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गया: मोक्ष प्राप्ति के लिए इस मंदिर में लोग खुद का करते हैं पिंडदान

गोप्रचार और मंगलगौरी पर्वत के ऊपरी भाग पर जनार्दन भगवान का मन्दिर है. जहां जनार्दन भगवान की प्रतिमा स्थित है. इस मंदिर में जीवित लोगों के लिए तिल रहित पिंडदान किया जाता है. यहां भगवान जनार्दन को पिता, पुत्र, पौत्र मानकर उनके हाथ में बिना तिल का ही पिंडदान दिया जाता है.

जनार्दन भगवान
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Published : Sep 27, 2019, 4:29 PM IST

गया: मोक्षधाम गया जी में पितृपक्ष में लाखों श्रद्धालु अपने पितरों को मोक्ष दिलाने आते हैं. पितरों को पुत्र, पौत्र या कोई वंशज पिंडवेदी पर पिंडदान करके मोक्ष दिलाया जाता है, लेकिन इन सब से अलग गया जी में स्वयं का भी पिंडदान किया जाता है. अमूमन ये पिंडदान साधु-संन्यासी करते थे लेकिन कुछ दशकों से आत्म पिंडदान परिवार से निराश व्यक्ति भी करने लगे थे.

गया जी में किया जाता है आत्म पिंडदान
बता दें कि मोक्षदायिनी फल्गू नदी के तट पर पितरों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध कर्म, पिंडदान और तर्पण किया जा रहा है. खास करके लोग यहां अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए यहां आते हैं. वहीं, कुछ तिर्थयात्री ऐसे भी हैं कि जो जीवित रहते हुए खुद का पिंडदान कर रहे हैं.

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भगवान जनार्दन मंदिर

साधु-संयासी करते हैं खुद का पिंडदान
कर गयासुर के द्वारा बसाये गए इस विष्णु नगरी में हर किसी को मोक्ष मिलता है. अमीर-गरीब, साधु-संन्यासी हर किसी को मोक्ष दिलाने के लिए विधि-विधान है. जो लोग अमीर हैं वह अपने पितरों के लिए पन्द्रह दिवसीय पिंडदान करते हैं. वहीं, जो लोग गरीब है वह बालू का पिंडदान देकर और फल्गू नदी में तर्पण कर अपने पितरों को मोक्ष दिला सकते हैं. उसी तरह साधु-संन्यासी जिनके वंश में कोई नहीं होता है उसके मोक्ष के लिए भी विधान है कि वो गया जी में आकर आत्म पिंडदान करते हैं.

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बने हुए प्राचीन मुर्ती

जनार्दन भगवान के मंदिर में होता है पिंडदान
गोप्रचार और मंगलगौरी पर्वत के ऊपरी भाग पर जनार्दन भगवान की मन्दिर है. जहां जनार्दन भगवान के प्रतिमा स्थित है. इस मंदिर में जीवित लोगों के लिए तिल रहित पिंडदान किया जाता है. यहां भगवान जनार्दन को पिता, पुत्र, पौत्र मानकर उनके हाथ में बिना तिल का ही पिंडदान दिया जाता है.

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सनातन धर्म के सभी भाषा में उखरे गए कुछ शब्द

आत्म पिंडदान करने के बाद नहीं ले सकते शुभ कार्य में भाग
इस मंदिर के पुजारी आकाश गिरी ने बताया साधु-संतों और संन्यासियों के लिए ये पिंडदान करने का स्थल है. यहां आत्म पिंडदान किया जाता है. यानी खुद जीवित रहते हुए पिंडदान कर लेना. जो यहां पिंडदान करते हैं वो प्रेतयोनि में चल जाते हैं. आत्म पिंडदान के बाद किसी शुभ कार्य में वो भाग नहीं ले सकेंगे. साथ ही उन्होंने बताया कि इस जगह पर ऐसे लोग भी आकर पिंडदान करते हैं जो घर से निराश हों. जिनको लगता है कि उनके मरने के बाद कोई पिंडदान नहीं करेगा, वो खुद का पिंडदान कर लेते हैं.

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पुरानी शैली में बनी मंदिर

पितृ पक्ष के द्वादशी तिथि को किया जाता है पिंडदान
मंदिर के पुजारी ने जानकारी देते हुए कहा कि पितृपक्ष के द्वादशी तिथि को आत्म पिंडदान करने का महत्व होता है. पिछले साल 20 लोगों ने यहां आत्म पिंडदान किया था. वहीं, इस साल एक या दो पिंडदान किया गया है. यहां लोग पिंडदान किसी को बताकर नहीं करते हैं. मन्दिर का दरवाजा खुला रहता है. यहां लोग साथ में ही पंडित को लेकर आते हैं और आकर पिंडदान करके चले जाते हैं.

खास रिपोर्ट

16वीं सदी में किया गया था मंदिर का निर्माण
मंदिर के बारे में जानकारी देते हुए पुजारी ने बताया कि यह मंदिर अति प्राचीन है. मन्दिर का चौखट अष्टधातु का है. इस चौखट के बगल में सनातन धर्म की सभी भाषाओं में कुछ शब्द उकेरे गए हैं. मन्दिर में भगवान विष्णु के 18वें अवतार जनार्दन भगवान की प्रतिमा स्थापित है. यह मन्दिर काफी पुरानी शैली से बनाया गया है. इस मन्दिर का निर्माण लगभग 16वीं ई. में किया गया था.

गया: मोक्षधाम गया जी में पितृपक्ष में लाखों श्रद्धालु अपने पितरों को मोक्ष दिलाने आते हैं. पितरों को पुत्र, पौत्र या कोई वंशज पिंडवेदी पर पिंडदान करके मोक्ष दिलाया जाता है, लेकिन इन सब से अलग गया जी में स्वयं का भी पिंडदान किया जाता है. अमूमन ये पिंडदान साधु-संन्यासी करते थे लेकिन कुछ दशकों से आत्म पिंडदान परिवार से निराश व्यक्ति भी करने लगे थे.

गया जी में किया जाता है आत्म पिंडदान
बता दें कि मोक्षदायिनी फल्गू नदी के तट पर पितरों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध कर्म, पिंडदान और तर्पण किया जा रहा है. खास करके लोग यहां अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए यहां आते हैं. वहीं, कुछ तिर्थयात्री ऐसे भी हैं कि जो जीवित रहते हुए खुद का पिंडदान कर रहे हैं.

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भगवान जनार्दन मंदिर

साधु-संयासी करते हैं खुद का पिंडदान
कर गयासुर के द्वारा बसाये गए इस विष्णु नगरी में हर किसी को मोक्ष मिलता है. अमीर-गरीब, साधु-संन्यासी हर किसी को मोक्ष दिलाने के लिए विधि-विधान है. जो लोग अमीर हैं वह अपने पितरों के लिए पन्द्रह दिवसीय पिंडदान करते हैं. वहीं, जो लोग गरीब है वह बालू का पिंडदान देकर और फल्गू नदी में तर्पण कर अपने पितरों को मोक्ष दिला सकते हैं. उसी तरह साधु-संन्यासी जिनके वंश में कोई नहीं होता है उसके मोक्ष के लिए भी विधान है कि वो गया जी में आकर आत्म पिंडदान करते हैं.

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बने हुए प्राचीन मुर्ती

जनार्दन भगवान के मंदिर में होता है पिंडदान
गोप्रचार और मंगलगौरी पर्वत के ऊपरी भाग पर जनार्दन भगवान की मन्दिर है. जहां जनार्दन भगवान के प्रतिमा स्थित है. इस मंदिर में जीवित लोगों के लिए तिल रहित पिंडदान किया जाता है. यहां भगवान जनार्दन को पिता, पुत्र, पौत्र मानकर उनके हाथ में बिना तिल का ही पिंडदान दिया जाता है.

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सनातन धर्म के सभी भाषा में उखरे गए कुछ शब्द

आत्म पिंडदान करने के बाद नहीं ले सकते शुभ कार्य में भाग
इस मंदिर के पुजारी आकाश गिरी ने बताया साधु-संतों और संन्यासियों के लिए ये पिंडदान करने का स्थल है. यहां आत्म पिंडदान किया जाता है. यानी खुद जीवित रहते हुए पिंडदान कर लेना. जो यहां पिंडदान करते हैं वो प्रेतयोनि में चल जाते हैं. आत्म पिंडदान के बाद किसी शुभ कार्य में वो भाग नहीं ले सकेंगे. साथ ही उन्होंने बताया कि इस जगह पर ऐसे लोग भी आकर पिंडदान करते हैं जो घर से निराश हों. जिनको लगता है कि उनके मरने के बाद कोई पिंडदान नहीं करेगा, वो खुद का पिंडदान कर लेते हैं.

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पुरानी शैली में बनी मंदिर

पितृ पक्ष के द्वादशी तिथि को किया जाता है पिंडदान
मंदिर के पुजारी ने जानकारी देते हुए कहा कि पितृपक्ष के द्वादशी तिथि को आत्म पिंडदान करने का महत्व होता है. पिछले साल 20 लोगों ने यहां आत्म पिंडदान किया था. वहीं, इस साल एक या दो पिंडदान किया गया है. यहां लोग पिंडदान किसी को बताकर नहीं करते हैं. मन्दिर का दरवाजा खुला रहता है. यहां लोग साथ में ही पंडित को लेकर आते हैं और आकर पिंडदान करके चले जाते हैं.

खास रिपोर्ट

16वीं सदी में किया गया था मंदिर का निर्माण
मंदिर के बारे में जानकारी देते हुए पुजारी ने बताया कि यह मंदिर अति प्राचीन है. मन्दिर का चौखट अष्टधातु का है. इस चौखट के बगल में सनातन धर्म की सभी भाषाओं में कुछ शब्द उकेरे गए हैं. मन्दिर में भगवान विष्णु के 18वें अवतार जनार्दन भगवान की प्रतिमा स्थापित है. यह मन्दिर काफी पुरानी शैली से बनाया गया है. इस मन्दिर का निर्माण लगभग 16वीं ई. में किया गया था.

Intro:मोक्षधाम गया जी मे पितृपक्ष में लाखों श्रद्धालु अपने पितरों को मोक्ष दिलाने आते हैं। पितरों को पुत्र, पौत्र या कोई वंशज पिंडवेदी पर पिंडदान करके उनको मोक्ष दिलाया जाता है। लेकिन इससे इतर गया जी मे स्वंय का भी पिंडदान किया जाता है। अमूमन ये पिंडदान साधु-सन्यासी करते थे लेकिन कुछ दशकों से आत्म पिंडदान परिवार से निराश व्यक्ति भी पिंडदान कर रहा है।


Body:मोक्षदायिनी फल्गू नदी के तट पर श्राद्ध का महाकुंभ लगा है। इस महाकुंभ में तीर्थयात्री अपने पितरों को मोक्ष दिलाने के लिए पिंडदान और तर्पण करते हैं लेकिन कुछ पिंडदान ऐसे होते है जो खुद का पिंडदान करते हैं। जीवित रहते हुए खुद का पिंडदान गया जी मे करते हैं।

गयासुर के बसाया इस विष्णु नगरी में हर किसी को मोक्ष मिलता है अमीर- गरीब, साधु- सन्यासी हर किसी को मोक्ष दिलाने के लिए विधि विधान हैं। जो लोग धन और समय से अमीर है अपने पितरों के लिए पन्द्रह दिवसीय पिंडदान करते हैं। जो लोग धन और समय से गरीब है फल्गू नदी में तर्पण कर बालू का पिंडदान देकर अपने पितरों को मोक्ष दिला सकते हैं। उसी तरह साधु सन्यासी के लिए विधान है साधु सन्यासियों का परिवार से कोई लेना देना नही रहता है वैसे सन्यासी गया जी मे आकर आत्म पिंडदान करते हैं।

गोप्रचार एवं मंगलगौरी पूजा के ऊपरी भाग पर पर्वत पर जर्नादन भगवान की मन्दिर है उसी मंदिर में जनार्दन भगवान के प्रतिमा स्थित है। जहां अपना या जीवित पुरुषों के तिल रहित पिंडदान किया जाता है। यहाँ भगवान जनार्दन को पिता ,पुत्र, पौत्र मानकर उनके हाथ मे बिना तिल का पिंडदान दिया जाता है। यहां दही, चावल का पिंडदान दिया जाता है।

मंदिर के पुजारी आकाश गिरी ने बताया साधु-संतों और सन्यासियों के लिए ये पिंडदान करने का स्थल है। यहां आत्म पिंडदान किया जाता है यानी खुद जीवित रहते हुए पिंडदान कर लेना। जो यहां पिंडदान करते हैं वो प्रेतयोनि में चल जाते है। आत्म पिंडदान के बाद किसी शुभ कार्य मे भाग नही ले सकेंगे।

बहुत से ऐसे लोग हैं जो सन्यासी नही है फिर भी यहां आकर आत्म पिंडदान करते हैं। वो लोग वही होते जो घर से निराश हैं या उनको लगता है मेरे मरने के बाद मेरा कोई पिंडदान नही करेगा। वैसे लोग यहां आकर पिंडदान करते हैं।

पिछले वर्ष 20 के लगभग पिंडदान हुआ था इस वर्ष एक या दो पिंडदान किया गया। ये किसीको बताकर पिंडदान नही करते हैं। उधर से ही पंडित लेकर आये मन्दिर का दरवाजा खुला रहता है। आकर पिंडदान करके चले जाते हैं। आत्म पिंडदान करने का पितृपक्ष में द्वादशी तिथि को हैं।





Conclusion:मंदिर अति प्राचीन है मन्दिर के चौखट अष्टधातु का है चौखट के बगल में सनातन धर्म के सभी भाषा मे कुछ शब्द उखरे गए है। मन्दिर में भगवान विष्णु के 18 वे अवतार जनार्दन भगवान है। मन्दिर में काफी पुरानी शेली से बनाया गया है लगभग मन्दिर का निर्माण 16 वी ई में किया गया है। मन्दिर में परिसर में गन्दगी का अंबार लगा हुआ है उसी गन्दगी के बीच हिन्दू देवी देवताओं के टूटी मूर्तिया रखी गयी हैं बताया जाता है ये मंदिर को और इसके अंदर के मूर्तियों मुगलों ने तोड़ दिया था।
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