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गोपालगंज: पैसों की कमी और सरकारी उदासीनता, जिंदगी की जंग हार गया देवतानंद - devanand of gopalganj

गोपालगंज के माझा प्रखंड में कई परिवार सरकारी योजनाओं से वंछित है. यहां कि बीमार सविता का परिवार हो या देवतानंद की ये तस्वीरें ये बताने को काफी है कि गरीबी के कारण इस गांव के लोगों का क्या हाल है.

ये है परिवार का हाल, एक रिपोर्ट
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Published : Sep 24, 2019, 8:26 PM IST

Updated : Sep 25, 2019, 3:47 PM IST

गोपालगंज: जिला मुख्यालय से करीब 12 किलोमीटर दूर माझा प्रखंड के मधु सरेया गांव निवासी देवतानंद यादव 8 दिनों से जिंदगी और मौत की लड़ाई लड़ रहे थे. पैसों के अभाव में वो ये जंग हार गए. अब वो इस दुनिया में नहीं है. अफसोस की बात तो ये है कि देवतानंद यादव की के लिए सरकार की तरफ से किसी प्रकार की कोई सहायता मुहैया नहीं कराई जा सकी. वहीं, उनके बेबस लचार बच्चों के सिर से बाप का साया उठ चुका है.

देवतानंद यादव को आठ दिन पहले ब्रेनहेमरेज हो गया था. देवतानंद के घर में दिव्यांग पत्नी के अलावा पांच मासूम बच्चे और बूढ़ी मां हैं. पत्नी कांति ने बताया कि बीते 16 सिंतबर को पति रात को शौच करने उठे. पैर फिसलने की वजह से अचानक गिर पड़े. स्थानीय लोगों की मदद से उन्हें इलाज के लिए गोरखपुर मेडिकल कॉलेज ले जाया गया. डॉक्टरों ने बेहतर इलाज के लिए उन्हें लखनऊ रेफर कर दिया.

घर में मातम
घर में मातम

इलाज में खर्चा था 5 लाख रूपये
देवतानंद के इलाज के लिए डॉक्टरों ने पांच लाख रुपये का खर्च होने की बात कही थी. लेकिन घर में पैसे नहीं होने के कारण पति का इलाज करवाना असंभव था. ईटीवी भारत ने देवतानंद की खबर को प्राथमिकता के साथ दिखाया और संभव मदद भी की. लेकिन सरकार के किसी रहनुमा ने इस पीड़ित परिवार से मिलना मुनासिब नहीं समझा. आज देवतानंद इस दुनिया में नहीं है.

देखिए परिवार का हाल (खास रिपोर्ट)

न तन में कपड़ा, अब बाप का साया भी बिछड़ा
न तन में कपड़ा, न खाने को दो वक्त की रोटी. ऊपर से अब पांच मासूम बच्चों के सिर से बाप का साया उठ जाना. हाय रे! ये कैसा जुल्म. कुछ यही शब्द निकलते हैं देवतानंद के परिवार की हालत देख कर. मां का रो-रोकर बुरा हाल है. पत्नी बदहवास है. कैसे कटेगी इनकी पूरी उम्र बस सरकार से यही सवाल है.

मां का रो-रोकर बुरा हाल
मां का रो-रोकर बुरा हाल

मजदूर परिवार पर ये कैसा सितम...
मजदूर की पत्नी की माने तो उसने गांव के मुखिया से मदद की गुहार लगायी थी. वहीं, देवतानंद मजदूरी कर घर चला रहा था. बच्चों की पढ़ाई से लेकर बूढ़ी मां की लाठी देवतानंद अब इस दुनिया मे नहीं है. गोपालगंज के माझा प्रखंड में कई परिवार सरकारी योजनाओं से वंछित है. यहां की बीमार सविता का परिवार हो या देवानंद का, ये तस्वीरें ये बताने को काफी है कि गरीबी के कारण इस गांव के लोगों का क्या हाल है.

पत्नी बदहवास
पत्नी बदहवास

गोपालगंज: जिला मुख्यालय से करीब 12 किलोमीटर दूर माझा प्रखंड के मधु सरेया गांव निवासी देवतानंद यादव 8 दिनों से जिंदगी और मौत की लड़ाई लड़ रहे थे. पैसों के अभाव में वो ये जंग हार गए. अब वो इस दुनिया में नहीं है. अफसोस की बात तो ये है कि देवतानंद यादव की के लिए सरकार की तरफ से किसी प्रकार की कोई सहायता मुहैया नहीं कराई जा सकी. वहीं, उनके बेबस लचार बच्चों के सिर से बाप का साया उठ चुका है.

देवतानंद यादव को आठ दिन पहले ब्रेनहेमरेज हो गया था. देवतानंद के घर में दिव्यांग पत्नी के अलावा पांच मासूम बच्चे और बूढ़ी मां हैं. पत्नी कांति ने बताया कि बीते 16 सिंतबर को पति रात को शौच करने उठे. पैर फिसलने की वजह से अचानक गिर पड़े. स्थानीय लोगों की मदद से उन्हें इलाज के लिए गोरखपुर मेडिकल कॉलेज ले जाया गया. डॉक्टरों ने बेहतर इलाज के लिए उन्हें लखनऊ रेफर कर दिया.

घर में मातम
घर में मातम

इलाज में खर्चा था 5 लाख रूपये
देवतानंद के इलाज के लिए डॉक्टरों ने पांच लाख रुपये का खर्च होने की बात कही थी. लेकिन घर में पैसे नहीं होने के कारण पति का इलाज करवाना असंभव था. ईटीवी भारत ने देवतानंद की खबर को प्राथमिकता के साथ दिखाया और संभव मदद भी की. लेकिन सरकार के किसी रहनुमा ने इस पीड़ित परिवार से मिलना मुनासिब नहीं समझा. आज देवतानंद इस दुनिया में नहीं है.

देखिए परिवार का हाल (खास रिपोर्ट)

न तन में कपड़ा, अब बाप का साया भी बिछड़ा
न तन में कपड़ा, न खाने को दो वक्त की रोटी. ऊपर से अब पांच मासूम बच्चों के सिर से बाप का साया उठ जाना. हाय रे! ये कैसा जुल्म. कुछ यही शब्द निकलते हैं देवतानंद के परिवार की हालत देख कर. मां का रो-रोकर बुरा हाल है. पत्नी बदहवास है. कैसे कटेगी इनकी पूरी उम्र बस सरकार से यही सवाल है.

मां का रो-रोकर बुरा हाल
मां का रो-रोकर बुरा हाल

मजदूर परिवार पर ये कैसा सितम...
मजदूर की पत्नी की माने तो उसने गांव के मुखिया से मदद की गुहार लगायी थी. वहीं, देवतानंद मजदूरी कर घर चला रहा था. बच्चों की पढ़ाई से लेकर बूढ़ी मां की लाठी देवतानंद अब इस दुनिया मे नहीं है. गोपालगंज के माझा प्रखंड में कई परिवार सरकारी योजनाओं से वंछित है. यहां की बीमार सविता का परिवार हो या देवानंद का, ये तस्वीरें ये बताने को काफी है कि गरीबी के कारण इस गांव के लोगों का क्या हाल है.

पत्नी बदहवास
पत्नी बदहवास
Intro:गोपालगंज जिला मुख्यालय से करीब 12 किलोमीटर दूर माझा प्रखंड के मधु सरेया गांव निवासी देवता नंद यादव 8 दिनों तक जिंदगी और मौत से लड़ने के बाद हमेशा के लिए अब इस दुनिया से अलविदा कर दिया। लेकिन उसे सरकार की तरफ से कोई सुविधाएं मुहैया नही कराई जा सकी।


Body:देवानंद के मौत के बाद परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा है 5 मासूम बच्चे,दिव्यांग पत्नी ,बूढ़े मां बाप का वही एक मात्र सहारा था। देवतानंद पर गरीबी के मार इस कदर पड़ी कि वह इस दुनिया को ही छोड़ दिया। पत्नी के आंखों के आंसू सूख गए हैं। वह सिर्फ और सिर्फ एकटक निगाहों से देखती ही रह जाती है। उसे समझ में नहीं आ रहा कि अब करे तो क्या ? वही बूढ़ी मां के आंखों के आंसू थमने का नाम ही नहीं ले रहा है, कि जिस बेटे को उसने जन्म दिया और वही आज उसके पहले ही चल बसा और वह भी पैसे के अभाव में। मां और पत्नी का कहना है कि काश मेरे पास पैसे होते तो मैं देवतानंद को उचित इलाज करा पाती। लेकिन ईश्वर का कुछ और ही मंजूर था। जो परिवार का भरण पोषण करने वाला इस दुनिया को छोड़ दिया है। 5 मासूम बच्चों के चेहरे पर खामोशी छाई हुई है। अब इन्हें कौन देखभाल करेगा लेकिन देवता नंद के मौत के बाद सिस्टम पर भी सवाल उठने लगे हैं। क्योंकि सरकार द्वारा लगातार यह कहा जाता रहा है,की पैसे के अभाव में किसी गरीब की मौत नहीं होगी। लेकिन यह तस्वीरें सरकार को आईना दिखाने के लिए काफी है
ज्ञातव्य हो कि मधुसरेया गांव निवासी रामायण यादव के पुत्र देवता नंद यादव को 8 दिन पूर्व शौच के दौरान ब्रेन हैंमरेज हो गया था। स्थानीय लोगों के मदद से किसी तरह गोपालगंज सदर अस्पताल भर्ती कराया गया जहां चिकित्सकों ने प्राथमिक उपचार के बाद बेहतर इलाज के लिए गोरखपुर रेफर कर दिया था। वही परिजनों के पास इतने पैसे नहीं थे जिससे वह इलाज करा सके स्थानीय लोगों के मदद से उसके इलाज के लिए चंदा इकट्ठा किए गए। उस चंदे के पैसे से गोरखपुर में पत्नी ने अपने पति का इलाज कराया। लेकिन डॉक्टरों ने उसे बेहतर इलाज के लिए लखनऊ रेफर कर दिया। अब ऐसे में पत्नी की हिम्मत और स्थानीय लोगों की मदद कम पड़ गई पत्नी के पास इतने पैसे नहीं थे कि वह अपने पति का इलाज लखनऊ में करा सके और अंततः उसे अपने घर लेकर आ गई। इसके बाद पत्नी अपने पति के इलाज कराने के लिए लोगों के दरवाजे पर गई लोगों से मदद की भीख मांगने लगी लेकिन उसे मदद नहीं मिल सकी और ना ही सरकार के द्वारा उसका उचित इलाज कराया जा सका। और इसके बाद देर रात उसने अंतिम सांस ली और हमेशा के लिए इस दुनिया को अलविदा कर गया। पत्नी का कहना है कि आज मेरे पास पैसे होते तो मैं अपने पति का इलाज लखनऊ में करा पाती लेकिन पैसे के अभाव में मैंने उनका इलाज नहीं कराया जिसके कारण उनकी मौत हो गई। अब चिंता इस बात की है की पांच छोटे-छोटे मासूम बच्चे हैं इनका पढ़ाई लिखाई भोजन कपड़े कहां से आएंगे क्योंकि घर के वही एक सहारा थे। स्थानीय लोगों ने बताया कि इनकी हालत देखकर हम लोगों ने स्थानीय मुखिया से बात किया लेकिन मुखिया द्वारा भी कोई मदद नहीं की गई। साथ ही वह घर पर आने के लिए कहा लेकिन नहीं आ सका।





Conclusion:na
Last Updated : Sep 25, 2019, 3:47 PM IST
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