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गया में है एशिया की सबसे बड़ी भगवान सूर्य की प्रतिमा, सतयुग काल से आज तक सूर्य की पहली किरण यहीं पड़ती - Asia Largest Idol of Lord Surya In Gaya

गया में भगवान सूर्य की सतयुगकालीन प्रतिमा (Satyuga idol of Lord Surya in Gaya) उदयीमान, मध्याह्न और संध्याकालीन रूप में विराजमान हैं. भगवान सूर्य की यह प्रतिमा एशिया की सबसे बड़ी और दुर्लभ प्रतिमाओं में से एक माना गया है. यहां भगवान सूर्य सात घोड़ों पर सवार अपने पूरे परिवार के साथ विराजमान हैं. पूरे परिवार के साथ भगवान सूर्य की यह इकलौत प्रतिमा है.

एशिया की सबसे बड़ी भगवान सूर्य की प्रतिमा
एशिया की सबसे बड़ी भगवान सूर्य की प्रतिमा
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Published : Oct 28, 2022, 9:02 PM IST

गया: बिहार के गया में ब्राह्मणी घाट पर एशिया की सबसे बड़ी भगवान सूर्य की प्रतिमा (Asia Largest Idol of Lord Surya In Gaya) है. सतयुग से यह प्रतिमा स्थापित मानी जाती है. शास्त्रों का हवाला देते हुए पुजारी बताते हैं कि यह प्रतिमा अत्यंत ही दुर्लभ है. वहीं गया में उदयीमान-मध्याह्न काल और संध्याकालीन प्रतिमा के रूप में भी भगवान भास्कर विराजमान हैं. पिता महेश्वर (Pita Maheshwar Temple In Gaya) में स्थित भगवान सूर्य की प्रतिमा के संबंध में कहा जाता है कि जब सूर्योदय होता है तो पहली किरण सीधे यहां स्थापित प्रतिमा पर ही आती है.

यह भी पढ़ें: Chhath Puja 2022: आस्था का महापर्व छठ नहाए खाए के साथ शुरू, पटना के गंगा घाटों पर उमड़ी भीड़


भगवान भास्कर के तीन पहर का रूप: गया में भगवान भास्कर तीनों पहर के रूप में विराजमान (Three Avatars Of God Bhaskar In Gaya) हैं. पितामहेश्वर में उत्तरायण सूर्य, सूर्यकुंड में दक्षिणायन सूर्य और ब्राह्मणी घाट में दोपहर के भगवान बिरंची के रूप में भगवान भास्कर विराजमान हैं. शहर में यह तीनों मंदिर चंद मीटर की दूरी पर पंचकोशी गया जी तीर्थ में स्थापित हैं. हालांकि, मानपुर के सूर्य मंदिर को भी उत्तरायण सूर्य के रूप में मान्यता है.

सूर्य प्रतिमा पर पड़ती है पहली किरण: पिता महेश्वर मंदिर में अलौकिक बात है कि यहां मंदिर में स्थापित भगवान सूर्य की प्रतिमा पर उदयीमान सूर्य की सबसे पहली किरण पड़ती है. इस मंदिर के किनारे पर स्थित सरोवर में छठ पूजा के दौरानउदयीमान भगवान भास्कर को अर्घ्य दिया जा जाता है. वहीं सूर्यकुंड में स्थित भगवान भास्कर की प्रतिमा की काफी महिमा है. यहां पूजा करने के बाद लोग निरोग हो जाते हैं. साथ ही संतान की प्राप्ति और अन्य मन्नते पूरी हो जाती हैं. यहां अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा सदियों से है, जो आज भी जारी है. सैकड़ों की संख्या में छठव्रतीं पूजा करने आते हैं.

पूरे परिवार के साथ भगवान सूर्य विराजमान: ब्राह्मणी घाट में अपराहण रूप में भगवान भास्कर की प्रतिमा है. यहां भगवान सूर्य पूरे परिवार के साथ विराजमान हैं. ब्राह्मणी घाट में स्थापित भगवान सूर्य की प्रतिमा काफी प्राचीन है. यह प्रतिमा 5 फुट से अधिक ऊंची अति दुर्लभ बताई जाती है. मान्यता है कि यह एशिया की सबसे दुर्लभ प्रतिमा है. यह जो मन्नत मांगी जाती है, वह निश्चित तौर पर पूरी होती है. यहां भगवान सूर्य अपनी पत्नी संज्ञा, पुत्र शनि और यम, 2 देवियां उषा और प्रत्यूषा, सैनिक-सेवक के साथ सात घोड़े और 1 चक्के पर विराजमान हैं. यह प्रतिमा अत्यंत ही दुर्लभ है. परिवार के साथ विराजमान भगवान सूर्य की प्रतिमा कहीं नहीं मिलती.


"सूर्य के 12 नामों में से एक भगवान विरंची की यहां मध्यकालीन प्रतिमा है. वे कहते हैं कि इस तरह की प्रतिमा पूरे विश्व में शायद ही कहीं मिले. प्रतिमा के दाहिने ओर उनके पुत्र शनि, बायीं ओर यम, पैर के पास पत्नी संज्ञा और सारथी के रूप में अरुण मौजूद हैं. सभी सात घोड़े के रथ पर सवार हैं" - मनोज कुमार मिश्र, पुजारी

सतयुग काल में मंदिर स्थापित करने की मान्यता: पुजारी मनोज कुमार मिश्र बताते हैं कि सूर्य के 12 नामों में से एक भगवान विरंची की यहां मध्यकालीन प्रतिमा है. वे कहते हैं कि इस तरह की प्रतिमा पूरे विश्व में शायद ही कहीं मिले. प्रतिमा के दाहिने ओर उनके पुत्र शनि, बाये ओर यम, पैर के पास पत्नी संज्ञा और सारथी के रूप में अरुण मौजूद हैं. सभी सात घोड़े के रथ पर सवार हैं. प्रातः कालीन उषा और संध्याकालीन प्रत्यूषा की भी प्रतिमा है. शास्त्रों के हिसाब से प्रथम सतयुुग के काल में इस मंदिर की स्थापना हुई है. यहां मध्याह्न कालीन भगवान भास्कर की प्रतिमा होने के कारण सुबह और शाम दोनों वक्त छठ में अर्ध्य दिया जाता है.

गया: बिहार के गया में ब्राह्मणी घाट पर एशिया की सबसे बड़ी भगवान सूर्य की प्रतिमा (Asia Largest Idol of Lord Surya In Gaya) है. सतयुग से यह प्रतिमा स्थापित मानी जाती है. शास्त्रों का हवाला देते हुए पुजारी बताते हैं कि यह प्रतिमा अत्यंत ही दुर्लभ है. वहीं गया में उदयीमान-मध्याह्न काल और संध्याकालीन प्रतिमा के रूप में भी भगवान भास्कर विराजमान हैं. पिता महेश्वर (Pita Maheshwar Temple In Gaya) में स्थित भगवान सूर्य की प्रतिमा के संबंध में कहा जाता है कि जब सूर्योदय होता है तो पहली किरण सीधे यहां स्थापित प्रतिमा पर ही आती है.

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भगवान भास्कर के तीन पहर का रूप: गया में भगवान भास्कर तीनों पहर के रूप में विराजमान (Three Avatars Of God Bhaskar In Gaya) हैं. पितामहेश्वर में उत्तरायण सूर्य, सूर्यकुंड में दक्षिणायन सूर्य और ब्राह्मणी घाट में दोपहर के भगवान बिरंची के रूप में भगवान भास्कर विराजमान हैं. शहर में यह तीनों मंदिर चंद मीटर की दूरी पर पंचकोशी गया जी तीर्थ में स्थापित हैं. हालांकि, मानपुर के सूर्य मंदिर को भी उत्तरायण सूर्य के रूप में मान्यता है.

सूर्य प्रतिमा पर पड़ती है पहली किरण: पिता महेश्वर मंदिर में अलौकिक बात है कि यहां मंदिर में स्थापित भगवान सूर्य की प्रतिमा पर उदयीमान सूर्य की सबसे पहली किरण पड़ती है. इस मंदिर के किनारे पर स्थित सरोवर में छठ पूजा के दौरानउदयीमान भगवान भास्कर को अर्घ्य दिया जा जाता है. वहीं सूर्यकुंड में स्थित भगवान भास्कर की प्रतिमा की काफी महिमा है. यहां पूजा करने के बाद लोग निरोग हो जाते हैं. साथ ही संतान की प्राप्ति और अन्य मन्नते पूरी हो जाती हैं. यहां अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा सदियों से है, जो आज भी जारी है. सैकड़ों की संख्या में छठव्रतीं पूजा करने आते हैं.

पूरे परिवार के साथ भगवान सूर्य विराजमान: ब्राह्मणी घाट में अपराहण रूप में भगवान भास्कर की प्रतिमा है. यहां भगवान सूर्य पूरे परिवार के साथ विराजमान हैं. ब्राह्मणी घाट में स्थापित भगवान सूर्य की प्रतिमा काफी प्राचीन है. यह प्रतिमा 5 फुट से अधिक ऊंची अति दुर्लभ बताई जाती है. मान्यता है कि यह एशिया की सबसे दुर्लभ प्रतिमा है. यह जो मन्नत मांगी जाती है, वह निश्चित तौर पर पूरी होती है. यहां भगवान सूर्य अपनी पत्नी संज्ञा, पुत्र शनि और यम, 2 देवियां उषा और प्रत्यूषा, सैनिक-सेवक के साथ सात घोड़े और 1 चक्के पर विराजमान हैं. यह प्रतिमा अत्यंत ही दुर्लभ है. परिवार के साथ विराजमान भगवान सूर्य की प्रतिमा कहीं नहीं मिलती.


"सूर्य के 12 नामों में से एक भगवान विरंची की यहां मध्यकालीन प्रतिमा है. वे कहते हैं कि इस तरह की प्रतिमा पूरे विश्व में शायद ही कहीं मिले. प्रतिमा के दाहिने ओर उनके पुत्र शनि, बायीं ओर यम, पैर के पास पत्नी संज्ञा और सारथी के रूप में अरुण मौजूद हैं. सभी सात घोड़े के रथ पर सवार हैं" - मनोज कुमार मिश्र, पुजारी

सतयुग काल में मंदिर स्थापित करने की मान्यता: पुजारी मनोज कुमार मिश्र बताते हैं कि सूर्य के 12 नामों में से एक भगवान विरंची की यहां मध्यकालीन प्रतिमा है. वे कहते हैं कि इस तरह की प्रतिमा पूरे विश्व में शायद ही कहीं मिले. प्रतिमा के दाहिने ओर उनके पुत्र शनि, बाये ओर यम, पैर के पास पत्नी संज्ञा और सारथी के रूप में अरुण मौजूद हैं. सभी सात घोड़े के रथ पर सवार हैं. प्रातः कालीन उषा और संध्याकालीन प्रत्यूषा की भी प्रतिमा है. शास्त्रों के हिसाब से प्रथम सतयुुग के काल में इस मंदिर की स्थापना हुई है. यहां मध्याह्न कालीन भगवान भास्कर की प्रतिमा होने के कारण सुबह और शाम दोनों वक्त छठ में अर्ध्य दिया जाता है.

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