गया: मोक्षधाम गया जी में पितृपक्ष में लाखों श्रद्धालु अपने पितरों को मोक्ष दिलाने आते हैं. पितरों को पुत्र, पौत्र या कोई वंशज पिंडवेदी पर पिंडदान करके मोक्ष दिलाया जाता है, लेकिन इन सब से अलग गया जी में स्वयं का भी पिंडदान किया जाता है. अमूमन ये पिंडदान साधु-संन्यासी करते थे लेकिन कुछ दशकों से आत्म पिंडदान परिवार से निराश व्यक्ति भी करने लगे थे.
गया जी में किया जाता है आत्म पिंडदान
बता दें कि मोक्षदायिनी फल्गू नदी के तट पर पितरों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध कर्म, पिंडदान और तर्पण किया जा रहा है. खास करके लोग यहां अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए यहां आते हैं. वहीं, कुछ तिर्थयात्री ऐसे भी हैं कि जो जीवित रहते हुए खुद का पिंडदान कर रहे हैं.
साधु-संयासी करते हैं खुद का पिंडदान
कर गयासुर के द्वारा बसाये गए इस विष्णु नगरी में हर किसी को मोक्ष मिलता है. अमीर-गरीब, साधु-संन्यासी हर किसी को मोक्ष दिलाने के लिए विधि-विधान है. जो लोग अमीर हैं वह अपने पितरों के लिए पन्द्रह दिवसीय पिंडदान करते हैं. वहीं, जो लोग गरीब है वह बालू का पिंडदान देकर और फल्गू नदी में तर्पण कर अपने पितरों को मोक्ष दिला सकते हैं. उसी तरह साधु-संन्यासी जिनके वंश में कोई नहीं होता है उसके मोक्ष के लिए भी विधान है कि वो गया जी में आकर आत्म पिंडदान करते हैं.
जनार्दन भगवान के मंदिर में होता है पिंडदान
गोप्रचार और मंगलगौरी पर्वत के ऊपरी भाग पर जनार्दन भगवान की मन्दिर है. जहां जनार्दन भगवान के प्रतिमा स्थित है. इस मंदिर में जीवित लोगों के लिए तिल रहित पिंडदान किया जाता है. यहां भगवान जनार्दन को पिता, पुत्र, पौत्र मानकर उनके हाथ में बिना तिल का ही पिंडदान दिया जाता है.
आत्म पिंडदान करने के बाद नहीं ले सकते शुभ कार्य में भाग
इस मंदिर के पुजारी आकाश गिरी ने बताया साधु-संतों और संन्यासियों के लिए ये पिंडदान करने का स्थल है. यहां आत्म पिंडदान किया जाता है. यानी खुद जीवित रहते हुए पिंडदान कर लेना. जो यहां पिंडदान करते हैं वो प्रेतयोनि में चल जाते हैं. आत्म पिंडदान के बाद किसी शुभ कार्य में वो भाग नहीं ले सकेंगे. साथ ही उन्होंने बताया कि इस जगह पर ऐसे लोग भी आकर पिंडदान करते हैं जो घर से निराश हों. जिनको लगता है कि उनके मरने के बाद कोई पिंडदान नहीं करेगा, वो खुद का पिंडदान कर लेते हैं.
पितृ पक्ष के द्वादशी तिथि को किया जाता है पिंडदान
मंदिर के पुजारी ने जानकारी देते हुए कहा कि पितृपक्ष के द्वादशी तिथि को आत्म पिंडदान करने का महत्व होता है. पिछले साल 20 लोगों ने यहां आत्म पिंडदान किया था. वहीं, इस साल एक या दो पिंडदान किया गया है. यहां लोग पिंडदान किसी को बताकर नहीं करते हैं. मन्दिर का दरवाजा खुला रहता है. यहां लोग साथ में ही पंडित को लेकर आते हैं और आकर पिंडदान करके चले जाते हैं.
16वीं सदी में किया गया था मंदिर का निर्माण
मंदिर के बारे में जानकारी देते हुए पुजारी ने बताया कि यह मंदिर अति प्राचीन है. मन्दिर का चौखट अष्टधातु का है. इस चौखट के बगल में सनातन धर्म की सभी भाषाओं में कुछ शब्द उकेरे गए हैं. मन्दिर में भगवान विष्णु के 18वें अवतार जनार्दन भगवान की प्रतिमा स्थापित है. यह मन्दिर काफी पुरानी शैली से बनाया गया है. इस मन्दिर का निर्माण लगभग 16वीं ई. में किया गया था.