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चाइनीज लाइट ने कुम्हारों की कमाई पर लगाया ग्रहण, छोटे दीये की सबसे ज्यादा डिमांड - etv bharat news

गया में कोरोना काल के 2 सालों के बाद इस साल चाक के कलाकारों के हाथ खुले हैं. चाक के कलाकार दीपावली पर्व के लिए रोज दिन-रात एक कर दीये और अन्य मिट्टी के सामान (Diyas And Other Earthenware) बना रहे हैं. हालांकि चाक के कलाकारों की आर्थिक चमक कहीं न कहीं चाइनीज लाइट में फीकी ही रह जाती है. पढ़ें पूरी खबर...

दिवाली पर दिखी कुम्हारों के चेहरे पर खुशी
दिवाली पर दिखी कुम्हारों के चेहरे पर खुशी
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Published : Oct 22, 2022, 5:02 PM IST

गया: रोशनी के पर्व दीपावली (Festival Of Lights Diwali) को गरीब हो या अमीर हर साल इस त्योहार (Diwali 2022) को लोग खुशी-खुशी मनाते हैं. यह त्योहार हर किसी के मन में खुशियां लाता है. फेस्टीवल से जुड़े लोगों को आमदानी भी होती है, जो पूरे साल खर्च करते हैं. कुम्हार समाज के लोगों को भी इस पर्व पर कमाई की आस होती है. इस साल इन लोगों को आमदनी जायादा होने की आस हैं. गया के डेल्हा में कुम्हार समाज के लोग (Potters Society In Gaya) दीये बनाने में जुटे हुए हैं. रोज यहां पर एक लाख दीये बना रहे हैं. इस इलाके में रहने वाले चाक के कलाकार प्रतिदिन एक लाख दीये बना रहे हैं. इस बार डिमांड काफी है तो दीये बनाने के इन कलाकारों में उत्साह भी देखा जा रहा है. यह बताते हैं कि 2 सालों में कोरोना काल के कारण जो नुकसान हुआ, उसकी भारपाई इस साल हो जाएगी.

ये भी पढ़ें- दीपावली पर लखीसराय में मिट्टी के दीयों से पटा बाजार, कुम्हारों को उम्मीद- होगी अच्छी बिक्री

गया में बनने वाली सबसे छोटी दीये की भारी डिमांड : गया में बनने वाली सबसे छोटी दीये की भारी डिमांड है. यहां सबसे छोटा दीया कुछ एक्सपर्ट कुम्हार ही बना पाते हैं. सबसे छोटा दीया बनाने की कला हर किसी के पास नहीं होती है. क्योंकि इसमें काफी बारीकी करनी पड़ती है. गया में बागेश्वरी गुमटी के नजदीक दीये बना रहे कुम्हार समाज के लोग बताते हैं, कि हमलोग सबसे छोटा दीया बनाते हैं जो कि दीपावली में काफी बाजारों में उपयोग होती है. बताते हैं कि गया के अलावे बिहार में गिने-चुने जगह पर ही सबसे छोटा दीया बनाया जाता है.

दिवाली के सीजन में 3 हजार की रोजाना कमाई : यहां पर दीया बनाने वाले परंपरिक चाक के अलावे इलेक्ट्रिक चाक चला रहे है. गया में बनाया गया सबसे छोटा दीया गया, औरंगाबाद, नवादा, हसपुरा, मसौढ़ी, सासाराम के अलावे झारखंड के चतरा एवं अन्य जिलों में गया से ही भेजे जाते हैं. बताते हैं कि प्रतिदिन एक परिवार के लोग दिवाली के सीजन में 3 हजार रोज कमा लेते हैं. गया जिले में पारंपरिक चाक के अलावे इलेक्ट्रिक चाक भी चलाए जा रहे हैं. पारंपरिक चाक में जहां काफी मेहनत लगती है, वहीं, इलेक्ट्रॉनिक चाक में मेहनत कम होती है, लेकिन बिजली बिल ज्यादा आने का कारण कमाई कम हो जाती है. यही वजह है कि इलेक्ट्रिक चाक का प्रयोग गिने-चुने लोग ही करते हैं.

'इस व्यवसाय से 35 सालों से जुड़े हुए हैं, लेकिन आज तक आर्थिक रूप से मजबूत नहीं हो पाए हैं. आर्थिक स्थिति जस की तस है. बस किसी तरह इस रोजगार के सहारे पेट चल पाता है. हमारे समाज की ओर सरकार का भी ध्यान नहीं है. इस पेशे से जुड़े लोगों के लिए सरकार ने आज तक कोई योजना तैयार नहीं की. इलेक्ट्रिक चाक की योजना आई, लेकिन बिजली काफी महंगी होने के कारण वह भी गिने-चुने लोगों के लिए ही रह गई.' - आनंद प्रजापति, दीया बनाने वाले कारीगर

चाइनीज लाइट ने कारीगरों ने कमाई की फीकी : चाक के कलाकारों की दीपावली की खुशियां चाइनीज लाइट फीकी कर देते हैं. कुम्हार समाज के लोग बताते हैं कि दीया बनाने का परंपरिक पेशा धीरे-धीरे कम होने लगा है. हालांकि कम आमदानी के कारण (Potters Artisans Earn Less By Chinese Lights) कुम्हार समाज के लोग अब इस पेशे से दूर होने लगे हैं. यही वजह है कि जहां डेल्हा क्षेत्र में एक सौ घरों में मिट्टी के दीये और अन्य मिट्टी के सामान बनाए जाते थे. अब वह 50 घरों के परिवार ही इस धंधे से जुड़े हुए हैं. बताते हैं कि चाइनीज लाइट के कारण उनका व्यवसाय प्रभावित होता है. महंगाई बढ़ने के साथ दीयों के रेट महंगाई के मुताबिक लोग नहीं देना चाहते हैं.

परांपरिक पेशा छोड़ रहे लोग : गया में कुम्हार समाज के लोग दीये बना रहे हैं. जिसमें सबसे छोटा दिया 300 में 1000 पीस, इससे बड़ा दिया 400 में 1000 पीस और उससे बङा दीया 500 में 1000 पीस बिक्री होता है. फिलहाल में सबसे ज्यादा इन्हीं 3 साइजों के दीये की मांग होती है. वहीं, इससे काफी बड़े दिए 2 रूपए पीस की दर से बेचे जाते हैं. मिट्टी के खिलौने की कीमत उसकी बनावट पर आधारित होती है.

गया: रोशनी के पर्व दीपावली (Festival Of Lights Diwali) को गरीब हो या अमीर हर साल इस त्योहार (Diwali 2022) को लोग खुशी-खुशी मनाते हैं. यह त्योहार हर किसी के मन में खुशियां लाता है. फेस्टीवल से जुड़े लोगों को आमदानी भी होती है, जो पूरे साल खर्च करते हैं. कुम्हार समाज के लोगों को भी इस पर्व पर कमाई की आस होती है. इस साल इन लोगों को आमदनी जायादा होने की आस हैं. गया के डेल्हा में कुम्हार समाज के लोग (Potters Society In Gaya) दीये बनाने में जुटे हुए हैं. रोज यहां पर एक लाख दीये बना रहे हैं. इस इलाके में रहने वाले चाक के कलाकार प्रतिदिन एक लाख दीये बना रहे हैं. इस बार डिमांड काफी है तो दीये बनाने के इन कलाकारों में उत्साह भी देखा जा रहा है. यह बताते हैं कि 2 सालों में कोरोना काल के कारण जो नुकसान हुआ, उसकी भारपाई इस साल हो जाएगी.

ये भी पढ़ें- दीपावली पर लखीसराय में मिट्टी के दीयों से पटा बाजार, कुम्हारों को उम्मीद- होगी अच्छी बिक्री

गया में बनने वाली सबसे छोटी दीये की भारी डिमांड : गया में बनने वाली सबसे छोटी दीये की भारी डिमांड है. यहां सबसे छोटा दीया कुछ एक्सपर्ट कुम्हार ही बना पाते हैं. सबसे छोटा दीया बनाने की कला हर किसी के पास नहीं होती है. क्योंकि इसमें काफी बारीकी करनी पड़ती है. गया में बागेश्वरी गुमटी के नजदीक दीये बना रहे कुम्हार समाज के लोग बताते हैं, कि हमलोग सबसे छोटा दीया बनाते हैं जो कि दीपावली में काफी बाजारों में उपयोग होती है. बताते हैं कि गया के अलावे बिहार में गिने-चुने जगह पर ही सबसे छोटा दीया बनाया जाता है.

दिवाली के सीजन में 3 हजार की रोजाना कमाई : यहां पर दीया बनाने वाले परंपरिक चाक के अलावे इलेक्ट्रिक चाक चला रहे है. गया में बनाया गया सबसे छोटा दीया गया, औरंगाबाद, नवादा, हसपुरा, मसौढ़ी, सासाराम के अलावे झारखंड के चतरा एवं अन्य जिलों में गया से ही भेजे जाते हैं. बताते हैं कि प्रतिदिन एक परिवार के लोग दिवाली के सीजन में 3 हजार रोज कमा लेते हैं. गया जिले में पारंपरिक चाक के अलावे इलेक्ट्रिक चाक भी चलाए जा रहे हैं. पारंपरिक चाक में जहां काफी मेहनत लगती है, वहीं, इलेक्ट्रॉनिक चाक में मेहनत कम होती है, लेकिन बिजली बिल ज्यादा आने का कारण कमाई कम हो जाती है. यही वजह है कि इलेक्ट्रिक चाक का प्रयोग गिने-चुने लोग ही करते हैं.

'इस व्यवसाय से 35 सालों से जुड़े हुए हैं, लेकिन आज तक आर्थिक रूप से मजबूत नहीं हो पाए हैं. आर्थिक स्थिति जस की तस है. बस किसी तरह इस रोजगार के सहारे पेट चल पाता है. हमारे समाज की ओर सरकार का भी ध्यान नहीं है. इस पेशे से जुड़े लोगों के लिए सरकार ने आज तक कोई योजना तैयार नहीं की. इलेक्ट्रिक चाक की योजना आई, लेकिन बिजली काफी महंगी होने के कारण वह भी गिने-चुने लोगों के लिए ही रह गई.' - आनंद प्रजापति, दीया बनाने वाले कारीगर

चाइनीज लाइट ने कारीगरों ने कमाई की फीकी : चाक के कलाकारों की दीपावली की खुशियां चाइनीज लाइट फीकी कर देते हैं. कुम्हार समाज के लोग बताते हैं कि दीया बनाने का परंपरिक पेशा धीरे-धीरे कम होने लगा है. हालांकि कम आमदानी के कारण (Potters Artisans Earn Less By Chinese Lights) कुम्हार समाज के लोग अब इस पेशे से दूर होने लगे हैं. यही वजह है कि जहां डेल्हा क्षेत्र में एक सौ घरों में मिट्टी के दीये और अन्य मिट्टी के सामान बनाए जाते थे. अब वह 50 घरों के परिवार ही इस धंधे से जुड़े हुए हैं. बताते हैं कि चाइनीज लाइट के कारण उनका व्यवसाय प्रभावित होता है. महंगाई बढ़ने के साथ दीयों के रेट महंगाई के मुताबिक लोग नहीं देना चाहते हैं.

परांपरिक पेशा छोड़ रहे लोग : गया में कुम्हार समाज के लोग दीये बना रहे हैं. जिसमें सबसे छोटा दिया 300 में 1000 पीस, इससे बड़ा दिया 400 में 1000 पीस और उससे बङा दीया 500 में 1000 पीस बिक्री होता है. फिलहाल में सबसे ज्यादा इन्हीं 3 साइजों के दीये की मांग होती है. वहीं, इससे काफी बड़े दिए 2 रूपए पीस की दर से बेचे जाते हैं. मिट्टी के खिलौने की कीमत उसकी बनावट पर आधारित होती है.

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