गया: शहर से 32 किलोमीटर दूर डोभी प्रखंड में केशापी गांव है. नए भारत का यह गांव परंपरागत न्याय प्रणाली में आस्था रखता है. गांव में किसी भी तरह के मामले को गांव के लोग खुद सुलझाते हैं. इसके पीछे की एक कहानी बताई जाती है कि गांव में कभी कोल राजा का गढ़ हुआ करता था. आज गढ़ का अवशेष कोल वंश के होने का प्रमाण देता है. मिट्टी के टीले में तब्दील हुए गढ़ में कोल राजा का कभी राज दरबार लगता था. यहां कचहरी लगाकर लोगों को न्याय दिलाई जाती थी. इसी न्याय व्यवस्था को ग्रामीणों ने आज भी जीवित रखा हुआ है. ऐसे में कोल राजा के नियमों के तहत ग्रामीणों को न्याय मिलता है.
गांव में थी कचहरी
केशापी गांव डोभी-चतरा सड़क मार्ग पर स्थित है. सभी कहानियां कोल शासक के ईद गिर्द घूमती है. बताया जाता है कोल शासन में इस गांव में कचहरी हुआ करता था. इसलिए इस गांव का नाम केशापी पड़ा. गांव के अंतिम छोड़ पर भगवान भास्कर के मंदिर के पास मिट्टी के टीले में तब्दील हुआ कोल शासक का गढ़ है. हाल में इस गढ़ से ईस्ट इंडिया कंपनी के मोहर का एक पाइप ग्रामीणों को मिला है. गढ़ से निकलने वाले अवेशष कोल शासक के होने का प्रमाण देते है. गढ़ से थोड़ा पहले एक तालाब है. यह तालाब भी कोल शासन काल में ही बना हुआ है.
लोग मामले को लेकर थाना या कोर्ट नहीं जाते
डोभी पंचायत के सरपंच कृष्ण देव प्रसाद ने बताया कि गांव के लोग किसी भी मामले को लेकर थाना या कोर्ट नहीं जाते हैं. सदियों से कोल शासन के तहत लोगों को न्याय देने की परंपरा चल रही है. कोल शासन में इस गांव में कचहरी हुआ करता था. कचहरी में न्याय देने के लिए एक उत्तम व्यवस्था थी. आरोपी और शिकायतकर्ता को बुलाकर, दोनों पक्षों को सुना जाता था. फिर एक पंच नियुक्त होते थे जो पूरी पड़ताल करते थे. उसके बाद लोगों को न्याय मिलता था. इसी न्याय व्यवस्था के तहत गांव में लोगों को न्याय दिया जाता है. ग्रामीणों को इस न्याय व्यवस्था पर विश्वास हैं. वे इसके फैसलों को स्वीकार करते हैं. गौरतलब है कि पिछले दो दशकों में गांव से एक भी मामला थाना में दर्ज नहीं हुआ है.
हर जाति की है एक अलग कमेटी
ग्रामीण अर्जुन प्रसाद ने बताया कि गांव में एक दर्जन से ज्यादा जाति के लोग रहते हैं. सभी जातियों की अपनी एक कमिटी है. संबंधित जाति में कोई मामला आता है तो उस मामले को कमिटी में लाया जाता है और वहां उसका समाधान निकाला जाता है. अगर ग्रामीण वहां से संतुष्ट नहीं होते हैं तो गांव के मानदेय व्यक्ति बैठकर उस मामले को सुलझाते हैं. हमलोग यह प्रयास करते है कि गांव से जुड़ा कोई मामला थाना या न्यायालय नहीं पहुंचे. सदियों से चले आ रहे इस परंपरागत न्याय व्यवस्था का गांव में आज तक किसी ने विरोध नहीं किया है. ऐसे में ग्रामीण इस न्याय व्यवस्था में घोर विश्वास रखते हैं.