हैं. साथ ही उन किसानों के लिए प्रेरणा स्रोत बने हैं, जिन किसानों के फसल बाढ़ और अतिवृष्टि में बर्बाद हो जाते हैं. बाढ़ और अतिवृष्टि से परेशान किसानों के लिए खस की खेती किसी वरदान से कम नहीं है.

पढ़ें- जवान नहीं बन पाए.. तो बन गए किसान, 'फिश मैन' के रूप में बन गई पहचान

खस की खेती से मेघराज बने सफल किसान: कररिया गांव निवासी मेघराज उन सफल किसानों में गिने जाते हैं जिन्होंने मेहनत से अपने लिए रास्ता बनाया और आत्मनिर्भर बने. दो भाइयों और एक बहनों में बड़ा मेघराज के पिता पेशे से किसान थे, जो अन्य किसानों की तरह ही अपनी खेती करते थे. मेघराज भी अपने पिता के कामों में हाथ बटाते थे. तब उनकी पारिवारिक स्थिति काफी खराब थी. खेती से पूरा परिवार बमुश्किल से चल पाता था. जिसके कारण मेघराज नन मैट्रिक तक की ही पढ़ाई कर सके. तभी उन्होंने मन में यह ठान लिया कि एक न एक दिन वो ऐसी खेती कर आत्मनिर्भर बनेंगे जो अन्य लोगों की खेती से अलग हो और कम लागत में ज्यादा मुनाफा दे.

नेट पर सर्च कर की खेती: मेघराज ने अरूणाचल में एक मित्र के सहयोग से औषधीय पौधों के बारे के जानकारी पाई और नेट पर सर्च कर कम दाम में बेहतर काम करने के लिए खस के खेती के बारे में पता लगाया. जिसके बाद तत्काल लखनऊ के सीमैप रिसर्च सेंटर गए जहां से उन्होने 20 हजार में 10 हजार बीज खरीदी और अपने खेतों में डाल दी. शुरुआती दौर में उन्होंने एक बीघे मे खेती की जिसमें एक लाख की आमदनी हुई. देखते ही देखते उन्होंने 20 बीघे में खेती शुरू कर दी.

कहते थे लोग 'पागल': मेघराज बताते हैं कि उन्होने जब खेती की शुरुआत की थी तो परिवार समेत आसपास और सगे संबंधियों ने कई तरह की बातें कहीं. कई लोगों ने उन्हें पागल तक कह दिया कि घास की खेती कर क्या कुछ कर पाएगा. अगर धान और गेहूं की खेती करता तो कुछ अनाज होता था लेकिन घास की खेती से क्या होने वाला है. लेकिन सभी की बातों को अनसुना कर मेघराज ने अपनी किस्मत बदल डाली. आज वही लोग इस किसान की तारीफ करते नहीं थक रहे हैं.

17 हजार प्रति लीटर बिकती है इसकी तेल: किसान मेघराज ने कहा कि मोतिहारी के पिपराकोठी में पेराई कर इसका तेल निकाला जाता है, जो 17 हजार प्रति लीटर बिकता है. आज मैंने जीरो से हीरो का सफर तय किया है और आज मुझे खुशी है कि मैं अपने काम में बेहतर कर रहा हूं. पहले कंस्ट्रक्शन कंपनी में ठेकेदार के पद पर काम करते थे. लेकिन वह काम रास नहीं आया. हमेशा से ही मैं खेती करना चाहता था. अंत में मैंने नया सोच नया सवेरा के तहत काम करना शुरू कर दिया.

काफी उपयोगी है खस: खस के पौधे की जड़ से सुगंधित तेल निकाला जाता है जो बहुपयोगी है. खासकर इत्र निर्माण में इसका इस्तेमाल किया जाता है. साबुन, सुगंधित प्रसाधन सामग्री निर्माण में इसका इस्तेमाल होता है. यह फसल विषम माहौल में भी फल-फूल रही है. शून्य से चार डिग्री से लेकर 56 डिग्री तापमान तक में इस पौधे को नुकसान नहीं है.

प्रदूषण भी करता है कम: पर्यावरण के अनुकूल खस के पौधे मिट्टी की गुणवत्ता बढ़ाते हैं. खस का एक पौधा एक साल में 80 ग्राम कार्बन का अवशोषण करता है. इससे प्रदूषण कम करने में भी मदद मिलती है. सिंचाई की सुविधा नहीं रहने व किसानों को इंद्र देवता के भरोसे रहने की जरूरत नहीं है. खस, लेमनग्रास, पामारोजा तथा सिट्रोनेला घासों की खेती काफी उपयोगी साबित हो रही है.

20 लाख की कमाई: मोटी कमाई होने से यहां के किसानों की तकदीर बदल रही है. किसान मेघराज कहते हैं अन्य फसलों के साथ खस की खेती कर एक एकड़ में एक लाख की कमाई हो सकती है. मेघराज की आमदनी अब सलाना 20 लाख रुपये हो गई है. खस 10-15 दिन तक पानी में डूबे रहने के बाद भी गलता नहीं है. इसलिए बाढ़ प्रभावित इलाकों में किसान इसकी खेती में कर अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं. इसे लगाने में अलग से कोई विशेष खर्च नहीं होता. अलग से कोई रासायनिक उर्वरक की आवश्यकता नहीं है. कम लागत में ज्यादा मुनाफा मिलता है. खस की खेती उन इलाकों में भी हो सकती है जहां पानी कि किल्लत है और वहां भी जहां बाढ़ आती है. इसीलिए पूरे देश में एरोमा मिशन के तहत इसकी खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है.

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