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गयाः थाना और कोर्ट नहीं जाते हैं इस गांव के लोग, कोल राजा के नियमों से मिलता है न्याय

1950 से पूरे भारत में संविधान के अधीन न्याय प्रक्रिया चलती है. लेकिन गया में एक ऐसा गांव है जहां न्याय व्यवस्था आज भी परंपरागत है. गांव का कोई भी गैरकानूनी मामला थाना और न्यायपालिका तक नहीं जाता है.

ग्राम सरपंच और ग्रामीण
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Published : Aug 23, 2019, 2:26 PM IST

गया: शहर से 32 किलोमीटर दूर डोभी प्रखंड में केशापी गांव है. नए भारत का यह गांव परंपरागत न्याय प्रणाली में आस्था रखता है. गांव में किसी भी तरह के मामले को गांव के लोग खुद सुलझाते हैं. इसके पीछे की एक कहानी बताई जाती है कि गांव में कभी कोल राजा का गढ़ हुआ करता था. आज गढ़ का अवशेष कोल वंश के होने का प्रमाण देता है. मिट्टी के टीले में तब्दील हुए गढ़ में कोल राजा का कभी राज दरबार लगता था. यहां कचहरी लगाकर लोगों को न्याय दिलाई जाती थी. इसी न्याय व्यवस्था को ग्रामीणों ने आज भी जीवित रखा हुआ है. ऐसे में कोल राजा के नियमों के तहत ग्रामीणों को न्याय मिलता है.

गया लेटेस्ट न्यूज, केशापी गांव में परंपरागत न्याय प्रणाली, गया डोभी प्रखंड
परंपरागत न्याय प्रणाली के मत में ग्रामीण

गांव में थी कचहरी
केशापी गांव डोभी-चतरा सड़क मार्ग पर स्थित है. सभी कहानियां कोल शासक के ईद गिर्द घूमती है. बताया जाता है कोल शासन में इस गांव में कचहरी हुआ करता था. इसलिए इस गांव का नाम केशापी पड़ा. गांव के अंतिम छोड़ पर भगवान भास्कर के मंदिर के पास मिट्टी के टीले में तब्दील हुआ कोल शासक का गढ़ है. हाल में इस गढ़ से ईस्ट इंडिया कंपनी के मोहर का एक पाइप ग्रामीणों को मिला है. गढ़ से निकलने वाले अवेशष कोल शासक के होने का प्रमाण देते है. गढ़ से थोड़ा पहले एक तालाब है. यह तालाब भी कोल शासन काल में ही बना हुआ है.

गया लेटेस्ट न्यूज, केशापी गांव में परंपरागत न्याय प्रणाली, गया डोभी प्रखंड
कोल शासन में इसी गढ़ के अवशेष में लगता था कचहरी

लोग मामले को लेकर थाना या कोर्ट नहीं जाते
डोभी पंचायत के सरपंच कृष्ण देव प्रसाद ने बताया कि गांव के लोग किसी भी मामले को लेकर थाना या कोर्ट नहीं जाते हैं. सदियों से कोल शासन के तहत लोगों को न्याय देने की परंपरा चल रही है. कोल शासन में इस गांव में कचहरी हुआ करता था. कचहरी में न्याय देने के लिए एक उत्तम व्यवस्था थी. आरोपी और शिकायतकर्ता को बुलाकर, दोनों पक्षों को सुना जाता था. फिर एक पंच नियुक्त होते थे जो पूरी पड़ताल करते थे. उसके बाद लोगों को न्याय मिलता था. इसी न्याय व्यवस्था के तहत गांव में लोगों को न्याय दिया जाता है. ग्रामीणों को इस न्याय व्यवस्था पर विश्वास हैं. वे इसके फैसलों को स्वीकार करते हैं. गौरतलब है कि पिछले दो दशकों में गांव से एक भी मामला थाना में दर्ज नहीं हुआ है.

गया लेटेस्ट न्यूज, केशापी गांव में परंपरागत न्याय प्रणाली, गया डोभी प्रखंड
सरपंच के साथ बैठकर मामले को सुलझाते लोग

हर जाति की है एक अलग कमेटी
ग्रामीण अर्जुन प्रसाद ने बताया कि गांव में एक दर्जन से ज्यादा जाति के लोग रहते हैं. सभी जातियों की अपनी एक कमिटी है. संबंधित जाति में कोई मामला आता है तो उस मामले को कमिटी में लाया जाता है और वहां उसका समाधान निकाला जाता है. अगर ग्रामीण वहां से संतुष्ट नहीं होते हैं तो गांव के मानदेय व्यक्ति बैठकर उस मामले को सुलझाते हैं. हमलोग यह प्रयास करते है कि गांव से जुड़ा कोई मामला थाना या न्यायालय नहीं पहुंचे. सदियों से चले आ रहे इस परंपरागत न्याय व्यवस्था का गांव में आज तक किसी ने विरोध नहीं किया है. ऐसे में ग्रामीण इस न्याय व्यवस्था में घोर विश्वास रखते हैं.

पूरी रिपोर्ट

गया: शहर से 32 किलोमीटर दूर डोभी प्रखंड में केशापी गांव है. नए भारत का यह गांव परंपरागत न्याय प्रणाली में आस्था रखता है. गांव में किसी भी तरह के मामले को गांव के लोग खुद सुलझाते हैं. इसके पीछे की एक कहानी बताई जाती है कि गांव में कभी कोल राजा का गढ़ हुआ करता था. आज गढ़ का अवशेष कोल वंश के होने का प्रमाण देता है. मिट्टी के टीले में तब्दील हुए गढ़ में कोल राजा का कभी राज दरबार लगता था. यहां कचहरी लगाकर लोगों को न्याय दिलाई जाती थी. इसी न्याय व्यवस्था को ग्रामीणों ने आज भी जीवित रखा हुआ है. ऐसे में कोल राजा के नियमों के तहत ग्रामीणों को न्याय मिलता है.

गया लेटेस्ट न्यूज, केशापी गांव में परंपरागत न्याय प्रणाली, गया डोभी प्रखंड
परंपरागत न्याय प्रणाली के मत में ग्रामीण

गांव में थी कचहरी
केशापी गांव डोभी-चतरा सड़क मार्ग पर स्थित है. सभी कहानियां कोल शासक के ईद गिर्द घूमती है. बताया जाता है कोल शासन में इस गांव में कचहरी हुआ करता था. इसलिए इस गांव का नाम केशापी पड़ा. गांव के अंतिम छोड़ पर भगवान भास्कर के मंदिर के पास मिट्टी के टीले में तब्दील हुआ कोल शासक का गढ़ है. हाल में इस गढ़ से ईस्ट इंडिया कंपनी के मोहर का एक पाइप ग्रामीणों को मिला है. गढ़ से निकलने वाले अवेशष कोल शासक के होने का प्रमाण देते है. गढ़ से थोड़ा पहले एक तालाब है. यह तालाब भी कोल शासन काल में ही बना हुआ है.

गया लेटेस्ट न्यूज, केशापी गांव में परंपरागत न्याय प्रणाली, गया डोभी प्रखंड
कोल शासन में इसी गढ़ के अवशेष में लगता था कचहरी

लोग मामले को लेकर थाना या कोर्ट नहीं जाते
डोभी पंचायत के सरपंच कृष्ण देव प्रसाद ने बताया कि गांव के लोग किसी भी मामले को लेकर थाना या कोर्ट नहीं जाते हैं. सदियों से कोल शासन के तहत लोगों को न्याय देने की परंपरा चल रही है. कोल शासन में इस गांव में कचहरी हुआ करता था. कचहरी में न्याय देने के लिए एक उत्तम व्यवस्था थी. आरोपी और शिकायतकर्ता को बुलाकर, दोनों पक्षों को सुना जाता था. फिर एक पंच नियुक्त होते थे जो पूरी पड़ताल करते थे. उसके बाद लोगों को न्याय मिलता था. इसी न्याय व्यवस्था के तहत गांव में लोगों को न्याय दिया जाता है. ग्रामीणों को इस न्याय व्यवस्था पर विश्वास हैं. वे इसके फैसलों को स्वीकार करते हैं. गौरतलब है कि पिछले दो दशकों में गांव से एक भी मामला थाना में दर्ज नहीं हुआ है.

गया लेटेस्ट न्यूज, केशापी गांव में परंपरागत न्याय प्रणाली, गया डोभी प्रखंड
सरपंच के साथ बैठकर मामले को सुलझाते लोग

हर जाति की है एक अलग कमेटी
ग्रामीण अर्जुन प्रसाद ने बताया कि गांव में एक दर्जन से ज्यादा जाति के लोग रहते हैं. सभी जातियों की अपनी एक कमिटी है. संबंधित जाति में कोई मामला आता है तो उस मामले को कमिटी में लाया जाता है और वहां उसका समाधान निकाला जाता है. अगर ग्रामीण वहां से संतुष्ट नहीं होते हैं तो गांव के मानदेय व्यक्ति बैठकर उस मामले को सुलझाते हैं. हमलोग यह प्रयास करते है कि गांव से जुड़ा कोई मामला थाना या न्यायालय नहीं पहुंचे. सदियों से चले आ रहे इस परंपरागत न्याय व्यवस्था का गांव में आज तक किसी ने विरोध नहीं किया है. ऐसे में ग्रामीण इस न्याय व्यवस्था में घोर विश्वास रखते हैं.

पूरी रिपोर्ट
Intro:भारत देश 1947 मे आजाद हुआ, आजाद होने के बाद भारत में 1950 में संविधान का गठन किया गया। संविधान के धारा अनुसार दंड विधान तय किया गया।1950 से पूरे भारत मे संविधान से न्याय प्रक्रिया चल रही है। लेकिन गया के ऐसा गांव है जहां न्याय व्यवस्था आज भी परंपरागत हैं। गांव का कोई भी गैरकानूनी मामला थाना और न्यायपालिका तक नही जाता है।


Body:गया शहर से 32 किलोमीटर दूर डोभी प्रखंड के डोभी पंचायत में केशापी गांव हैं। 11 जातियों का ये गाँव नए भारत मे परंपरागत न्याय प्रणाली पर आस्था रखता हैं। गांव का किसी भी तरह का मामला को गांव को लोग खुद में सुलझा लेते हैं। इसके पीछे का एक कहानी बताया जाता है केशापी गांव में कभी कोल राजा का गढ़ हुआ करता था।आज गढ़ का अवशेष कोल वंश का होने प्रमाण देता है। मिट्टी के टीले में तब्दील हुआ गढ़ में कोल राजा का राज दरबार लगता था। यहां कचहरी लगाकर लोगों को न्याय दिलाई जाती थी, इसी न्याय व्यवस्था को ग्रामीण आज भी जीवित रखे हैं। कोल राजा के न्याय व्यवस्था के तहत आज भी ग्रामीण को न्याय दिया जाता है।

डोभी-चतरा सड़क मार्ग में स्थित केशापी गांव है, गांव से जुड़ी कई कहानियां है। सभी कहानियां कोल शासक के ईद गिर्द हैं। बताया जाता है कोल शासन में इस गांव में कचहरी हुआ करता था। इसलिए इस गांव का नाम केशापी पड़ा। गांव में के अंतिम छोड़ पर भगवान भास्कर के मंदिर के पास मिट्टी के टीले में तब्दील हुआ कोल शासक का गढ़ है। हाल में इस गढ़ से ईस्ट इंडिया कंपनी के मोहर का एक पाइप ग्रामीणों को मिला है। गढ़ से निकलने वाले अवेशष कोल शासक का होने का प्रमाण देता है। गढ़ से थोड़ा पहले एक तालाब है ये तालाब भी कोल शासन काल का बना हुआ हैं। गढ़ को लेकर एक कहानी खूब प्रचलित हैं गांव में किसी के यहां शादी हो उनको बर्तन का जरूरत होता था बर्तन गढ़ से मिल जाता था। बाद में ईमानदारी पूर्वक उस बर्तन गढ़ के पास पहुँचा दिया जाता था । गढ़ से बर्तन कौन देता था और लेता था ये किसी को नही पता था।

डोभी पंचायत के सरपंच कृष्ण देव प्रसाद ने बताया गांव के लोग किसी भी मामले को लेकर थाना या कोर्ट नही जाते हैं। सदियों से कोल शासक का न्याय प्रक्रिया देने का परंपरा चल रहा है। उसके तहत गांव में न्याय दिया जाता है। कोल शासन में इस गांव में कचहरी हुआ करता था कचहरी में न्याय देने के लिए एक उत्तम व्यवस्था था। आरोपी और शिकायतकर्ता को बुलाकर दोनो को सुना जाता था फिर एक पंच नियुक्त होते थे जो पूरा पड़ताल करते थे। फिर उसके बाद न्याय दिया जाता था। इसी न्याय व्यवस्था के तहत आज भी गांव में लोगो को न्याय दिया जाता है। ग्रामीण को इस न्याय व्यवस्था पर आस्था हैं इसके फैसले को स्वीकार करते हैं। पिछले दो दशक से थाना में गांव से एक भी मामला दर्ज नही हुआ है।



Conclusion:ग्रामीण अर्जुन प्रसाद ने बताया गांव में एक दर्जन से ज्यादा जाती के लोग रहते हैं। सभी जातियों का अपना एक कमिटी हैं। संबंधित जाती में कोई मामला आता है उस मामला को कमिटी में लाया जाता है वहा उसका समाधान निकाला जाता है। वहा से संतुष्ट नही होते हैं गांव के मानदेय व्यक्तियों बैठकर उस मामला को सुलझाते हैं। हमलोग का प्रयास रहता है गांव से जुड़ा कोई मामला थाना या न्यायालय तक नही पहुँचे।

गांव में लगने वाला न्याय मंडली में कोल शासक का न्याय व्यवस्था के तहत न्याय दिया जाता है। ग्रामीण न्याय के लिए कभी खुद से थाना या कोर्ट नही जाते हैं। न्याय मंडली से कोई मामला नही सुलझता हैं तब गांव के न्याय मंडली तय करती हैं इस मामले को थाना में या न्यायालय में भेजा जाए। शराबबंदी में न्याय मंडली शराब पीने वाले को और बनाने वाले को हिदायत दिया जाता है। उसे नही माने पर उनके विरुद्ध गावँ के न्याय व्यवस्था से दण्डित कर न्यायपालिका भेजा जाता है।

सदियों से चले आ रहे परंपरागत न्याय व्यवस्था का आज तक कभी विरोध नही हुआ है। ग्रामीण इस न्याय व्यवस्था पर घोर आस्था रखते हैं। इसके फैसला को स्वीकार करते हैं।
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