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कोरोना काल में इस साल भी नहीं लगेगा पितृपक्ष मेला, लेकिन कर सकेंगे पिंडदान

गया जी (Gaya) पितृपक्ष में पितरों का आलय बन जाता है. कोरोना काल के चलते इस साल भी पितृपक्ष मेले (Pitrapaksha Fair) का आयोजन नहीं किया जाएगा, लेकिन लोग कोविड गाइडलाइंस (Covid Guidelines) का पालन करते हुए पिंडदान कर सकेंगे. पढ़ें ये रिपोर्ट...

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Published : Sep 11, 2021, 4:37 PM IST

गया: बिहार की धार्मिक नगरी गया (Gaya) का महत्व पितृपक्ष मेले (Pitrapaksha Mela) के दौरान काफी बढ़ जाता है. इस पितृपक्ष में देश से ही नहीं विदेशों से श्रद्धालु पिंडदान करने आते हैं. पूरे विश्व में केवल गया शहर के लिए 'जी' शब्द का उपयोग किया जाता है. सनातन धर्मावलंबियों के लिए गया जी पितरों को मोक्ष दिलाने का एक स्थान है.

ये भी पढ़ें- VIDEO : फल्गु नदी से पितरों को मोक्ष देने वाले 'बालू' की दिनदहाड़े चोरी

गया जी में बालू मात्र से पिंडदान अर्पण करने और मोक्षदायिनी फल्गु के पानी के तर्पण करने से ही पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है. इस स्थान की चर्चा सनातन धर्म की अधिकांश वेदों और पुस्तकों में है. पिछले साल कोरोना महामारी की वजह से पितृपक्ष मेला आयोजित नहीं किया गया था. इस साल भी पितृपक्ष मेले का आयोजन नहीं किया जाएगा, लेकिन पिंडदानी को पिंडदान करने की छूट रहेगी.

देखें रिपोर्ट

दरअसल, सनातन धर्म के वेदों में बताया गया है कि चार पुरुषार्थों में अंतिम मोक्ष की प्राप्ति का स्थान गया को माना गया है. धर्म, अर्थ और काम की पूर्णता तभी सार्थक है जब मोक्ष सुलभ हो. पितृपक्ष यानी पितरों का पक्ष, इस पक्ष में पितृ अपने लोक से पृथ्वी लोक में एक मात्र गया जी में आते हैं. कहा जाता है कि गया जी में पितृ अपने वंशज को देखकर काफी प्रसन्न होते हैं. यहां आटा, फल, फूल, भोजन और कुछ नहीं मिले तो बालू का पिंडदान करने से पितरों को मोक्ष मिल जाता है.

ये भी पढ़ें- गया में तर्पण के लिए नहीं होगी पानी की कमी, 277 करोड़ रुपये की लागत से बन रहे रबर डैम का 25 फीसदी कार्य पूरा

पितृपक्ष में पिंडदान करने की शुरुआत ब्रह्मा जी के पुत्र ने की थी. वायु पुराण की कथा के अनुसार प्राचीन काल में गयासुर नामक एक असुर बसता था. उसने दैत्यों के गुरु शंकराचार्य की सेवा कर वेद, वेदांत, धर्म और युद्ध कला में महारत हासिल कर भगवान विष्णु की तपस्या शुरू कर दी. उसकी कठिन तपस्या से प्रभावित होकर भगवान विष्णु प्रकट हुए और उसने वरदान मांगने को कहा. गयासुर ने वरदान मांगा कि भगवान जो भी मेरा दर्शन करे, वो सीधे बैकुंठ जाए. भगवान विष्णु तथास्तु कहकर चले गए.

भगवान विष्णु से वरदान प्राप्त करते ही गयासुर का दर्शन और स्पर्श करके लोग मोक्ष की प्राप्ति करने लगे. नतीजा यह हुआ कि यमराज सहित अन्य देवता का अस्तित्व संकट में आने लगा. ब्रह्मा जी ने देवताओं को बुलाकर सभा की और विचार विमर्श किया. भगवान विष्णु ने कहा कि आप सभी गयासुर के शरीर पर महायज्ञ करने के लिए उसे राजी करें. जिसके बाद ब्रह्मा जी गयासुर के पास गए और उससे कहा कि मुझे यज्ञ करने के लिए तुम्हारा शरीर चाहिए.

ब्रह्मा जी के आग्रह से गयासुर ने यज्ञ के लिए अपना शरीर दे दिया. उसका शरीर पांच कोस में फैला था, उसका सिर उत्तर में और पैर दक्षिण में था. यज्ञ के दौरान गयासुर का शरीर कंपन करने लगा तो ब्रह्मा जी की बहू धर्मशीला जो एक शिला के स्वरूप में थी, उसकी छाती पर धर्मशीला को रख दिया गया, फिर भी गयासुर का शरीर हिलता रहा.

अंत में भगवान विष्णु यज्ञ स्थल पर पहुंचे और गयासुर के सीने पर रखे धर्मशिला पर अपना चरण रखकर दबाते हुए गयासुर से कहा अंतिम क्षण में मुझसे चाहे जो वर मांग लो इस पर गया सुर ने कहा कि भगवान में जिस स्थान पर प्राण त्याग रहा हूं, वो शिला में परिवर्तित हो जाए और मैं उसमें मौजूद रहूं. इस शिला पर आप का पद चिन्ह विराजमान रहे और जो इस शिला पर पिंडदान प्रदान करेगा, उसके पूर्वज तमाम पापों से मुक्त होकर स्वर्ग में वास करेंगे. जिस दिन एक पिंड और मुंड नहीं मिलेगा, उस दिन इस क्षेत्र और शिला का नाश हो जाएगा. विष्णु भगवान ने तथास्तु कहा उसके बाद से इस स्थान पर पिंडदान शुरू हो गया.

ये भी पढ़ें- पितृपक्ष: गया जी में पिंडदान करने वालों का प्रवेश द्वार है पुनपुन घाट

''गया में सालभर पिंडदान करने का महत्व है, लेकिन पितृपक्ष में पिंडदान करने का महत्व कुछ विशेष होता है. गया जी में पितृपक्ष के दौरान पितरों का वास होता है. जब संतान पिंडदान करने के उद्देश्य से यात्रा के लिए निकलते हैं तो पितृ उत्सव मनाते हैं. गया जी में मेरा वंश का कोई एक व्यक्ति आकर मुझे मोक्ष दिलवा देगा. जब पितरों का वंशज या संतान मोक्षदायिनी फल्गु नदी में अंगूठा भी रखता है, तो उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है. पितृपक्ष के दौरान गया जी में पिंडदान करने के बाद किसी भी स्थान पर पिंडदान करने की जरूरत नहीं है. पितृपक्ष के दौरान सिर्फ गया जी में पिंडदान करने का महत्व है.''- पंडित राजाचार्य, आचार्य

हर साल पितृपक्ष के दौरान विष्णुपद क्षेत्र में राजकीय मेला आयोजित किया जाता था. कोरोना काल की वजह से पिछले साल पितृपक्ष मेले का आयोजन नहीं हुआ था. इस साल भी मेले का आयोजन नहीं होगा. लेकिन, कोविड गाइडलाइंस का पालन करते हुए पिंडदान करने की छूट रहेगी.

ये भी पढ़ें- गया के फल्गु नदी में बन रहा राज्य का पहला रबर डैम, तर्पण में होगी सुविधा

''गया में हर साल पितृपक्ष के दौरान राजकीय मेला आयोजित किया जाता था. इस साल मेले के आयोजन को लेकर किसी प्रकार की जानकारी नहीं है, लेकिन पितृपक्ष के दौरान जितने भी तीर्थयात्री आएंगे, उन्हें किसी तरह की समस्या नहीं होगी. गया नगर निगम पितृपक्ष मेले में जिस तरह स्वच्छता के लिए कार्य करती थी, उसी तरह से करेगी. सिर्फ विष्णुपद क्षेत्र और देवघाट पर 250 सफाई कर्मी रहेंगे. इसके अलावा पेयजल और स्नानगृह की मुकम्मल व्यवस्था की जाएगा.''- सावन कुमार, नगर आयुक्त, गया नगर निगम

बता दें कि इस साल 19 सितंबर को पुनपुन नदी से पहला पिंडदान शुरू होगा. वहीं, 20 सितंबर से गया में पिंडदान की शुरुआत होगी. गया जी में एक दिन, तीन दिन, पांच दिन, एक सप्ताह और 17 दिनों का 'गया श्राद्ध' यानी 'पिंड दान क्रिया कर्म' होता है. वेदों और पुराण के अनुसार गया जी में कम से कम तीन दिवसीय पिंडदान करने का उल्लेख है. इस आधुनिक युग में एक दिवसीय पिंडदान शुरू हो गया है, इस पिंडदान से भी लाभ है. 17 दिवसीय पिंडदान 45 पिंड वेदियों पर होता है. आज से सालों पहले एक वर्ष का पिंडदान होता था, उस वक्त 365 वेदियां विराजमान थी.

गया: बिहार की धार्मिक नगरी गया (Gaya) का महत्व पितृपक्ष मेले (Pitrapaksha Mela) के दौरान काफी बढ़ जाता है. इस पितृपक्ष में देश से ही नहीं विदेशों से श्रद्धालु पिंडदान करने आते हैं. पूरे विश्व में केवल गया शहर के लिए 'जी' शब्द का उपयोग किया जाता है. सनातन धर्मावलंबियों के लिए गया जी पितरों को मोक्ष दिलाने का एक स्थान है.

ये भी पढ़ें- VIDEO : फल्गु नदी से पितरों को मोक्ष देने वाले 'बालू' की दिनदहाड़े चोरी

गया जी में बालू मात्र से पिंडदान अर्पण करने और मोक्षदायिनी फल्गु के पानी के तर्पण करने से ही पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है. इस स्थान की चर्चा सनातन धर्म की अधिकांश वेदों और पुस्तकों में है. पिछले साल कोरोना महामारी की वजह से पितृपक्ष मेला आयोजित नहीं किया गया था. इस साल भी पितृपक्ष मेले का आयोजन नहीं किया जाएगा, लेकिन पिंडदानी को पिंडदान करने की छूट रहेगी.

देखें रिपोर्ट

दरअसल, सनातन धर्म के वेदों में बताया गया है कि चार पुरुषार्थों में अंतिम मोक्ष की प्राप्ति का स्थान गया को माना गया है. धर्म, अर्थ और काम की पूर्णता तभी सार्थक है जब मोक्ष सुलभ हो. पितृपक्ष यानी पितरों का पक्ष, इस पक्ष में पितृ अपने लोक से पृथ्वी लोक में एक मात्र गया जी में आते हैं. कहा जाता है कि गया जी में पितृ अपने वंशज को देखकर काफी प्रसन्न होते हैं. यहां आटा, फल, फूल, भोजन और कुछ नहीं मिले तो बालू का पिंडदान करने से पितरों को मोक्ष मिल जाता है.

ये भी पढ़ें- गया में तर्पण के लिए नहीं होगी पानी की कमी, 277 करोड़ रुपये की लागत से बन रहे रबर डैम का 25 फीसदी कार्य पूरा

पितृपक्ष में पिंडदान करने की शुरुआत ब्रह्मा जी के पुत्र ने की थी. वायु पुराण की कथा के अनुसार प्राचीन काल में गयासुर नामक एक असुर बसता था. उसने दैत्यों के गुरु शंकराचार्य की सेवा कर वेद, वेदांत, धर्म और युद्ध कला में महारत हासिल कर भगवान विष्णु की तपस्या शुरू कर दी. उसकी कठिन तपस्या से प्रभावित होकर भगवान विष्णु प्रकट हुए और उसने वरदान मांगने को कहा. गयासुर ने वरदान मांगा कि भगवान जो भी मेरा दर्शन करे, वो सीधे बैकुंठ जाए. भगवान विष्णु तथास्तु कहकर चले गए.

भगवान विष्णु से वरदान प्राप्त करते ही गयासुर का दर्शन और स्पर्श करके लोग मोक्ष की प्राप्ति करने लगे. नतीजा यह हुआ कि यमराज सहित अन्य देवता का अस्तित्व संकट में आने लगा. ब्रह्मा जी ने देवताओं को बुलाकर सभा की और विचार विमर्श किया. भगवान विष्णु ने कहा कि आप सभी गयासुर के शरीर पर महायज्ञ करने के लिए उसे राजी करें. जिसके बाद ब्रह्मा जी गयासुर के पास गए और उससे कहा कि मुझे यज्ञ करने के लिए तुम्हारा शरीर चाहिए.

ब्रह्मा जी के आग्रह से गयासुर ने यज्ञ के लिए अपना शरीर दे दिया. उसका शरीर पांच कोस में फैला था, उसका सिर उत्तर में और पैर दक्षिण में था. यज्ञ के दौरान गयासुर का शरीर कंपन करने लगा तो ब्रह्मा जी की बहू धर्मशीला जो एक शिला के स्वरूप में थी, उसकी छाती पर धर्मशीला को रख दिया गया, फिर भी गयासुर का शरीर हिलता रहा.

अंत में भगवान विष्णु यज्ञ स्थल पर पहुंचे और गयासुर के सीने पर रखे धर्मशिला पर अपना चरण रखकर दबाते हुए गयासुर से कहा अंतिम क्षण में मुझसे चाहे जो वर मांग लो इस पर गया सुर ने कहा कि भगवान में जिस स्थान पर प्राण त्याग रहा हूं, वो शिला में परिवर्तित हो जाए और मैं उसमें मौजूद रहूं. इस शिला पर आप का पद चिन्ह विराजमान रहे और जो इस शिला पर पिंडदान प्रदान करेगा, उसके पूर्वज तमाम पापों से मुक्त होकर स्वर्ग में वास करेंगे. जिस दिन एक पिंड और मुंड नहीं मिलेगा, उस दिन इस क्षेत्र और शिला का नाश हो जाएगा. विष्णु भगवान ने तथास्तु कहा उसके बाद से इस स्थान पर पिंडदान शुरू हो गया.

ये भी पढ़ें- पितृपक्ष: गया जी में पिंडदान करने वालों का प्रवेश द्वार है पुनपुन घाट

''गया में सालभर पिंडदान करने का महत्व है, लेकिन पितृपक्ष में पिंडदान करने का महत्व कुछ विशेष होता है. गया जी में पितृपक्ष के दौरान पितरों का वास होता है. जब संतान पिंडदान करने के उद्देश्य से यात्रा के लिए निकलते हैं तो पितृ उत्सव मनाते हैं. गया जी में मेरा वंश का कोई एक व्यक्ति आकर मुझे मोक्ष दिलवा देगा. जब पितरों का वंशज या संतान मोक्षदायिनी फल्गु नदी में अंगूठा भी रखता है, तो उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है. पितृपक्ष के दौरान गया जी में पिंडदान करने के बाद किसी भी स्थान पर पिंडदान करने की जरूरत नहीं है. पितृपक्ष के दौरान सिर्फ गया जी में पिंडदान करने का महत्व है.''- पंडित राजाचार्य, आचार्य

हर साल पितृपक्ष के दौरान विष्णुपद क्षेत्र में राजकीय मेला आयोजित किया जाता था. कोरोना काल की वजह से पिछले साल पितृपक्ष मेले का आयोजन नहीं हुआ था. इस साल भी मेले का आयोजन नहीं होगा. लेकिन, कोविड गाइडलाइंस का पालन करते हुए पिंडदान करने की छूट रहेगी.

ये भी पढ़ें- गया के फल्गु नदी में बन रहा राज्य का पहला रबर डैम, तर्पण में होगी सुविधा

''गया में हर साल पितृपक्ष के दौरान राजकीय मेला आयोजित किया जाता था. इस साल मेले के आयोजन को लेकर किसी प्रकार की जानकारी नहीं है, लेकिन पितृपक्ष के दौरान जितने भी तीर्थयात्री आएंगे, उन्हें किसी तरह की समस्या नहीं होगी. गया नगर निगम पितृपक्ष मेले में जिस तरह स्वच्छता के लिए कार्य करती थी, उसी तरह से करेगी. सिर्फ विष्णुपद क्षेत्र और देवघाट पर 250 सफाई कर्मी रहेंगे. इसके अलावा पेयजल और स्नानगृह की मुकम्मल व्यवस्था की जाएगा.''- सावन कुमार, नगर आयुक्त, गया नगर निगम

बता दें कि इस साल 19 सितंबर को पुनपुन नदी से पहला पिंडदान शुरू होगा. वहीं, 20 सितंबर से गया में पिंडदान की शुरुआत होगी. गया जी में एक दिन, तीन दिन, पांच दिन, एक सप्ताह और 17 दिनों का 'गया श्राद्ध' यानी 'पिंड दान क्रिया कर्म' होता है. वेदों और पुराण के अनुसार गया जी में कम से कम तीन दिवसीय पिंडदान करने का उल्लेख है. इस आधुनिक युग में एक दिवसीय पिंडदान शुरू हो गया है, इस पिंडदान से भी लाभ है. 17 दिवसीय पिंडदान 45 पिंड वेदियों पर होता है. आज से सालों पहले एक वर्ष का पिंडदान होता था, उस वक्त 365 वेदियां विराजमान थी.

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