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'जीतनराम मांझी की फेस वैल्यू हैं, लेकिन लैंड वैल्यू खत्म हो गई' - बिहार विधान सभा चुनाव

राजनीतिक विश्लेषक प्रो. अब्दुल कादिर ने कहा कि बिहार के दलित युवा भीम आर्मी को पसंद करता है. जीतनराम मांझी फेस वैल्यू हो सकते हैं, लेकिन लैंड वैल्यू नहीं हो सकते हैं.

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Published : Aug 23, 2020, 6:55 PM IST

गया: प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव होने ऐन पहले पूर्व मुख्यमंत्री और हम प्रमुख जीतनराम मांझी ने महागठबंधन का साथ छोड़ दिया. उन्होंने अनपी आगे की रणनीति का खुलासा नहीं किया है. मांझी के राजनीतिक अतीत और भविष्य की संभावना पर ईटीवी ने बात की राजनीतिक विश्लेषक प्रो. अब्दुल कादिर से. पेश है बातचीत के प्रमुख अंश.

सवालः बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी ने महागठबंधन से नाता तोड़ लिया है, एनडीए में जाने की पूरी संभावना है. इससे मांझी के व्यक्तित्व और राजनीतिक जीवन पर क्या असर पड़ेगा?
जवाबः जीतनराम मांझी ने कई बार पार्टी और विधानसभा क्षेत्र बदला है. इससे उनकी विश्वसनीयता नहीं रही है. एनडीए में जीतनराम मांझी को तवज्जों मिलेगा, मुझे ऐसा नहीं लगता है. जीतनराम मांझी की पार्टी का सिंबल भी छिन गया है.

जीतनराम
पूर्व मुख्यमंत्री और हम प्रमुख जीतनराम मांझी
सवालः जीतनराम मांझी एनडीए से गठबंधन करेंगे या जेडीयू में विलय होगा?
जवाबः मैं जहां तक नीतीश कुमार को जानता हूं. वो यही चाहेंगे कि मांझी की पार्टी का विलय हो. वो कभी नहीं चाहेंगे की मांझी गठबंधन का घटक रहे. मुझे लगता है कि मांझी एनडीए का हिस्सा नहीं बनेंगे, वो जेडीयू के सदस्य बनेंगे.
सवालः जीतनराम मांझी का गया और मगध क्षेत्र में राजनीतिक प्रभाव कितना है?

जवाबः जीतनराम मांझी की विश्वसनीयता अब खत्म हो चुकी है. गया जिले के सभी सुरक्षित सीट से चुनाव लड़े हैं. उन्होंने अभी तक पांच बार दल बदला है. 1980 में कांग्रेस की लहर में जीते, फिर 90 के दशक कांग्रेस का प्रभाव कम हुआ तो जनता दल में शामिल हो गए. उसके बाद जेडीयू में शामिल हुए, मंत्री और मुख्यमंत्री बने. जीतनराम मांझी मगध के राजनीतिक मौसम वैज्ञानिक हैं.

सवालः महागठबंधन मांझी को छोड़ना नहीं चाह रहा था और एनडीए उनका स्वागत कर रहा है. क्या वो बिहार के दलितों का नेता बने रहेंगे?
जवाबः महागठबंधन चुनाव के वक्त जोखिम नहींं उठाना चाह रहा था. इसलिए मांझी को बाहर का रास्ता नहीं दिखाया. वहीं एनडीए अभी मांझी को इसलिए वैल्यू दे रहा है, क्योंकि एलजेपी विरोधी सुर अलापने लगी है. वहीं, बिहार के दलितों की बात करें तो खासकर युवाओं में भीम आर्मी की ज्यादा पहचान है. जीतनराम मांझी फेस वैल्यू हो सकते हैं, लेकिन लैंड वैल्यू नहीं हो सकते हैं.

पेश है रिपोर्ट

गौरतलब है कि जीतनराम मांझी बिहार के मुख्यमंत्री पद के हटने के बाद अपनी पार्टी हम बनायी थी. 2015 विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी का एनडीए के साथ गठबंधन हुआ था. एनडीए ने मुंह मांगी सीट दी, लेकिन जीतनराम मांझी उन सीटों पर प्रभाव नहीं डाल सके. खुद मगध क्षेत्र के दो सीटों पर चुनाव लड़ रहे थे, लेकिन एक सीट पर उनकी हार हुई थी. एनडीए को मगध क्षेत्र से मांझी के रहते निराशा हाथ लगी थी.

2019 में हार गए लोकसभा चुनाव
2019 में जीतनराम मांझी महागठबंधन के घटक दल में रहे. उन्हें लोकसभा चुनाव में मगध क्षेत्र की तीन सीट दी गई. पार्टी की तीनों सीटो पर बुरी हार हुई. खुद जीतनराम मांझी गया संसदीय क्षेत्र से चुनाव हार गए थे.

गया: प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव होने ऐन पहले पूर्व मुख्यमंत्री और हम प्रमुख जीतनराम मांझी ने महागठबंधन का साथ छोड़ दिया. उन्होंने अनपी आगे की रणनीति का खुलासा नहीं किया है. मांझी के राजनीतिक अतीत और भविष्य की संभावना पर ईटीवी ने बात की राजनीतिक विश्लेषक प्रो. अब्दुल कादिर से. पेश है बातचीत के प्रमुख अंश.

सवालः बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी ने महागठबंधन से नाता तोड़ लिया है, एनडीए में जाने की पूरी संभावना है. इससे मांझी के व्यक्तित्व और राजनीतिक जीवन पर क्या असर पड़ेगा?
जवाबः जीतनराम मांझी ने कई बार पार्टी और विधानसभा क्षेत्र बदला है. इससे उनकी विश्वसनीयता नहीं रही है. एनडीए में जीतनराम मांझी को तवज्जों मिलेगा, मुझे ऐसा नहीं लगता है. जीतनराम मांझी की पार्टी का सिंबल भी छिन गया है.

जीतनराम
पूर्व मुख्यमंत्री और हम प्रमुख जीतनराम मांझी
सवालः जीतनराम मांझी एनडीए से गठबंधन करेंगे या जेडीयू में विलय होगा?
जवाबः मैं जहां तक नीतीश कुमार को जानता हूं. वो यही चाहेंगे कि मांझी की पार्टी का विलय हो. वो कभी नहीं चाहेंगे की मांझी गठबंधन का घटक रहे. मुझे लगता है कि मांझी एनडीए का हिस्सा नहीं बनेंगे, वो जेडीयू के सदस्य बनेंगे.
सवालः जीतनराम मांझी का गया और मगध क्षेत्र में राजनीतिक प्रभाव कितना है?

जवाबः जीतनराम मांझी की विश्वसनीयता अब खत्म हो चुकी है. गया जिले के सभी सुरक्षित सीट से चुनाव लड़े हैं. उन्होंने अभी तक पांच बार दल बदला है. 1980 में कांग्रेस की लहर में जीते, फिर 90 के दशक कांग्रेस का प्रभाव कम हुआ तो जनता दल में शामिल हो गए. उसके बाद जेडीयू में शामिल हुए, मंत्री और मुख्यमंत्री बने. जीतनराम मांझी मगध के राजनीतिक मौसम वैज्ञानिक हैं.

सवालः महागठबंधन मांझी को छोड़ना नहीं चाह रहा था और एनडीए उनका स्वागत कर रहा है. क्या वो बिहार के दलितों का नेता बने रहेंगे?
जवाबः महागठबंधन चुनाव के वक्त जोखिम नहींं उठाना चाह रहा था. इसलिए मांझी को बाहर का रास्ता नहीं दिखाया. वहीं एनडीए अभी मांझी को इसलिए वैल्यू दे रहा है, क्योंकि एलजेपी विरोधी सुर अलापने लगी है. वहीं, बिहार के दलितों की बात करें तो खासकर युवाओं में भीम आर्मी की ज्यादा पहचान है. जीतनराम मांझी फेस वैल्यू हो सकते हैं, लेकिन लैंड वैल्यू नहीं हो सकते हैं.

पेश है रिपोर्ट

गौरतलब है कि जीतनराम मांझी बिहार के मुख्यमंत्री पद के हटने के बाद अपनी पार्टी हम बनायी थी. 2015 विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी का एनडीए के साथ गठबंधन हुआ था. एनडीए ने मुंह मांगी सीट दी, लेकिन जीतनराम मांझी उन सीटों पर प्रभाव नहीं डाल सके. खुद मगध क्षेत्र के दो सीटों पर चुनाव लड़ रहे थे, लेकिन एक सीट पर उनकी हार हुई थी. एनडीए को मगध क्षेत्र से मांझी के रहते निराशा हाथ लगी थी.

2019 में हार गए लोकसभा चुनाव
2019 में जीतनराम मांझी महागठबंधन के घटक दल में रहे. उन्हें लोकसभा चुनाव में मगध क्षेत्र की तीन सीट दी गई. पार्टी की तीनों सीटो पर बुरी हार हुई. खुद जीतनराम मांझी गया संसदीय क्षेत्र से चुनाव हार गए थे.

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