गया: 12 फरवरी 1992 को बारा नरसंहार हुआ था. जिसे यादकर आज भी लोग सिहर जाते हैं. जिला के टिकारी प्रखंड के बारा गांव में नक्सली संगठन एमसीसी के सैकड़ों हथियारबंद उग्रवादियों ने इसी दिन गांव पर हमला कर एक ही जाति के 35 लोगों की गला रेतकर उन्हें मौत की नींद सुला दिया था.
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बारा नरसंहार के 29 साल
इस घटना के 29 साल गुजर गए लेकिन घटना से पीड़ित लोगों के जेहन में अब भी भय, दर्द, दुख वैसा ही बना हुआ है. घटना के बाद तत्कालिन सरकार ने पीड़ितों के आश्रितों को नौकरियां देकर उनके आर्थिक क्षति की पूर्ति करने का प्रयास किया था. लेकिन उन पीड़ितों में 11 परिवार ऐसे अभागे थे जिन्हें वो लाभ भी नहीं मिल सका.
'नरसंहार के पीड़ित परिवार अब भी इंसाफ का इंतजार कर रहे हैं. कई अभियुक्त अभी पुलिस की पकड़ से बाहर हैं. वर्ष 2001 में फांसी की सजा पाये चार दोषियों की सजा को उम्रकैद में बदल दिया गया. 2009 में तीन दोषियों को फांसी की सजा हुई. लेकिन फांसी नहीं दिया जा सका.'- मदन सिंह, पैक्स अध्यक्ष
11 परिवारों आज भी नौकरी का इंतजार
नरसंहार में मारे गए बारा गांव के स्व हरिद्वार सिंह, स्व भुषाल सिंह, स्व सदन सिंह, स्व भुनेष्वर सिंह, स्व संजय सिहं, स्व षिवजनम सिंह, स्व गोरा सिंह, स्व बली षर्मा, स्व आषु सिंह और भोजपुर जिला अकबारी गांव के स्व श्रीराम सिंह एवं परैया थाना राजाहरी गांव के प्रमोद सिंह के आश्रित अब भी नौकरी की आस लगाए बैठे हैं.
श्रद्धाजंलि सभा
बारा नरसंहार में हर साल मृतकों के आश्रितों द्वारा बरसी पर श्रद्धाजंलि सभा का आयोजन किया जाता है. इस दौरान यज्ञ और हवन कर मृतकों की आत्मा की शांति के लिए प्राथर्ना की जाती है.