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Wood Sculptor In Gaya: लकड़ी पर बनाते हैं बुद्ध की 50 मुद्राओं वाली मूर्ति, सड़क किनारे लगाते हैं दुकान - Roadside wood sculptor in Gaya

गया में एक कलाकार ऐसे हैं जो बिना किसी मशीन की मदद के सिर्फ हाथ से ही भगवान बुद्ध की 50 विभिन्न मुद्राओं में लकड़ी की मूर्तियां बनाते हैं. इन प्रतिमाओं को बनाने में बहुत ही बारीकी कारीगरी का इस्तेमाल होता है. यह कलाकार भीड़-भाड़ वाले सड़क के किनारे प्रतिमा बनाते (Roadside wood sculptor in Gaya) हैं. पढ़ें पूरी खबर..

wood sculptor in gaya
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Published : Feb 25, 2023, 10:52 PM IST

गया में लकड़ी से प्रतिमा बनाने वाला कलाकार

गया: बिहार के गया में कलाकारों की प्रतिभा में कोई कमी नहीं है. विविध कलाओं में इनकी प्रतिभा देखते ही बनती है. ऐसे ही एक कलाकार गया के खिजरसराय प्रखंड के रहने वाले सुनील कुमार हैं, जो हाथों से ही भगवान बुद्ध की 50 विभिन्न मुद्राओं की लकड़ी की प्रतिमा बना (wooden statue making in gaya ) लेते हैं. यह प्रतिमा 5 इंच से लेकर 3 फीट से भी अधिक तक होती है. बड़ी बात यह है, कि इसमें बारीकी का ध्यान रखकर लकड़ी की प्रतिमा को सही आकार दिया जाता है. सड़क किनारे बैठकर यह लड़की की प्रतिमाएं बनाते हैं.

ये भी पढ़ेंः Sculptor Subhash Story : पटना के चौराहों पर लगने वाले आदमकद प्रतिमाओं को देते हैं ये मूर्त रूप, गुरु को मानते हैं द्रोणाचार्य

हाथ से बनाते हैं लकड़ी की प्रतिमाः सुनील कुमार में हाथ से लकड़ी की प्रतिमा बनाने की बड़ी कलाकारी है. यह सभी भगवान की प्रतिमा हाथ से बना लेते हैं. लकड़ी पर सभी भगवान की प्रतिमा बनाने में इनकी कलाकारी का जोड़ देखते ही बनता है, लेकिन सबसे बड़ी खासियत यह है कि सुनील कुमार 50 विभिन्न बुद्ध मुद्रा में लकड़ी की प्रतिमा बना लेते हैं. चाहे वह भगवान बुद्ध की प्रतिमा हो, सुजाता हो, समाधि में लीन बुद्ध भगवान हों या कंकाल बुद्धा. इस तरह की 50 विभिन्न बुद्ध मुद्राओं में यह कलाकार हाथ से लकड़ी को तराश कर 5 इंच छोटी से लेकर 3 से 4 फीट की बड़ी प्रतिमा बना लेता है.

प्रतिमा बनाने के दौरान दिखती है बारीकी: प्रतिमा बनाने के दौरान इस कलाकार की बारीकी देखते ही बनती है. जब वह प्रतिमा बनाता है, तो उनकी वास्तविक प्रतिमा में जितनी हड्डी, कपड़े होने चाहिए, उसी के अनुसार वह उसे उकेरता है. छोटा बुद्धा हो, बुद्ध की लकड़ी की बड़ी प्रतिमा, वह नाप से बनाता है. इस कार्य में वह फीता, इंच, फलकार, बटाली, लकड़ी, बालू कागज का ही उपयोग करता है. पूरे काम में मशीन का कहीं से भी यूज़ नहीं किया जाता.

विदेशियों के बीच है अच्छी डिमांड: हाथ से लकड़ी की प्रतिमा बनाने वाले खिजरसराय प्रखंड के खुखड़ी गांव निवासी सुनील कुमार बताते हैं कि उनकी बनाई प्रतिमाओं की डिमांड विदेशियों में अच्छी खासी है. वही अच्छी कीमतें भी देते हैं. हालांकि इंडियन लोग ऐसी प्रतिमा खरीदने के बाद कम मुनाफा ही देते हैं. बताते हैं कि यदि लकड़ी की बुद्ध प्रतिमा या अन्य प्रतिमाओं की बिक्री कम होती है, तो थोक दुकानों से संपर्क कर उसकी बिक्री करते हैं. ऐसे में कमाई बहुत कम हो जाती है. सुनील के मुताबिक बोधगया में इन दिनों फुटपाथ पर इस तरह की प्रतिमा को बनाकर बेच रहे हैं.


नई पीढ़ी नहीं ले रही इस कला में रुचि: सुनील बताते हैं कि नई पीढ़ी अब इस कला से नहीं जुड़ रही है. ऐसे में बेहतरीन कलाकारों की कमी भी हो रही है. सरकार से किसी तरह का प्रोत्साहन नहीं मिलना भी इसका एक कारण है. सरकार कलाकारों पर निगाह नहीं रखती है. नतीजतन एक से एक बढ़कर एक प्रतिभा रखने वाले कलाकार यूं ही अपनी जिंदगी तंगहाली की हालत में गुजार देते हैं. सरकार यदि चाहे तो ऐसे कलाकारों को प्रोत्साहित करे. सरकार मदद देकर आगे बढ़ा सकती है, ताकि नई पीढ़ी भी इससे जुड़ी रह सके.

"मेरी बनाई प्रतिमाओं की डिमांड विदेशियों में अच्छी खासी है. वही अच्छी कीमतें भी देते हैं. हालांकि इंडियन लोग ऐसी प्रतिमा खरीदने के बाद कम मुनाफा ही देते हैं. यदि लकड़ी की बुद्ध प्रतिमा या अन्य प्रतिमाओं की बिक्री कम होती है, तो थोक दुकानों से संपर्क कर उसकी बिक्री करते हैं. ऐसे में कमाई बहुत कम हो जाती है- सुनील कुमार, हाथ से लकड़ी की प्रतिमा बनाने वाला कलाकार. नई पीढ़ी अब इस कला से नहीं जुड़ रही है. ऐसे में बेहतरीन कलाकारों की कमी भी हो रही है. सरकार से किसी तरह का प्रोत्साहन नहीं मिलना भी इसका एक कारण है. सरकार कलाकारों पर निगाह नहीं रखती है. नतीजतन एक से एक बढ़कर एक प्रतिभा रखने वाले कलाकार यूं ही अपनी जिंदगी तंगहाली की हालत में गुजार देते हैं" - सुनील, कलाकार

गया में लकड़ी से प्रतिमा बनाने वाला कलाकार

गया: बिहार के गया में कलाकारों की प्रतिभा में कोई कमी नहीं है. विविध कलाओं में इनकी प्रतिभा देखते ही बनती है. ऐसे ही एक कलाकार गया के खिजरसराय प्रखंड के रहने वाले सुनील कुमार हैं, जो हाथों से ही भगवान बुद्ध की 50 विभिन्न मुद्राओं की लकड़ी की प्रतिमा बना (wooden statue making in gaya ) लेते हैं. यह प्रतिमा 5 इंच से लेकर 3 फीट से भी अधिक तक होती है. बड़ी बात यह है, कि इसमें बारीकी का ध्यान रखकर लकड़ी की प्रतिमा को सही आकार दिया जाता है. सड़क किनारे बैठकर यह लड़की की प्रतिमाएं बनाते हैं.

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हाथ से बनाते हैं लकड़ी की प्रतिमाः सुनील कुमार में हाथ से लकड़ी की प्रतिमा बनाने की बड़ी कलाकारी है. यह सभी भगवान की प्रतिमा हाथ से बना लेते हैं. लकड़ी पर सभी भगवान की प्रतिमा बनाने में इनकी कलाकारी का जोड़ देखते ही बनता है, लेकिन सबसे बड़ी खासियत यह है कि सुनील कुमार 50 विभिन्न बुद्ध मुद्रा में लकड़ी की प्रतिमा बना लेते हैं. चाहे वह भगवान बुद्ध की प्रतिमा हो, सुजाता हो, समाधि में लीन बुद्ध भगवान हों या कंकाल बुद्धा. इस तरह की 50 विभिन्न बुद्ध मुद्राओं में यह कलाकार हाथ से लकड़ी को तराश कर 5 इंच छोटी से लेकर 3 से 4 फीट की बड़ी प्रतिमा बना लेता है.

प्रतिमा बनाने के दौरान दिखती है बारीकी: प्रतिमा बनाने के दौरान इस कलाकार की बारीकी देखते ही बनती है. जब वह प्रतिमा बनाता है, तो उनकी वास्तविक प्रतिमा में जितनी हड्डी, कपड़े होने चाहिए, उसी के अनुसार वह उसे उकेरता है. छोटा बुद्धा हो, बुद्ध की लकड़ी की बड़ी प्रतिमा, वह नाप से बनाता है. इस कार्य में वह फीता, इंच, फलकार, बटाली, लकड़ी, बालू कागज का ही उपयोग करता है. पूरे काम में मशीन का कहीं से भी यूज़ नहीं किया जाता.

विदेशियों के बीच है अच्छी डिमांड: हाथ से लकड़ी की प्रतिमा बनाने वाले खिजरसराय प्रखंड के खुखड़ी गांव निवासी सुनील कुमार बताते हैं कि उनकी बनाई प्रतिमाओं की डिमांड विदेशियों में अच्छी खासी है. वही अच्छी कीमतें भी देते हैं. हालांकि इंडियन लोग ऐसी प्रतिमा खरीदने के बाद कम मुनाफा ही देते हैं. बताते हैं कि यदि लकड़ी की बुद्ध प्रतिमा या अन्य प्रतिमाओं की बिक्री कम होती है, तो थोक दुकानों से संपर्क कर उसकी बिक्री करते हैं. ऐसे में कमाई बहुत कम हो जाती है. सुनील के मुताबिक बोधगया में इन दिनों फुटपाथ पर इस तरह की प्रतिमा को बनाकर बेच रहे हैं.


नई पीढ़ी नहीं ले रही इस कला में रुचि: सुनील बताते हैं कि नई पीढ़ी अब इस कला से नहीं जुड़ रही है. ऐसे में बेहतरीन कलाकारों की कमी भी हो रही है. सरकार से किसी तरह का प्रोत्साहन नहीं मिलना भी इसका एक कारण है. सरकार कलाकारों पर निगाह नहीं रखती है. नतीजतन एक से एक बढ़कर एक प्रतिभा रखने वाले कलाकार यूं ही अपनी जिंदगी तंगहाली की हालत में गुजार देते हैं. सरकार यदि चाहे तो ऐसे कलाकारों को प्रोत्साहित करे. सरकार मदद देकर आगे बढ़ा सकती है, ताकि नई पीढ़ी भी इससे जुड़ी रह सके.

"मेरी बनाई प्रतिमाओं की डिमांड विदेशियों में अच्छी खासी है. वही अच्छी कीमतें भी देते हैं. हालांकि इंडियन लोग ऐसी प्रतिमा खरीदने के बाद कम मुनाफा ही देते हैं. यदि लकड़ी की बुद्ध प्रतिमा या अन्य प्रतिमाओं की बिक्री कम होती है, तो थोक दुकानों से संपर्क कर उसकी बिक्री करते हैं. ऐसे में कमाई बहुत कम हो जाती है- सुनील कुमार, हाथ से लकड़ी की प्रतिमा बनाने वाला कलाकार. नई पीढ़ी अब इस कला से नहीं जुड़ रही है. ऐसे में बेहतरीन कलाकारों की कमी भी हो रही है. सरकार से किसी तरह का प्रोत्साहन नहीं मिलना भी इसका एक कारण है. सरकार कलाकारों पर निगाह नहीं रखती है. नतीजतन एक से एक बढ़कर एक प्रतिभा रखने वाले कलाकार यूं ही अपनी जिंदगी तंगहाली की हालत में गुजार देते हैं" - सुनील, कलाकार

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