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गरीबी में पढ़ाई कर बने डॉक्टर, अब गरीब बच्चों को नि:शुल्क दिला रहे हैं शिक्षा

जीवन में सफलता हासिल करने के बाद लोग अपनी गरीबी के दिनों को भूल जाते हैं. लेकिन, कुछ ऐसे भी शख्स हैं जो अपनी गरीबी को ही हथियार बनाकर सफलता हासिल कर एक ऊंचाई को छूते हैं. इन्हीं में से एक हैं गोपालगंज के चिकित्सक डॉक्टर आलोक कुमार सुमन.

डॉ आलोक कुमार सुमन
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Published : Feb 20, 2019, 10:39 AM IST

गोपालगंज: जिले के यादोपुर स्थित दुःखहरण गांव के डॉ आलोक कुमार सुमन गरीबी के अपने दिनों को याद कर स्थानीय गरीब बच्चों को निशुल्क शिक्षा दे रहे हैं. इलाके में डॉ सुमन अपने इसी नेक काम के लिए विख्यात हैं.

अपनी गरीबी से सबक लेकर शुरु किया कोचिंग
डॉ सुमन कहते हैं कि इनका बचपन काफी गरीबी में बीता. काफी दिक्कतों से अपनी पढ़ाई पूरी की. इसी बेवसी लाचारी व गरीबी से सीख लेकर वे अब वे शहर के पोस्टऑफिस चौक के पास गरीब बच्चो के लिए निःशुल्क कोचिंग संचालित कर रहे है ताकि जो परेशानी इन्हें देखने को मिली वह परेशानी शायद अन्य पढ़ने वाले गरीब छात्र- छात्राओं को न हो.

डॉ सुमन द्वारा संचालित कोचिंग सेंटर

गरीब बच्चों की शिक्षा का सारा खर्च उठाते हैं डॉ सुमन
इस कोचिंग सेंटर का सारा खर्च खुद डॉ आलोक कुमार सुमन ही उठाते हैं. वर्तमान में इस कोचिंग में करीब डेढ़ से दो सौ छात्र छात्राएं है. यहां नवीं से लेकर बारहवीं तक कि शिक्षा निःशुल्क दी जाती है. इसके डॉ सुमन गरीब मरीजों को निःशुल्क इलाज करते है.

गोपालगंज: जिले के यादोपुर स्थित दुःखहरण गांव के डॉ आलोक कुमार सुमन गरीबी के अपने दिनों को याद कर स्थानीय गरीब बच्चों को निशुल्क शिक्षा दे रहे हैं. इलाके में डॉ सुमन अपने इसी नेक काम के लिए विख्यात हैं.

अपनी गरीबी से सबक लेकर शुरु किया कोचिंग
डॉ सुमन कहते हैं कि इनका बचपन काफी गरीबी में बीता. काफी दिक्कतों से अपनी पढ़ाई पूरी की. इसी बेवसी लाचारी व गरीबी से सीख लेकर वे अब वे शहर के पोस्टऑफिस चौक के पास गरीब बच्चो के लिए निःशुल्क कोचिंग संचालित कर रहे है ताकि जो परेशानी इन्हें देखने को मिली वह परेशानी शायद अन्य पढ़ने वाले गरीब छात्र- छात्राओं को न हो.

डॉ सुमन द्वारा संचालित कोचिंग सेंटर

गरीब बच्चों की शिक्षा का सारा खर्च उठाते हैं डॉ सुमन
इस कोचिंग सेंटर का सारा खर्च खुद डॉ आलोक कुमार सुमन ही उठाते हैं. वर्तमान में इस कोचिंग में करीब डेढ़ से दो सौ छात्र छात्राएं है. यहां नवीं से लेकर बारहवीं तक कि शिक्षा निःशुल्क दी जाती है. इसके डॉ सुमन गरीब मरीजों को निःशुल्क इलाज करते है.

Intro:जीवन में सफलता हासिल करने के बाद लोग अपनी गरीबी के दिनों को भूल जाते हैं लेकिन कुछ ऐसे भी शख्स हैं जो अपनी गरीबी को ही हथियार बनाकर सफलता हासिल कर एक ऊंचाई को छू रहे हैं और इन्हीं शख्स में से एक हैं जिले के चिकित्सक डॉक्टर आलोक कुमार सुमन। आलोक कुमार सुमन के बचपन काफी मजबूरी व लाचारी में कटा घर के माली हालत ठीक नहीं रहने के कारण इनकी पढ़ाई संभव न होती दिख रही थी लेकिन ईन्होंने भी हार न मानी और अपने पढ़ाई के प्रति लग्न और मेहनत के बल पर गरीबी और परेशानी को भी पीछे छोड़ कर आज डॉक्टर सुमन जिले के चर्चित चिकित्सकों में से एक है। इन्होंने इसी बेवसी लाचारी व गरीबी से सिख लेकर शहर के पोस्टऑफिस चौक के पास गरीब बच्चो के लिए निःशुल्क कोचिंग संचालित कर रहे है ताकि जो परेशानी इन्हें देखने को मिली वह परेशानी शायद अन्य पढ़ने वाले गरीब छात्र- छात्राओं को न हो।

कौन है डॉक्टर आलोक कुमार सुमन

डॉ आलोक कुमार सुमन वैसे डॉक्टरो में से एक है जिनके बारे में अगर आप किसी से भी पूछेंगे तो आपको वह व्यक्ति बहुत ही शालीनता से उनके बारे में या उनके घर का रास्ता बता देगा। तीन भाई दो बहनों में सबसे बड़े डॉ साहब का जन्म जिले के यादोपुर स्थित दुःखहरण गांव में हुआ था। इनके पिता जी जयश्री राम के पेशे से एक ड्राइवर हुआ करते थे। पिता की आमदनी काफी कम रहने के कारण इन्हें काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा। बचपन से ही प्रतिभा की घनी व पढाई में रुचि रखने वाले डॉ साहब ने बताया कि। ये जब छोटे थे तब पढाई की काफी इच्छा हुआ करती थी। लेकिन कपड़े नही होने व पढाई का खर्च वहन करने के लिए उतने पैसे पिता के पास नही थी। उनके कमाई का सारा पैसा सिर्फ दो वक्त के रोटी के जुगाड़ में ही खत्म हो जाता। लेकिन इन्होंने भी यह ठान लिया कि किसी भी हाल में पढ़ाई की जाएगी। तब ये गाँव के पोखरे में स्नान करते और मैले कुचैले कपड़े पहन कर स्कूल में जाकर एक क्लास में पीछे बैठकर शिक्षक द्वारा पढाई गई बातों को ध्यान से सुन कर याद करते। यह सील सील लगातार चलता रहा साथ ही इनकी हरकत को एक शिक्षक स्व विंध्याचल उपाध्याय लगातार देखते। और एक दिन उस शिक्षक ने इनकी पढाई के प्रति लग्न को देख काफी खुश हुए और उन्होंने कपड़े व किताब की व्यवस्था कर पढ़ाना शुरू कर दिया। कुछ दिन बाद ये छुट्टी के दिनों में या पढाई के बाद मेहनत मजदूरी व इट भठ्ठे पर इट ढोकर जो मजदूरी मिलता उसे अपने घर चलाकर पिता के हाथ बटाने लगे और अपनी पढ़ाई का भी खर्च निकालने लगे। समय बीतता गया और इनकी लग्न और मेहनत और बढ़ती गई।

नाच पार्टी से मिली डॉक्टर बनने की प्रेरणा

आज जिस डॉक्टर की ख्याति दूर दूर तक फैली है उस शख्श ने डॉक्टर बनने की प्रेरणा एक नाच पार्टी के सदस्य से ली है। इस संदर्भ में डॉक्टर साहब ने बताया कि जब हम छोटे थे तब घर के पास एक नाच पार्टी आया था। जहां वे लोग आपस मे बात कर रहे थे कि ऑफिसर बनने पर तब तक मान मर्यादा मिलती है, जब तक उस स्थान पर हम रहते है। लेकिन डॉक्टर ही एक ऐसा है जिसकी मान मर्यादा में कभी कमी नही होती ये मरीजो के लिए भगवान होते है। तब से इन्होंने अपने मन मे इस बात को बैठा लिया कि चाहे जो हो जाये एक दिन हम डॉक्टर ही बनूँगा। मरीजो की सेवा करूँगा। और इन्ही सोच के साथ इन्होंने अपनी पढ़ाई आगे जारी रखी। इन्होंने वीएम स्कूल से 1976 में मैट्रिक की शिक्षा प्राप्त की साथ ही इंटर की परीक्षा साइंस कॉलेज पटना से 1978 में की। इसके बाद इन्होंने 1978 में ही पीएमसीएच में। एमबीबीएस के लिए नामांकन किया। 1985 में इन्होंने एमबीबीएस की उपाधि प्राप्त की जबकि एमएस की उपाधि इन्होंने 1987 -89 में प्राप्त की। 1989 में ही इन्होंने राम मनोहर लोहिया नई दिल्ली हॉस्पिटल हॉस्पिटल में अपना योगदान दिया। डेढ़ वर्ष योगदान करने के बाद 1990 में सरकारी चिकित्सक के रूप में सदर अस्पताल गोपालगंज में सर्जन के पद पर मरीजो की सेवा करना शुरू कर दिया। सदर अस्पताल में 20 वर्षो तक काम करने के बाद 2010 में एकच्छिक अवकाश प्राप्त कर ली। इतना ही नही खुद डॉक्टर बनने के साथ साथ अपने भाइयों व बहनों को भी पढ़ाया लिखाया आज एक भाई अमर कुमार जो सदर अस्पताल में आर्थोपेडिक सर्जन के पद पर कार्यरत है वही दूसरा भाई पार्लियामेंट (लोक सभा ) में एडिशनल डायरेक्टर के पद पर कार्यरत है।

गरीबी से सिख लेकर खोल डाली शिक्षा का केंद्र

डॉक्टर आलोक कुमार सुमन अपने बीते दिनों को याद का भावुक हो जाते है कि किस तरह एक गरीब के लिए पढ़ाई कितना मायने रखता था। वर्तमान में हुए व्यवसायीकरण हुए शिक्षा के कारण लग्नसिल वे मेहनती छात्रों का प्रतिभा उभर नही पाती है। जिसको लेकर इन्होंने तीन वर्ष पहले पोस्टऑफिस चौक के पास एस जॉन नामक कोचिंग सेंटर सुरु की जिसमे छात्र छात्राएं निःशुल्क शिक्षा ग्रहण करते है। यहां के सारा खर्च खुद डॉक्टर साहब वहन करते है वर्तमान में इस कोचिंग में करीब डेढ़ से दो सौ छात्र छात्राएं है। यहां नवीं से लेकर बारहवीं तक कि शिक्षा निःशुल्क दी जाती है। सिर्फ शिक्षा ही नही बल्कि इन्होंने मरीजो के इलाज में भी रियायत देते है गरीब मरीजो को निःशुल्क इलाज करते है।


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