गया: बिहार के युवा सिर्फ चीन की सीमाओं पर ही नहीं, बल्कि तकनीक पर भी चीन को कड़ी टक्कर दे रहे हैं. देश में चल रहे चाइनीज सामानों के बहिष्कार के बाद जहां केंद्र सरकार ने 59 चाइनीज ऐप को बंद कर दिया. वहीं, बिहार के युवाओं ने एक ऐसा ऐप बनाया है, जो चीन के ऐप को टक्कर दे रहा है.
चाइनीज एप्स के बहिष्कार के अभियान और केंद्र सरकार ने 59 चायनीज एप्स को बैन कर दिया. इसके बाद 'मेड इन इंडिया' ऐप की मांग बढ़ी है. बिहार के गया के रहने वाले सत्यपाल चंद्रा और उनकी टीम ने एक ऐसा ऐप बनाया है, जो चीन के कई एप्स को टक्कर दे रहा है. ईटीवी भारत को इस ऐप की खासियत बताते हुए सत्यपाल चंद्रा ने ऐप की खासियत बताई. 'मैगटैप' नाम से बनाए गये उनके ऐप को गूगल प्ले स्टोर से खूब डाउनलोड किया जा रहा है.
पूरी तरह मेड इन इंडिया
सत्यपाल चंद्रा ने बताया कि 'मैगटैप' पूरी तरह से 'मेड इन इंडिया' है. उन्होंने कहा, 'मैगटैप' एक 'विजुअल ब्राउजर' के साथ-साथ डक्यूमेंट रीडर, ट्रांसलेशन और ई-लर्निंग की सुविधा देने वाला ऐप है. इस ऐप को खास तौर पर देश के हिंदी भाषी छात्रों को ध्यान में रखकर बनाया गया है.
क्यों खास है 'मैगटैप'
सत्यपाल ने दावा करते हए कहा, 'प्ले स्टोर पर एजुकेशन कैटेगरी में यह ऐप दुनिया भर में पहले नंबर पर है. हाल ही में इसका वर्जन 2 भी लांच किया गया है. वर्जन 2 के लांच होने और फिर चायनीज ऐप्स पर बैन के बाद 'मैगटैप' को 2.5-3 लाख के करीब लोगों ने डाउनलोड किया गया है. ऐप मात्र 34 एमबी का है, जो शब्द, वाक्य या पूरे पैराग्राफ को भी हिंदी सहित देश की 12 भाषाओँ में अनुवाद कर सकता है. साथ में कोई भी दूसरा ऐप जैसे- व्हाट्सएप, फेसबुक, मैसेंजर आदि में भी किसी शब्द पर टैप कर उसका अर्थ जाना जा सकता है.' सत्यपाल के ऐप को गूगल में 4.8 रेटिंग मिली हुई है.
तीन दोस्त और एक ऐप
मैगटैप बनाने में समस्तीपुर के मोहनपुर प्रखंड निवासी रोहन सिंह और सत्यपाल चंद्रा के भाई अभिषेक सिंह की अहम भूमिका रही है. खास बात यह है कि रोहन की उम्र अभी 19 साल और अभिषेक की 18 साल है. मैगटैप बनाने वाली कंपनी 'मैगटैप टेक्नोलॉजी' का मुख्यालय मुंबई में है' यह कंपनी भारत सरकार के स्टार्टअप योजना से भी जुड़ी है.
खुश हैं सत्यपाल चंद्रा के परिजन और गांव वाले
नक्सल प्रभावित गया के इमामगंज प्रखंड के रहने वाले सत्यपाल चंद्रा गरीबी के बीच प्रारंभिक पढ़ाई पूरी कर कमाने के इरादे से वे दिल्ली चले गए. बेटे की इस सफलता के बाद सत्यपाल के पिता महेंद्र प्रसाद सिंह कहा, ' मेरा बेटा बचपन से पढ़ने में होशियार था. उसकी प्राथमिक शिक्षा इमामगंज में हुई है. मैं होम्योपैथी दवा बेचकर जितना हो सका, उसे काबिल बनाया. आगे उसने खुद के बदौलत अपनी पहचान बनाई हैं. मुझे बहुत खुशी हो रही है.
भाई राहुल की मानें तो सत्यपाल ने करीब छह माह दिन रात मेहनत कर अंग्रेजी बोलना-लिखना सीखा. उन्होंने एक के बाद एक कई अंग्रेजी उपन्यास भी लिखे हैं. उनकी किताबें 'द मोस्ट इलिजिबल बैचलर' और 'व्हेन हेवेन्स फॉलडाउन' काफी चर्चित रही हैं.
'नदी पार कर पढ़ाई करने जाते थे सत्यपाल'
सत्यपाल को बेहद करीब से जानने वाले गालिब राजा कहते हैं कि बचपन में वो नदी पार कर पढ़ाई करने जाता था. उसे लिखने-पढ़ने का बहुत शौक था. उसने चीन को जवाब दिया है. इससे हम लोग काफी खुश हैं और गर्व महसूस कर रहे हैं. एक ऐसा इलाका से जहां मोबाइल नेटवर्क की समस्या हो, उच्च शिक्षा की दरकार हो, नक्सली का आंतक हो. वैसी जगह से निकलकर बहुभाषी ऐप बनाना काबिल-ए-तारीफ है. हम लोगों की मांग है कि सरकार इस ऐप को प्रमोट करे.
बहरहाल, सत्यपाल चंद्रा के ऐप को उनके गांव के कई युवा डाउनलोड कर उसका प्रयोग कर रहे हैं. हर कोई सत्यपाल की प्रशंसा कर रहा है. वहीं, मेड इन इंडिया के लिए उनका ऐप आने वाले दिनों में कारगर साबित होगा.