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शिक्षा विभाग की लापरवाही से स्कूल में नहीं होता है पठन-पाठन का काम, बच्चों ने स्कूल आना किया बंद

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Published : Nov 20, 2019, 1:38 PM IST

स्कूल में 1 साल पहले तक 35 बच्चों के नाम रजिस्टर में दर्ज थे, जो अब 5 रह गए हैं. सरकार स्कूलों में शैक्षिक गुणवत्ता सुधारने के लिए प्रयास कर रही है. इसके बावजूद विभाग की अनदेखी के कारण शिक्षा व्यवस्था का ये हाल है.

शिक्षा विभाग की लापरवाही

गोपालगंजः जिले में सिधवलिया प्रखण्ड के बखरौर बथान टोला गांव स्थित राजकीय प्राथमिक विद्यालय में विभाग की घोर लापरवाही देखने को मिल रही है. यहां पढ़ाने वाले शिक्षक तो हैं, लेकिन पढ़ने वाले बच्चे गायब हैं. ये सिलसिला पूरे एक साल से चल रहा है लेकिन आज तक विभाग की नजर इस तरफ नहीं पहुंची.

2006 में हुई थी स्थापना
स्कूल की स्थापना साल 2006 में हुई थी, तब इसमें काफी संख्या में बच्चे पढ़ने आते थे. स्कूल का दो मंजिला भवन भी काफी खूबसूरती से बनाया गया था. बच्चों के पढ़ने के लिए अलग-अलग वर्ग, किचन शेड के साथ शौचालय और प्राचार्य के कक्ष बनाए गए थे.

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स्कूल में बंद ताले

तालों पर जमा हैं धूल
दीवारों पर मोटे-मोटे अक्षरों में 'गइया बकरियां चरती जाएं, मुनिया बेटी पढ़ती जाए', 'पढ़ी लिखी बहना, घर की है गहना' जैसे स्लोगन लिखे गए हैं. लेकिन दुर्भाग्यवश न इसमें मुनिया बेटी पढ़ती है और न ही बहना शिक्षा ग्रहण करती है. स्कूल के चारों ओर बड़े-बड़े घास उग गए हैं. क्लास रूम के दरवाजों पर लगे ताले पर धूल और जंग लग गए हैं. जिसे देखकर पता चलता है कि ये सालों से बंद है.

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अटेंडेंस रजिस्टर

बिना पढ़ाए मिल रहा शिक्षकों को वेतन
बस्ती से दूर एकांत में स्थित स्कूल की शिक्षिका रेणु ने बताया कि ये प्रशासनिक उदासीनता, आपसी रंजिश और जातिवाद की भेंट चढ़ चुका है. अभिभावकों के मना करने की वजह से बच्चे यहां पढ़ने नहीं आते हैं, लेकिन शिक्षक नियमित तौर पर आते हैं. बिना पढ़ाए शिक्षा विभाग इन शिक्षकों को नियमित वेतन भी दे रहा है.

शिक्षा विभाग की लापरवाही

विभाग की अनदेखी
स्कूल में 1 साल पहले तक 35 बच्चों के नाम रजिस्टर में दर्ज थे, जो अब 5 रह गए हैं. सरकार स्कूलों में शैक्षिक गुणवत्ता सुधारने के लिए प्रयास कर रही है. इसके बावजूद विभाग की अनदेखी के कारण शिक्षा व्यवस्था का ये हाल है.

गोपालगंजः जिले में सिधवलिया प्रखण्ड के बखरौर बथान टोला गांव स्थित राजकीय प्राथमिक विद्यालय में विभाग की घोर लापरवाही देखने को मिल रही है. यहां पढ़ाने वाले शिक्षक तो हैं, लेकिन पढ़ने वाले बच्चे गायब हैं. ये सिलसिला पूरे एक साल से चल रहा है लेकिन आज तक विभाग की नजर इस तरफ नहीं पहुंची.

2006 में हुई थी स्थापना
स्कूल की स्थापना साल 2006 में हुई थी, तब इसमें काफी संख्या में बच्चे पढ़ने आते थे. स्कूल का दो मंजिला भवन भी काफी खूबसूरती से बनाया गया था. बच्चों के पढ़ने के लिए अलग-अलग वर्ग, किचन शेड के साथ शौचालय और प्राचार्य के कक्ष बनाए गए थे.

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स्कूल में बंद ताले

तालों पर जमा हैं धूल
दीवारों पर मोटे-मोटे अक्षरों में 'गइया बकरियां चरती जाएं, मुनिया बेटी पढ़ती जाए', 'पढ़ी लिखी बहना, घर की है गहना' जैसे स्लोगन लिखे गए हैं. लेकिन दुर्भाग्यवश न इसमें मुनिया बेटी पढ़ती है और न ही बहना शिक्षा ग्रहण करती है. स्कूल के चारों ओर बड़े-बड़े घास उग गए हैं. क्लास रूम के दरवाजों पर लगे ताले पर धूल और जंग लग गए हैं. जिसे देखकर पता चलता है कि ये सालों से बंद है.

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अटेंडेंस रजिस्टर

बिना पढ़ाए मिल रहा शिक्षकों को वेतन
बस्ती से दूर एकांत में स्थित स्कूल की शिक्षिका रेणु ने बताया कि ये प्रशासनिक उदासीनता, आपसी रंजिश और जातिवाद की भेंट चढ़ चुका है. अभिभावकों के मना करने की वजह से बच्चे यहां पढ़ने नहीं आते हैं, लेकिन शिक्षक नियमित तौर पर आते हैं. बिना पढ़ाए शिक्षा विभाग इन शिक्षकों को नियमित वेतन भी दे रहा है.

शिक्षा विभाग की लापरवाही

विभाग की अनदेखी
स्कूल में 1 साल पहले तक 35 बच्चों के नाम रजिस्टर में दर्ज थे, जो अब 5 रह गए हैं. सरकार स्कूलों में शैक्षिक गुणवत्ता सुधारने के लिए प्रयास कर रही है. इसके बावजूद विभाग की अनदेखी के कारण शिक्षा व्यवस्था का ये हाल है.

Intro:आपने कई ऐसे विद्यालयों के बारे में जरूरी सुना होगा जिसमे छात्र तो है लेकिन शिक्षक नही है। शिक्षक विहीन विद्यालय के कारण बच्चे स्कूल से दूर हो गए है। लेकिन आपको यह जान कर हैरानी होगी। कि गोपलगंज जिले में एक ऐसा स्कूल है जिसमे बच्चो को पढ़ाने के लिए दो शिक्षक नियुक्त है, लेकिन पढ़ने वाला छात्र ही गायब है। दिलचस्प बात तो यह है कि इस विद्यालय में एक दो माह से नही बल्कि पूरे एक वर्ष से छात्र विहीन स्कूल बना हुआ है। जिसपर विभाग की नजर आज तक नही पहुँची।







Body:हम बात कर रहे है, जिला मुख्यालय गोपालगंज से 40 किलोमीटर दूर सिधवलिया प्रखण्ड के बखरौर बथान टोला गांव के राजकीय प्राथमिक विद्यालय की। इस विद्यालय की स्थापना वर्ष 2006 में हुई थी तब इस विद्यालय में काफी संख्या में बच्चे पढ़ने आते थे। स्कूल का भवन भी काफी खूबसूरती से दो मंजिला बनाई गई थी। बच्चो के पढ़ने के लिए अलग अलग वर्ग भी बने थे किचन शेड के साथ साथ शौचालय व प्राचार्य के कक्ष बनाये गए थे। स्कूल के दीवारों पर मिड डे मील के मीनू भी लिखा गया था। साथ ही इन दीवारों पर मोटे मोटे अक्षरो में गइया बकरियां चरती जाएं मुनिया बेटी पढ़ती जाए, पढ़ी लिखी बहना घर की है गहना जैसे स्लोगन लिखा गया है। लेकिन दुर्भाग्य है कि नाही इसमें मुनिया बेटी पढ़ती है, और नाही इसमें बहना ही शिक्षा ग्रहण करती है। यहां सिर्फ दो शिक्षिका ही पद नियुक्त है। लेकिन छात्र नही है। इस विद्यालय के चारो ओर बड़े बड़े घास उग आए है क्लास रूम के दरवाजे पर लगे ताले पर धूल जमा होने केसाथ जंग लग गए है। खिड़कियों में मकड़ी के जाल लग गए है, जिससे साफ तौर पर अंदाजा लगाया जा सकता है। कि इस विद्यालय के क्लास रूम वर्षो से नही खुले है। इस विद्यालय के आस पास दूर दूर तक कोई घर नजर नही आ रहे थे। ईटीवी भारत की टीम जब स्कूल पहुंची तब इस स्कूल को देखने से ऐसा लग रहा था मानो यह विद्यालय बंद हो गया हो। स्कूल के चारो ओर बड़े बड़े घांस उग आए थे। आस पास के लोगो से जानने की कोशिश की गई लेकिन दूर दूर तक कोई घर व नाही कोई व्यक्ति नजर आ रहे थे। बस्ती से दूर एकांत में स्थित इस विद्यालय में में जब प्रवेश किया तब मौके पर एक रेणु नाम के शिक्षिका मौजुद थी। जब हमने उस शिक्षिका से स्कूल केबारे में जानने की कोशिश की तो उन्होंने कई चौकाने वाली बात कही। दरअसल यह विद्यालय प्रशासनिक उदाशीनता व आपसी रंजिश, जातिवाद को लेकर 1 साल से भेंट चढ़ गई है। इस विद्यालय में अभिभावकों के मना करने के बाद बच्चे पढ़ने नहीं आते है। लेकिन शिक्षिका नियमित आने की बात कहती है। 1 साल से विद्यालय में ताला लगा है लेकिन बिना पढ़ाए शिक्षा विभाग इन शिक्षकों पर मेहरबान है। उन्हें नियमित तनख्वाह भी दे रही है।
ज्ञातव्य हो कि सरकार ने विद्यालय में शैक्षिक गुणवत्ता सुधारने के लिए तमाम प्रयास कर रही है बावजूद आज भी कई ऐसे विद्यालय है जहां बच्चो के पढ़ने के लिए भवन नही है वहा के बच्चे खुले आसमान में शिक्षा ग्रहण करने को बाध्य होते है लेकिन विभाग ऐसे बच्चो पर ध्यान नही देती। सरकार द्वारा निशुल्क पुस्तकें ड्रेस आदि की सहूलियत के साथ बच्चों को अन्य सुविधाएं भी उपलब्ध कराई जा रही है। इन सबके बावजूद विद्यालयो में आज भी कोई नियम नहीं है। इस विद्यालय में 1 साल पूर्व 35 बच्चों के नाम रजिस्टर में दर्ज है। जो घटते घटते 5 बच्चे विद्यालय रह गए। यह नवंबर20 18 से विद्यालयन आना बंद कर दिया तब से विद्यालय में ताला लगा हुआ है। इस संदर्भ में हमने जब जिला शिक्षा पदाधिकारी से बात करने की कोशिश की तो उन्होंने मिलने से इंकार कर दिया।


Conclusion:na
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