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दुनिया का सबसे बड़ा 'कुरान-ए-पाक': उर्दू- पर्शियन में हुई थी 140 साल पहले प्रिटिंग, अब तक है सुरक्षित - ब्रिटिश लाइब्रेरी लंदन

कुरान मुस्लिम समुदाय के लिए अल्लाह की भेजी गई सबसे पाक ग्रंथ है. साल 1882 में सबसे बड़े कुरान की 3 प्रतियां छापी गई थीं. जिसमें से पहला ब्रिटिश लाइब्रेरी लंदन (British Library oldest Quran), दूसरा मौलाना आजाद लाइब्रेरी अलीगढ़ और तीसरा गया के खानकाह चिश्तिया मोनामिया में सुरक्षित रखा हुआ है. इसकी प्रिंटिंग 1882 में मयूर प्रेस दिल्ली में हुई थी. पढ़िए गया के पाक कुरान की क्या है खासियत..

World Third Largest Quran In Gaya
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Published : Jun 3, 2022, 8:44 PM IST

गया: विश्व के तीन स्थानों में से एक बिहार के गया में 1152 पन्नों की सबसे बड़ी (World Third Largest Quran In Gaya) व 140 साल पुरानी प्रिंटिंग कुरान (140 Year Old Printed Quran In Gaya) है. इस तरह की प्रिंटिंग कुरान ब्रिटिश म्यूजियम लंदन, मौलाना आजाद लाइब्रेरी अलीगढ़ यूनिवर्सिटी उत्तर प्रदेश के बाद बिहार के गया में है. इसे वर्ष 1793 में हाथों से लिखा गया था. किंतु इसकी प्रिंटिंग 1882 में मयूर प्रेस दिल्ली में हुई. बिहार के गया के नाबागढ़ी रामसागर स्थित खानकाह मोनामिया चिश्तिया ( Khanqah Monamiya Chishtiya Gaya) में आज यह कुरान एक बड़ी धरोहर के रूप में मौजूद है.

पढ़ें- हरियाणा के इस परिवार ने पेश की सद्भभावना की मिसाल, 40 साल से संभाल रखी है 1 इंच की कुरान

तफसीर ए हुसैनी और तफसीर ए अजीजी के नाम से है विख्यात: एक तरह से कुरान, इस्लाम के पाक ग्रंथ के साथ उसकी नींव है. मुस्लिम स्कॉलर के अनुसार विश्व में सबसे बड़ी कुरान 1882 ईसवी में प्रिंट हुई थी. इस प्रिंट हुई कुरान को विश्व में सिर्फ तीन स्थानों पर सुरक्षित रखा गया है. यह कुरान तफसीर ए हुसैनी और तफसीर ए अजीजी के नाम से विख्यात है. इसे हिंदुस्तान के विख्यात इस्लामिक स्कॉलर शाह अब्दुल अजीज मोहदिस देहलवी और शाह रफीउद्दीन मोहदिज देहलवी ने 1793 के आसपास में लिखा था. उनकी हिंदुस्तान और अरब में काफी प्रसिद्धि थी.

तीन भाषओं में है कुरान: सबसे बड़ी खासियत यह थी कि प्रिंटिंग हुई कुरान अरबी, फारसी और उर्दू तीनो ही भाषाओं में है. फारसी और उर्दू में इसकी प्रिंटिंग होने से इसे पढ़कर समझना काफी आसान हुआ है. 1882 में पहली बार बड़े फॉन्ट में यह कुरान छपी. रमजान के पाक माह में 140 साल पुराने इस कुरान शरीफ का दीदार करने गया को दूर-दूर से लोग आते हैं.

229 साल है पुरानी, तब हाथों से लिखी गई थी: वैसे हाथों से लिखी गई यह कुरान 1793 यानि कि 229 वर्ष पुरानी है. इसकी प्रिंटिंग हुए 140 साल हुए हैं. चूंकि हिंदुस्तान में सबसे पहले 1870- 80 के आसपास के दौर में ही प्रिंटिंग शुरू हुई थी और इसी दौर में 1882 में मयूर प्लेस दिल्ली में सबसे बड़े फाउंट और साइज वाले कुरान की प्रिंटिंग हुई थी. बड़े-बड़े स्कॉलर ने ऐसी कुरान खोजने शुरू किए तो पूरे विश्व भर में सिर्फ तीन जगहों पर पाया गया, जो कि लंदन और भारत के अलीगढ़ और और गया में है.



1158 पेज, चौड़ाई 54 सेंमी और लंबाई 35 सेंमी: गया स्थित खानकाह चिश्तिया मोनामिया के नाजिम अता फैसल बताते हैं कि दुनिया में तीन जगह और देश में दो जगहों पर मौजूद यह कुरान शरीफ 1152 पेज की है. यह दो भागों में है. इसकी लंबाई 35 सेंटीमीटर और चौड़ाई 54 सेंटीमीटर है. इसकी प्रिंटिंग हुए करीब तकरीबन डेढ़ सौ साल हो गए हैं.

"एक तरह से यह दुर्लभ है. स्कॉलर इस पर रिसर्च करते हैं. इस प्रिंटिंग कुरान की खासियत बड़े फोंट में होना है. पहले पांडुलिपि की शक्ल में 1793 ईस्वी में इसे लिखा गया था. बाद में 1882 में इसकी प्रिंटिंग कराई गई."- सैयद नाजिम अता फैसल, नाजिम, गया खानकाह



दूर दूर से दीदार करने आते हैं लोग: खानकाह के नाजिम अता फैसल बताते हैं कि 1793 में लिखी गई दो सौ वर्ष पुरानी कुरान शरीफ गया स्थित खानकाह चिश्तिया मोनामिया में सुरक्षित है. सुरक्षा की दृष्टि से वर्षों पुरानी कुरान को आम लोग नहीं पढ़ सकते हैं. हालांकि आम लोग इसका दर्शन कर सकते हैं. लोगों को छूने की मनाही है. बार-बार छूने से इसकी जिल्द अलग होने लगती है. 1152 पेज वाली यह कुरान उनके बुजुर्गों द्वारा यहां पहुंची है. बिस्मिल्लाह की लिखावट की खूबसूरती ही देखकर लगता है कि यह वर्षों पुरानी किताब है.

'मदीना से है इसका जुड़ाव': खानकाह के नाजिम अता फैसल बताते हैं कि खानकाह का इतिहास सदियों पुराना है. मदीना से इसका जुड़ाव है. लगभग दो-ढाई सौ साल पुराना ये खानकाह है. उन्होंने बताया कि गया में सबसे पहले हजरत सैयद शाह आत फानी आये थे. बताते हैं कि व्याख्यान खाने से धरोहर के रूप में रखा गया है. कोई शब्द का मतलब ढूंढना हो या कोई नई बातें जाननी हो तो इस कुरान से ढूंढ कर बताई जाती है. त्योहारों में पवित्र कुरान को लोगों के बीच दर्शन के लिए रखा जाता है.

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गया: विश्व के तीन स्थानों में से एक बिहार के गया में 1152 पन्नों की सबसे बड़ी (World Third Largest Quran In Gaya) व 140 साल पुरानी प्रिंटिंग कुरान (140 Year Old Printed Quran In Gaya) है. इस तरह की प्रिंटिंग कुरान ब्रिटिश म्यूजियम लंदन, मौलाना आजाद लाइब्रेरी अलीगढ़ यूनिवर्सिटी उत्तर प्रदेश के बाद बिहार के गया में है. इसे वर्ष 1793 में हाथों से लिखा गया था. किंतु इसकी प्रिंटिंग 1882 में मयूर प्रेस दिल्ली में हुई. बिहार के गया के नाबागढ़ी रामसागर स्थित खानकाह मोनामिया चिश्तिया ( Khanqah Monamiya Chishtiya Gaya) में आज यह कुरान एक बड़ी धरोहर के रूप में मौजूद है.

पढ़ें- हरियाणा के इस परिवार ने पेश की सद्भभावना की मिसाल, 40 साल से संभाल रखी है 1 इंच की कुरान

तफसीर ए हुसैनी और तफसीर ए अजीजी के नाम से है विख्यात: एक तरह से कुरान, इस्लाम के पाक ग्रंथ के साथ उसकी नींव है. मुस्लिम स्कॉलर के अनुसार विश्व में सबसे बड़ी कुरान 1882 ईसवी में प्रिंट हुई थी. इस प्रिंट हुई कुरान को विश्व में सिर्फ तीन स्थानों पर सुरक्षित रखा गया है. यह कुरान तफसीर ए हुसैनी और तफसीर ए अजीजी के नाम से विख्यात है. इसे हिंदुस्तान के विख्यात इस्लामिक स्कॉलर शाह अब्दुल अजीज मोहदिस देहलवी और शाह रफीउद्दीन मोहदिज देहलवी ने 1793 के आसपास में लिखा था. उनकी हिंदुस्तान और अरब में काफी प्रसिद्धि थी.

तीन भाषओं में है कुरान: सबसे बड़ी खासियत यह थी कि प्रिंटिंग हुई कुरान अरबी, फारसी और उर्दू तीनो ही भाषाओं में है. फारसी और उर्दू में इसकी प्रिंटिंग होने से इसे पढ़कर समझना काफी आसान हुआ है. 1882 में पहली बार बड़े फॉन्ट में यह कुरान छपी. रमजान के पाक माह में 140 साल पुराने इस कुरान शरीफ का दीदार करने गया को दूर-दूर से लोग आते हैं.

229 साल है पुरानी, तब हाथों से लिखी गई थी: वैसे हाथों से लिखी गई यह कुरान 1793 यानि कि 229 वर्ष पुरानी है. इसकी प्रिंटिंग हुए 140 साल हुए हैं. चूंकि हिंदुस्तान में सबसे पहले 1870- 80 के आसपास के दौर में ही प्रिंटिंग शुरू हुई थी और इसी दौर में 1882 में मयूर प्लेस दिल्ली में सबसे बड़े फाउंट और साइज वाले कुरान की प्रिंटिंग हुई थी. बड़े-बड़े स्कॉलर ने ऐसी कुरान खोजने शुरू किए तो पूरे विश्व भर में सिर्फ तीन जगहों पर पाया गया, जो कि लंदन और भारत के अलीगढ़ और और गया में है.



1158 पेज, चौड़ाई 54 सेंमी और लंबाई 35 सेंमी: गया स्थित खानकाह चिश्तिया मोनामिया के नाजिम अता फैसल बताते हैं कि दुनिया में तीन जगह और देश में दो जगहों पर मौजूद यह कुरान शरीफ 1152 पेज की है. यह दो भागों में है. इसकी लंबाई 35 सेंटीमीटर और चौड़ाई 54 सेंटीमीटर है. इसकी प्रिंटिंग हुए करीब तकरीबन डेढ़ सौ साल हो गए हैं.

"एक तरह से यह दुर्लभ है. स्कॉलर इस पर रिसर्च करते हैं. इस प्रिंटिंग कुरान की खासियत बड़े फोंट में होना है. पहले पांडुलिपि की शक्ल में 1793 ईस्वी में इसे लिखा गया था. बाद में 1882 में इसकी प्रिंटिंग कराई गई."- सैयद नाजिम अता फैसल, नाजिम, गया खानकाह



दूर दूर से दीदार करने आते हैं लोग: खानकाह के नाजिम अता फैसल बताते हैं कि 1793 में लिखी गई दो सौ वर्ष पुरानी कुरान शरीफ गया स्थित खानकाह चिश्तिया मोनामिया में सुरक्षित है. सुरक्षा की दृष्टि से वर्षों पुरानी कुरान को आम लोग नहीं पढ़ सकते हैं. हालांकि आम लोग इसका दर्शन कर सकते हैं. लोगों को छूने की मनाही है. बार-बार छूने से इसकी जिल्द अलग होने लगती है. 1152 पेज वाली यह कुरान उनके बुजुर्गों द्वारा यहां पहुंची है. बिस्मिल्लाह की लिखावट की खूबसूरती ही देखकर लगता है कि यह वर्षों पुरानी किताब है.

'मदीना से है इसका जुड़ाव': खानकाह के नाजिम अता फैसल बताते हैं कि खानकाह का इतिहास सदियों पुराना है. मदीना से इसका जुड़ाव है. लगभग दो-ढाई सौ साल पुराना ये खानकाह है. उन्होंने बताया कि गया में सबसे पहले हजरत सैयद शाह आत फानी आये थे. बताते हैं कि व्याख्यान खाने से धरोहर के रूप में रखा गया है. कोई शब्द का मतलब ढूंढना हो या कोई नई बातें जाननी हो तो इस कुरान से ढूंढ कर बताई जाती है. त्योहारों में पवित्र कुरान को लोगों के बीच दर्शन के लिए रखा जाता है.

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